Devil's Queen - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

डेविल्स क्वीन - भाग 4

चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था। अचानक सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी। वोह तड़प रही थी, झटपटा रही थी। धीरे धीरे पानी अंदर जाने लगा। आँखों की पुतली फैल गई। कुछ समझ नही आ रहा था, क्या हो रहा है। हाथ पैर पटक रही थी लेकिन सांस आ ही नही रही थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई कस कर दबाए हुए है।

अचानक लंबी लंबी सांसे लेने लगी। खाँसते खाँसते मुंह से पानी का फुहार छोड़ने लगी। कुछ एहसास हुआ, आँखें खुली, होश में आई, चारों ओर पानी था। वोह गोल गोल घूम कर चारों ओर देखने लगी लेकिन सिर्फ अंधेरा और काला पानी था। वोह बहुत डर गई। अभी अभी तो जान बची थी उसकी दम घुटने से और अब यह क्या?

उसने तेज़ आवाज़ में पुकारा, "माँ........"

हवाओं में आवाज़ गूंज गई। उसी की आवाज़ वापिस सुनाई देने लगी। घबराहट और डर से उसका दिल जोरों से धड़क ने लगा। वोह अकेली थी।

हिम्मत कर के उसने एक बार फिर पुकारा, "माँ........"

अभी भी कोई नही आया। बड़ी उम्मीद से फिर पुकारा, "अक्षरा...."

आंसुओं की एक धारा बह गई। उसके हाथ पांव ठंडे पड़ने लगे। उसे कुछ समझ नही आ रहा था। वोह हाथ पांव मारने लगी। लेकिन वोह किनारे तक पहुँच ही नही पा रही थी।

उसने ज़ोर लगाया। वोह समुंद्र के बीचों बीच थी।

वोह किनारे तक नही पहुँच पा रही थी। उसकी सांसे फूलने लगी। उसका दम घुटने लगा।

तभी अचानक एक साया उसके ऊपर बढ़ने लगा। वोह साया बढ़ा होता जा रहा था। बहुत ही विशाल।

उस साए का हाथ उसके कंधे की ओर बढ़ रहा था। उस साए ने उसके कंधे पर हाथ रखा।

"मैडम...!"

अनाहिता झटके से उठ गई। वोह पसीना पसीना हो रखी थी।

"मैडम, हम घर पहुंच चुके हैं। मैं आपको कबसे जगाने की कोशिश कर रहा हूं।"

"ह्ह्ह...." अनाहिता ने गहरी सांस ली।

अपने चेहरे को छुआ तो पूरा पसीने से भरा हुआ था। अपने चारों ओर देखा था तो वो एक गाड़ी में पिछली सीट पर बैठी थी। उसके पिता की गाड़ी थी। और पिछली सीट का दरवाज़ा खुला था जहां उसके पिता का ड्राइवर, रवि, खड़ा था।

उनकी गाड़ी उसके पिता के घर के बाहर पॉर्च में खड़ी थी।

"मैडम, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?" ड्राइवर रवि ने अनाहिता से उसकी चिंता करते हुए पूछा।

"हाँ....हाँ, मैं ठीक हूं।" अनाहिता ने अटकते हुए कहा। वोह अभी भी समझ नही पा रही थी की वोह गाड़ी में बैठे बैठे कब सो गई थी और सपना देख रही थी या यह सच में वोह सब हकीकत था जो उसने कुछ देर पहले महसूस किया था।

"कितने बजे हैं अभी?" अनाहिता ने गाड़ी से बाहर निकलते हुए पूछा।

"मैडम, अभी चार बजने वाले हैं।" ड्राइवर रवि ने अपनी हाथ में बंधी मामूली सी घड़ी पर नज़र डालते हुए कहा।

बाहर अभी भी अंधेरा छाया हुआ था। सुबह के चार बजने में अभी समय था। अनाहिता की सैंडल बहुत टाइट हो रखी थी जिस वजह से उसे अब चलने में दर्द होने लगा। सारी रात आखिर उसने जम कर डांस किया था। अब अगर कुछ देर और अनाहिता वोह सैंडल पहनी रहेगी तो पक्का उसके पैर में छाले पड़ जायेंगे।

नींद से उसकी आँखें बोझिल हो रहीं थी। बस इस वक्त उसे अपना प्यारा बैड चाहिए था जिसपर वो जैसे ही लेटेगी तुरंत सो जायेगी।

उसे इस तरह बाहर देर रात पार्टियों में न जाने इजाज़त होती थी और ना ही उसका खुद का मन करता था।

