डेविल्स क्वीन - भाग 11 Poonam Sharma द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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डेविल्स क्वीन - भाग 11

सुबह सुबह की सर्द हवा और सुहावने मौसम ने अनाहिता को नींद के आगोश में पहुँचा दिया था। वोह वैसे भी थकी हुई थी और रात भर से सोई नहीं थी।

उसने ज़िद्द करके अभिमन्यु से गाड़ी का शीशा नीचे उतरवाया था जबकि अभिमन्यु को यह बिलकुल नही पसंद था। बिज़नेस में उसके कई दुश्मन थे जो ताक में रहते थे ओबरॉयस को नुकसान पहुँचाने के लिए।

वोह यूहीं इतने बॉडीगार्ड्स नही रखता था। ज़ाहिर सी बात कंस्ट्रक्शन के उसके बिज़नेस और फिर उसके होटल्स के राइवल्स तो होंगे बहुत। आखरी बाप बेटे की जोड़ी ने सबको मात जो दे रखी थी।

पर इस वक्त वोह जनता था की अनाहिता को किस चीज़ की जरूरत है। अनाहिता की जगह कोई भी होता तोह अब तक बौखला गया होता। अब तक वोह गुस्से में क्या क्या नुकसान कर चुका होता। पर अनाहिता के स्वभाव को जानते हुए अभिमन्यु को आश्चर्य हो रहा था की अनाहिता कैसे चुप चाप उसके साथ आसानी से आ गई। उसने अखंड विद्रोह क्यूं नही किया। इसके पीछे भी कोई वजह हो सकती थी।

इस वक्त अनाहिता को जरूरत थी अपने दिमाग को शांत करने की जिसके लिए उसे अभी सोना जरूरी था। और अभिमन्यु को भी समय मिल जाएगा आगे की रणनीति तैयार करने के लिए।

आखिर उसके पास एक मकसद था। यह जो कुछ भी हो रहा था वोह किसी वजह से ही हो रहा था।

अनाहिता का बैग तो गाड़ी की डिक्की में था पर उसका हैंड बैग यानी की पर्स, उसने अपने सीने से दबोच कर रखा हुआ था। उसमे क्या था सिर्फ अनाहिता ही जानती थी।

तभी एक गाने की धुन बजी। अभिमन्यु की नज़रे अपने फोन से हट कर अनाहिता पर आ गई।

अनाहिता नींद में कसमसा रही थी। उसने अपने बैग को थोड़ा ढीला छोड़ा। अपनी अध खुली नज़रों से उसने अभिमन्यु की तरफ देखा। कुछ वक्त पहले घटी सब घटना उसे याद आ गई।

वोह इतनी निश फिकर कैसे हो सकती थी। वोह एक अजनबी के साथ गाड़ी में अकेले बैठी थी। और वो सो गई?

गाने की धुन की आवाज़ अभी भी आ रही थी। अभिमन्यु की नज़रे अभी भी अनाहिता पर ही थी।

अनाहिता ने झट से अपना पर्स खोला और उसमे से अपना फोन निकाला। उस पर पूर्वी का नाम फ्लैश हो रहा था। पूर्वी उसकी सहेली थी। जो उसी के साथ कल रात को पार्टी में थी।

जैसे ही अनाहिता ने कॉल रिसीव करने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी झट से अभिमन्यु ने उसका फोन छीन लिया।

अचानक इस घटना से अनाहिता हैरान ही रह गई। वोह अविश्वास से अपनी पलकों को बार बार झपकाने लगी।

“यह क्या किया? मेरा फोन क्यूं लिया?“ अनाहिता ने सवाल किया।

“मिल जायेगा। पर बाद में,” अभिमन्यु ने पूर्वी का कॉल कट कर दिया था। और उसका फोन अपनी जेब में रख लिया था।

“तुम ऐसा नही कर सकते। यह मेरा फोन है। वापिस दो मुझे,” अनाहिता ने उसे घूर कर देखा।

