डेविल्स क्वीन - भाग 12 Poonam Sharma द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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डेविल्स क्वीन - भाग 12

अभिमन्यु ने वेटर को घूरा, वोह चुप हो गया। उसने अपने आदमियों को इशारा किया जो की गेट के पास ही अंदर की ओर खड़े थे। उसके बॉडीगार्ड्स में से दो अनाहिता की तरफ चले गए जिस तरफ वोह जा रही थी और कुछ बाहर चले गए।

अंदर जा कर अनाहिता ने चारों ओर देखा। वोह जान गई थी की जरूर अभिमन्यु भी उसके पिता की तरह ही ताकतवर है और उसके चंगुल से निकलना इतना आसान नहीं पर फिर भी वोह एक कोशिश तोह कर ही सकती थी।

उसे एक छोटी सी खिड़की दिखाई दी। पर उस तक पहुँचना बहुत मुश्किल था क्योंकि वोह काफी ऊपर थी। उसने बहुत कोशिश की पर उस तक नही पहुँच पा रही थी।

थक हार कर वोह नीचे बैठ गई। वोह परेशान थी।

थोड़ी देर बाद वोह वाशरूम से बाहर निकली। बाहर अभिमन्यु के बॉडीगार्ड्स भाव हीन खड़े थे। उन्हे नज़रंदाज़ कर अनाहिता उस टेबल की ओर जाने लगी जहाँ अभिमन्यु बैठा था।

अनाहिता अभिमन्यु के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। अभिमन्यु के हाथ में कॉफी का एक कप था। और टेबल पर तीन कॉफी के खाली कप रखे हुए थे।

अनाहिता समझ चुकी थी की उसने वाशरूम में बहुत ज्यादा ही वक्त लगा दिया है। कहीं अभिमन्यु को कोई शक तो नही हो गया?

उसी टेबल पर एक जूस का ग्लास भी रखा हुआ था, वोह भी भरा हुआ।

“जूस....तुम्हारे लिए ही है,” अभिमन्यु ने अपनी भाव हीन और भारी आवाज़ से कहा।

“वोह..... मैं...“

“भागने की कोशिश कर रही थी,” अभिमन्यु ने अभी भी वैसे ही कहा। “कोशिश बेकार कर रही हो।”

“नही.... आ....आप को कैसे पता चला?“

अभिमन्यु ने कप से कॉफी का लास्ट घूट पिया। “मैं बाहर इंतज़ार कर रहा हूं। यहाँ ज्यादा देर रुकना सेफ नहीं है।”

अभिमन्यु बिना अनाहिता का कोई जवाब सुने रेस्टोरेंट से बाहर चला गया।

अनाहिता कुछ हिचकिचाई और जूस का ग्लास वहीं छोड़ कर उठ खड़ी हुई। अभिमन्यु के बॉडीगार्ड्स उसके पास आ गए।

अनाहिता की भौंहे सिकुड़ गई। वोह भी तेज़ कदमों से बाहर निकल गई।

ढाई घंटे का और सफर तै करने के बाद वोह भीड़ भाड़ वाले रास्ते से होते हुए अब एक शांत और साफ सुथरे रास्ते पर आ गए। एक ओर गहरा समुंदर था और दूसरी ओर लंबे लंबे घने पेड़।

पाँच मिनट की ड्राइव के बाद उनकी गाड़ी एक बड़े से गेट के बाहर खड़ी थी। चारों ओर हरियाली थी।

वहाँ की सिक्योरिटीज बहुत टाइट थी। बड़ी बड़ी बाउंड्रीज से और खूबसूरत गार्डन से घिरा एक आलीशान सफेद रंग का बहुत ही बड़ा बंगला था।

गेट के बाहर अभिमन्यु ओबरॉय का नाम सफ़ेद मल मल के पत्थर पर चमकते हुए सुनहरे रंग से लिखा था।

गाड़ी पोर्च में आ कर खड़ी हुई। दोनो बारी बारी से बाहर आए। अनाहिता ने इस बार भी बाहर उतरने के लिए अभिमन्यु के हाथ का सहारा नही लिया।

गार्डन देख कर अनाहिता को यकीन नही हो रहा था की इतना गंभीर इंसान दिखने वाले का घर इतना खूबसूरत हो सकता है। उसे तो लगा था यहाँ बस दिखावटी सजावट होगी।

