Devil's Queen - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

डेविल्स क्वीन - भाग 3

"कॉन्ट्रैक्ट तैयार हो चुका है। हमे बस तुम्हारे सिग्नेचर चाहिए। उसके बाद तुम ऊपर अपने कमरे में जा सकती हो। मुझे पता है तुम्हे बहुत सारा होमवर्क भी करना है।" विजयराज जी ने अपनी बेटी अनाहिता से कहा जो की अक्षरा बन कर उनके सामने खड़ी थी।

अनाहिता जानती थी की वोह उस फिजिक्स असाइनमेंट की बात कर रहें हैं जो उसने अभी तक पूरा नहीं किया था। उन्हे उसकी सब खबर रहती थी। अनाहिता और अक्षरा के स्कूल टीचर्स और होम ट्यूटर सब उन्हे रोज़ रिपोर्ट करते थे। वोह अब ऊब चुकी थी इतने कड़े अनुशासन से। पर यह कॉन्ट्रैक्ट? कॉन्ट्रैक्ट क्या है? उसे कुछ समझ नही आ रहा था।

मिस्टर मनोज देसाई जो की वकील थे वोह अपनी सीट से उठ खड़े हुए और डेस्क के दूसरी तरफ आए। उन्होंने वहां से एक फाइल और एक पैन उठाया और अक्षरा की तरफ बढ़ने लगे।

अनाहिता ने थूक गटक लिया। उसे बहुत अजीब लग रहा था चार लोगों के बीच जहां सबकी नज़रे बस उसी पर थी। अगर इस वक्त यहां सच में अक्षरा होती तोह वोह तोह बेहोश हो चुकी होती अब तक घबराहट के मारे या फिर नीचे बैठ कर जोर ज़ोर से रोने लगती।

और अब तो यह कॉन्ट्रैक्ट आ गया था। उसे कुछ समझ नही आ रहा था।

अनाहिता ने एक उम्मीद से अपने पिता की ओर देखा। पर उसे लग नही रहा था की वोह उसे कुछ जवाब देंगे।

"इस कॉन्ट्रैक्ट में लिखा है की तुम अक्षरा शेट्टी अपनी मर्जी से अभिमन्यु ओबरॉय से शादी करने को तैयार हो और कभी भी किसी भी वजह से अपनी शादी से पीछे नहीं हटोगी। और..." मिस्टर देसाई बोलते बोलते रुक गए जब उन्हें विजयराज जी की आवाज़ सुनाई पड़ी।

"और इसमें जो लिखा है वोह तुम्हे जानने की जरूरत नहीं है। बस इस पर जल्दी से साइन कर दो।" विजयराज शेट्टी ने अनाहिता से कहा।

अनाहिता ने अपना चेहरा थोड़ा ऊपर किया और फाइल की तरफ देखा जो उसके सामने टेबल पर खुली हुई रखी थी। उस पर कुछ छोटे छोटे अक्षरों में लिखा हुआ था। पर उसे सिर्फ अक्षरा शेट्टी और अभिमन्यु ओबरॉय का नाम ही नज़र आ रहा था।

"तुम्हे पढ़ने की जरूरत नहीं है, बस साइन कर दो।" विजयराज जी ने अपनी बेटी से तेज़ आवाज़ में कहा।

अनाहिता ने अपना गला साफ किया मानो वो जवाब देना चाहती थी पर उसके मुंह से शब्द ही नही निकले। उसने पैन उठा लिया और पेपर पर सबसे नीचे खाली जगह पर अक्षरा के नाम के नीचे उसने साइन कर दिए, अक्षरा के नाम के।

एक सोलह साल की लड़की का भविष्य एक कागज़ पर मात्र एक साइन से तै किया जा रहा था।

पैन को नीचे रखते ही वोह रोल हो कर फाइल पर दूसरी ओर चला गया मानो उसका भविष्य उसके हाथों से फिसल कर किसी और के पास आ गया हो। मात्र एक साइन से उसने अपनी बहन की किस्मत लिख डाली थी। अब उसकी बहन के पास कोई मौका नहीं था की कभी वोह किसी से प्यार कर सके, किसी से लव मैरिज कर सके। आज के इस मॉडर्न दुनिया में भी उसे कटपुटली की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था।

"गुड!" मिस्टर आनंद ओबेरॉय ने खुशी से ताली मारते हुए कहा।

आखिर खुश तो होंगे ही वोह। होना भी चाहिए। आखरी मेरे पिता की सारी जायदाद उनकी मौत के बाद इन्हें ही तो मिलेगी। क्योंकि पापा को कोई बेटा नही है इसलिए उनके दोनो दामादों को ही तो प्रॉपर्टी और बिजनेस जायेगी। उनके लिए तो यह अच्छी बात थी।

"इस डील के पूरा होने के बाद, आप भी खुश हम भी खुश," आनंद ओबरॉय ने विजयराज जी से कहा। "अब कोई रूकावटे नही—सब खतम," आनंद जी ने विजयराज जी से कहा और फिर अपना रुख अभिमन्यु की तरफ कर लिया। "तुम अपनी होने वाली दुल्हन को कुछ देर बाहर क्यूं नही ले जाते।"

अभिमन्यु ओबरॉय ने बस सिर हिला दिया।

डील? कैसी डील? अनाहिता को कुछ समझ नही आ रहा था।

"चलें, अक्षरा।" अभिमन्यु ने अनाहिता की बांह पकड़ी जब वोह उसके करीब पहुँच गया। जिस तरह से उसने उसका नाम पुकारा था मानो कड़वाहट भरी हो।

क्या यह भी खुश नही है अक्षरा की तरह इस संबंध से, इस डील से?