“नही मिलेगा।” अभिमन्यु के एक्सप्रेशन एक दम ठंडे थे।

“पर यह तो एक लड़की का ही कॉल था ना। फिर क्यूं लिया? उसे मेरी चिंता हो रही होगी की मैं ठीक से घर पहुँच गई की नही। वोह बस परेशान हो रही होगी। एक बार बात तो कर लेने दो?“ अनाहिता ने रिक्वेस्ट की।

“मुझे पता है।”

“अभिमन्यु....!“

“अब फोन तुम्हे तब मिलेगा जब मैं चाहूंगा,” अभिमन्यु ने अपनी आँखों से उसे घूरते हुए कहा।

अनाहिता को ऐसा लगा की मानो यह नीली आँखें आज उसे जला ही देगी। वोह समझ चुकी थी की जितना वोह उस से बहस करेगी उतना वोह उसे परेशान करेगा। इसलिए अनाहिता चुप बैठ गई।

उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था। पर इस वक्त वोह कुछ कर भी नही सकती थी।

“तुम पहले कभी यहाँ आई हो?“ अभिमन्यु ने अपने चेहरे पर बिना किसी भाव के पूछा।

“नहीं,” कुछ पल रुक कर अनाहिता ने बेरुखी से जवाब दिया।

“हम्मम! पहली बार इतनी दूर आई हो?“ अभिमन्यु के चेहरे पर एक पल के लिए भी भाव बदले नही थे।

“हाँ,” अनाहिता का रवईया अभी भी वैसा ही था।

“क्यों?“ इस बार अभिमन्यु ने उसकी तरफ एक बार फिर देखा।

“तुम सवाल बहुत पूछते हो,” अनाहिता का उससे बात करने का कोई मूड नही था।

“रूल नंबर वन। मैं जब जो सवाल पूछूं, तुम्हे जवाब देना होगा।”

अनाहिता की घूरती नज़रे उस पर जा टिकी। पर जल्द ही उसने अपनी नज़रे नीचे कर ली। वोह नही जानती थी की अभिमन्यु उस से क्यूं शादी करना चाहता है, पर उसे अगर जीना है तो उसे एक सीमा रेखा खींचनी ही होगी दोनो के बीच।

“क्योंकि पापा हमेशा ही अक्षरा को ही ले कर जाते थे। और मैं अपनी दादी के पास रहती थी। यह मेरी सज़ा होती थी।”

अभिमन्यु ने पहले ही यह तो भांप लिया था की विजयराज जी अपनी दोनो बेटियों में शुरुवात से ही फर्क करते थे। पर इस तरह से सिर्फ एक को ही पूरा प्यार देना और दूसरी को बुरी तरह नकार देना यह बात कुछ हज़म नहीं हुई थी।

“हम्मम!“ अभिमन्यु इन सब मामलों में नही पड़ना चाहता था इसलिए उसने आगे कुछ नही पूछा।

कुछ देर गाड़ी में खामोशी छाई रही।

“हम कुछ देर यहाँ रुकेंगे,” अभिमन्यु ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा।

क्योंकि गाड़ी एक आलीशान से रेस्टोरेंट के पास रुक रही थी। अब तक चार घंटे बीत चुके थे और अब तक अनाहिता को भी भूख लग चुकी थी।

दोनो गाड़ी से नीचे उतरे। उनके गार्ड्स ने उन्हें घेर लिया। बिना उसे छुए ही अभिमन्यु ने उसे आगे चलने के लिए इशारा किया।

जब वो रेस्टोरेंट में आए तो पूरा रेस्टोरेंट खाली था। अनाहिता को पहले अजीब लगा। फिर उसने सोचा की शायद सुबह इतनी भीड़ नही होती होगी ऊपर से यह हाईवे पर है।

जैसे ही वोह अपनी सीट पर बैठे, एक वेटर मेन्यू ले कर आया। अभिमन्यु ने मेन्यू अनाहिता की तरफ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया की उसे भूख नही है।

असल में इतना सब कुछ हो गया था अचानक उसके साथ। उसकी भूख तो मर ही चुकी थी। उसने वाशरूम जाने के लिए पूछा। अभिमन्यु के कोई जवाब देने से पहले ही वेटर ने उसे इशारे से रास्ता समझा दिया।

















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी....
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©पूनम शर्मा