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फ़तह

फ़तह

नीलम कुलश्रेष्ठ

जिग्ना रोज़ की तरह बालकनी में सुबह की चाय पीने के बाद अख़बार पढ़ती है, ऎसे में आस पास के गमलों के छोटे पौधे व हरी भरी मनी प्लांट की बेल से लिपटकर तिरते हुए ताज़ी हवा के झोंकों का उसके गाल सहलाते हुए बहना उसे बहुत अच्छा लगता है. ---वह साँस रोककर एक समाचार पढ़ती जा रही है----- --उसका हाथ कंपकंपाता जा रहा है ---साँस तेज़ होती जा रही है ---वह कैसे सब कर सकी ?----किन लोगों का उसको भरपूर साथ मिला था ---ऎसा तो सदियों पहले ये हो जाना था लेकन ज़रूरी नहीं है कि जो ज़रूरी हो वह हो ही जाएँ. मुँह खोलने की हिम्मत तो बहुतों ने की होगी लेकिन उनका मुँह घावों से भर दिया होगा या वह 'पागल 'या' चुड़ैल 'करार कर दी गई होंगी----- बीती हुई सदियों की चादर कितनी अनजानी स्त्रियों के टपके खून के धब्बों से बढ़ रंग की जाती रही होंगी ---कौन जाने.

आज उसकी हिम्मत के कारण उन दरिन्दों के परिवारों को उनका उगला ज़हर डसे बैठा है उनके घर के बुज़ुर्ग, उनकी पत्नियां, बच्चे बेहाल है जिनका बस इतना कसूर था कि वे उन दरिन्दों से जुड़े थे. मिहिर पटेल की बीवी रसोई में जल गई है [ या उसने जानबूझकर आत्महत्या की कोशिश की है ]. अस्पताल के वॉर्ड पर उसने पड़े हुए एक रिपोर्टर को इंटर्व्यू दिया है, "मिहिर भाई जेल में है, मैं अस्पताल में. मेरे बेटे का नए स्कूल में कौन एडमिशन करवाएगा ?"

ऊंह ! तब मिहिर सर ने उस नन्ही सी जान के लिए नहीं सोचा था कि जो जुलाई सन् 2007 में धड़कते दिल से उस शहर के " ज़िला शिक्षण अने तालीम भवन "के अन्दर जा रही थी, सहमी हुई सी अपने बेहद मामूली कपड़ों में, अजीब सी दिल में धुकुर पुकुर मची हुई थी. गांव में पिता अंबालाल के पास रत्ती भर ज़मीन का टुकड़ा नहीं था, वे दूसरों के खेतों में मेहनत मजूरी करके अपनी पाँच संतानें पाल रहे थे.

वे अकसर अपने दूसरे नंबर की बेटी को डांटा करते थे, "क्या हर समय चोपड़ी [किताब] लेकर बैठीं रह्ती है ? रसोदा का कुछ काम देखा कर. "

"आज खिचड़ी मैंने ही बनाई है. "वह चेहरा घुमाकर देखती और किताबों में गुम हो जाती. बापू एक कोठरी के घर में देर रात तक बल्ब जलता देख चिढ़ता और स्विच बंद कर चिल्लाता, 'इस बिजली 'का पैसा कौन भरेगा ?"

बिना कोचिंग में पढ़े जब वह दसवीं में नब्बे प्रतिशत व बारहवीं में सत्तर प्रतिशत नंबर ले आई थी उसकी टीचर ने ही सलाह दी थी ', 'तुम शहर जाकर टीचर होने का प्रशिक्षण क्यों नहीं ले लेती ?. "

जिग्ना कक्षा में ब्लैकबोर्ड पर चौक से लिखने की अपनी कल्पना करके उल्लसित हो उठी थी लेकिन एक पल में उसकी खुशी हवा हो गई, "मेरे बापू के पास इतना पैसा नहीं है जो मुझे सहर पढ़ने भेजें. "

"उसकी तुम चिन्ता मत करो. आदिवासी लड़कियों के लिए ये प्रशिक्षण व हॉस्टल का ख़र्च सरकार की तरफ़ से निशुल्क है. "

"ऎसा क्या ?"

जिग्ना अख़बार में आगे पढ़ती है कि रमेश परमार की बीवी भी रिपोर्टर को बता रही है, "हमारा घर कैसे चलेगा ? ससुर रिटायर हैं, मैं नर्सरी के बच्चो को पढ़ाती हूँ. हम दुनियाँ में ज़िदा हैं लेकिन जीना भूल गए हैं. "

यदि रमेश परमार की पत्‍‌नी उसके सामने होती तो वह उसे झिंझोड़कर पूछती, "मैं भी तो नौकरी का सपना लेकर शहर आई थी तब सर ने मुझे नोचते समय नहीं सोचा था कि वे विवाहित हैं ?मैं चार महीने से अधिक ज़िन्दा मरती रही. मुझे कौन देखने वाला था. ?"

वह आगे पढ़ कर उमग उठती है- चार फुट विकलांग दिवांग सर जो बैसाखी से चलते थे की पत्‍‌नी ने मुकदमे का फैसला आते ही तलाक ले लिया था. पच्चीस वर्ष की नाज़ुक उम्र में वह क्यों ऎसे मुजरिम का इंतज़ार करे जिसे आजीवन कैद हुई हो और वह बलात्कारी हो ? वह रिपोर्टर छ: मुजरिमो के परिवारों का उनकी सज़ा के दो वर्ष बाद सर्वे करने निकला था. उनके पिता या ससुर सफ़ाई दे रहे थे कि उन्हें किसी अपराधिक जालसाजी में फँसा दिया है.

वह छ ऎसे कौन से अफ़सर या नेता हैं जो उन्हें कोई झूठा फंसायेगा ---- सोचकर वह मुँह बिचका देती है लेकिन पता नहीं क्यों उसकी आँखें बह उठी है. अपने कन्धे पर किसी के हाथ के कोमल स्पर्श से वह समझ गई कि तुषार उसके पीछॆ आकर खड़ा हो गया है. उसने धीमे से उसके हाथ से अख़बार छुड़ा लिया व बोला, "जिग्ना बेन ! तू ने मुझसे वायदा किया था कि अब कभी भी नहीं रोयेगी ?"

" 'जा जा कोई मैं रो रही हूँ ?" कहते कहते जिग्ना हिचकी भरकर रोने लगती है व अख़बार दिखाकर कह्ती है, "जिन्होंने मुझे रुलाया है ----आज उनका सारा परिवार रो रहा है ----जो न्याय राजस्थान की भँवरी बाई ना पा सकी. वो न्याय गांव की इस दलित लड़की ने पा लिया है. "

"अरी मेरी गुजरात की वाघिन ! तेरी इसी अदा पर मरकर मैंने तुझसे शादी बनाई है. चल अब उठ स्कूल में चार दिन बाद ही इंस्पेक्शन है, रजिस्टर्ड पूरे करने हैं. "

तुषार के कोमल स्पर्श से जैसे उसके शरीर में पंख लग गए हैं, उर्जा भर गई है. कहाँ वह जबरदस्ती उसके शरीर में कोंचें गए स्पर्श, कहाँ ये कोमल स्पर्श. औरत का शरीर, उसके दिल की धड़कन क्या से क्या हो जाती है इस जादुई स्पर्शों से. स्कूल में जो उसे नहीं जानता वह सोच भी नहीं सकता कि वह किन हादसों पर अपने कदम लहूलुहान करतीं यहाँ तक पहुँची है. तुषार ने भरसक अपने प्यार की सुरक्षा के घेरे में उसे ले उन वर्षों की घटनाओं को उसके दिमाग की काल कोठरी में बंद कर दिया है लेकिन वह काल कोठरी चाहो या ना चाहो अपनी सांकल खिसका कर अपना खौलता गाढ़ा कालापन उसके दिमाग के स्नायुयो में फैलाती रह्ती है.

