“उसका यह कोर्स आपने चुना था या उसने खुद?“ अभिमन्यु ने आगे सवाल किया जबकि इसका जवाब वोह जनता था।
“मैने चुना था,” विजयराज जी ने टेबल पर रखे पानी से भरे ग्लास को उठा लिया और एक सांस में गटक गया। “उसके लिए यही सबसे अच्छा था।”
“यह डिग्री हासिल करना और फिर नौकरी करना, आप के लिए तो यह बेकार की बातें हैं?“ अभिमन्यु ने पूछा।
“वोह कॉलेज जाना चाहती थी। और मैने उसे जाने दिया।” विजयराज जी की आवाज़ ऐसी थी मानो उन्होंने अनाहिता पर एहसान किया था।
अभिमन्यु उठ खड़ा हुआ। वोह दीवार पर और टंगी फोटोज़ को देखने लगा। एक फोटो पर उसकी नज़र पड़ी। उसमे सिर्फ विजयराज और उनकी दोनो बेटियाँ थी। इसमें अनाहिता और अक्षरा और भी ज्यादा यंग थी।
इस तस्वीर में अक्षरा विजयराज जी की गोद में मुस्कुरा रही थी और अनाहिता उनकी शर्ट को पकड़े हुए थी। इस तस्वीर को भी देख कर कोई नही बता सकता था की कौन अक्षरा है और कौन अनाहिता पर अभिमन्यु समझ चुका था।
अभिमन्यु के जबड़े भींच गए।
“तुम्हारा भाई कैसा है? और तुम्हारी बहन, वोह कैसी है?“ विजयराज जी के सवाल पर अभिमन्यु उस बुक शेल्फ से पलट गया जहां पर रखी फोटो फ्रेम वो देख रहा था।
“दोनो ठीक हैं,” अभिमन्यु अपने परिवार के बारे में विजयराज जी से कोई बात नही करना चाहता था। बल्कि वोह उससे बात ही नही करना चाहता था।
उसने अपने हाथ में बंधी घड़ी की ओर देखा।
“वोह जल्द ही नीचे आ जायेगी,” विजयराज जी ने फिर भरोसा दिलाते हुए कहा।
“इससे अच्छा तो मैं ही जा कर उसकी मदद कर देता।” अभिमन्यु ने अपना हाथ नीचे कर लिया।
“सावंत......!“ विजयराज जी ज़ोर से चिल्लाए।
उनका एक आदमी अंदर आया।
“जाओ और जा कर अनाहिता को उसके कमरे से लेकर आओ। मिस्टर अभिमन्यु जाने के लिए तैयार हैं।” विजयराज जी ने बड़े ही आराम से कहा। पर अनाहिता का नाम लेते वक्त जो कड़वाहट थी वोह अभिमन्यु ने नोटिस कर लिया था।
जब तक विजयराज जी का आदमी सावंत अनाहिता को लेने गया था तब तक अभिमन्यु ने अपनी नज़रे उसी ऑफिस के कमरे में एक ओर खड़े एडवोकेट मोहन देसाई पर घुमा ली। उसकी जरूरत इस वक्त इस कमरे में नही थी पर फिर भी विजयराज के इंसिस्ट करने पर वोह उनके बीच खड़ा था।
“तो आप हीं मिस्टर विजयराज शेट्टी के सारे लीगल काम देखतें हैं?“ अभिमन्यु ने पूछा।
एडवोकेट मनोज देसाई ने अपना गला साफ किया और सिर हाँ में हिला दिया। “जी हाँ, मैं ही सब इंपोर्टेंट लीगल काम देखता हूं। बाकी मेरे एसोसिएट्स हैं जो समय समय पर सब हैंडल कर लेते हैं।”
“इसका मतलब फिर तो आप ही एग्रीमेंट भेजेंगे। अब तक टर्म्स और कंडीशंस तो अच्छे से चैक कर ही लिए होंगे?“
मनोज देसाई ने अपनी नज़रे पहले विजयराज जी पर की फिर वापिस अभिमन्यु पर कर ली।
“आज दिन खतम होने से पहले आप तक पहुँच जायेगा,” मनोज देसाई ने वादा सा करते हुए कहा।
“अच्छी बात है।”
“सर, मैडम रेडी हैं। वोह आ गईं हैं,” सावंत ने ऑफिस का दरवाज़ा खोल कर उसमें से सिर्फ अपना सिर अंदर करते हुए कहा।
