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नन्हा फरिश्ता

वाजिद हुसैन की कहानी-मार्मिक

उत्तर प्रदेश के तराई में एक छोटा सा इलाका है। यहां अधिकतर सिखों के फॉर्म हाउस है। मजदूरों और कामगारों की अलग बस्ती है। एक झोपड़ी में एक मछुआरा और उसका बेटा रहता था। 'गोलू' तो उसका नाम उसकी मां ने रखा था जो पुकारने से पहले, बेटे को अलविदा कह गई थी। मछुआरा मछली पकड़ने जाता, गोलू झोपड़ी के बाहर चबूतरे पर बैठा अब्बा का इंतिज़ार करता मछली बेचकर लौटने तक।

मज़दूरों की बस्ती में दशहरा मेला लगा था। रावण के बड़े से पुतले को देखकर गोलू ने अब्बा से मेले चलने को कहा। अब्बा ने दर्द भरे लहजे में कहा, बेटा, दशहरे में मछली की बिक्री बंद है। पास-पल्ले कुछ नहीं है, फिर भी एक चक्कर लगा आते हैं। मेले में एक बांसुरी बेचने वाला बांसुरी बेच रहा था। मन बहलाने के लिए गोलू बांसुरी की धुन पर नाचने लगा‌। उसे नाचता देख, मेला देखने आए बच्चे बांसुरी ख़रीदकर बजाने लगे। इस तरह बांसुरी वाले की सभी बांसुरी बिक गई। खुश होकर उसने गोलू को एक बांसुरी इनाम में दी। वह खुशी-ख़ुशी बांसुरी बजाता हुआ घर लौटा।

उसकी झोपड़ी के सामने नदी थी, एक ओर गोभी का खेत था, जिसमें खरगोश रहते थे, एक पानी से भरे गड्ढे में मेंढक रहते थे। गोलू बांसुरी बजाता, आवाज़ से डरकर खरगोश अपने बिल में घुस जाते, मेंढक पानी में कूद जाते, मछलियां गहरे पानी में चली जाती थी। यह देखकर उसका मन दुखी हो जाता था। कुछ दिनों बाद बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनकर वे आनंदित होने लगे -मेंढक टर-टर करने लगते, खरगोश नाचने लगते और मछलियां किनारे पर पानी में छप- छप करने लगती थी।

एक दिन गोलू बांसुरी बजा रहा था, उसके दोस्त नाच-गा रहे थे तभी एक हाथी का बच्चा आया‌। उसने मेंढकों से कहा, मैं तुम्हारे साथ नाचना चाहता हूं। उन्होंने कहा न बाबा न, हमें तुम्हारे पैरों तले नहीं कुचलना‌ फिर उसने खरगोशों से साथ नाचने को कहा। उन्होंने भी यही उत्तर दिया। हाथी के बच्चे को उदास होकर जाता देख, गोलू ने बांसुरी बजाई। हाथी का बच्चा झूमकर नाचने लगा‌। उसे नाचते देख पास के फार्म हाउस से एक लड़की आई और दूर खड़ी उसे नाचते देखती रही। फिर दोनों थोड़ा-थोड़ा आगे बढे। लड़की ने उसे अपना नाम गिन्नी बताया और लड़के ने अपना नाम गोलू बताया। इस तरह दोनों में दोस्ती की शुरुआत हुई।

गिन्नी ने घर वापस जाकर मम्मी को जादुई बांसुरी बजाने वाले लड़के के बारे में बताया। फिर एक दिन परमीत कौर गोलू की बांसुरी सुनने उसकी झोपड़ी पर आईं। उसकी बांसुरी की ध्वनि ने उनका मन मोह लिया। उसके बाद जब उनका हृदय व्याकुल होता, वह गोलू को बुला लेती थीं। गोलू बांसुरी बजाता और वह वाहे गुरु के लिए सिख भक्ति गीत गाती। मन शांत होने के बाद वह उसे इनाम देती जो वह लेता नहीं था।

एक दिन दोनों बच्चे तितलियां पकड़ते‌ हुए झाड़ियों में चले गए। वहां एक नाग व नागिन का जोड़ा देखकर चिल्ला पड़े। उनकी आवाज़ सुनकर नौकर पहुंच गया। उसने नाग को मार दिया, नागिन फुंकारती हुई चली गई। सरदार जी को पता चला, उन्होंने विचलित होकर कहा, 'बच्चों को सावधान रहने की ज़रूरत है, नागिन अपनी आंखों में फोटो उतार लेती है और नाग की मौत का बदला लेती है।'