स्कूल के मैदान में कतारों में लड़कियाँ स्कूल यूनिफॉर्म पहने, बालों में रिबन बाँधे खड़ी हैं, प्रार्थना शुरू हो गई है. उसका दिमाग चकरा रहा है. उन छ: लोगों के चेहरे उस समाचार से एक के बाद एक आंखों में गडमड हो रहे हैं. उसे लग रहा है उसका सिर घूम रहा है, सामने खड़ी लड़की वह ही है. वही प्रशिक्षण की प्रथम वर्ष की छात्रा जिसका सलवार सूट में प्रार्थना गाते हुए सिर चकराने लगा था, जो अपने को ज़मीन पर गिरने से बचाने की पूरी कोशिश में लगी हुई थी.

उसे गिरते देख अध्यापकों के साथ सामने खड़े मिहिर सर उसे थामने लपके थे. उन्होंने दोनों हाथों से उसे सहारा देकर गिरने से बचा लिया था, "लगता है इस पर फिर भूत आ गया है. "

उनके पीछॆ तेज़ी से आती आरती मैडम उन्हे डपटने लगी थी, "पढ़े लिखे होकर भी आप क्या उल जुलूल बात कर रहे हैं ? मैं देख्र रही हूँ ये लडकी कुछ महीनों से बहुत अपसेट रह्ती है. और आप‌‌‌‌‌‌‌---"जिग्ना को इसके बाद कुछ भी नहीं सुनाई दिया था.

बमुश्किल उसने आँखें खोली थी, पता नहीं कितनी देर बाद उसे होश आया था. उसकी नाक में स्प्रिट की गंध भर गई थी. वह एक लम्बी मेज़ पर लेटी हुई थी. छत से लटकते लैंप की लाइट सीधे उसके ऊपर पढ़ रही थी. उसने चौंककर उठना चाहा तो पास खड़ी सफ़ेद कोट पहने डॉक्टर ने उससे कहा, " डिकरी[ बेटी ] !‍ लेटी रह. "

"मैं ---मैं ---"

दूसरी तरफ आरती मैडम व उसकी सहेली कोकिला खड़ी हुई थी. दोनों के चेहरे पर परेशानी की लकीरें खिंची हुई थीं, मैडम ने आगे बढ़कर उसका सिर सहलाया, "जिग्ना! तुम प्रार्थना करते हुए बेहोश हो गई थी इसलिए हम लोग तुम्हे डॉक्टर देसाई के क्लीनिक ले आए हैं. "

"थेंक यु मैडम ! कौन मैं बेहोश हो गई थी ?"

"हाँ. "

डॉक्टर बोली ", प्लीज़ !आप दोनों ज़रा बाहर बैठिये. "

उनके बाहर जाते ही आया ने मेज़ के पास लगा हरा पर्दा खींच दिया और बाहर चली गई..

डॉक्टर की परेशान निगाहें जिग्ना के चेहरे पर जम गई थीं, "जिग्ना ! तुम मेरी डिकरी जैसी हो, मैं जो पूछूँगी सच सच बताओगी. "

उसने' हाँ ' में सर हिला दिया था. फिर वे बोली थी, "मैंने तुम्हारे सारे शरीर की जाँच कर ली है, सारा शरीर लाल, नीले निशानों से भरा है. नीचे के हिस्से में टाँके लगाने पड़ेंगे. ये तुम्हारे साथ किसने किया है ?"

"किसने ? किस‌‌--‌‌‌-किसने नहीं किया डॉक्टर साहब !वे छ : हैं. "जिग्ना चीख मार कर रो पड़ी वह कह नहीं पाई कि वे राक्षस उसके शरीर के किसी भी हिस्से पर होंठ गढ़ा देते थे, या दाँत गढ़ा देते थे या दो उँगलियों से त्वचा को बुरी तरह मसल डालते थे. साढ़े चार महीने से उसकी गूँगी कराहे संस्थान के सूने कमरों व हॉस्टल के कमरे की दीवारों से सिर फोड़ रही थीं, अब जैसे फूट पड़ी थी. ‌---वो ख़ौफ़नाक दिन मुँह से सरक सरक कर डॉक्टर के कानों में लावा उगल रहे थे. --- प्रथम वर्ष के प्रशिक्षण का बस डेढ़ महीना ही निकला था. वह दिल लगाकर पढ़ाई कर रही थी. अपने नम्र स्वभाव के कारण वह लोकप्रिय हो गई थी. वह ये सोचकर रोमांचित हो जाती थी कि जिस तरह वह पढ़ रही है वह भी कक्षा में कभी पढ़ाया करेगी..

एक दिन ने अपनी क्लास का समय समाप्त होते ही मिहिर पटेल सर ने ब्लैक बोर्ड पर डस्टर से अपना लिखा मिटाया और कक्षा से बाहर निकलते समय उसे अपने पीछॆ आने का संकेत किया.

जिग्ना ने कक्षा से बाहर निकल कर पूछा, "कहिये सर !"

"तुम बहुत होशियार लड़की हो. हम तुम्हें स्पेशल नोट्स देने वाले हैं. तुम रिसेस के बाद ई. टी. रूम[एजुकेशनल टेक्नॉलॉजी रूम ] में आ जाना. जो लड़कियाँ होशियार होती हैं उन्हें हम ये नोट्स देंते हैं . "

"थैंक यु सर !" जिग्ना बेहद खुश हो गई थी, रिसेस में वह क्लास की अन्य लड़कियों के बीच बैठी थी. वे बड़ा पाव को इमली की चटनी में में डुबोकर चटखारे लेती खा रही थीं लेकिन उसका मन उनकी चखर चखर में नहीं था. वह भावुक हो मन ही मन शपथ ले रही थी जिस तरह उसके टीचर उसे प्रोत्साहित कर रहे हैं वह भी अपने छात्रों को बहुत मेहनत से पढ़ायेगी.

उसने रिसेस के बाद जैसे ही ई. टी. रूम में कदम रक्खा था कि मिहिर सर ने तपाक से उसका स्वागत किया, "आओ आओ जिग्ना !" व उन्होंने लपक कर कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया था.

वह ठिठक कर घूम गई थी, "ये क्या सर !"

"हम भी तो तुम्हें स्पेशल नोट्स देंगे क्योंकि तुम बहुत अच्छी हो. "

अपने पीछॆ से आई आवाज़ के कारण उसने घबरा कर पलट कर देखा तो जड़ रह गई जिनेंद्र सर व नकुल पटेल सर कुर्सियों पर बैठे कुटिलता से मुसकरा रहे थे. एक क्षण में सब समझ वह दरवाज़े की तरफ़ दौडी तो मिहिर सर उसका रास्ता रोककर बेहिया मुस्कान से पूछ्ने लगे, " क्यों नोट्स नहीं लेने ? "

वह घबराहट में दूसरे बंद दरवाज़े की तरफ़ भागी तो बीच में रक्खी मेज़ से टकरा गई. उस पर रक्खी स्टूडेंट्स की प्रोजेक्ट फ़ाइल्स नीचे गिर गई. नकुल सर ने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उनके हाथ में उसका पीले रंग का दुपट्टा आ गया था. वह दौड़ती हुई एक स्टील की अलमारी से जा टकराई. झन्नाते हुए सिर के साथ उसने कंप्यूटर का सहारा लेना चाहा लेकिन उसका स्पीकर उसके पीछॆ दौड़ते नकुल सर के ऊपर गिर गया, मिहिर सर ने दौड़कर उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया, "बहुत झबरी[ तेज़ तर्रार ] बन रही है. "

इस झटके से वह ज़मीन पर गिर पड़ी थी. किसने उसका कौन सा वस्त्र खींचा, किसने उसके बाल खोल दिए -----बस उसकी देह जुगुप्सा से, घृणा से थर थर काँप रही थी उसका विद्रोह चकनाचूर हो ज़मीन पर बिछ गया था.