अभिमन्यु ने विजयराज जी की तरफ देख। एक पिता के चेहरे पर कई भाव होने चाहिए थे इस वक्त। उनकी बेटी आधी रात को यूं अचानक उन्हें छोड़ कर किसी और के घर जा रही थी वोह भी हमेशा हमेशा के लिए।
पर अभिमन्यु को उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखा। वोह पत्थर दिल इंसान अपने डेस्क के पीछे बैठे बस लगातार अभिमन्यु को ओर ही देख रहा था।
“तो फिर मैं चलता हूं। अगर आपको अपनी बेटी से कुछ अकेले में बात करनी हो या समय बिताना हो तो आप कर सकते हैं? मैं बाहर इंतज़ार कर रहा हूं।” अभिमन्यु ने विजयराज जी से पूछा।
क्या एक बाप को अपनी बेटी से अकेले में बात नही करनी चाहिए थी? आखिर वोह उस से दूर जा रही थी। अगर अनाहिता की जगह इस वक्त अभिमन्यु की बहन होती तो वोह या उसके पिता आनंद जी ऐसे उसे कभी नही जाने देते। ऐसा ख्याल ही मन में नही लाते। वोह ज़रूर उसके साथ बात करते, और वक्त बिताते। बल्कि इस तरह की कोई डील ही नही होने देते। अड़ जाते पर अपनी बेटी के साथ कुछ भी बुरा नही होने देते।
“नहीं। मैं उस से बाद में बात कर लूंगा। एक बार उसे सैटल होने देते हैं।” विजयराज जी बोलते बोलते रुक। “और वैसे भी मैं आपको और इंतज़ार नहीं करवा सकता। आपका वक्त बहुत कीमती है।” शायद विजयराज जी ने अभिमन्यु के एक्सप्रेशन देख लिए थे इसलिए वोह अपने आप को डिफेंड करते हुए बोले।
“ठीक है। मैं आपको बता दूंगा जब वोह..... सैटल्ड हो जायेगी।” अभिमन्यु ने कहा और सीधे कमरे से बाहर निकल गया।
जब अभिमन्यु ऑफिस के कमरे से बाहर निकाला तो उसने अनाहिता को सीढ़ियों पर आखरी सीढ़ी के पास खड़ा देखा। उसका एक छोटा सा बैग था जो की पहले अभिमन्यु के आदमी ने पकड़ा हुआ था। और वोह अभिमन्यु के ऑर्डर का इंतजार कर रहा था।
वोह बैग बहुत ही छोटा था। उसे देख कर कोई नही कह सकता था की अनाहिता हमेशा हमेशा के लिए घर से जा रही है। या फिर एक हफ्ते के लिए कहीं जा रही है।
ऐसा लग रहा था मानो अनाहिता बगावत कर रही है और वो जान बूझ कर कोई सामान लाना ही नही चाहती थी, या फिर उसके पास इतना ही सामान था।
अपना सिर झटकते हुए अभिमन्यु ने अपने आदमी को इशारा किया।
उसका इशारा पा कर वोह आदमी अनाहिता का बैग ले कर अभिमन्यु की गाड़ी की डिक्की में बैग को रखने चला गया।
अब अभिमन्यु की नज़र अनाहिता पर पड़ी। अनाहिता ने कपड़े बदल लिए थे। उसने एक लूज़े सा ब्राउन ट्रैक पैंट और ऑफ़ व्हाइट टी शर्ट पहना हुआ था। बाल अध खुले से लूज रबर बैंड से बंधे हुए थे। चेहरा धुला हुआ था और उस पर कोई मेकअप नही लगाया हुआ था। पर आँखें रो रो कर बुरी तरह लाल हो गई थी और सूज चुकी थी।
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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी....
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©पूनम शर्मा