इस बार पहली बार अभिमन्यु ने अनाहिता का हाथ पकड़ा। अनाहिता कसमसाई। वोह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी। पर इससे अभिमन्यु की पकड़ और मजबूत होने लगी थी। अनाहिता को अपनी कलाई पर दर्द होने लगा। उसने कोशिश बंद कर दी।

“वेलकम टू आर होम,” अभिमन्यु ने तिरछी मुस्कान से कहा।

अनाहिता ने कोई जवाब नही दिया। बस उसके साथ चुप चाप किसी बच्चे की तरह चलने लगी।

उनके आने का शोर अंदर तक पहुँच चुका था। तभी तो अभिमन्यु के बैल बजाने से पहले ही दरवाज़ा खुल गया था। सामने एक अधेड़ उम्र की औरत खड़ी थी। नीले रंग की वैल प्लेटेड कॉटन की साड़ी में वोह बड़ी ही सभ्य औरत लग रहीं थी।

“गुड मॉर्निंग, सर,” उस औरत ने सिर झुका कर अभिमन्यु को विष किया। फिर अनाहिता को अचरज भरी नज़रों से देखने लगी।

“मॉर्निंग,” अभिमन्यु ने भांप लिया था मिस माया के मन में उठे सवालों को।

उस औरत का नाम माया था। वोह इस घर की केयर टेकर थी।

“यह अनाहिता है। मेरी होने वाली पत्नी। आज से यह इसी घर में रहेंगी।” अभिमन्यु ने मिस माया के अनकहे सवालों के जवाब देते हुए कहा।

माया को कुछ समझ नही आया। जितना वोह जानती थी की कोई भी लड़की शादी के बाद ही अपने ससुराल आती है और यह तो बिना शादी किए ही आ गई। फिर भी अभिमन्यु उसका मालिक था। वोह उस से कोई सवाल नही पूछ सकती थी। उसने बस सिर हिला दिया।

अभिमन्यु ने अभी भी अनाहिता का हाथ पकड़ा हुआ था। वोह आगे बढ़ना लगा।

अनाहिता ने देखा की घर बहुत ही बड़ा और खूबसूरत था। बिलकुल नहीं लग रहा था की किसी अकड़बाज का घर है।

“वैलकम....होम....माय स्वीट....अनाहिता....भाभी।” अभिमन्यु जितना ही लंबा चौड़ा एक लड़का अनाहिता के सामने खड़ा हो गया था। बस उम्र में अभिमन्यु से थोड़ा कम लग रहा था।

अनाहिता जो की अभी घर को हो निहार रही थी, अचानक आवाज़ सुन कर, उसकी नज़रे भी उस लड़के पर गड़ गई।

“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“ अभिमन्यु अनाहिता और अवनीश के बीच में आ कर खड़ा हो गया था।

“हे ब्रो! चिल्ल! मैं तो बस अपनी भाभी का वैलकम कर रहा था। कोई तो होना चाहिए था ना उनका वैलकम करने के लिए। इसलिए सुबह सुबह ही यहाँ चला आया।”

अभिमन्यु दोनो के बीच से हट गया था। पर वोह अपने भाई को फितरत को अच्छे से जानता था इसलिए उसकी नज़र अभी भी अपने भाई अवनीश पर ही थी।

अभिमन्यु ने अनाहिता को अवनीश से मिलवाया। अवनीश तो पहले ही अनाहिता के बारे में सब जानता था।

“आप बहुत खूबसूरत हैं भाभी। वैसे, अगर आपकी बहन का एक्सीडेंट नही हुआ होता तो, तोह आज आप शायद मे.....“ अवनीश बोलते बोलते रुक गया क्योंकि अपने भाई को नज़रों की तपिश वोह सह नहीं पाया था।

“चिल्ल ब्रो! मैं तो बस मज़ाक कर रहा था।” अवनीश ने बात बदलते हुए अभिमन्यु से कहा।

“शेराआआआ.......!“ अभिमन्यु ज़ोर से दहाड़ा।

पूरा घर गूंज उठा। हर कोने में अभिमन्यु की आवाज़ पहुँची। हर कोई समझ गया की अब अभिमन्यु गुस्से में है और उसके कहर से अब कोई नही बच सकता।

शेरा दौड़ते हुए मेन गेट से आया।





















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी....
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©पूनम शर्मा