गफ़लत में वह बस यही देख पा रही थी कि जब दो सर उस पर जुटे होते थे तो तीसरे अपने मोबाइल पर उसकी तस्वीरे खींच रहे होते थे. ये मोबाइल जब तीनों के हाथों घूम चुका तो वह फर्श पर उकड़ूँ बैठीं सिसकतीं रही थी. नकुल सर ने फर्श पर बिखरे उसके कपड़े समेटे और उसकी देह पर दे मारे थे, "तू इसलिए रो रही है कि कहीं प्रेगनेंट ना हो जाए. ले ये गोली पानी के साथ खा ले 'प्रेगनेंट नहीं होगी. "कहते हुए उन्होंने एक् गोली उसके मुँह में ठूँस दी थी व एक पानी का गिलास ज़बरदस्ती उसके मुँह से लगा दिया था.

वह सिर झुकाये कंपकपाते हाथों से कपड़े पहनने लगी तो मिहिर सर ने अपने मोबाइल पर उसकी वस्त्रहीन तसवीर दिखाई थी, "इसे अच्छी तरह, ' देख ले, तू ने हमारी किसी से शिकायत की तो ये फोटोज़ पेपर में छप जायेंगी. "

वह अपनी गीली हथेलियों से गालो पर बहते आँसुओं को पोंछती सीधी लड़खड़ाते कदमो से अपने हॉस्टल के कमरे में चली गई थी. बिस्तर पर उलटी पड़ी कब तक रोती रही ---गफ़लत में सोती रही --पता नहीं.

हफ़्ते भार बाद ही जिनेंद्र सर ने उसे लेबोरेटरी में बुला लिया था. जहाँ चार फुट के दिवांग सर अपनी बैसाखी को मेज़ पर टिका कर कुर्सी पर पैर फैलाकर बैठे हुए थे. रमेश परमार व सुमित प्रजापति पहले से मौजूद थे, वह समझ गई थी कि अब भाग नहीं सकती. दिवांग सर तो अपने पैरों से लाचार थे इसलिए क्या क्या घिनौनी फ़रमाइश लगे ---उसने सहम कर मना किया तो एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गालों पर पड़ गया था.

बाद में कभी लेब ‌‌‌‌‌‌---कभी ई. टी. रूम ‌‌‌‌‌‌‌‌‌---कभी कंप्यूटर रूम में उसे बुलाया जाता. उसके मुँह में ज़बरदस्ती ठूँसी गोली के कारण उसका सिर चकराता रहता था. इन सबकी हिम्मत बड़ी तो चौकीदार को पैसे देकर हॉस्टल के गलियारे के बांये तरफ के कोने वाले कमरे में भी वे कभी पहुँच जाते थे.

उसकी कक्षा में जब वे एक एक कर पढ़ाने आते तो वह थर थर कांपने लग जाती. वे कुछ पूछते तो वह हकलाने लग जाती या गूंगी की तरह उन्हें आँख फाढ़े देखती रह्ती. तब मिहिर सर ज़ोर से कहते, "इस पर तो किसी भूत का साया है, देखो कैसी डर रही है. "

जिनेंद्र सर व दिवांग सर ने भी क्लास के सब लोगों के दिमाग़ में ये बात बिठा दी थी कि जिग्ना पर भूत आते हैं जिग्ना जिस दिन सुबह की प्रार्थना करते हुए बेहोश हो गई थी, उससे एक दिन पहले ही मिहिर सर ने कक्षा में ऐलान किया था, "आने वाले इतवार को हम जिग्ना को एक भुआ [ओझा] के पास ले जायेंगे. हमारे साथ कौन चलेगा ?"

उसके पास बैठने वाली उसकी पक्की सहेली कोकिला और तेजल ने हाथ उठा दिए, 'हम चलेंगे सर ‍!"

"ठीक है. रमेश सर व मेहुल सर एक भुआ को जानते हैं. हम सब उनके साथ चलेंगे. "

सर के कक्षा के जाते ही जिग्ना बिफर पड़ीं, "तुम दोनों मेरे साथ बिलकुल भी नहीं आओगी, तुम्हें मैं कसम दे रही हू. "

"लेकिन क्यों ?"

उत्तर में उसकी आंखों से टप टप आँसु बहने लगे थे जैसे कि डॉक्टर को ये सब बताते बहे जा रहे थे, चेहरा भय व संकोच से रक्तहीन हो गया था.

डॉक्टर की आवाज़ रुँध गई है, "ओ दे आर सो ब्रूटल ? तुम अभी मेरे साथ चलकर पुलिस में उनकी रिपोर्ट कर दो. "

"कौन में ? मैं पुलिस वालों के पास नहीं जाऊँगी. वो तो रुपया खाकर मुझे ही जेल में डाल देंगे. "

डॉक्टर आवक रह गईँ थीं इस मासूम के दिल पर जनतंत्र की छवि क्या है. उन्होंने आरती मैडम व कोकिला को भी बाहर से बुला लिया था और उसे समझाने लगी थी, ". जिन राक्षसो ने तेरी ये हालत की है, वे ना जाने कितनी लड़कियों के जीवन से खेले होंगे. डिकरी ! अगर तू ने मुँह नहीं खोला तो इस तरह जाने कितनी लड़कियाँ इनके जुल्म का शिकार बनेगी. "

जिग्ना को भी लगने लगा उसके एक एक ज़ख्म से खून रिस रहा है. वह सोचने लगी डॉक्टर सच ही कह रही हैं उस जैसी जाने कितनी लड़कियाँ होंगी जो अपने घायल शरीर के ज़ख्म अंधेरे में गुम करती रही होंगी. यदि वह आज बेहोश होकर नहीं गिरती तो क्या मुँह खोलती ?