तभी उसकी नज़र पार्किंग में ही खड़ी एक ब्लैक एसयूवी पर पड़ी। वोह उसके पिता की तो नही थी। और वोह इस वक्त इतनी थकी हुई थी की गाड़ी किसकी है यह पहचानने में नही उसकी हिम्मत थी और ना ही उसकी कोई रुचि थी। शायद उस के पिता से मिलने कोई आया हुआ था। पर इस वक्त।

आज अनाहिता के कॉलेज में ग्रेजुएशन सेरेमनी थी। और उसके बाद ग्रेजुएट होने की खुशी में कॉलेज की एक पार्टी भी रखी गई थी। जिसमे पहले तो अनाहिता जाना नही चाहती थी। वोह बस अपनी ग्रेजुएशन सेरेमनी अटेंड करके सीधे घर वापिस आना चाहती थी पर उसके पिता ने उसे हुकुम दे दिया था की उसे पार्टी में जाना है।

तीन साल के उसके ग्रेजुएशन की पढ़ाई के समय उसके पिता उस पर पूरी नज़र बनाए रखते थे। यह उसके लिए बहुत ही बुरा समय गुज़रा था। एक कटपुतली की भांति वोह अपने पिता के इशारों पर चलती रही।

उसने अपनी सैंडल उतारी और हाथ में ले ली। अब वोह धीरे धीरे अपने थके हुए पैरों से आगे बढ़ने लगी। पोर्च की लाइट ऑन थी और उसके पिता के दो आदमी घर के मुख्य द्वार पर खड़े थे, उसी के लिए।

अनाहिता ने उनकी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा पर उसे उनसे वापिस मुस्कुराहट नही मिली। वोह उनको ब्लेम नही कर सकती थी। उसके पिता ने सबको अपने जैसा बना रखा था।

वोह आगे बड़ी, जब वोह हॉल में पहुँची तो उसके पिता के ऑफिस में से एक आदमी निकला। अनाहिता उन्हे देख कर चौंक गई। वोह उसके पिता के वकील थे, मिस्टर मनोज देसाई।

पर इस वक्त उसे सिर्फ और सिर्फ अपना बैड चाहिए था। वोह सच में बहुत ज्यादा थकी हुई थी। अपने हाथों में सैंडल लिए वोह आगे बढ़ने लगी पर उसके कदम रुक गए जब उसे वकील अंकल की आवाज़ सुनाई पड़ी।

"अनाहिता..."

"जी....जी अंकल।"

"तुम्हारे पापा ने तुम्हे ऑफिस में बुलाया है।"

"क्या हुआ है?" अनाहिता ने पूछा। उसकी ज़रा भी हिम्मत नही थी अपने कमरे के अलावा कहीं और जाने की।

"तुम्हारे पापा तुमसे मिलना चाहते हैं," मनोज देसाई ने फिर अपनी बात दोहराई।

अनाहिता सारी रात बाहर थी, वोह भी अपने पिता के कहने पर ही। अब ऐसा क्या कर दिया उसने जो उसके पिता ने उसे बुलाया है। अब किस बात की सज़ा देनी। आखरी उन्होंने ही तो उसे पार्टी में भेजा था। अब इस वक्त वोह उससे क्यूं मिलना चाहते थे?

"क्या और कोई भी है अंदर?" अनाहिता ने मनोज जी से पूछा। उसने ऑफिस के दरवाज़े के बाहर दो नए चेहरे देखे लिए थे। दो नए बॉडीगार्ड। और वोह उसके पिता के तो बिलकुल नही लग रहे थे। उनकी यूनिफॉर्म अलग थी और जाने पहचाने चेहरे भी नही थे। यह दोनो बॉडीगार्ड जवान थे और कर्मठ के साथ साथ और भी ज्यादा गंभीर भी लग रहे थे।

अनाहिता का दिल और भी ज्यादा तेज़ी से धड़कने लगा मानो अभी बाहर ही आ जायेगा। पर उसने मुश्किल से ही सही अपने आप को नियंत्रित किया। बस यही तो वो कर सकती थी।

उसने एक गहरी सांस ली और अपनी हथेली को अपने साइड में रगड़ते हुए वोह आगे बढ़ गई।

जो भी मुसीबत होगी, वोह उसका सामना कर लेगी। जैसे हमेशा करती आई थी। और फिर चली जायेगी अपने कमरे में।

अनाहिता ने धीरे से ऑफिस के कमरे का दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। उसके पीछे पीछे मनोज देसाई भी अंदर आ गए और दरवाज़ा बंद कर लिया।




















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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धन्यवाद 🙏
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©पूनम शर्मा

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