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चंदेल दी ट्री-लवर

वाजिद हुसैन की कहानी- मार्मिक

चंदेल अपने को महाराजा राव विद्याधर का वंशज कहता था जिन्होंने गजनी के महमूद को खदेड़ा था। खजुराहो मंदिर का निर्माण चंदेल राजाओं द्वारा किया गया था। ऊंचा क़द, तांबई रंग त्वचा और उभरी हुई पसलियां, मटमैली धोती और पगड़ी।

वह जंगल में वन रक्षक था। पग में पूरा जंगल नाप डालते था। वह वामन- अवतार न होकर चन्द्र-अवतार था। जो जंगल पहाड़ झरने के चप्पे- चप्पे से परिचित था। ऊची फसल में अगर कोई बच्चा गुम जाये तो आश्चर्य नहीं। चंदेल अपने ऊंचे कद के कारण ही ऊंची फसल के बीच भी आसानी से दिख जाता था।

अलसुबह ही मुंह में दातुन दबाये ओठों में चंदेली गीत गाते वह चल पड़ता था, जंगलों की ओर बतियाते ...!

पेड़ों से वह पूछता।

क्या हुआ तुम्हें?

पेड़ हिलकर अपनी पीली पत्तियां गिराते। वह समझ जाता पत्तों को धूप तेज़ लग रही है।

अपनी बोली में कहता, 'बस थोड़ी देर और फिर धूप चली जायेगी।' कौन सा तुम्हारी सुसराल वाले आ है? गोरे दिखनेे के लिए मरे जा रहे हो।

रास्ते में राह- भटकी नौजवान बेलों को सही रास्ते लाना उसे बख़ूबी आता था। उनसे कहता, 'सही रास्ते पर रहो! तुम्हारी ‌फूलो से भरी लताएं ऐरा-गैरा पर डोल जाती हैं, नाक कट जाएगी।

सेमल से पूछता, 'तुम्हारा शिशु कहां है?'

कटहल, 'तुम क्यों धौस जमा रहे थे?'

तेंदू तुम आजकल ज़रा कड़वे हो रहे हो।'

आख़िर फोरेस्ट ऑफीसर, ठाकुर साहब तक यह बात जा पहुंची। हुनर अपनी चुगली की जुगाली ख़ुद ही कर देता है। ठाकुर साहब ने उसको बुलाया और अपने बंगले पर तैनात कर दिया। उनके साथ रोज़ उसका उठना-बैठना था। रोज़ उनके घर पर जंगलों की बातें होती। ठाकुर साहब की सूनी आंखें और उदासी जाने क्या कहती कि निरक्षर चंदेल समझ जाता।

जाने कैसी दोस्ती थी?

शहरिया और गंवईया में।

पढ़े-लिखे और निरीक्षर में।

दोस्ती तो अहसास की पगडंडियों पर चढ़ते हुए परवान चढ़ती है। और जो जैसा है उसी भाव से फलती- फूलती है।

पूरा जंगल उसकी हां में हां मिलाता था।

चंदेल का परिवार पुश्तैनी गांव में रहता था। उसकी पत्नी अपने तीनो बेटो की शिक्षा पर बहुत ध्यान देती थी। उसके दो लड़के सरकारी स्कूल में मास्टर हो गए थे और छोटा लड़का वकालत पढ़ रहा था। उसने अपने गांव में ज़मीन खरीद कर घर बनवा लिया था।

ठाकुर साहब के बंगले में जामुन का पेड़ था जो मीठे-मीठे फुलैंदा जामुन से लदा था। चंदेल उससे कहता, 'दोस्त, रिटायरमेंट के बाद मुझे भले ही किसी की याद आए या न आए, तेरी याद बहुत सताएगी।' ... जामुन कहता, 'लंबू, मुझे भी अपने संग ले चल ना, इस बहाने तेरा गांव भी देख लुंगा।' ... 'मूर्ख यह तो सोच, रेलगाड़ी में कैसे समाएगा?' उसने कहा। और दोस्त हंस पड़े।

फिर जामुन ने लंगोटिया यार के लहजे में कहा, 'अच्छा ऐसा कर, 'मेरे बच्चे को ले जा। यह मरते दम तक तुझे मेरी याद दिलाएगा।' चंदेल बहुत खुश हुआ, गमले में जामुन के बच्चे को लगाकर अपने गांव ले गया और अपने आंगन में लगा दिया।

कुछ वर्ष बाद चंदेल रिटायर हुआ। मन ही मन में भयंकर उथल-पुथल थी चंदेल के मन में। उसने छलछलाती आंखों से ठाकुर साहब से कहा, 'रिटायर तो एक दिन होना ही था, पर आप सबको छोड़कर जाने का गम बर्दाश्त नहीं हो रहा है। ठाकुर साहब ने भावुक होकर कहा, 'वन महोत्सव में ज़रूर आना, काम कर लेना, पैसा भी मिलेगा और दोस्तों से भी मिल लेना। उसने भावुक होकर उनके क़दमों में अपना सिर झुका दिया। फिर कहा, 'आप वह सौभाग्यशाली है, ' जिसके क़दमों में किसी चंदेल का सिर झुका है।'