आरती मैडम ने भी उसे समझाया, "मेरी यहाँ सन् 1994 में पोस्टिंग हुई थी मुझे धीरे धीरे पता लगने लगा कि यहाँ लड़कियों का शोषण हो रहा है मैंने विरोध में आवाज़ उठाने की कोशिश की तो मेरा ट्रांसफ़र इस किंग पिन मिहिर के मन्त्री रिश्तेदार के कारण पालनपुर कर दिया गया. मैं तो इसकी धमकियो से नहीं डरी फिर कोशिश करके यहाँ वापिस आ गई हूँ. जिग्ना ! मै तेरा पूरा साथ दूँगी तू रिपोर्ट कर दे. "

जिग्ना ने कंपकंपाते हाथों से पुलिस स्टेशन में एफ आई आर पर हस्ताक्षर कर दिए थे ---आज जिग्ना प्रार्थना सभा में क्या क्या सोच गई है ?. यह तो अच्छा है कि उसे पहले घंटे में गणित पढ़ाना है. ब्लैकबोर्ड पर गणित की दिमाग की मशक्कत उसे सब भुला देती है. स्कूल की छुट्टी होने पर तुषार स्कूल के गेट पर आकर तुषार उससे कहता है, "जिग्ना तू घर निकड़. मेरा रजिस्टर अभी पूरा नहीं हुआ है मैं एक कल्ला [घंटे] बाद आउंगा. "

"सारु [अच्छा]" कहकर वह घर चल देती है. यदि तुषार साथ में आ जाता तो अच्छा था क्योंकि उसके दिमाग की बंद काली पोटली जब रिसना शुरू करती है तो बंद ही नहीं होती. घर पहुँचकर ध्यान आया कि वह कपड़े धोकर बाल्टी में ही पड़े छोड़ गई थी. उसने फटाफट सलवार सूट उतारकर मेक्सी पहनी और बाथरूम से कपड़े लेकर आँगन के तार पर फैलाने लगी ---उसे कहाँ पता था कि एफ आई आर करते ही, ये बात खुलते ही, ये बात उस शहर की आत्मा को झकझोर कर रख देगी और लोग अपनी जाति, अपना संप्रदाय, अपना धर्म भुलाकर, एकजुट होकर पच्चीस हज़ार लोगों की भीड़ बन सड़क पर प्रदर्शन करने निकल आयेंगे. दो दिन विरोध में शहर बंद रहेगा. तीसरे दिन विपक्षी नेता रैली निकाल कर शहर के बीच की गाँधीजी की प्रतिमा के आगे सभा करेंगे, "ये सरकार निक्कमी है, इस सरकार की नाक तले दलित लड़कियों का शोषण हो रहा है, ये मुख्यमंत्री सरकार कैसे सम्भालेंगे जब एक लड़की की इज़्ज़त नहीं सम्भाली जा रही. "

और तो और उसकी जाति के शकूरा भाई जो अपने पैसे के घमंड में जाति वालों से दस कदम की दूरी पर रहते थे बड़े बड़े बैनर बनवाकर जुलूस निकालते घूमने लगे, "पी टी सी के गुंडे हाय! हाय ! निक्क्मी सरकार हाय ! हाय !"

"शिक्षा में गुंडागर्दी. "

' 'नहीं चलेगी, नहीं चलेगी. "

इस हंगामे से बापू दाँत पीसता शहर आकर उसे लेने आ गया था, 'बस हो गई तेरी पढ़ाई. "

"मैं आरती मैडम को तो ख़बर कर दूँ. "

"उसी ने तो तुझे बिगाड़ा है." लेकिन बापू को भी शहर रुकना पड़ गया था क्योंकि नेशनल वीमन कमीशन की बेने शहर छानबीन के लिए पहुँच गईँ थी. तब वह नन्ही सी जान कहाँ जानती थी कि नेशनल वीमन कमीशन क्या होता है. ये तो उसने तब जाना था कि देश के किसी कोने में किसी बेन के साथ कुकर्म होता है तो इस कमीशन की बेन लोग घटना वाले शहर जाकर जाँच पढ़ताल करती हैं. वह उसके साथ ट्रेनिंग सेंटर व हॉस्टल में जाकर उससे पूछ कर बहुत सी जानकारी नोट करती रही थीं. बाद में उसे लेकर प्रिसीपल के कमरे में गई थीं. प्रिंसीपल अपने कार्यालय में इस बेनो से कह रहे थे, "मुझे अपनी इस छात्रा पर गर्व है, यदि ये मुँह नहीं खोलती तो हमे कुछ पता ही नहीं चलता. "

'जिग्ना का मन हो रहा था उन्ही की मेज़ पर रक्खा पेपरवेट उन पर दे मारे कितना अच्छा नाटक कर लेते हैं. वे आगे कह रहे थे, "आपको ये जानकार अश्चर्य होगा कि इन छ: में से तीन तो पी एच डी हैं. "

"क्या ?"

"जी हाँ, मिहिर पटेल को तो राष्ट्रीय स्तर के सर्वश्रेष्ठ गणित के टीचर होने के लिए रामानुजम पुरस्कार मिल चुका है. मौखिक परीक्षा में पैंतालीस नंबर अध्यापकों के हाथ में होते हैं शायद इसीलिये वे शोषण करते हैं. "

उन बेनों के बयान से एक बार फिर सारा शहर चौंक गया था. " 'जिग्ना के रिपोर्ट करने के बावजूद अभी तक उसका बयान नहीं लिया गया है. अभी तक उसे पुलिस सुरक्षा नहीं दी गई है. इस प्रदेश के 160 पी टी सी में जाने कितने पी टी सी हैं जहाँ एक भी महिला शिक्षक नहीं है, हमे इन कॉलेजेज़ में होने वाले शोषण 8. की और भी बातें पता लगी हैं. आश्चर्य है जिस प्रदेश में दस वर्ष से एक महिला शिक्षा मन्त्री है वहाँ लड़कियों का शिक्षा के नाम पर शोषण हो रहा है. ".

दिल्ली की उन बेनो के कारण जिग्ना को पुलिस स्टेशन बुलाकर उसका बयान लिया गया था. बापू ने तो साफ़ साफ़ कह दिया था कि वे उसके साथ पुलिस स्टेशन नहीं आयेंगे. उसके वहां से लौटते ही गांव वापिस चलना पड़ेगा. उसका साथ आरती मैडम ने नहीं छोड़ा था. एक जज के सामने अपराधिक जाँच के कोड 164 के अंतर्गत जिग्ना के बयान लिए गए थे. वह बार बार आरती मैडम का चेहरा देखती हुई ----घबराई सी ----हिम्मत करके पूरी बात बताती रही थी. उसका केस डी वाइ एस पी पूर्वी बेन को सौंप दिया गया था.

उसके बाद वह होंठ बंद किए बापू के साथ गांव चली आई थी क्योंकि उसने भी नहीं सोचा था कि उसके रिपोर्ट करते ही इतना बड़ा हंगामा हो जायेगा.

माँ गांव में उसे गले लगाकर रो पड़ीं थी, 'हम तो समझे थे शहर का मानस पड़ लिखकर भगवान बन गया है. ये तो मरा और भयानक राक्सस बना जा रहा है. "

वह कोठरी में मुँह छिपाये पड़ीं रह्ती थी. बापू ने ही उसे दांता था, "क्या रोती रह्ती है, चल खेत पर चलकर मेहनत मजूरी कर तेरे वही काम में आने वाला है. बड़ी चली थी मास्टरनी बनने "

वह चुपचाप खेतों पर काम करने जाने लगी थी. खुरपी से मिट्‍टी में से घास निकालती मिट्‍टी में अपने सपना ढूँढ़ती रह्ती थी ---कहाँ परतों के बीच धँसा जा रहा था. वह अपनी सिसकी दबाती रह्ती, कही बापू दांत ना लगा दे. चौथे दिन ही पास के खेत का मालिक गुमतू खेत फलांगकर उसके पास आ गया था, "तो तू मास्टरनी बनने गई थी ?"

वह सिर झुकाये खुरपी से घास काटती रही थी. उसने अपने मोबाइल पर एक तसवीर दिखाई, "तो ऎसे पढ़ाई करती थी ?"

वह तसवीर देखकर चौंक गई, और उठकर भागने लगी थी. वह पीछॆ से चिल्लाया था, "अरे कहाँ भागी जा रही है ? अभी तो और बहुत फोटो हैं, उस लंगडे के साथ ऐसी पढ़ाई करनी थी तो गांव में मैं ही क्या बुरा था ?"

