44.यह तो होना ही है
इस विश्वरूप के एक भाग में जब अर्जुन ने बड़े गौर से देखा तो वहां उन्हें दुर्योधन समेत धृतराष्ट्र के पुत्र, युद्ध लड़ने के उपस्थित अनेक राजा, स्वयं पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और कर्ण और अनेक कौरव योद्धा इस विश्वरूप के विकराल भयानक मुखों में बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रवेश करते दिखाई दिए।
अर्जुन चिल्ला उठे:अरे! ये सब तो स्वयं काल के मुख में जा रहे हैं। यह श्री कृष्ण के विश्वरूप में इस तरह प्रवेश कर रहे हैं जैसे समुद्र में उफनती वेगवान नदियां भी शांत होकर प्रवेश कर जाती हैं।
अर्जुन रोमांचित हैं तो उनके मन में भय भी है। कभी यह विश्वरूप अति भयंकर दिखाई देता है तो कभी सौम्य रूप में संपूर्ण ब्रह्मांड और अनेक आकाशगंगाओं को अपने में समेटे हुए। मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास में जितनी घटनाएं अर्जुन ने पढ़, देख और सुन रखी हैं, वे सभी इस विश्वरूप में घटित होती हुई दिखाई दे रही हैं और आगे भी अनेक ऐसी घटनाएं दिखाई दे रही हैं, इनमें से कुछ को तो अर्जुन समझ पा रहे हैं लेकिन अनेक दृश्य अभी भी उनके लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं।
अर्जुन देख रहे हैं, छह कौरव महारथी मिलकर एक किशोरवय के बालक को घेरे हुए हैं और उस पर निर्ममता से प्रहार कर रहे हैं…. अर्जुन चेहरा पहचानने का प्रयत्न करते हैं। अब यह आकृति धुंधली हो गई ….. अरे यह क्या? यह तो पांचाली है…. पांचाली के केस खुले हुए हैं और यह एक पात्र में लाल द्रव्य लेकर अपने खुले केशों में लेपन क्यों कर रही है?..... अर्जुन अब इस विश्वरूप को और इसमें घटित हो रही घटनाओं को स्पष्ट रूप से देख पाने में असमर्थ हैं ….वे आपस में इनका संबंध और कोई तारतम्य ढूंढने में भी सफल नहीं हो पा रहे हैं ऐसे में वे अपनी आंखें बंद कर लेते हैं।
तभी एक धीर गंभीर वाणी अर्जुन के कानों में सुनाई दे। यह विश्वरूप, अर्जुन से कुछ कहने लगे।
विश्वरूप श्री कृष्ण: हे भक्तराज! मैं लोगों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूं और इस युद्ध में सभी को नष्ट करने के लिए प्रयुक्त हुआ हूं। जिन लोगों को तुमने अभी देखा है, वे सभी इस युद्ध में मारे जाने वाले हैं। अगर तुम युद्ध नहीं लड़ते हो तब भी ये मारे ही जाएंगे और उनका नाश सुनिश्चित है। तुम उठो अर्जुन!शस्त्र उठाओ। इस युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करो और धन-धान्य से परिपूर्ण अपने राज्य को प्राप्त करो। अपने कर्तव्यों का पालन करो और सुख भोगो। ये सब शूरवीर तो मेरे द्वारा पहले से ही मारे गए हैं और हे बाएं हाथ से भी कुशल बाण चलाने वाले वीर अर्जुन! तुम केवल निमित्त मात्र बन जाओ। यह सभी तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं। उठो, अपने कर्तव्य निभाओ और युद्ध करो।
अर्जुन के दोनों हाथ प्रार्थना में पुनः जुड़ गए। उन्होंने आज श्री कृष्ण का दिव्य विश्वरूप देखा है जो अत्यंत दुर्लभ है और श्री कृष्ण की कृपा से ही देखने योग्य है। श्री कृष्ण के इस रूप में अर्जुन ने संपूर्ण सृष्टि को देख लिया और यह एक विलक्षण अवसर था।
अर्जुन: हे प्रभु! मैंने आपको अपना मित्र जानते हुए प्रेम पूर्वक या असावधानीवश आलस्य में कभी हे कृष्ण! हे यादव !हे सखे! इस तरह संबोधित किया है तो भी आप मेरे द्वारा अनायास किए जाने वाले इस अपराध को क्षमा करिए। मैंने विनोद के लिए विहार, शय्या, आसन, भोजन आदि के लिए अकेले या अन्य सभी के सामने कभी आपका जाने- अनजाने अपमान किया हो तो भी आप मेरे अपराधों को क्षमा करें। हे प्रभु। मैं आपका चतुर्भुज रूप पुनः देखना चाहता हूं।
श्री कृष्ण का यह अनंत विस्तार अब धीरे-धीरे केंद्रीभूत होने लगा और वे चतुर्भुज रूप में आ गए। विष्णु भगवान के इस चतुर्भुज रूप को देखकर अर्जुन धन्य हो उठे। उनकी आंखों से आनंद के आंसू बहने लगे।