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विश्व का प्रथम सबसे बड़ा गुजरात पुस्तकालय सहायक सहकारी मंडल

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

 समस्त विश्व की प्रथम व लगभग एक मात्र संस्था है वड़ोदरा की 'गुजरात पुस्तकालय सहकारी मंडल 'जिसकी शहर के मध्य में एक अपनी निजी इमारत है । इस पुस्तकालय की शाखाएं मेहसाना व अहमदाबाद में निजी मकानों में हैं । वड़ोदरा में इसके तीन वाचनालय हैं ।

गुजरात पुस्तकालय सहायक सहकारी मंडल के पुस्तकालयों की संख्या दो हज़ार है जिनमें से सात सौ गांवों में पुस्तकालय के ट्रस्ट बन चुके हैं । ट्रस्टी बनने के लिये किसी भी व्यक्ति को पांच हज़ार रुपया देकर पुस्तकालय को दत्तक लेना होता है । उसके बाद वह ट्रस्ट बनाकर उसे संचालित करता है ।

यदि सरकारी लाइब्रेरी की बात की जाए तो गुजरात सरकार की गुजरात में सात हज़ार लाइब्रेरीज़ हैं जिन्हें सरकार कुल दो हज़ार रुपया वार्षिक देती है जिस में आठ-नौ सौ रुपया तो समाचारपत्र ख़रीदने में चला जाता है, बाकी का रुपया उनके रखरखाव में । तो पुस्तकें ख़रीदने की बात कैसे सोची जाये ?

यदि मंडल के पुस्तकालयों के नेट वर्क का उद्गम स्थल खोजा जाये तो वह है वड़ोदरा के महाराजा सयाजीराव तृतीय की सूझ-बूझ । इन्होंने गांव व प्रादेशिक स्तर पर बैलगाड़ी में पुस्तकें रखकर बनाये पुस्तकालय सुदूर गांवों के चक्कर लगाया करते थे । इन सबको संभालने के लिये महाराजा ने एक हाई स्कूल के प्रधानाचार्य मोतीभाई अमीन को नियुक्त किया था । सन् 1924 में पुस्तकालय सहायक सहकार मंडल की स्थापना की गई। उस समय तीन हज़ार गांवों में से डेढ़ हज़ार गांवों में लाइब्रेरी की व्यवस्था थी । श्री अमीन ने सोचा, इन पुस्तकालयों में भी आपस में संबंध बना रहना चाहिये । साथ ही इसका सरकार से संबंध बना रहे, इसे को-ऑपरेटिव में तबदील कर दिया था । 

पुस्तकालय का संगठन बनाने के लिये स्थायी फ़ंड की व्यवस्था कर दी गई थी । श्री अमीन के निर्देशन में दान मिलने पर रसीद देने का नियम, पुस्तकालय के ख़र्चे का बजट, पुस्तकों का चुनाव, पुस्तकालय के ख़र्चे का हिसाब-किताब व्यवस्थित रूप से होने लगा ।

बाद में इसके चेयरमैन राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले अंबुभाई पटेल ने अमीन के कार्यों को एक सुंदर आकार दे दिया था । मंडल की लाइब्रेरी के अठारह सौ सदस्य हैं । मंडल स्वयं पुस्तकें वितरित करने का काम पूरे प्रदेश के अपने पुस्तकालयों में करता है । मंडल का मासिक पत्र ‘पुस्तकालय’ सत्तर वर्ष से नियमित रूप से प्रकाशित हो रहा है ।

श्री अमीन के शताब्दी वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में उनकी स्मृति में एक लाख रुपये अलग ‘फिक्स्ड’ कर दिये गये हैं । अंबुभाई की षष्टिपूर्ति पर भी एक लाख रुपया मंडल को दान दिया गया था जिससे कमज़ोर पुस्तकालयों को समय-समय पर दान दिया जा सके । इस मंडल के कार्यों को इन बातों से समझा जा सकता है- -

· मंडल सरकार, पंचायत व पुस्तकालय के बीच एक आदर्श कड़ी की तरह काम कर रहा है ।

· गांवों के पुस्तकालयों को ये किताबें व जरूरी काग़जात पहुंचाता है । पुस्तकालयों को हमेशा संरक्षण मिले व इनको सही अनुशासन में रखा जा सके इसलिये प्रतिवर्ष के बजट का आधा रुपया सुरक्षित बैंक में रख दिया जाता है ।

· गांवो में पुस्तकालय आंदोलन प्रोत्साहित करने के लिये गुजरात पुस्तकालय विकास ट्रस्ट, फंड जिसकी आरंभिक राशि इक्यासी हज़ार थी, प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ पुस्तकालय व लाइब्रेरियन को पुरस्कार देता है ।

· मंडल कम मूल्यों पर पुस्तक प्रकाशित करता है लेकिन कभी भी रुपये के लिए बैंक अथवा किसी आर्थिक सहायता देने वाले संस्थान से लोन नहीं लेता ।

· इसका एक शेयर पच्चीस रुपये का है जिस पर अनेक वर्षों से बोनस भी पच्चीस रुपया है । शेयर ख़रीदने वालों को पंद्रह प्रतिशत डिविडेंड दिया जाता है । इसके बैनर तले कोई भी अपना ट्रस्ट अपने सुझाए नाम से बना सकता है लेकिन ट्रस्ट की ब्याज से जरूरतमंद पुस्तकालयों की उसे मदद करनी होती है ।