ये तो अच्छा था बापू खेत के दूसरी ओर पीठ किए काम कर रर्हे थे. हांफती हुई उनके पीछॆ खड़ी हो गई, साँस पर काबू आते ही वह झूठ बोलकर घर चल दी, "बापू मुझे बुखार आ रहा है, मैं घर जा रही हूँ. "

पीछॆ बापू बदड़बड़ाते रह गए थे, "तेरा काम में मन थोड़े ही लगेगा, बड़ी चली थी मास्टरनी बनने. "

उसकी साँस बहुत तेज़ चल रही थी, उसके पैर इधर उधर पड़ रहे थे ---तो उन गुंडों ने उसके एम एम एस उसके गांव भेजे हैं तो ना जाने किस किस को भेजे होंगे ?.

उसके बहिन भाई व माँ दूसरे खेतों में काम करने गए थे. वह कोठरी के एक कोने में पड़ी सिसकती रही थी ---मोबाइल पर जाने क्या क्या होगा. गुंडों ने उसके गांव ये एम एम एस भेज दिए हैं तो शहर में पता नहीं कौन कौन इन्हे अपने मोबाइल में ---वह सोचने पर भी थर्राने लगती है. उसी शाम आरती मैडम एक महिला के साथ उसके घर आ गई थी, ज़रूर उन्हें एम एम एस की बात पता चुकी होगी. कहीं जिग्ना घबरा ना जाए, ये सोचकर उससे मिलने चली आई थीं. जिग्ना आरती मैडम के गले लग कर ज़ोर से सिसक उठी थी, उन्हें कुछ पूछ्ने की ज़रूरत नहीं रही थी. वह उसके बालों को सहलाती बोल उठीं थीं, "चुप कर जिग्ना !ऐसी गन्दी हरकतों से डरने की ज़रूरत नहीं है "

"हम लोग घर से बाहर चलते हैं. "जिग्ना बापू के सामने बात नहीं करना चाहती थी वे उन्हें लेकर एक खेत के पास आ गई एक पेड़ के नीचे खेत की मुंडेर पर रूमाल बिछाकर उस पर बैठते हुए मैडम बोली थी, "जिग्ना !इनसे मिलो ये सीमा हैं, दस वर्ष से एक स्त्री संस्था चला रही हैं. "

जिग्ना ने हाथ जोड़कर नमस्ते की.

"जिग्ना ! मै कब से तुमसे मिलना चाहती थी. तुमसे मिलने हॉस्टल भी गई थी. तुमने पढ़ाई क्यों छोड़ दी है. पढ़ाई से तुम्हारी ज़िन्दगी बन जायेगी. "

मैं कैसे शहर में सबको मुँह दिखाऊँ ?‍‍

"तुम्हें मालुम है शहर की संस्थाओं व दलित संस्थाओं ने मिलकर एक' सिटिज़न फोरम' बना लिया है. जगह जगह इस कांड के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं. तुम्हारी हिम्मत का कमाल है सरकार ने तुम्हारे नाम एक लाख रुपया कर दिया है व नियम को बदल दिया है. अब किसी लड़की का हॉस्टल में रहना अनिवार्य नहीं होगा. "

"सच ?"रोती हुई जिग्ना मुसकरा उठी थी.

' 'देखो ये सब कब से चला आ रहा है, मेरे एक बुजुर्ग पत्रकार मित्र ने मुझे बताया था कि बाइस वर्ष पहले पन्द्रह लड़कियों ने पुलिस में कुछ अध्यापकों के खिलाफ़ शिकायत की थी कि वे शराब पीकर उनके कमरों में घुस जाते हैं और बात ना मानने पर फ़ेल करने की धमकी देते है. "

जिग्ना ने धड़कते दिल से सीमा दीदी से पूछा था, "फिर उनका क्या हुआ ?"

"उन लड़कियों को हॉस्टल खाली करना पड़ा, उन्हें सर्टिफिकेट भी नहीं दिया गया . "

"इसलिए तो मैं पढ़ाई छोड़ आई हूँ. "

आरती मैडम ने उसके कन्धे पर हाथ रक्खा था, "जिग्ना ये इक्कीसवी सदी है, अब ज़माना बदल गया है. "

"जिग्ना फिर रो पड़ी, "कितनी अच्छी सदी है गुरु शिष्य को परेशान कर उसके नंगे एम एम एस लोगों को भेज रहे हैं. "

वे दोनों क्या कहती ? वही आगे बोली, "मैंने कह दिया है मैं पढ़ाई नहीं करूँगी. वैसे भी मिहिर सर व रमेश सर के रिश्तेदार मन्त्री हैं, मैं केस जीत ही नहीं सकती. "

"इसलिए तो मैं तुम्हे अपने राज्य की राजधानी ले जाने आई हू. आज तुम हमारे साथ शहर चलो. कल कुछ और छात्रों के साथ हम राजधानी चलेंगे और शिक्षा मन्त्री से शिकायत करेंगे . "

जिग्ना व उसके बापू बमुश्किल ये बात मान पाये. उसने दो भाइयों को उसके साथ शहर भेज दिया. आरती मैडम व सीमा दीदी ये आठ दस लोगों का काफ़िला लेकर राजधानी गई थी. मुख्य मन्त्री के पी. ए. ने साफ़ कह दिया आप शिक्षा सचिवालय से संपर्क करें. शिक्षा मन्त्री के पी ए फ़ोन पर उनसे बात करते रहे थे, थोड़ी देर बाद फ़ोन रखकर कुर्सी के पीछे सिर टिकाकर बोले थे" मैडम ! मन्त्री जी एक शिक्षा सेमिनार का उद्‍घाटन करने निकल गई हैं, आज समय नहीं दे पायेंगी. वैसे भी पता लगा लिया है ये कुछ् नहीं विपक्ष का प्रोपेगंडा है. "

सीमा दीदी ने जिग्ना को आगे कर दिया था, "शिकार बनी लड़की ख़ुद फ़रियाद लेकर आई है और आप इसे ---. "

उन्होंने एक उचटती नजर जिग्ना पर डालकर कहा, "आप लोग फिजूल यहा चली आई हैं. गरीब लड़कियों के साथ ये होता ही रहता है "

“वॉट डु यु मीन बाई दिस ?" ये सब उन पर इतना गर्म हुईं कि वे स्त्री पर हुए जुर्म को ज़िन्दगी भर के लिए हल्के ढंग से लेना भूल गए होंगे.

जिग्ना राजधानी से मायूस लौटकर भाइयों के साथ गांव लौटने की जिद करने लगी थी.