"मैं तुमसे बाद में बात करता हूं, अक्षरा," विजयराज जी ने अपनी बेटी अनाहिता को घूरते हुए कहा जब वोह ऑफिस के दरवाज़े तक पहुँच गई।

अनाहिता ने अपने पिता से पूछा नही था अभिमन्यु के साथ बाहर जाने के लिए। अब यह नया जुड़ गया था अनाहिता की सज़ा में। पहले ही वोह अक्षरा बन कर आई थी जिसका उसके पिता को पता चल गया था और अब बिना उनकी इजाज़त अभिमन्यु के साथ बाहर जा रही थी, आज उसकी खैर नहीं थी। वोह जानती थी की उसे अब थोड़ी देर बाद अपने पिता से सज़ा मिलने वाली है, पर उसे कोई फर्क नही पड़ता था।

अभिमन्यु ने उसके कंधे पर अपनी बांह फैला दी और उसे लिए आगे बढ़ गया।

"मैं अपने आप चल सकती हूं, थैंक यू," अनाहिता ने अभिमन्यु से कहा जैसे ही वोह सीढ़ियों तक पहुंचे। "मुझे यकीन है की आपके पास बहुत काम होगा और मेरे साथ वक्त बिताने से आपका समय बर्बाद हो रहा होगा।"

अभिमन्यु ने अनाहिता का हाथ पकड़ लिया और उसे खींच कर नीचे उतार दिया जैसे ही अनाहिता ने एक कदम सीढ़ी पर ऊपर की ओर बढ़ाया था। वोह अब उसकी आँखों में देखने लगा।

"तुम अक्षरा नही हो," अभिमन्यु ने उसे दोषी ठहराते हुए कहा।

अनाहिता के चेहरे पर हैरानी के भाव आ गए पर अगले ही पल उसने उसे छुपा लिया। "आप ऐसा क्यूं कह रहें हैं?"

"क्योंकि मैंने देखा था अक्षरा को चूहे के जैसे डरी हुई जब हम यहाँ आए थे। उसने कोई इयरिंग्स भी नही पहना हुआ था। और उसने उस वक्त व्हाइट सैंडल पहना हुआ था।" अभिमन्यु ने उसकी ब्लैक सैंडल पर नज़रे गड़ाते हुए कहा।

अनाहिता सैंडल बदलना ही भूल गई थी। पर अभिमन्यु की नज़रे काफी तेज़ थी। उसने इतनी जल्दी कैसे भांप लिया था की, की यह अक्षरा नही बल्कि कोई और है।

"इससे क्या कुछ फर्क पड़ता है? तुम्हे वोह मिल गया ना, जिसके लिए तुम यहाँ आए थे, वोह सिग्नेचर," अनाहिता ने अपना हाथ अभिमन्यु के हाथ से छुड़ाते हुए कहा। अभिमन्यु अनाहिता के सामने काफी बड़ा था और ताकतवर भी। "तुम कितने साल के हो?" अगर अभिमन्यु को अपनी बात आगे बढ़ानी है तो अनाहिता को अभिमन्यु के बारे में कुछ तो पता होना चाहिए।

"ट्वेंटी फाइव," अभिमन्यु ने बनावटी मुस्कान से कहा। "तुम सिक्सटीन की हो। डोंट वरी, मैं तुम्हारी बहन को तब तक अपना नही बनाऊंगा जब तक की वोह अपनी ग्रेजुएशन ना कंप्लीट कर ले। तब तक वोह आज़ाद रहेगी।" अभिमन्यु ने अपना एक हाथ सीढ़ियों की रेलिंग पर रखा और अनाहिता पर झुक गया। "बता देना अपनी बहन को, की मैं अब उस से अपनी शादी पर ही मिलूंगा। और अगर मैं तुम्हारी जगह होता, अनाहिता, तो मैं उसे थोड़ी और बहुदारी सीखा देता। उसे इसकी बहुत जरूरत पढ़ने वाली है।" अभिमन्यु ने अपनी एक आँख दबाई और रेलिंग से अपना हाथ हटा कर अपनी पैंट की पॉकेट में रख लिया।

वोह टहलते हुए और सीटी बजाते हुए वापिस ऑफिस रूम की तरफ जाने लगा।

सीटी बजा रहा था।

वोह चू*** सीटी बजा रहा था।


गुस्से से अपने मन में अभिमन्यु को ढेर सारी गालियां देते हुए अनाहिता तेज़ कदमों से सीढियां चढ़ने लगी।

दो साल। अनाहिता के पास दो साल थे अपनी बहन अक्षरा को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने के लिए। उस के पास दो साल का वक्त था कुछ सोचने के लिए।

क्योंकि अक्षरा बिलकुल भी हैंडल नही कर पाएगी अगर इस आदमी से उसकी शादी हो गई। अक्षरा नर्म स्वभाव की थी जबकि अभिमन्यु के इमोशंस एकदम ठंडे लग रहे थे।















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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धन्यवाद 🙏
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©पूनम शर्मा

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