“वोह ज़रूर वापिस आएगी,” विजयराज जी ने अभिमन्यु को आश्वस्त करते हुए कहा जब अनाहिता उनके ऑफिस से बाहर निकल गई थी।
उन्हे यकीन था चाहे कितना भी वोह अनाहिता को प्रताड़ित कर लें वोह उनकी बात नहीं टलेगी।
अभिमन्यु अनाहिता के ज़ोर ज़ोर से और तेज़ कदमों की आवाज़ सुन रहा था जब अनाहिता सीढियां चढ़ रही थी। जब आवाज़ धुंधली हो गई तब उसने अपना रुख विजयराज जी की तरफ किया।
“मैं उसके लिए ज़रा भी परेशान नहीं हूं,” अभिमन्यु ने अपने पैर नीचे करते हुए कहा।
“मैं तुम्हे पहले ही बता देना चाहता हूं, की वोह बहुत ही जिद्दी लड़की है।” विजयराज जी ने अभिमन्यु को चेतावनी देते हुए कहा।
अभिमन्यु ने अपनी एक भौंहे उचकायी। “वोह ठीक रहेगी,” अभिमन्यु ने कह तोह दिया पर वोह खुद नही जानता था की आगे क्या होगा। ना उसे विजयराज जी के चेहरे पर अपने बेटी के लिए कोई चिंता नज़र आ रही थी, और ना ही कोई दुख। ऐसा लग रहा था मानो को वोह जल्द से जल्द उस से छुटकारा पाना चाहते हैं।
ऐसा लग रहा था मानो अपनी बेटी की जिंदगी का सौदा कर के वोह बस अपना फायदा देखना चाहते हैं। ज़ाहिर सी बात थी की इस डील से विजयराज जी को बहुत फायदा होने वाला था। तभी तो एक बेटी के जाने के बाद भी वोह दूसरी को इस डील में झोंकने को तैयार थे। वोह एक ऐसे इंसान थे जिन्हे बस खुद से फर्क पड़ता था। उनका रुतबा कम नहीं होना चाहिए बस, उनकी शौहरत कम नहीं होनी चाहिए बस, इसके लिए वोह अपने परिवार को भी ज्वालामुखी में फेंकने को तैयार थे।
लेकिन अभिमन्यु को इससे क्या फायदा होने वाला था। कोई नही जानता था। जानता था तो बस खुद अभिमन्यु ओबरॉय।
“मैं तो सरप्राइज़ ही हो गया था जब तुम्हारे डैड का फोन आया था, मिस्टर आनंद जी का।” विजयराज जी अभिमन्यु के सामने अकेले में कुछ घबरा रहे थे तो खाली समय को भरने के लिए उन्होंने नॉर्मल बातचीत करना बेहतर समझा।
वैसे भी उन्हे अपनी बेटी की अभी अभी बत्तमीजी से की गई बातचीत कुछ ज्यादा पसंद नही आई थी। उन्हे लग रहा था की वकील और अभिमन्यु के सामने उनकी अपनी बेटी ने उनकी बेज़्जती कर दी थी। और वोह अपना ध्यान उस पर से हटा कर कहीं और करना चाहते थे। नही तो आवेश में आ कर अभी वोह अनाहिता को क्या सज़ा दे जाते उन्हे खुद भी नही पता था।
“अच्छा, और ऐसा क्यूं?“ अभिमन्यु ने उनकी तरफ बिना देखे पूछा। उसकी नज़रे तोह वहीं साइड टेबल पर रखी शेट्टी परिवार की फोटो फ्रेम पर थी।
उसने अपनी दाहिने ओर रखी उस फोटो फ्रेम को उठा लिया। वह एक परिवार की फोटो थी जो कभी सच में परिवार हुआ करता था। उसमें चार लोग थे। विजयराज शेट्टी, उनकी पत्नी राधिका शेट्टी, और उनकी दो बेटियाँ, जिसमे से एक विजयराज जी के गोद में बैठी थी और दूसरी उन दोनो के बीच खड़ी थी। जो लड़की विजयराज जी की गोद में बैठी थी उसके चेहरे पर बहुत ही खूबसूरत मुस्कुराहट थी और बीच में खड़ी लड़की के चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कुराहट थी। विजयराज जी ने अपनी गोद में बैठी बेटी के चारों ओर अपनी बाहें फैलाए हुए थी और दोनो ही कैमरे को ओर देख कर मुस्कुरा रहे थे।