मैडम ने हिम्मत नहीं हारी थी, " जिग्ना पढ़ाई छोड़ दोगी तो कैसे चलेगा ? कैसे टीचर बनोगी ? '

"मुझे कुछ नहीं बनना है, "उफनते स्वर में उसने कहा था,

" तुम्हारा मन बदल जाए तब चली आना, मुझे विश्वास है तुम ज़रूर लौटोगी. "

राजधानी से लौटे अभी दो दिन ही नहीं हुए थे कि जुलूस निकालने वाले शकूरा भाई अपने दो साथियों को लेकर घर आ धमके थे. जिग्ना का शहर के कॉलेज में पढ़ने वाला पड़ोसी तुषार उसका घर दिखाने साथ में आया था. बापू को तो सूझ ही नहीं रहा था कि किस तरह उनकी आवभगत करे. वे हकबकाये से हाथ जोड़कर खड़े हो गए थे. बा ने चतुरता से दीवार के सहारे खड़ी चारपाई पर चादरा डाल दिया था, "बैसी जाओ. "

बा ने ही आँख से जिग्ना को इशारा किया कि वह पड़ोसी के घर चली जाए शकूरा भाई ने ये इशारा देख लिया व उन्होंने जिग्ना को रोक लिया व गंभीर स्वर में कहने लगे, " डिकरी ! तू अपनी ज़िद छोड़ दे, अपनी रिपोर्ट वापिस ले ले. तेरे कारण शहर में बवंडर खड़ा हो गया है. "

जिग्ना सिर झुकाये अँगूठे से ज़मीन खुरचती रही बापू अंबालाल आंखों में आँसु भर लाया, "नेताजी मैं तो इसे समझा कर हार गया हूँ. हमारे गामड़ा के लोग तो मुझसे कहते हैं कि हमारी ऐसी बेटी होती तो उसे काट कर कुँए में फेंक देते. "

बित्ते भर की जिग्ना बिफर पड़ी थी, "कोई मुझे हाथ लगाकर तो देखे. बापू ! तूझे किसी को काट के कुँए में डालने का शौक है तो उन छ: गुंडों को काटकर अपनी बेटी के अपमान का बदला क्यों नहीं लेता ? "

बापू ने उसे मारने के लिए हाथ उठा लिया था लेकिन शकूरा भाई ने उठकर बीच में ही उसका हाथ पकड़ लिया व उससे बोले थे, "तू अभी बच्ची है, समझ नहीं पा रही, तू ज़िन्दगी भर पछ्तायेगी. तेरा ये कुटुम्ब पछ्तायेगा. गांव वाले अंबालाल को जाति बाहर करने की बात कर रहे हैं, तेरी शादी भी नहीं हो पायेगी. "

"मैंने कोई गुनाह नहीं किया तो गांव वाले क्यों बापू को जाति बाहर करेंगे और मैं क्यों पछ्ताउंगी ?"

शकूरा भाई ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया था, 'अंबालाल !चुनाव पास में है और ये लड़की हमारी जाति की नाक काटकर बैठी है, मुझे एक भी वोट नहीं मिलेगा. तू ज़ोर जबरदस्ती करके या मारपीट कर इससे रिपोर्ट वापिस ले ले और मुझसे पाँच लाख रुपुया लेकर शहर में बस जा. "

अंबालाल हकला गया था, "कि -----कि -----कितना रुपया ?"

"पाँच लाख "शकूरा भाई के साथ आया उनका चमचा बोला था, "हम वचन दे रहे हैं जिस दिन तेरी ये लड़की रिपोर्ट वापिस ले लेगी हम उसी दिन रुपया तेरे पास गिन जायेंगे. "

अब बा बिफर उठी थी, "एक लडकी की इज़्ज़त की बोली लगाने आए हो तो क्यों सारे सहर में झंडे उठाये इस कुकर्म को बुरा बताते जुलूस निकलते रहे ?"

उनके साथ आया दूसरा आदमी बोला था, "शकूरा भाई की पार्टी नई है तो इस बहाने सब लोग इन्हे पहचानने लगे हैं. "

"मूर्ख चुप कर, "फिर वे चारपाई से उठते हुए बोले थे, "अंबालाल ! सोचकर मुझे ख़बर करना. "

जिस अंबालाल ने कभी दस हज़ार रुपया एक साथ नहीं देखा था वह सकते की हालत से उबरकर फिर हकला गया था, "इ---इ---इसमे सोचने की क्या बात है ? इतने रुपये में तो मैं मह्साना में अपना मकान ख़रीद लूँगा. अपने सब बच्चो को पाल लूँगा लेकिन नेताजी ! कहीं अपनी बात से पलट तो नहीं जाओगे ?"

"मेरा वचन पक्का है. "

शकूरा भाई के जाते ही बा बरस पड़ी थी, "अपनी बेटी की इज़्ज़त नीलाम करेगा ?"

"तू अगर बोली तो तुझे भी नीलाम कर दूँगा और जिग्ना !अगर तूने रिपोर्ट वापिस नहीं ली तो तेरी अकल मैं ठीक कर दूँगा. "कहते हुए बापू उस पर लात घूँसे बरसाने लगा था.

इस शोर से आस पास के लोग इक्ठठा हो गए थे. तुषार ने ही बापू का हाथ पकड़ लिया था, "अपनी बेटी को मार डालोगे ?"

"हाँ, हाँ मार डालूंगा इसने मेरे इज़्ज़त मिट्‍टी में मिला दी है. 'ये घर की इज़्ज़त चार रास्ते पर ले आई है. मेरी दूसरी लड़कियों से कौन शादी बनायेगा ?"कहते हुए बापू भी रो पड़ा.

जिगना भी चीखकर रो उठी थी, "तुम्हें अपनी इज़्ज़त की इतनी चिन्ता है तो मै केरोसिन डालकर मर जाऊँगी, मैं रिपोर्ट वापिस नहीं लूँगी. " कहते हुए जिग्ना कोने में रक्खे में केरोसिन के डिब्बे की तरफ झपटी थी, .

"तो जल कर मर जा, चार किताब क्या पढ़ गई है लम्बी जबान लेकर घूम रही है. "वह फिर उसे मारने झपटा. तुषार ने उसे बीच में रोक लिया व जिग्ना से बोला, "मैं शहर जा रहा हू. जब तक मैं नहीं लौटूं तू कोई ग़लत कदम नहीं उठायेगी. "

शहर पहुँचने से पहले उसने मोबाइल से आरती मैडम से बात कर ली थी. थोड़ी देर में बस में बैठते ही उसे उनका उत्तर मिल गया था, "तुम सीधे ही डी वाइ एस पी पूर्वी बेन के ऑफिस पहुंचो. मैं व सीमा भी वहाँ पहुँच रहे हैं तुम्हें जानकार खुशी होगी कि डी आई जी, क्राइम ब्रांच नीरा बेन भी राजधानी से इस केस के सिलसिले में यहाँ आई हुई है व गुस्सा हो रही हैं जिग्ना पढ़ाई छोड़कर बैठी है तो पुलिस क्या कर रही है ?"

पूर्वी बेन के ऑफिस में तुषार ने पहुँचकर सबको आज की घटना बताई. नीरा बेन ने मेज़ पर रक्खी अपनी कैप उठाईं और बोली, "लड़की की जान खतरे में है, हमे तुरंत गांव चलना चाहिए. "

जैसे ही गाड़ी गांव में जिग्ना के घर के सामने रुकी वैसे ही ज़मीन पर बैठी थाली में चावल बीनती जिग्ना हड़बड़ा कर उठ गई. बापू खेत से लौटकर अन्दर आराम कर रहा था. गाड़ी की आवाज़ से बड़बड़ाता बाहर निकल आया था, " अब कौन सा नेता आ मरा. '?'

पुलिस को गाड़ी से उतरता देख् वह सकपका गया. हडबडाहट में स्वयम्‌ ही दीवार से लगी चारपाई बिछाने लगा. "नमस्ते साब !मारे घर मा खुर्सी नथी. चारपाई मा बैसी जाओ " नीरा बेन से जिग्ना को मिलवाया गया. उन्होंने बहुत मुलामियत से उससे पूछा, "जिग्ना ‍! तुम क्यों आत्महत्या करना चाहती हो ?"

