डेविल्स क्वीन - भाग 5 Poonam Sharma द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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डेविल्स क्वीन - भाग 5

एडवोकेट मनोज देसाई ने जिस तरह से तेज़ आवाज़ के साथ दरवाज़ा बंद किया था उससे अनाहिता के दिल ने घबराहट से रफ़्तार पकड़ ली थी। एक अनजाने डर ने उसे घेर लिया था।

सामने उसके पिता बैठे थे अपने ऑफिस डेस्क के पीछे रखी उनकी बड़ी सी कुर्सी पर। उन्होंने अपनी दोनो बाजुओं को कुर्सी की बांह पर ही रखा हुआ था और उसे ही बड़े ध्यान से देख रहे थे। अनाहिता जानती थी की उसके पिता को इंतज़ार करना नही पसंद, किसी के लिए भी नही, अपनी खुद को बेटी के लिए भी नही। और शायद वोह उनसे मिलने के लिए लेट पहुँची थी, वोह भी उस मीटिंग के लिए जिस के बारे में उसे खुद भी नही पता था।

उस के पिता के बाईं ओर रखे सोफे पर एक शख्स बैठा था। अनाहिता को वोह शख्स कुछ जाना पहचाना लगा।

वोह उस से पहले भी मिल चुकी थी और आज दूसरी बार देख रही थी। जब पहली बार मिली थी तो वो खुद सोलह वर्ष की थी। अपनी एक साल की बारहवीं और तीन साल की ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद आज पूरे चार साल बाद एक बार फिर वोह उसके सामने खड़ी थी।

अभिमन्यु ओबरॉय

वोह अब कुछ अलग लग रहा था। ज़ाहिर है उसकी उम्र बढ़ी थी पर वोह तो सबकी बढ़ी थी। इन चार सालों बाद वोह और भी ज्यादा भयंकर लग रहा था और और भी ज्यादा गंभीर।

ना जाने क्यूं अभिमन्यु को देख कर अनाहिता को एक अनजाना डर सताने लगा।

अभिमन्यु ने आज भी एक ग्रे कलर का बिज़नेस सूट पहना हुआ था। उसके हाथ सीने पर बंधे हुए थे और पैर दूसरे पैर पर चढ़े हुए थे। उसके बाल पीछे की तरफ सीधे कढ़े हुए थे और चेहरे पर अच्छी शेप में दाढ़ी बढ़ी हुई थी।






अभिमन्यु अनाहिता को ऊपर से नीचे तक स्कैन कर रहा था और अनाहिता उसे। इन चार सालों में दोनो ने एक दूसरे को उस पहली मुलाकात के बाद एक बार भी नही देखा था।

उस हादसे के बाद अनाहिता तो अभिमन्यु को भूल ही गई थी। उसे लगा था की अभिमन्यु का चैप्टर क्लोज हो चुका है। पर आज वोह उसके सामने एक बार फिर था।

अब तो कोई वजह भी नही थी उसका यहाँ होने की।

उस एक्सीडेंट के बाद तो बिलकुल भी नहीं।

अचानक अनाहिता का गला सूखने लगा।

“अनाहिता..!“ कमरे में छाई गहरी शांति को अनाहिता के पिता विजयराज शेट्टी ने तोड़ा। “मुझे लगा था की तुम जल्दी आ जाओगी।”

जो भी विजयराज को ठीक से जानता नही होगा, उसे लगेगा को विजयराज जी नॉर्मली बात कर रहें हैं पर अनाहिता उन्हे अच्छे तरह से जानती थी। वोह इस वक्त बहुत ही ज्यादा चिढ़े हुए लग रहें थे।

“मैं ग्रेजुएशन पार्टी के लिए ही गई हुई थी। जैसा की आपने....मेरा मतलब है आपने सुझाव दिया था। मुझे नही पता था की आप मुझसे मिलना चाहते हैं और मेरा इंतजार कर रहें हैं। और ना ही आपने कोई फिक्स टाइम दिया था की उससे पहले घर आना है। तो...“ अनाहिता बोलते बोलते रुक गई जब उसे अपने पिता की गहरी घूरती नज़रे महसूस हुई।

