डेविल्स क्वीन - भाग 13 Poonam Sharma द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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डेविल्स क्वीन - भाग 13

“सर!“ शेरा, अभिमन्यु का खास आदमी उसके सामने खड़ा हो गया था।

“मैडम को मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में पहुँचा कर आओ।” अभिमन्यु की नज़रे अब अनाहिता पर आ गई थी।

“जी सर।” शेरा ने सिर झुकाया।

अनाहिता को राहत महसूस हुई। उसे अभिमन्यु के साथ उसके कमरे में नही रहना था। उस का अपना कमरा होगा। उसे अच्छा महसूस हो रहा था। पर उसके मन में कई सवाल थे। उसके भी उसे जवाब चाहिए थे।

वोह बिना कोई परेशानी खड़ी किए यहाँ तक तोह आ गई थी। पर इससे आगे का सफर वोह तै नही कर पा रही थी।

उसने ना में गर्दन हिलाई। “नहीं....मुझे कहीं नही जाना। पहले मुझे मेरे सवालों का जवाब चाहिए। मुझे यहाँ क्यूं लाया गया है?“ उसने गुस्से से फिर पूछा।

अभिमन्यु की जलती नज़रे उसी पर थी। कुछ देर और उसे ऐसे देखता रहा तो कहीं उसे आँखों से भस्म ना कर दे।

“यहाँ से अभी जाओ। मैं तुमसे बाद में बात करता हूं।”

“नही। मुझे अभी बात करनी। क्या मुझे हक नही है यह जानने का की मेरे साथ क्या हो रहा है?“

गुस्से से अभिमन्यु अपने माथे को सहलाने लगा। उसकी सब्र जवाब दे रही थी। “तुम्हे तुम्हारे सभी सवालों का जवाब मिल जायेगा, लेकिन बाद में। अभी तुम शेरा के साथ जाओ। क्योंकि अगर मैं तुम्हारे साथ आया ना तो तुम सोच भी नही सकती की मैं तुम्हारे साथ फिर क्या करूंगा।”

“नहीं पहले मेरा फोन दीजिए,” अनाहिता जानती थी की वोह अभिमन्यु को बहुत गुस्सा दिला रही है। वोह सोच रहा होगा की उसके पापा के घर तोह आसानी से मान गई थी तो अभिमन्यु को लग रहा होगा की यहाँ भी सब बात आसानी से मान जायेगी और कोई तमाशा नही करेगी।

“तुम ऊपर जाओ, अनाहिता। तुम्हारे सभी सवालों के जवाब तब ही मिलेंगे जब हम अकेले होंगे। मेरा इंतज़ार करना। मैं जल्द ही तुमसे मिलता हूं।” अभिमन्यु ने थोड़ा झुक कर उसके कान के पास आ कर कहा। वोह नही चाहता था की उन दोनो के बीच की बातें कोई सुने।

“तुम्हारा इंतज़ार?“ अनाहिता ने चिढ़न भाव से कहा।

“मेरे सब्र का और इम्तिहान मत लो, अनाहिता।”

“सब्र? सब्र तो मेरा टूट रहा है अब।”

“रूल नंबर टू। जब भी मैं जो भी तुमसे कहूं, तुम्हे मानना होगा।” अभिमन्यु ने उसके कान में फुसफुसाया। उसने उसे इशारे से उसे जाने के लिए कहा।

जब उसने देखा की अनाहिता एक इंच भी नही हिली तो उसने अपने आदमी शेरा को उसे जबरदस्ती ऊपर ले जाने के लिए कहा।

अनाहिता चिल्लाने लगी। वोह स्ट्रगल कर रही थी शेरा की पकड़ से छूटने के लिए। पर उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी की वोह उसे जबरदस्ती सीढ़ी चढ़ते हुए ऊपर ले गया।
“यह है आपका कमरा।” शेरा ने अभिमन्यु के साथ वाले कमरे का बंद दरवाज़ा खोलते हुए कहा और अनाहिता की बाजू छोड़ दी।

अब क्या करती अनाहिता अपने पिता के घर तो वो जा नही सकती थी और जा भी कैसे सकती थी? वोह तोह यहाँ कैद थी। और उसे यह भी डाउट था की शायद उसके पिता अब उसे अपने घर आने भी देंगे की नही। उसके पास उसका फोन भी नही था की किसी तरह कोई मदद ले ले या फिर कैब बुला कर छुपके से निकलने की कोशिश करे।