"बापू से पूछिये. "

बा तैश मे आ गईँ, "ये क्या बतायेगा, मैं बताती हूँ. "

पूरी बात सुनकर ए एस पी चिल्ला उठे, जो इस केस के इंचार्ज थे, "यदि इस लडकी को कुछ हुआ तो तुम्हारी ख़ैर नहीं है. "

बापू हाथ जोड़कर घिघियाने लगा था, "साब !मुझे माफ कर दो गरीब आदमी हूँ, पैसे के लालच में पड़ गया था, "

"इस बच्ची की पढ़ाई क्यों छुड़वा दी है?" नीरा बेन ने कहा, "जिग्ना ! अपना सामान पैक करो, हम तुम्हे हॉस्टल छोड़ देंगे, तुम्हारे प्रिसीपल से मिलेंगे. कोई तुम्है तंग करके तो देखे. "

हॉस्टल आते ही सीमा दीदी जिग्ना के साथ उतर गई थी. जिग्ना का दिल अपना सामान उतारते समय हॉस्टल का गेट देखकर उमग पड़ा था, उसे लगा वह अपनी बाँहें फैलाये उसे बुला रहा है. नीरा बेन ने उसे अपना विज़िटिंग कार्ड दिया था, 'जब भी, किसी समय भी तुम्हें ज़रूरत हो मुझे फ़ोन कर लेना. "

सीमा दीदी ने झाडू से कमरा साफ़ किया, जिग्ना ने अलमारी में किताबों की धूल झाड़कर उन्हें तरतीब से लगाने लगी तब तक सीमा दीदी ने स्टोव पर चाय बना ली और एक कप उसे देते हुए पलंग पर बैठते हुए बोली थी, " देख् जिग्ना बापू की बात को अपने मन पर मत ले उन्होंने इतनी गरीबी देखी है तो पैसे के लालच में आयेंगे ही. "

"मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा कि वे मेरे ही बापू हैं. " जिग्ना ने कप हाथ में लेते हुए कहा.

"पूर्वी बेन बता रही थी. कल ये बात अख़बारों में छप जायेगी. जो ज़रूरी भी है. नहीं तो वे फिर तुम्हें तंग करेंगे, "

"क्या ?' लेकिन मैं तो अख़बारों कै हंगामे के कारण ही गांव में जा छिपी थी. "

"समझो जिग्ना, ये ज़रूरी भी है. इससे तुम्हारे पिता किसी के कहने से तुम पर रिपोर्ट वापिस लेने का तुम पर दवाब नहीं डालेंगे. "

जिग्ना को किताबों का स्पर्श, कॉपी पर चलता अपना पेन ---, कंप्यूटर का की बोर्ड, कॉलेज का खुला खुला आसमान सब कुछ इतना अच्छा लग रहा था, उसे लग रहा था चक्का जाम हु़ई ज़िन्दगी पर फैलाये आसमान में हवा के बीच उड़ चली है, उसके घाव भरे तो नहीं थी किन्तु वह ख़ुद किताबो में डूब गई थी.

कोकिला ने एक दिन जिग्ना को सीमा दीदी का संदेश दिया, "जिग्ना ! कल सीमा दीदी ने हम दोनों को व आरती मैडम को प्लाज़ा फ़िल्म थियेटर में बुलाया है. वहाँ 'मानसी 'स्त्री संस्था सभी स्त्री संस्थाओं की बेनों को 'बवंडर 'फ़िल्म दिखा रही है "

"इसमे ऎसा क्या है ?"

"वे बता रही थी कि इसमे जिग्ना जैसी मुकदमा लड़ने वाली किसी राजस्थान की बेन भँवरी बाई की कहानी है. इसे लड़कियों को ज़रूर देखना चाहिये. "

जिग्ना ने जैसे ही इनके साथ फ़िल्म थिएटर ने प्रवेश किया सीमा दीदी ने लपक कर उसका स्वागत किया तो वैसे ही बहुत से सिर उनकी तरफ मुड़ गए. जिग्ना सकुचा गई क्योंकि समझ गई थी कि वह दीदी के कारण पहचान ली गई है. वह सकुचाई सी उनके साथ वाली सीट पर बैठ गई. फ़िल्म के आगे बढ़ते ही वह बेचैन होने लगी ---इस फ़िल्म में नायिका तो एक बार ही गुंडों का शिकार हु़ई थी और वह ---वह कैसे सब महीनों तक झेलती रही ?----अरे ये क्या भँवरी बाई मुकदमा हार गई---दीप्ति नवल, फ़िल्म की समाज सेविका ये कह रही है -----"क्या हुआ जो भँवरी बाई मुकदमा हार गई ?गांव की' साथिन' न्याय के लिए लड़ी तो सही --- शी इज़ अ लेजेंड. "

सीमा दीदी उसे फुसफुसाकर समझाने लगी, "राजस्थान के गांव में एक स्त्री संस्था काम करती है जिसकी कार्यकर्ता को 'साथिन 'कहा जाता है. "

"लेकिन लेजेंड का मतलब ? "

"मतलब एक रोल मॉडल जैसा जो सबको प्रेरणा दे. "

रात भर जिग्ना बिस्तर पर करवटें बदलती रही ----शी इज़ अ लेजेंड---शी इज़ अ लेजेंड---वह अच्छी तरह समझ गई ------वे तो एक लाइट हाउस हैं. हम जैसे हिचकोले खाते भटकते जहाजों को दूर् से रास्ता बताता --- ना वह मरने की सोचेगी ---ना पीछॆ हटने की ---मुख्तारन माई भी तो एक लेजेंड है ---बलात्कार का मुकदमा तो पाकिस्तान की मुख्तारन माई भी तो हारी थी जिसका कोई कुसुर नहीं था, उसके भाई का कुसुर भी क्या था ?बस वह सवर्ण जाति की लड़की के साथ घूमता था. उसकी सज़ा पंचायत ने ये दी थी कि उस लड़की के घर के पुरुष मुख्तारन माई के साथ मनमानी कर सकते हैं.

वह बार बार वही सोच रही है जो सोचना नहीं चाहती, हालाँकि घर के छोटे छोटे काम करती जा रही है क्योंकि सुबह तो घर जैसा तैसा छोड़कर भागना पढ़ता है. उसे बहुत ज़ोर की भूख लगी है, ऐसा लग रहा है अन्दर उदर मे पलता नन्हा जीव भी भूख से कुलबुला रहा है, उसके पेट का सब कुछ चट कर गया है. जिग्ना फ्रिज खोलकर एक प्लेट में खमनी व चटनी निकाल लेती है व एक गिलास में जीरा छाछ लेकर कुर्सी पर बैठ जाती है. छाछ पीते हुए वह सोचने लगती है कम पढ़ी लिखी मुख्तारन माई बरसों तक लड़ी. अमेरिका ने उन्हे' 'वुमन ऑफ़ द ईयर 'की उपाधि दी थी फिर भी वे मुकदमा हार गईँ ---हार गई तो क्या ---वे भी एक लेजेंड बन गई. बाद में सीमा दीदी ने उनका संदेश नेट पर पढ़वाया था---एक लाइट हाउस की तरह हम जैसियो को संदेश देता हुआ, " मुझे न्याय नहीं मिला तो क्या हुआ ? तुम आशा मत छोड़ो. अपने ऊपर हुए जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठती रहो. "

कितनी बेने, कितनी संस्थाये, कितने संगठन उसकी हिम्मत बदाने साथ हो लिए थे लेकिन फिर भी वे छ: मंत्रियों से रिदश्तेदारी के कारण ज़मानत पर छूट गए थे. थर थर कांपती जिग्ना को आरती मैडम ने अपनी बाहों के घेरे में ले लिया था, "डर मत, अब वे तेरी तरफ आँख उठाकर तो देखें. "

सच ही अब जब वे उसकी कक्षा मे आते तो जिग्ना उन्हे सीधी दृष्टि से देखती उनमें से मिहिर सर व नकुल सर उससे नजरें चुराते पढ़ाते जाते थे. बाकी के छुट्टी लेकर घर बैठ गए थे.