पुस्तक वितरण के क्षेत्र में पचपन वर्षों से काम कर रहे इस मंडल के चेयरमैन अंबुभाई पटेल को ‘वर्ल्ड यूनिवर्सल राउंड टेबल’, अमेरिका की तरफ़ से ‘कल्चरल डॊक्टरेक्ट’ की उपाधि दी गई थी । उन्होंने अधिक पुस्तकें बिकने का राज़ बताया था, “हम अपने यहाँ कमरों में पुस्तकों को ,मेज़ों म पर सजाकर रखते हैं । लोग पुस्तकों को हाथ में लेकर देखते हैं । मंडल को नुकसान भी उठाना पड़ता है क्योंकि कुछ पुस्तकें गंदी होने के कारण बिकती नहीं ।”

सरकार या अन्य संस्थानों के पुस्तकालयों के लिये ये अलग तरह से बिक्री करने का अंदाज़ एक उदाहरण है । उनके यहां पुस्तकें अलमारियों में बंद रहती हैं तो लोगों को पता ही नहीं लग पाता कि उन में क्या लिखा है । इस मंडल में प्रतिदिन दो-तीन हज़ार से लेकर पंद्रह हज़ार रुपये तक की पुस्तकों की बिक्री होती है । यदि मैंने रसीद बुक नहीं देखी होती, तो विश्वास करना मुश्किल था । इस बिक्री का एक कारण एन.आर.ए. आई. का यहाँ आना भी है ।

ये मंडल पुस्तकालय प्रशिक्षण केंद्र, ग्रंथालय विज्ञान प्रशिक्षण केंद्र संचालित करता है । अखिल भारतीय पुस्तकालय सम्मेलन के साथ-साथ लेखकों, कवियों, पत्रकारों व पुस्तकालय से जुड़े लोगों का परिसंवाद आयोजित करता है ।

गत पुस्तक वर्ष में वड़ोदरा में निकाली गई ग्रंथ यात्रा में इसे धार्मिक, सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों ने अपने-अपने ट्रकों में पुस्तकें सजाकर समर्थन दिया था ।

वड़ोदरा की एक और संस्था ‘शिशु मिलाप’ है जो बीस वर्षों से पुस्तकों को बच्चों में लोकप्रिय बनाने का काम कर रही है । इसका स्थायी पुस्तकालय है । प्रतिवर्ष इसकी पुस्तक प्रदर्शनी में बच्चे अपनी मनपसंद पुस्तकें खरीद सकते हैं । बस्ती के बच्चों के लिये ये पुस्तकें वितरित करती है । गांवों में आयोजित इसके पुस्तक मेले बच्चों को अचंभित करते हैं व पुस्तकें पढ़ने के लिये प्रेरित करते हैं ।

और अब एक स्त्री संस्था ओलख (पहचान) छह वर्षों से अपने पुस्तकालय में स्त्री संबंधी पुस्तकें एकत्रित करने में लगी हुई है । इसकी संस्थापिका निमिषा देसाई हर स्त्री संबंधी अच्छी पुस्तक का गुजराती में अनुवाद करने में जुटी हुई हैं । ‘ओलख’ की एक मोबाइल लाइब्रेरी है जो अनेक क्षेत्रों में जाकर पुस्तकें व पत्रिकाएं लोगों को पढ़ने के लिये देती है ।

शहर की एक शो रूम की आलीशान सेल में पच्चीस-तीस सेल्स गर्ल्स रखी जाती हैं । हर एक सफेद कोट पहने होती हैं व एक कस्टमर का सामान उठाने के लिये साथ हो लेती हैं । मेरे साथ आई लड़की बड़ी ललक से मेरे हाथ की पत्रिका लेकर एक कोने में पढ़ने लग जाती है । उसे देखकर तीन-चार लड़कियां और आ जुटती हैं । उस हिंदी पत्रिका(जो फैशनेबल महिला पत्रिका नहीं है) को बड़े ध्यान से देखने व पढ़ने लगती है । मैं अचंभित हूं कहीं हम बेवजह तो ढोल नहीं पीट रहे कि आजकल पुस्तकें किसे पढ़ने का शौक है ? किसके पास समय है ? कहीं हमारा तंत्र(समाज व घर भी) ही पुस्तकों को ख़रीदने की प्रेरणा देने में विकलांग तो नहीं हो गया ? बकौल अंबुभाई पटेल, “जब लोग गुटका खरीद सकते हैं, कोक व आइसक्रीम पर बीस-पच्चीस रुपये खर्च कर सकते हैं तो पत्रिकायें व पुस्तकें क्यों नहीं खरीद सकते?”

मंडल में गत वर्ष से यानी सन् 2011 से वड़ोदरा के प्रखर पत्रकार श्री अविनाश मनियार जी ने निदेशक पद संभाला है । वे बताते हैं, “चौदह सौ शेयर होल्डर लाइब्रेरी मंडल के सदस्य हैं ।”

''मेरा विचार हैआज के माहौल में लोग पुस्तकें पढ़ना बंद कर रहे हैं ?”

“गुजरात में ऐसा नहीं है । वड़ोदरा मंडल के कार्यालय में प्रतिदिन की औसत पुस्तक बिक्री 70,000 रुपये है [ कोरोना से पहले ] । पिछले वर्ष एक करोड़ का टर्न ओवर रहा जिससे हमने प्रथम तल पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिये हॉल बनवा लिया है । मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यक्रम ‘वांचे गुजरात’ ने भी बिक्री बढ़ाई है ।”

इसके वर्तमान सचिव श्री जितेंद्र भावसार के अनुसार ,''ये जानकारी कोरोनाकाल से पहले की है। ज़ाहिर है इस काल के बाद आय कम हुई है ,उसे ठीक होने में वक़्त लगेगा। ''

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नीलम कुलश्रेष्ठ .e-mail –kneeli@rediffmail.com

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