Pyar ki Arziya - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार की अर्जियां - भाग 7

बेबे : "क्या किस्मत पाई है मेरे पुत्तर ने...तभी संदीप का फोन आता है ..बेबे फोन उठाती है "हेलो पुत्तर जी...

संदीप : "बेबे कन्या कहा है वो फोन नहीं उठा रही है,कब से ट्राय कर रहा हूं...??

बेबे : " है ना पुत्तर जी कन्या घर पर ही है...!!

संदीप : तो फोन क्यो उठा नहीं रही है ,उसकी तबीयत तो ठीक है ना बेबे...??

बेबे : "संदीप पुत्तर तू छेती घर आजा सानु जरूरी बात करनी है तुझसे ...??

संदीप : "बात करनी है क्या बात है बेबे कुछ डॉक्टर ने पापाजी के बारे में कुछ कहा क्या ...??

बेबे : "तेरे पापाजी के बारे में नहीं पुत्तर कन्या और तेरे बीच की बात कर रही हूं इसलिए छेती घर आजा...??

संदीप : " क्या हुआ, कुछ जरूरी है तो फोन पर ही बोल दो ना...??

बेबे : "पुत्तर जी फोन पर क्या बोलूंगी और कितने देर तक बात करेंगे इसलिए पुत्तर छेती आ जाओ जी...??

संदीप फोन को डिस्कनेक्ट करता है और चेयर पर बैठे, "बेबे कुछ नाराज़ सी लगी कन्या और मेरे बीच की बात , कन्या से कोई गलती तो नहीं हुई जिसके कारण बेबे नाराज़ हो गई होगी आज वो लोग हॉस्पिटल गये थे क्या बात हुई होगी फिर फोन करता है रिंग जाता है लेकिन रिस्पॉन्स नहीं मिलता , कन्या को फोन लगाता है कन्या उठाती नहीं है..!!

संदीप सोच में पड़ जाता है अब कुछ तो पंगा हुआ है बेबे और कन्या के बीच क्या हो सकती है कही ..... तभी दरवाजा नॉक होता है .."कम इन .....

और एक एम्पलोई अंदर आता है " सर कुछ पेपर्स में सिग्नेचर चाहिए था ....

संदीप :"लाओ ..और एक फाइल को लेकर मिस्टर आहूजा और कुछ बचा है सिग्नेचर तो जल्दी लेकर आओ प्लीज आज मैं थोड़ा जल्दी घर निकलूंगा सिग्नेचर करते हुए ....!!

कुछ देर बाद...

संदीप ऑफिस से निकलता है और फोन पर ड्राइवर को घर चलने बोलता है फिर फोन कट करके पार्किंग एरिया के तरफ जाता है वहां पहुंचता है और ड्राइवर गाड़ी को सामने लाकर खड़े करता है संदीप गाड़ी के पीछे दरवाजा खोलकर बैठता है और गाड़ी चल पड़ती है...."संदीप आंखें बंद कर बीते दिनों को सोचते हुए फ्लैशबैक में जाता है कैसे कन्या और उसकी मुलाकात हुई थी कैसे सिचुएशन से वो गुजरा था वो....

फ्लैशबैक....

संदीप : "मेरी नौकरी के चौथी साल और दूसरी ट्रांसफर थी और वो था बैंगलोर ,, बैंगलोर में मुझे रहते छः महीने बीत चुके थे अब इस शहर को थोड़ी - थोड़ी जानने लगा था मुझे बैंक के द्वारा ही आलिशान फ्लैट और बड़ी सी गाड़ी मिली थी और नौकर भी मिला गया था वैसे वो सभी काम कर लेता था , पैरेंट्स जी उसे तो बस अपना ही शहर अच्छा लगता था इसलिए मैं ही मिलने जाता था महीने दो महीने में दो - तीन दिन की छुट्टी लेकर,,,,,,,,,,

एक दिन मैं अपने केबिन में फाइलों में पड़ा था , फिर अचानक ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज आई, मैंने अपना घड़ी देखा तो दोपहर के बारह पंद्रह हो रहा था ,, फिर मैंने प्यून के लिए घंटी बजाई प्यून आया .."उसने जी सर कहा..!!

मैंने उसे पूछा बाहर इतनी शोर कैसा..??

प्यून ने जवाब दिया ,"सर कोई आदमी आया है फायनेश के लिए ,वो कह रहा है उसकी काम क्यो नही हो रही है जबकि उसने सारे पेपर्स दे दिया है तो प्रोसेस कर्मों नहीं हो रहा है..प्यून ने अपनी बात खत्म किया..!!

फिर मैं अपने चेयर से उठकर बाहर आया जहां एम्प्लोई कि बहुत से चैंबर्स बने थे ,मैने कदम उस शख्स के तरफ बढ़ा दिए और वो मेरे साइड पीछे करके खड़ा था पहनावे से लग रहा था वो कोई बड़ा बिजनेसमैन हैं , फिर मैंने उसके पीछे पीठ में हल्का सा हाथ रखा तब तक मेरे एम्पोलोई बिल्कुल शांत हो गया मुझे देखकर ,वो शख्स मेरे सामने हुए अपने गुस्सा वाली चेहरा लेकर ..!!

मैंने मुस्कुरा कर कहा क्या परेशानी है आपको मुझे बताओ ..??

वो शख्स ने सवाल किया, "आप कौन हैं ..??

मैं बोलता उससे पहले मेरे एम्पलोई में से कोई एक ने आकर कहा ,सर ये हमारे एमडी है, यहां के ब्रांच मैनेजर हैं ...

फिर वो शख्स - थोड़ा शांत होकर मेरा नाम कृष्णकांत कमावात है " सर ,मैं यहां बैंक में पिछले एक महीने से लोन के लिए घूम रहा हुं आपके एम्पलोई मुझे फार्म के लिए यहां जाओ वहां जाओ ये एप्लिकेशन सबमिट नहीं है वो सबमिट नहीं है बोलकर मुझे घूमा रहा है......

मैंने कहा : "चलिए मेरे केबिन में वही बात करते हैं और आप आपना डाक्यूमेंट को वहां दिखाइए ,,,,

कृष्णकांत कमावात : " मैंने यही जमा कर दिया है सभी डाक्यूमेंट को अभी मेरे पास,, बोलते हुए उसकी नज़र बाहर दरवाजे पर गई तो उसकी नज़रों को पीछा करते मेरी नज़र बाहर दरवाजे के तरफ गई तभी एक पतली दुबली लड़की पानी में भीगी हुई सफेद सलवार चुड़ीदार पैजामा चुनरी भी सफेद पूरे भीगे हुए,, कांच के ही दरवाजे से अंदर आती हुई दिखाई पड़ी, मैं उसे देख ही रहा था जैसे जैसे पास आती जा रही थी मैं उसके पहनावे को देखते जा रहा था वो लड़की बेहद खूबसूरत लग रही थी, काले बालों पर गजरा लगा हुआ और बाल कमर तक लटक रहे थे, कान में छोटे छोटे ईयरिंग आंखें बड़ी बड़ी,, माथे पर छोटी सी बिंदी जिसमें चंदन की टीका लगा है , होंठ गुलाबी रंग के , उसे देखने से लग ही रहा था वो साऊथ इंडियन लड़की है वो लड़की अब पास आ गई और साउथ इंडियन लेंग्वेज में ही मेरे पास में खड़े कृष्णकांत जी से ही बात करने लगी....!!

उन दोनों की बात मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आया,, मैं सिर्फ दोनों के चेहरे और मुंह के एक्सप्रेसन को देखें जा रहा था, और कुछ समझ में आ रहा था वो है "मंगू .. !!
उस खूबसूरत लड़की ने एक फाइल दिया उसे और वापस मुड़ी और चलते बनी इस बीच मैंने उसकी आंखों को भली-भांति देखा जो देखने में सुंदर तो थी लेकिन बेजान थी कोई चमक नहीं थी उन आंखों में ....!!

मैं उस लड़की को देख ही रहा था जाते हुए और कृष्णकांत जी मेरे तरफ देखकर बोलने लगा तब मेरी ध्यान कृष्णकांत कमावात के ऊपर आया फिर मैंने कहा चलिए मेरे केबिन में बैठकर बात करते हैं मैं चल पड़ा अपने केबिन के तरफ और मेरे पीछे चलने लगा वो,, मैं अपने केबिन के बाहर खड़े प्यून को दो कॉफी बोल लेकर आने के लिए और दरवाजा खोलकर अंदर गया...!!

मैं अपने सीट पर बैठे उसकी डाक्यूमेंट फाइल देख रहा था इतने में प्यून कॉफी लेकर आया और एक कॉफी के मग मेरे सामने रखा और दूसरा मग को कृष्णकांत कमावात जी के सामने रखा और प्यून चला गया केबिन के बाहर ... मैंने उसे कॉफी पीने के लिए कहा और मैंने अपना मग लिया फिर टेबल में रखी फाइलों को बंद किया और कहा इसमें एक "एटीन बी, पेपर मिसिंग है आप उसे लेकर आइए फिर आगे प्रोसेस होगी ...!!

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