उसने कैसी की थी हिम्मत कि राज्य भर के दवाब के कारण इस मुकदमे की कार्यवाही सन् 2008 में फास्ट ट्रैक कोर्ट को सौंप दी गई थी --- किताबों में डूबे हुए भी, उसके प्राण फैसले पर अटके थे ---कैसा था वह इंतज़ार पल पल मन को उदग्विन करता, बेचैन करता---कभी कभी मन सुन्न होने लगता था ---क्या फैसला होगा इस मुकदमे का?-----यदि वह हार गई तो किसी को अपना क्या मुँह दिखा पायेगी ?-----अगर जीत गई तो वो गुंडे कही उसका कत्ल तो नहीं कर देंगे ----खैर कत्ल कर भी दे तो कोई बात नहीं -- उस पर तेज़ाब तो नहीं फेंक देंगे--नहीं नहीं उसे ज़रूर जीतना है. एक वो पीड़ित करता इंतज़ार था ----ये इंतज़ार कितना सुखद रेशमी अह्सास भरा है, वह उदर पर हाथ फेरते हुए सोचती है -----जैसे चाँदनी गुनगुनाते हुए अपनी एक एक शांत किरण पृथ्वी पर भेजती आकार ले रही है. वह भी उसके उदर में.

वह परीक्षा देकर गाँव आ गई थी. घर में बापू और वे कम बात करते थे. वह भरसक घर के काम में माँ का साथ दे आस पास के बच्चों को पदाने बैठ जाती थी. गाँव वाले भी समचार पत्र में उसके बारे में पढ़ उसका आदर करने लगे थे. डेढ़ दो महीने निकले होंगे आरती मैडम ने उसे शहर बुला भेजा था कि एक छोटी सी पार्टी ट्रेनिंग सेंटर के पास वाले रेस्टोरेंट में रक्खीं है. उसके क्लास के कुछ लोग तुषार व सीमा दीदी वहाँ थीं. आरती मैडम बड़े चाव से पाव बड़ा, समोसा व फाफड़े का ऑर्डर दे रही थी. सारा सामान बेयरा ले आया तो दीदी बोली थी, "इसके बाद आइस क्रीम पार्टी मेरी तरफ़ से. "

"लेकिन ये सब किस खुशी में हो रहा है ?" एक छात्र अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया था,

"हमारी जिग्ना ने परीक्षा में छियासी प्रतिशत नंबर लाकर अपने कॉलेज में टॉप किया है व सारे ज़िले में ये छटे स्थान पर है. रिज़ल्ट तो बाद में डिक्लेयर होगा लेकिन मैं अपनी खुशी दबा नहीं पाई इसलिए ये एक छोटी सी पार्टी रख ली. "

"क्या ? सबके मुँह खुले रह गए थे. उन तनावों के सैकड़ों तंतुओं में फँसी जिग्ना ये करिश्मा कैसे कर सकी थी ?

जिग्ना प्लेट व खाली गिलास वॉश बेसिन में रखती हुई सोचती है. उसके बाद तो वह आरती मैडम के घर ही रहने लगी थी क्योंकि फास्ट ट्रैक कोर्ट की कार्यवाही सारी छानबीन के बाद तेज़ चल रही थी---फिर भी कितना कष्टप्रद था अपराधियों के उल जुलूल तर्को को सुनना ---उनका उत्तर देना ---एक बात अच्छी थी कि इतने हंगामे के बाद वकीलों को अश्लील प्रश्न पूछ्ने की हिम्मत नहीं होती थी.

बचाव पक्ष का वकील नित नए झूठे प्रमाण जुटाता लेकन कोर्ट उन्हे खारिज कर देता. जिग्ना उस ऐतहासिक मुकद्नमे के फैसले की याद करते हुए मुस्करा उठती है. न्यायाधीश ने 6 मई 2009 को फोरेसिक जाँच व सभी सबूतों के कारण अपना फैसला सुनाया था कि ये सब बलात्कार व शोषण के अपराधी हैं व इन सबको उम्र कैद की सजां दी जाती है.

जिग्ना, उसका परिवार, पूर्वी, आरती मैडम व सीमा दीदी के हृदय की जलती आग पर जैसे ठंडे पानी के छींटे पढ़ गए थे., आत्मा तृप्त हो गई थी जब उन्हे कोर्ट में से हथकड़ी डालकर कोर्ट के अहाते में से ले जाकर पुलिस जीप में बिठाया गया था. जिग्ना के मुँह में गोली ठूँसते किंग पिन मिहिर पटेल के हाथ हथकड़ी की गिरफ़्त में थे, उसकी मोबाइल पर तसवीर लेने वाली आँखें ज़मीन पर धसी हुए थी. विकलांग दिवांग पटेल लड़खड़ाता ज़मीन पर गिर गया था, उसकी बैसाखी कहीं जा पड़ी थी, उसके माथे पर खून झलक आया था. उसके धक्के से नकुल गिरा तो उसका चश्मा टूट गया था. रमेंश व जिनेंद्र ने अपनी बाहों से मुँह छिपा लिया था. ---मंत्रियों से जान पहचान की ठसक कहाँ धुल पुंछ गई थी, पता नहीं.

कोर्ट के अहाते में उसे भँवरी बाई याद आ गई थी. भटेरी गांव के आकाओं से जयपुर के कोर्ट में मुकदमा हारने के बाद उन्होंने कैसे सहे होंगे ये नारे---'नाक कटी किसकी ?'----'इज़्ज़त घटी किसकी ?-'-------'मूँछ कटी किसकी ?"'

तब जिग्ना बुदबुदा उठी थी, 'भँवरी बाई-- आज मैंने तुम्हें भी जिता दिया है. तब भी तुम्हारी नाक नहीं कटी थी, नाही इज़्ज़त गई थी. "

पुलिस वैन अपराधियों को लेकर धूल उड़ाती चल दी थी. कोर्ट की भीड़ उसे बधाई देते नहीं थक रही थी. सबसे घिरी जिग्ना सोचे जा रही थी---कल टी वी पर, अख़बारों में जिग्ना के केस जीतने की धूम मची होगी---क्या होगा जब ये समाचार सीमाये लांघता पाकिस्तान के मीरावाला गांव में पहुँचेगा ?मुख्तारन माई वहाँ के स्कूल में बच्चों को पढ़ाते जिग्ना की जीत की बात सुनकर दिल से मुसकरा उठेंगी, उनकी आँखें खुशी से छलछला जायेंगी.

जिग्ना जैसे ही कोर्ट से बाहर जाने के लिए मुड़ी थी तो ये देखकर हतप्रभ रह गई थी कि तुषार उसकी पीछे खड़ा था, एकदम पीछॆ.

***

श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

ए२-५०३, आकाशनिधि अपार्टमेन्ट, रेडिओ मिर्ची टावर रोड. सेटेलाईट, अहमदाबाद - 380015

Mo. 09925534694

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