तभी रेल की सीटी सुनाई पड़ी। वह तेज़ डग भरता हुआ रेल के हाल्ट की ओर गया और लंबा सफर तय करके अपने गांव की मेनरोड पर पहुंचा। वहीं से उसे अपने घर मे लगा, जामुनो से लदा पेड़ दिखाई दिया। उसे पत्नी याद आने लगी, जिसने इस नन्हें से बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा किया था, पर फल खाने से पहले ही दुनिया छोड़कर जा चुकी थी। वह पत्नी की मृत्यु पर घर आया था, लड़के उससे लिपटकर रोए थे। वह सोच रहा था, 'इस बार भी उसके बेटे उससे लिपटकर रोएंगे और वह उन्हें मां की तरह प्यार से दुलारेगा।

घर का दरवाज़ा खुला था। उसके बेटे गुस्से में भुनभुनाते हुए बोले, 'कैसा गंदा पेड़ लगाया है? सारा आंगन रपटन और चीटे, चीटियों से भरा है, सवेरे इसे काट दें, नहीं तो हम काट देंगे।' चंदेल ने गुस्से में कहा, 'ख़बरदार, जो मेरे जीते जी किसी ने इसको काटने का साहस किया।'

कुछ दिन घर पर रहने के बाद चंदेल वन महोत्सव में गया। उसे बुझा- बुझा सा देखकर ठाकुर साहब ने उससे परेशानी का कारण पूछा। उसकी गाथा सुनकर ठाकुर साहब भी चिंतित हो गए। इस बार चंदेल का मन जंगल में नहीं लगा, जल्दी वापस हो गया।

रात गहरा गई थी। वह मेन रोड से अपने गांव की ओर मुड़ा। घुप अंधेरे में वह जामुन के पेड़ के सहारे अपने घर पहुंचना चाहता था, पर उसे कोई जामुन का पेड़ लगा घर दिखाई नहीं दिया। उसे लगा, रास्ता भटक गया है। सड़क पर भौकते हुए कुत्तों ने उसकी मुश्किल और बढ़ा दी थी। वह रात भर अपना घर ढूंढता रहा‌, थक- हारकर पुलिया पर बैठ गया।

अलसुबह एक दूधिया केन में दूध लिए साइकिल से गुज़रा। चंदेल ने उनसे पूछा, 'इस गांव में एक जामुन का पेड़ लगा घर था, क्या तुमने देखा है‌?' दूधिये ने इशारा करके कहा, 'वह रहा, पर जामुन का पेड़ तो कब का कट गया। चंदेल तेज़ डग भरता हुआ घर पहुंचा। कटे पड़े पेड़ से लिपटकर रोने लगा। तभी उसके तीनों लड़के अपने-अपने कमरोंं से बाहर आए। उनके चेहरे पर विजय मुस्कान थी। चंदेल ने पागलो जैसी कड़क आवाज़ में लड़कों से कहा, 'तुमने पेड़ क्यों काटा ?' उस पर खून सवार हो गया और पेड़ के एक डंडे से लड़कों को बेतहाशा मारने लगा। लड़कों की चीख पुकार सुनकर आसपास के लोग आ गए। उन्होंने लड़कों को बचा लिया। अद्भुत नज़ारा था, कटे पेड़ की टहनियों पर लड़के चोटिल पड़े चीत्कार कर रहे थे।

चंदेल घर के बाहर आ गया। बेचारा चंदेल! जाने उसे क्या हो गया कि जो भी मिलता है, उससे रोकर पूछता है- तुमने मेरा जामुन का पेड़ लगा घर देखा है। वह खिसियानासा आगे बढ़ जाता था।

चंदेल की ग्राम प्रधान नूरुद्दीन से दोस्ती थी। वह उनकी मां के गाठिया के इलाज के लिए जंगल से जड़ी- बूटी लाकर देता था। नूरुद्दीन ने उसे भटकता देखकर, घर के हाते में ठहरा लिया था। कुछ दिनो बाद नूरुद्दीन के पिता की मृत्यु हो गई। वह उनके साथ मईयत को दफनाने कब्रस्तान गया। वहां उसे खरपतवार और जंगली पेड़ लगा, विशालकाय कब्रस्तान, जंगल जैसा लगा और उसमें लगा जामुन का पेड, ठाकुर साहब के बंगले में लगे पेड़ जैसा लगा। वह पेड़ के पास गया और तने से लिपटकर रोता रहा। उसके बाद वह पहले जैसा दिखाई दिया। उसने नूरुद्दीन को वहां से गठिया के इलाज की जड़ी- बूटी ढूंढकर दी।

उन्होंने उससे कहा, 'दोस्त, अगर तुम्हें यह जगह पसंद हो, तो यहीं रहने लगो। उसे लगा, दिली मुराद पूरी हो गई। एक बार फिर वह किसी इंसान के क़दमों में झुक गया।

गांव वाले बहुत खुश हुए। उन्हें एक केयर टेकर मिल गया था। उन्होंने उसके खाने-पीने और रहने-सहने की व्यवस्था कर दी। उसकी गांव वालों में अच्छी ख़ासी ट्यूनिंग हो गई थी। वह लइलाज बीमारियों की जड़ी-बूटियां उगानेे लगा था, जिंहे लेने मरीज़ दूर- दूर से आते थे। वह चमत्कारी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गया था।

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