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सनातन

सनातन

नीलम कुलश्रेष्ठ

तब गाँधी जी के बंदरों की लोग अक्सर चर्चा करते थे, किस तरह वे सन्देश देतें हैं -`बुरा मत देखो `,बुरा मत सुनो `,बुरा मत कहो `. तब भी कौन सब ये बात मानते ही थे ? अब वह उम्र के आखिरी पड़ाव पर तेज़ी से बदल गए ज़माने में आ बैठी है. एक कोर्पोरेट की वरिष्ठ प्रबंधक के घर के मुख्य कमरे में रक्खे हैं तीन बन्दर - एक का एक हाथ आँख पर रक्खा उसे झांकने दे रहा है, दूसरे का हाथ एक कान से हटा कुछ सुनने दे रहा है, तीसरे का हाथ होठों से कुछ हटा हुआ है. मतलब `कुछ बुरा भी देखो `,`कुछ बुरा भी सुनो `,`कुछ बुरा भी कहो ` तभी इस भूमंडलीकरण में जी पायोगे.

तो नयी बनी इमारतों में शाम को नीचे चार पांच वर्ष तक के बच्चे खेलते रहते हैं. थोड़ी रात होते ही कसे चूड़ीदार या जींस के ऊपर पहने ढीले ढाले टॉप में उदर के हलके उभार में स्पंदित धडकनों को सम्भाले युवा लड़कियां अपने ऑफिस से आकर अपने पति के साथ माँ या सास के साथ चहलकदमी करतीं रहतीं हैं.

इस ताज़ातरीन युवा वातावरण में अक्सर ख़बर लगती रहती है कि आज सामने की ईमारत के ३०२ फ़्लैट में,आज पीछेवाली ईमारत के ६०४ फ़्लैट में बेटा हुआ है या बेटी . शाम को अक्सर सामने की बिल्डिंग के ४०९ में रहने वाला तुषार उसे अक्सर विश करता है,``हेलो आंटी . ``

वह भी ठहर कर उसके हालचाल पूछती रहती है. वह उसकी बीवी से कभी नहीं मिल पाई है क्योंकि उसकी बैंक अफ़सर बीवी नौ बजे से पहले घर नहीं आती ,

एक दिन वह उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है,``आंटी; मै पापा बन गया हूँ . ``

``वाह !क्या हुआ ?``

``बेटा. ``

`` चलो इस बहाने तुम्हारी वाइफ़ से भी मिल लेंगे . ``

``बेटा हुए तो एक महीना हो चुका है,श्रुति अपनी माँ के पास दो महीने के लिए गयी है. ``

`` कोई बात नहीं. जब वे आ जाएँगी तब मिल लेंगे ``

बहुमंज़िली इमारत की यही संस्कृति है कौन कब नीचे दिखाई दे जाये,कौन महीने भर नहीं दिखाई दे पता ही नहीं चलता. ऐसे ही दिन सरक गए थे. वह केम्पस के गार्डेन मै बैठी थी. तुषार हाथों में नन्हे गोरे बच्चे को लिए सामने आ खड़ा हुआ ``,आंटी !हेलो !ये रहा में रा बेटा. ``

वह उस प्यारे बच्चे को गोदी में लेने के लिए उठ खड़ी हुयी,``बड़ा प्यारा है. ``

``श्रुति एक महीने की छुट्टी पर घर पर है. आप कभी घर आइये. ``

``ओ श्योर. ``

``उसे घर पर रहने में बोरियत होती होगी ?``

``अजी कहाँ ? फ़ाइनेंस का एक शब्द भी नहीं आता और उसने फ़ाइनेंस में पता नहीं कैसे एम. बी. ए. कर लिया. घर में सारा दिन टी. वी. देखती रहती है. शी इज अ टिपीकल टी. वी. सी रियल टाइप गर्ल. फ़ाइनेंस का एक शब्द भी नहीं आता पता नहीं कैसे केम्पस में `सिलेक्ट` हो गयी थी. ``

``सच उसे एक शब्द भी नहीं आता ?``.

गांधी जी के बंदरों की मुद्राओं के अर्थ बदल गया लेकिन------

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail. com

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