नदी में एक बहुत बड़ी मछली थी जो मछलियों की रानी थी। एक दिन गोलू बांसुरी बजा रहा था जिसकी धुन पर वह नाच रही थी‌। मछुआरा गुस्से में बोला, 'नाचने- गाने से पेट नहीं भरेगा। मेरे साथ चलकर मछली पकड़ना सीख।' गोलू ने कहा, 'अब्बा, मछलियां पकड़ना ठीक नहीं है।' मछुआरे ने कहा, 'घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?' बेचारा गोलू बुझे मन से अब्बा के साथ नदी में चला गया। मछुआरे ने नदी में जाल डाला। गोलू को देखकर रानी मछली लापरवाह थी, जाल में फंस गई। गोलू को लगा, उसके कारण ही उसकी दोस्त की जान पर बन आई। उसने चुपचाप जाल की रस्सी खोल दी और वह नदी में चली गईं‌। मछुआरा बुरा- भला बकता हुआ उसे मारने लगा। वह बचने के लिए भागा और नदी की धारा में बह गया। उसके अब्बा ने उसे बचाने का बहुत प्रयत्न किया पर बचा न सका। ... गोलू की हल्की बांसुरी ने उसे डूबने नहीं दिया था। रानी मछली ने उसे बहते देखा तो उसे धकेलती हुई नदी में ऊची जगह पर ले गई। गोलू ने वहां से बांसुरी बजाई‌ जिसकी आवाज़ सुनकर हाथी का बच्चा नदी में गया और अपने दोस्त को पीठ पर बिठाकर ले आया।

गोलू को सही सलामत देखकर उसके सभी दोस्त नाचने- गाने लगे। अब्बा भी उनके साथ नाचने लगा। उसने मछलियों से कहा, 'आज मेरे बेटे की जान पर बनी, तो मुझे एहसास हुआ, तुम्हारे बच्चों की जान लेना कितना बुरा है? अब चाहे भूख से मर जाऊं, मछलियां नहीं पकड़ूंगा।'

मछुआरा काम की तलाश में भटकता रहा पर काम नहीं मिला। घर में जो कुछ खाने को था, ख़त्म हो चुका था। गोलू बेचारा भूखे पेट क्या बांसुरी बजाता। ...परमीत कौर चिंतित थी, गोलू की बांसुरी की आवाज़ सुनाई नहीं पड़ रही थी। वह उसकी झोपड़ी पर गई तो मछुआरे ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा, 'अगर तुम दोनों को भूखे पेट कुछ हो जाता, तो हम वाहे गुरु को क्या जवाब देते?' वह उन्हें अपने साथ ले गई, खाना खिलाया और मछुआरे को नौकरी पर रख लिया।

कुछ दिनों से इस इलाके में एक अदृश्य अजनबी घात लगाकर घूमती फिर रही थी। उसका नाम काली नागिन था। वह निडर होकर चक्कर काटती और बीसियों के हिसाब से अपने शिकार बनाए। पर छोटी सी लड़की उस ज़हरीली नागिन के लिए कोई उपयुक्त शिकार नहीं थी फिर भी उसने गिन्नी के काट लिया।

गिन्नी अपने बिस्तर के अंदर बिना हिले- डुले‌ पड़ी थी। डाक्टर ने अपनी भौंह के इशारे से गिन्नी के पापा सरदार सुरजीत सिंह को कमरे से बाहर बुलाया, जहां गोलू अपने पापा के साथ खड़ा था। फिर कहा, 'उसके बचने की संभावना दस में से एक के बराबर है। और यह एक की संभावना भी तब ही है जब वह जागती रहे‌।

'मैं अपनी बच्ची के लिए रातभर थाली बजाता रहूंगा।' सरदार जी ने भीगी आंखों और रूंधे गले से कहा।

'थाली से जगाए रखना तो छोटी बच्ची के लिए और भी घातक हो सकता है।' डॉक्टर ने नसीहत के लहजे में कहा।

गोलू ने बड़े भरोसे से कहा, 'मैं अपने दोस्त को हर हाल में जगाए रखुंगा। ... डाक्टर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा। ...गोलू बांसुरी बजाने लगा। ... डॉक्टर ने कहा, इस दर्द भरी आवाज में कोई सो नहीं सकता।' उसने शाबाश, कहकर उसकी पीठ थपथपाई। उसके बाद सरदार जी को एक दवा देते हुए कहा, 'होश में आने पर हर घंटे, दो चम्मच दवा पिलाते रहना, नीले रंग की उल्टियों से ज़हर निकल जाएगा।

गोलू बांसुरी बजाने लगा। देर रात गिन्नी ने गोलू से होंठ फड़फड़ा कर कुछ कहा। शायद उसने नागिन को गोलू की तरफ आते देख लिया था। तभी नागिन ने फुंकारकर गोलू पर हमला कर दिया। उसके अब्बा ने नागिन का फन पकड़ लिया। गोलू बच गया पर उसने अब्बा को डस लिया।

डॉक्टर ने सरदार जी से कहा, 'यह ख़तरे से बाहर है। यह जीत गई। अब खिलाई- पिलाई, देखभाल - और कुछ नहीं करना।'

अब्बा की मईयत को दफनाने के बाद, गोलू अकेला झोपड़ी के बाहर बैठा था। ... सरदार जी और परमीत कौर गोलू के पास गए और उससे हमेशा के लिए साथ रहने को कहा। गोलू ने कहा, 'आप सिख हैं, मैं मुसलमान हूं, मैं आपके साथ कैसे रह सकता हूं?' परमीत कौर ने कहा, 'तुमने हमारी बेटी की‌‌ जान बचाई, तुम हमारे लिए नन्हा फरिश्ता हो।' फरिश्ते का कोई धर्म नहीं होता। सभी उसके मां-बाप भाई बहन होते हैं।'

गोलू की आंखों से दो बूंद आंसू टपके, जो ख़ुशी के थे। और उनके साथ चला गया। नागिन के डर से सरदार जी ने दोनों बच्चों को नवोदय विद्यालय पढ़ने भेज दिया।

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