दोनो बहनें जुड़वा थी, पहचानना मुश्किल था की कौन अक्षरा है और कौन अनाहिता। पर न जाने क्यूं अभिमन्यु को महसूस हुआ को बीच में खड़ी लड़की जो जबरदस्ती मुस्कुरा रही थी वोह ही अनाहिता है।
“वोह मैं जानता हूं की आनंद जी को अभी भी मुझ पर भरोसा नही है। उन्हे अभी भी लगता है—”
“तभी तो उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है,” अभिमन्यु ने बिना किसी भाव के कहा। “इस डील के पूरा होते ही सब क्लियर हो जायेगा।”
अभिमन्यु के चेहरे पर अब चिढ़न के भाव आने लगे। इतने सालों से बस विजयराज उसके पिता को बेवकूफ बना रहा था। खुद के तो मैले हाथ साफ कर लिए थे सरकार की आड़ में और उसके पिता को सरकार से छुपने पर मजबूर कर दिया था।
_अब तुम्हारी बारी है विजयराज। बर्बाद कर के रख दूंगा मैं तुम्हे। तेरा घमंड, तेरा गुरूर, तेरा रुतबा, मिट्टी मिला दूंगा।_
मन में इसी भावना के साथ अभिमन्यु ओबरॉय ने अपना रुख विजयराज जी की तरफ कर लिया था।
“हाँ... हाँ सब क्लियर हो जायेगा। मैं पूरी मदद करूंगा। अपना पूरा ज़ोर लगा दूंगा। अब तो हम फैमिली हैं। और फैमिली तो एक दूसरे की मदद के लिए ही होती है।” विजयराज जी ने कहा पर उनके हर शब्द में कड़वाहट झलक रही थी।
कौन जानता था की यह डील पूरी होगी भी की नही। अगर होगी भी तो किस तरह से पूरी होगी। कितने और बलिदान मांगेंगी यह डील? पहले ही दो लोग इसमें झुलस चुके थे और अब कितने और को झुलसना बाकी था।
“उन्हे अच्छा लगेगा सुन कर,” अभिमन्यु ने वोह फोटो फ्रेम वापिस रख दी। “आपने बताया था की अनाहिता ने अपनी ग्रेजुएशन कंप्लीट कर ली है। किस चीज़ में डिग्री ली है उसने?“
“उसने टीचिंग की डिग्री ली है,” विजयराज जी ने ऐसे जवाब दिया मानो दुनिया की सबसे खराब डिग्री हो यह। बोलते वक्त उनके चेहरे पर घृणा के भाव थे।
_पर क्यूं? क्या उन्होंने ही उसकी ग्रेजुएशन का कोर्स नही चुना था?_
अभिमन्यु ने उनके चेहरे के एक्सप्रेशन नोट कर लिए थे। वोह जनता था की विजयराज बड़े ही वाहियात इंसान है। अभिमन्यु की माँ भी शादी से पहले टीचर थी पर बच्चे होने के बाद उन्होंने अपना प्रोफेशन छोड़ दिया था। पर विजयराज शेट्टी जैसा इंसान कभी किसी काम की अहमियत नहीं समझ सकता।
विजयराज ने तो अपने ससुर का बिज़नेस संभाला था और फिर बाद में राजनीति में भी घुस गए जबकि अभिमन्यु के पिता आनंद जी ने खुद अपनी मेहनत से अपना बिज़नेस खड़ा किया था और आज उनका पूरे देश में नाम था। ओबरॉय परिवार ने सब कुछ स्क्रैच से शुरुवात की थी। यह ऐसा था जिसकी मिसालें दी जा सकती थी पर विजयराज शेट्टी, वोह किसी काबिल नही था।
विजयराज के मुताबिक ओबरॉय परिवार उसके सामने कुछ भी नही था, और ना ही उसके जितना पावरफुल। और यही उसकी सबसे बड़ी गलत फैमी थी। और इसका पछतावा उसे बाद में होने वाला था।
✨✨✨✨✨
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी....
अगर कहानी पसंद आ रही है तो रेटिंग देने और कॉमेंट करने से अपने हाथों को मत रोकिएगा।
धन्यवाद 🙏
💘💘💘
©पूनम शर्मा