वोह चुपचाप कमरे के अंदर चली गई और शेरा ने आराम से दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया। अब अनाहिता एक अनजान कमरे में थी जो उसके शरीर में बेड़ियां बांध रहा था।

उसने अपना पर्स नीचे गिर दिया और कॉर्नर में रखी एक आर्मचेयर पर बैठ गई। नो डाउट की कमरा बहुत सुंदर था पर इस कमरे की सुंदरता उसे सिर्फ बेड़ियां ही नज़र आ रही थी।

उसने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी अटकती सांसों को नियंत्रित करने लगी।

_आखिर यह अभिमन्यु ओबेरॉय है कौन? और उससे क्या चाहता है?_

शेरा बाहर से दरवाज़ा बंद कर नीचे आ गया।

अभिमन्यु ऊपर को ओर तब तक देखता रहा जब तक अनाहिता के कमरे का दरवाज़ा बंद नही हो गया। उसके बाद उसने अपनी नज़रे अपने छोटे भाई अवनीश ओबरॉय पर टिका दी।

“चिल्ल ब्रो, मैं तो बस भाभी का वैलकम करने ही आया था।” अवनीश ने अपने दोनो हाथ आगे करते हुए कहा। “मैं बस जा रहा हूं। वहीं मिलता हूं कल जहां तै हुआ था।” अवनीश हड़बड़ी में वहाँ से निकल गया क्योंकि वोह अपने भाई को अच्छी तरह से जानता था और उसके गुस्से को भी।

खासकर अनाहिता के आने के बाद अभिमन्यु नही चाहता था की उसका भाई अवनीश यहाँ पर आए क्योंकि वोह अपने भाई की फितरत खूब समझता था। वोह नही चाहता था की उसके भाई की गंदी नज़र उसकी होने वाली पत्नी पर पड़े।

उसी शहर में लगभग एक घंटे की दूरी पर ही उसके भाई अवनीश ओबेरॉय का बंगलो था और जबसे उसने लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इंडिया में अपना खुद का बिजनेस शुरू किया था उसने अपना बंगलो बनवा कर उसमें शिफ्ट हो गया था। उसे लंदन से ही अकेले आज़ादी में जीने को आदत पड़ गई थी।

उन दोनो के मॉम और डैड पेरिस में रहते थे। विजयराज शेट्टी को वजह से उसके डैड अपने देश इंडिया में नही आ पा रहे थे। जिस वजह से आनंद ओबेरॉय और उनकी पत्नी वसुधा ओबेरॉय और उनकी बेटी आयशा ओबेरॉय, तीनो एक साथ पैरिस में ही फसे हुए थे।

अवनीश से छुटकारा पा कर अभिमन्यु अनाहिता के कमरे की ओर बढ़ गया पर बीच सीढ़ियों में ही उसका फोन बज पड़ा। वोह कॉल उसके डैड का था। इस वक्त एक अच्छा चांस था उनके जल्दी वापिस आने का। उनके अगेंस्ट जो केस था वोह झूठा और वाहियात था, और जैसे ही सारे लीगल इश्यू क्लियर हो जाते उसके डैड को वापिस अपने एस्टेट अपनी जमीन पर आने की इजाज़त मिल जाएगी, और वोह पहली फ्लाइट पकड़ कर इंडिया वापिस आ जायेंगे।

उनसे कुछ देर ऐसे ही बात करते करते अभिमन्यु अपने स्टडी रूम की ओर बढ़ गया। वहाँ कई घंटे बिताने के बाद उसे नींद आने लगी और वोह वहीं सो गया। अगली सुबह जल्दी जब उसकी आँख खुली तो उसे अनाहिता का ख्याल आया।

अब अभिमन्यु अनाहिता के कमरे की ओर बढ़ गया। उसने बाहर से दरवाज़ा खोला और अंदर आया।

अनाहिता बैड पर मुड़ी हुई सी सो रही थी। उसका एक हाथ उसके सिर के नीचे और दूसरा हाथ उसके दोनो घुटनों के बीच में था। उसने कंबल भी नही ओढ़ा हुआ था, उसे शायद ठंड भी लग सकती थी। हो सकता है वोह सोने के लिए नही लेटी हो बैड पर। क्योंकि उसके चेहरे पर सूखे हुए आंसुओं के निशान थे। हो सकता है वो रोते रोते ही बैड पर सो गई होगी।




















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा