वाजिद हुसैन की कहानी - मार्मिक
हर रोज़ झोपड़ी के चबूतरे पर बैठी हुई गुल्लू पिता को पगडंडी से ऊपर जाते हुए देखकर रूआंसी हो जाती, कहती, सपने में मां आई थी। मां ने पास आकर गुल्लू को गले से लगाया, 'गोद में बैठाया, उसके बालों को सहलाया।' मां का चेहरा याद नहीं रहता, फिर भी मिलने का संतोष बना रहता है। वह रोज़ पिता से कहती है, 'पप्पा मैंने एक सपना देखा।' उस समय मोहन भी नहीं पूछता कि गुल्लू ने सपने में क्या देखा। उसे मालूम है कि गुल्लू कौन-सा सपना देखती है। वह रोज़ एक ही सपना तो देखती है और काम पर जाते समय याद दिला देती है। हर रोज़ गुल्लू की ऐसे ही सुबह होती है, शाम होती है, मां की बाट जोहते।
मालिक की हवेली के सामने कड़ी दोपहर में तपते हुए सूरज के नीचे मोहन खड़ा है।...आधे घंटे के कठिन इंतेज़ार के बाद ज़मींदार का नौकर संदेश देता है- मालिक से आज मुलाक़ात नहीं होगी।' मोहन बिना मुलाक़ात किए कैसे चला जाए? जब मोहन की पत्नी ज़मींदार के घर आई थी, तो तय हुआ था कि कर्ज़ के पैसे वापस करते ही वह पत्नी को घर वापस ले जाएगा। लेकिन ऐसा हो ही नहीं पाया।... दो हज़ार का कर्ज़ लिया था उसने। दो हज़ार वह कहां से लाए? और उसका ब्याज? वह तो उसे मालूम भी नहीं कि कितना हो गया होगा। फिर भी वह ज़मींदार से पूछना चाहता है कि क्या एक हफ्ते के लिए वह अपनी पत्नी को घर ले जा सकता है? ….. बाहर खड़े मोहन को देखकर मालकिन बाहर आई और पूछा, 'मोहन यहां कैसे खड़े हो?'
'हुज़ूूर मैंने नंदिनी के बारे में मालिक से कहा था।' यह सुनते ही मालकिन मुंह फुला कर बिना कुछ जवाब दिए अंदर चली गई।... अब मोहन क्या करें? ... गुल्लू मां के बारे में पूछेगी, तो वह क्या जवाब देगा?... यह सोचते हुए मोहन भारी क़दमों से धीरे-धीरे घर लौट पड़ा। हवेली की दूसरी मंजि़ल से दो आंखें घने पेड़ों के बीच से गुज़रते हुए मोहन का पीछा करती हैंं, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो जाता। इसके बाद नंदिनी नीचे आकर दोपहर के भोजन के लिए ज़मींदार की प्रतीक्षा करती है। पान में लौंग, इलायची, कत्था, चूना सजा कर बीड़ा बनाती है। ... कपड़े बदलकर सजती-संवर्ती है और गुलाब जल छिड़क कर ज़मींदार की प्रतीक्षा करती है। कभी वह खिड़की पर खड़ी होती है, कभी फर्श पर बैठती है।... कुछ विचार उसके मन को मथने लगते हैं - अभी तक उसका पति पहुंच गया होगा। गुल्लू ने अपनी मां के बारे में पूछा होगा। मोहन ने फिर से अगली बार का वादा किया होगा, फिर गुल्लू ने क्या जवाब दिया होगा?
खट,खट,खट...। नंदिनी खड़ी हो जाती है।... ज़मींदार आता है और दरवाज़ा बंद करके सिटकनी चढ़ा देता है। ...नंदिनी पलंग के पायताने बैठकर पान बना रही है। ज़मींदार कहता है, 'मोहन आया था। तुम्हें पता है, वह किस लिए आया था? तुम सोचती हो मैं तुम्हें भेज दूंगा? नंदिनी चुपचाप ज़मींदार के सीने पर हाथ फेरती है। वह नंदिनी को आलिंगन में लेते हुए पास बैठने की जगह बनाता है।
ज़मींदार की मुंह लगी सेविका, सुभद्रा, नंदिनी से कहती है, 'ज़मींदार देह सुख चाहता है, आनंदित होने के बाद, वह तुम्हें गुल्लू से मिलवा देगा।' नंदनी पुत्री मिलन की कामना से देह मिलन की स्वीकृति दे देती है। थोड़ी देर में मालकिन और सेविका उसके पास आए। सेविका के हाथ में एक कटोरी में तेल, साबुन, धोबी के धुले व इस्त्री किए कपड़ों का एक जोड़ा था। नंदिनी सेविका के साथ तालाब पर चली गई। नहाने के बाद वह अच्छे कपड़े पहन कर लौटी थी। रसोईघर में उसे अच्छा खाना दिया गया था। उस समय सेविका का व्यवहार बेहतर था। ... मालकिन का व्यवहार भी दया पूर्ण था।
आज उस समय वह ज़मींदार के कंधे पर लेटे-लेटे सोच रही है। किस तरह वह रसोईघर से सीढ़ियां चढ़कर ऊपर ज़मींदार के शयनकक्ष तक पहुंच गई। दिन, महीने, साल धीरे-धीरे बीतते गए हैं। वह धीरे-धीरे इस माहौल की अभ्यस्त हुई है। उसे यह भी नहीं याद कि वह कौन है। कभी-कभी उसे अनुभव होता है- मेरा पति, मेरी बेटी, मेरा घर मेरा इंतेज़ार कर रहे हैं। क्या उसके जीवन का कोई अर्थ है?' हूं।'
एक सुबह रसोई घर में नंदिनी को ज़मींदार के लिए चाय बनाते समय मालकिन ने बताया, 'कल तुम्हारी बेटी आएगी। ज़मींदार ने तुम्हें नहीं बताया?'
' नहीं मालकिन' ... मोहन को किसी से संदेश भेजा था। ...' बेटी से मिले बिना बहुत समय बीत गया- कई साल। सालो का गणित भी वह भूल गई है। मेरी बेटी ब्याहने लायक हो गई होगी।
नंदिनी चाय लेकर ज़मींदार के कमरे में चली गई। ज़मींदार ने उठकर सिरहाने तकिया लगा कर पीठ को पीछे टिका दिया। पैरों को सीधा किया और सामने फैला दिया। नंदिनी उसके पायताने बैठ गई। 'मेरी बेटी को बुलाया है?' नंदिनी के प्रश्न में कृतज्ञता है।' 'हूं , वह कल आएगी और यहीं रहेगी।' भारी आवाज़ के साथ ज़मींदार ने कहा। ' ठीक है।' उसने जवाब दिया। 'तुम्हारी बेटी को देने के लिए मैंने नौकर से दो साड़ियां और चूड़ियां मंगवाई हैं।' 'अच्छा।' वह प्रसन्नता और संतोष से ज़मींदार कोे देखती है। ' तुम जानती हो, यह सब काम में क्यूं करता हूं? मैं तुमसे प्रेम करता हूं। तुम हर रोज़ मेरा ख्याल रखती हो। मैने मोहन का क़र्ज़ भी माफ कर दिया।
सेविका नंदिनी से कहती है, 'मोहन ने ज़मींदार से कर्ज़ लिया था, मूल तुमने चुकाया ब्याज गुुल्लू चुकाएगी।
असहाय नंदनी! ... बेबस, आंसू फूट पड़े। सहायता हेतु आदि शक्ति अंबिका की आराधना करने लगी। मां दुर्गा प्रकट हुई, जिन्होंने उसे पापी के विरुद्ध शस्त्र उठाने के लिए तैयार किया और निर्भीक हो जाने का आशीर्वाद दिया। रात को जमींदार उसके साथ कामक्रीड़ा के पश्चात गहरी निद्रा में था। नंदिनी ने उसी के शस्त्र से उस पर प्रहार किया और ज़मींदार के रूप में दुर्गमासुर दैत्य का अंत कर दिया।
चीत्कार सुनकर मालकिन आ गई। उसके चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता झलक रही थी जिसे देखकर नंदिनी हैरान थी। मालकिन ने नंदिनी से कहा, ' मेरे पिता ने ज़मींदार से कर्ज़ लिया था, जिसका मूल मेरी मां ने और ब्याज मैंने चुकाया।' 'काश मेरी भी तुम्हारी जैसी 'दुर्गा स्वरूप मा' होती, तो मुझे नर्क नही भोगना पड़ता। फिर दार्शनिक लहजे में बोली, 'मां तुम जैसी होंगी, तभी बेटी बचेगी।
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