अनाहिता उनकी गुस्से भरी नज़र बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। पर अब वोह और सहना भी नही चाहती थी। बचपन से आज तक उसने बहुत कुछ सहा था, बहुत सी चीजों का बलिदान दिया था। और अब उससे उसकी सबसे प्रिय जो उसके दिल के सबसे करीब था वोह भी छिन चुका था।

इस बार उसने हिम्मत कर अपने पिता को वैसे ही उनकी तरह ही घूर कर जवाब दिया की वोह अब उनसे नही डरने वाली।

उसके पिता ने सफेद रंग की पठानी पहनी हुई थी जो की उनके ऊपर खूब जच रही थी और उनके शौर्य को भी बढ़ा रहा था।

“तुम्हे अभिमन्यु ओबरॉय तो याद होगा,” विजयराज जी ने सोफे पर बैठे अभिमन्यु की तरफ इशारा कर के कहा। फिर भी ना ही विजयराज जी अपनी सीट से उठे और ना ही अभिमन्यु अपनी जगह से हिला।

ना ही अभिमन्यु अपनी जगह से हिला, ना ही कोई ग्रीट के लिए हाथ बढ़ाया और ना ही कोई मुस्कुराहट पास की। बस हल्का सा सिर हिला दिया यह स्वीकारने के लिए की हाँ वोही अभिमन्यु ओबरॉय है।

अनाहिता को कैजुअली तो दूर की बात फॉर्मली भी कभी नही मिलाया गया था अभिमन्यु से। चार साल पहले, पिछली बार,जब वोह उससे मिली थी तो वो अक्षरा बन का मिली थी। वोह सब याद कर के अनाहिता का मन दुखी हो गया।

उसकी प्यारी बहन अक्षरा और उसकी माँ मर चुके थे एक बहुत ही भयानक और बहुत ही बड़े एक्सीडेंट में। वोह दोनो जा चुके थे। वोह भी उस वक्त जब अक्षरा को अपनी ग्रेजुएशन के बीच में ही फोर्स किया जा रहा था शादी करने के लिए।

वोह मर चुकी थी। और जब वोह इस घर में इस दुनिया में थी ही नहीं तो यह क्या कर रहा था। अभिमन्यु ओबरॉय को नही होना चाहिए था यहाँ। अब उसका यहाँ आने का क्या काम? क्या मकसद था? उसकी तो यहाँ जरूरत ही नही थी।

अनाहिता ने गहरी सांस ली। “हाँ! मुझे याद है,” अनाहिता ने अपनी कमर सीधी करते हुए कहा। वोह अपने आप को कमज़ोर नही दिखाना चाहती थी। वोह मजबूती से इस समस्या के सामने डट कर खड़ी रहना चाहती थी। वोह भी वोह समस्या जिसके बारे में अभी तक उसे कुछ पता ही नही था की आखिर यहाँ हो क्या रहा है।

“चलो, साफ साफ बात करते हैं,” विजयराज ने आगे कहा। “हमारे बीच एक कॉन्ट्रैक्ट हुआ था, मिस्टर आनंद ओबरॉय और उनके बेटे मिस्टर अभिमन्यु ओबरॉय के साथ। और वोह कॉन्ट्रैक्ट अभी भी है।”

इतना सुनते ही अनाहिता की निगाहें अपने पिता पर अटक गई। किसी कॉन्ट्रैक्ट के बारे में उसे पता तो था पर उसमे क्या है वोह नही पता था। हाँ उसे इतना पता था की उस कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार अक्षरा शेट्टी को अभिमन्यु ओबरॉय से ही शादी करनी है।

लेकिन अब तो अक्षरा शेट्टी मर चुकी है अब इस कॉन्ट्रैक्ट का क्या मतलब? और यह कॉन्ट्रैक्ट अभी भी वैलिड है, यह कैसे हो सकता है?

“क्या? क्यूं? कैसे?“ अनाहिता ने अपने पिता की तरफ देखते हुए उनसे सवालों को झड़ी लगा दी।

अनाहिता को अपने ऊपर अभिमन्यु की घूरती नज़रे महसूस हो रही थी मानो अभी वोह अपनी नज़रों से ही उसे जला कर राख कर देगा।













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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा