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ले देख

ले देख

मटमैली सह्रदयी पहाड़ियों पर से कैब गुज़रती जा रही थी। कभी मैदान सा आ जाता, कभी सर्पीली चढ़ाई शुरू हो जाती. मम्मी तो सापूतारा के तीन हज़ार फ़ीट की ऊंचाई के कारण कितना हंसी थीं, "वाह ! गुजरात के सापूतारा हिल स्टेशन --ज़रा मिट्टी का ढेर लग गया उसे ही `हिल्स `कह दिया। "

वह उनकी बात पर रूठ गई थी, `अच्छा खासा तो हिल स्टेशन है, बीच में लेक है। "

वह उसके गाल पर चपत लगाकर बोलीं थीं, "जब यू.पी.की हिल्स व कश्मीर देख लोगी तो तुम भी इस पर हंसोगी। "

सापूतारा--- अर्थात एक रेंगनेवाला जीव व सर्प जो कि सर्पगंगा नदी के किनारे बसा हुआ है जिसे होली पर यहां केआदिवासी पूजते हैं। यहां के स्थानीय राजा का होली के आस पास ` डांग दरबार `प्रसिद्द है जिसमे आसपास के गाँवों के आदिवासी स्री पुरुष आकर एकदूसरे की कमर में हाथ डालकर पावरी, ढोलक, बांसुरी व बेंजो पर गोलाकार नृत्य करते हैं। थोड़ी ऊंचाई चढ़ते ही हरियाली शुरू हो गई थी। यहां शप्त संगी माता की पूजा प्रमुख है लेकिन हनुमान, राम, कृष्ण, शिव व विष्णु की पूजा की जाती है। प्रक्रति ने दोनों हाथों से लुटाई है डाँग को लबालब वन सम्पदा

क्या सच ही यहां डाँग के जंगलों में से अपने वनवास के समय राम सीता और लक्ष्मण गुज़रे होंगे ? यहां की भील शबरी ने सच ही उन्हें अपने झूठे बेर ख़िलाये होंगे ? ----वह मुस्करा उठती है --अपने देश में क्या सच है क्या झूठ --कैसे समझा जाये ? डाँग के सुबीर गाँव में तो अच्छा खासा शबरी मंदिर है। यहां तक कि डैम का नाम भी शबरी डैम रख दिया है। इन पेड़ों के झुरमुटों व झाड़ियों के बीच कैसी होगी पिच्यासी -नब्बे वर्ष पहले यहां के आदिवासियों की दुनियाँ ? जीवन का नाम सिर्फ़ पेट भरने का जतन ही होगा। मम्मी ने ही तो बताया था। ये लोग भील हों या कुकड़ हों या फिर बारली हों, किसी भी जाति के स्त्री पुरुष सारे दिन अपने खेतों में काम करते होंगे या किसी बनती हुयी इमारत में काम करते होंगे. स्त्रियां इस सबके साथ जंगल में लकड़ी बीनने चलीं जाती होंगी. झोंपड़ों में कौन उनके बच्चों को देखे इसलिए उन्हें अफ़ीम चटाकार सोता हुआ छोड़ जातीं थीं. यही अफ़ीम उनके बच्चों के दिमाग को आलस में जकड़ कर उसे पंगु बनाती जाती होगी.बड़े होकर ये विचारहीन, जड़, मंद बुद्धि मिट्टी के पुतले की तरह व्यवहार करते होंगे।

पूर्णिमा जी जब मुम्बई से यहां घूमने आई होंगी तब उन्हें देखकर आश्चर्य हुआ होगा कि सिर पर लकड़ी का गठ्ठर ले जाती एक चौदह पन्द्रह वर्ष की लड़की ओढ़नी, ब्लाउज़ व फड़का [नीचे का वस्त्र ]पहने कच्ची सड़क पर के बीचोंबीच धीमी गति से चली जा रही होगी । ड्राइवर हॉर्न बजाता ही रहा किन्तु वह लड़की सड़क के बीच से हटी नहीं होगी। उनकी कार के नीचे आने से ड्राइवर की फ़ुर्ती से कार की स्टीयरिंग सड़क के बांयी तरफ घुमाने से एक्सीडेंट से बची होगी । उन्होंने कार की खिड़की से झांककर होगा, "क्या हॉर्न सुनाई नहीं दे रहा था? "

उसने जिस तरह उलझे हुए बालों के बीच पथराये चेहरे से भावना शून्य आँखों से उन्हें देखा होगा, उनके दिल पर यह दृष्टि एक घूँसे की तरह लगी होगी.होटल या इस जगह में भी उन्हें घूमते हुए लग रहा होगा कि वह चलती फिरती मशीननुमा लड़कियां देख रहीं है, जिनमें सोचने समझने की शक्ति नहीं है। यहां के लोगों से बहुत पूछ ताछ के बाद समझ पाईं होंगी कि ये सब अफ़ीम का किया धरा है. पहाड़ों के शिखरों से नीचे तलहटी तक फ़ैली शीशम, महुआ, सादड़ व काजू के जंगलों की हरियाली में गुम यहाँ वहां छितरे फैले झोंपड़े में नशे में पड़ी लड़कियों को जगाने के लिए उन्होंने सन १९५६में यहां `शक्तिदल `बनाया था। इनकी मायें गिलट या चांदी की नथ, गले का होरगंगी, पैरों में भरी भरकम पायल या बाजूबंद पहने मशक्क्त करतीं थीं। कितनी मुश्किल से पूर्णिमा जी समझा पाईं होंगी कि काम के समय तो गहनों को त्याग देना चाहिए। जैसे जैसे लड़कियों में चेतना जागती गई पूर्णिमा जी का उत्साह भी परवान चढ़ने लगा। वे इनके लिए नई नई योजनाएं बनाने लगीं और आज तो यहां की आदिवासी लड़कियों के लिए ये दल ऋतम्भरा विश्व विद्द्यापीठ स्कूल व कॉलेज में बदल गया है. पूर्णिमा जी ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय जेल में कस्तूरबा गांधी जी को हिंदी व अंग्रेज़ी पढ़ाई थी। गांधीजी के उसी आशीर्वाद का ये परिणाम है, "तुम शिक्षा के क्षेत्र में ख़ूब काम करोगी। "

इधर ये प्रगति करता रहा, उधर पूर्णिमा अरविन्द पकवासा जी की बेटी सोनल मानसिंह प्रख्यात कत्थक नृत्यांगना बन गईं थीं। पूर्णिमा जी ने काम करने के लिए उम्र भी तो पाई थी एक सौ दो वर्ष, बाप रे !

"ओये !किधर खो गई ? "आरव ने उसके सामने हाथ लहराया।

वह झेंप गई, "मै अपनी मम्मी की यहां के बारे में बताई बातें याद कर रही थी। यदि पूर्णिमा जी ने पहल नहीं की होती तो जाने कब तक यहां की लडकियां अफ़ीम के नशे में बर्बाद होती रहतीं। "

त्रिशा कार की सीट पर अधलेटी वॉकमेन कानों में लगाये झूमकर झूमकर फ़िल्मी गाने सुन रही थी, चौंककर बोली, `तुम लोग क्या गॉसिप कर रहे हो ? "

नीरव उसका मज़ाक उड़ाने लगा, "ये तेरी ही बुराई कर रहे हैं। "

"यू------."उसने हवा में मुक्का दिखाया तो सब हंस पड़े। मीनल भी अपना वॉटस एप चैक करते करते चौंक गई, "क्या हुआ ? "

आरव ने बम्पर मारा, "मैडम !होटल आ गया है। मोबाइल ऑफ़ करिये। "

नैनीताल की तरह पहाड़ों के बीच सापूतारा लेक देखकर वह बच्चों की तरह खुश हो गई। पहाडों की झील ऐसी लगतीं हैं जैसे हथेली पर पानी भरा कटोरा रख दिया हो। होटल में सामान रखकर व फ़्रेश होकर वे विद्यापीठ की तरफ़ निकल पड़े। अपने सोशल साइंसेज़ विभाग से उन्हें इसी विद्द्यापीठ में काम करने का प्रोजेक्ट दिया गया था -`आदिवासियों के विकास में एन जी ओ `ज़ का योगदान`.

सबसे पहले प्राचार्या उन्हें एक छोटे मैदान में ले गईं जहां पहले से ही लड़कियां नीचे दरियों पर बैठीं थीं, उन्हें पहले ही सूचित कर दिया था कि कुछ कॉलेज के विद्द्यार्थी उनसे मिलने आ रहे हैं। एक अध्यापिका के निदेश पर कुछ लड़कियों ने उनका फूलों से स्वागत किया व हाथ जोड़जकर यहां की प्रार्थना सुनाई, " "सापूतारा ना, ऋतम्भरा ना, सारा सपन बनाना, अमे सृष्टि सजावी, ज्योति जगावी। "

उन चारों ने अपने प्रोजेक्ट का परिचय दिया व उनके सामान्य ज्ञान को जानने के लिए कुछ प्रश्न पूछे। उन लड़कियों के उत्तर से वे सब बहुत संतुष्ट हो गये। फिर एक अध्यापिका उन्हें विश्वविद्ध्यालय दिखाने के लिए ले चली। वे विद्यापीठ में सर्वे करते चकित थे किस तरह इस संस्थान ने काम किया है, इसका म्यूज़िक रूम, हॉबी रूम, कमप्यूटर रूम व गेम्स ग्राउंड ने कैसे अधसोये दिमागों को उंघती सी नींद से जगा दिया होगा। ये जानकर और भी अचंभित रह गए कि पूर्णिमा जी ने कुछ कमरे ऐसी वृद्ध महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए थे जिन्हें उनके बेटे आस पास के शहरों, यहाँ तक कि मुम्बई बेघर कर देते हैं। वे यहाँ चावल के साथ यहां के स्थानीय अनाज नागली के पापड़ बनाकर व अचार बनकर स्वाबलंबी बन गईं थीं।

सारे दिन वे नोट्स बनाते रहे। शाम को कैब में अधलेटे से थके हुए लौटते में उन सबके मस्तिष्क में जैसे इस विद्यापीठ का गीत बज रहा था --- "सापूतारा ना, ऋतम्भरा ना, सारा सपन बनाना, अमे सृष्टि सजावी, ज्योति जगावी। "

उसे यहां की प्राचार्य ने ही बताया था, "ऋतम्भरा का अर्थ होता है सनातन सत्य से भरा हुआ। मानव जाति के लिए सनातन सत्य का अर्थ है कि वह अपने लिए प्रगति के द्वार खोलता ही जाए। "रूही व त्रिशा के सपने जैसे फड़फड़ा रहे थे कि ये आदिवासी लडकियां देश में, प्रदेश में किस तरह जगह बना रहीं है तो उन्हें तो और भी प्रतिमान बनाने होंगे। रूही की तो रात में घर पहुंचकर जैसे जुबां ही नहीं थक रही थी. मम्मी ने ही प्यार से झिड़की देकर उसे सुला दिया, "बाबा !अपनी थकी शक्ल देख। बाकी बातें कल बता देना, मैं कहीं भागी जा रही हूँ ? "

रूही ने सुबह उठकर नाश्ता किया व अपने कमरे में जाकर आलमारी से कॉलेज जाने के लिए कपड़े नि कालने लगी। तभी उसके मोबाइल में `टुन `की आवाज़ बज उठी। उसने कपडे पलंग पर रख दिए व मोबाइल चैक करने लगी.वॉट्स एप पर एक फोटो देखकर उसका दिमाग घूम गया। उसी की कमर तक फोटो थी, जिसमें उसकी कुर्ती के सामने के बटन खुले हुए थे। उसका सीना बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहा था। इस फ़ोटो को देखकर साफ़ पता लग रहा था कि ये खिड़की के पर्दे के बीच की झिरी से ली हुई हैजब वह होटल के कमरे में कपड़े बदल रही थी । ये नंबर नीरव का था और लिखा था, `वॉट्स ` अ ब्यूटी यू हैव इनसाइड.`वह बिलकुल ऊपर से नीचे तक काँप गई। सकते की हालत में उसने कुर्सी का हेंडल पकड़ लिया कहीं वह गिर ना जाये।

वह सम्भली नहीं थी कि दूसरा मेसेज आ गया, ` कॉलेज जाने से पहले मेरे कमरे पर आकर अभी मिलो वरना मेसेज वाइरल का मतलब तो समझती होगी। `.`

इस मेसेज ने उसे और भी घबरा दिया क्योंकि नीरव के रुम पार्टनर्स आज सर्वे के लिए किसी और एन जी ओ में जाने वाले थे। वह निढाल सी कांपती हुई कुर्सी पर काफी देर सुन्न बैठी रही। मम्मी की किचेन से आवाज़ आई, "रूही ! लंच बॉक्स तैयार है."

घबराहट में उसे जवाब देते नहीं बन रहा था। मम्मी ही थोड़ी देर बाद उसके कमरे में आ गईं, "अरे !अभी तक तैयार नहीं हुई ? तेरा फ़ेस कैसा हो रहा है ? "

"मम्मी !"बड़ी मुश्किल से उसके गले से आवाज़ निकली और वह रो पड़ी। मम्मी ने उसके गले में बाँहें डाल दीं। उसने बहाना बनाया, "मम्मी ! मैं कॉलेज नहीं जाउंगी। मेरा बहुत ज़ोर से माथा दुःख रहा है। "

"तो इसमें रोने की क्या बात है ? जाकर नहा ले। आज घर पर पर रेस्ट कर। "कहकर वे फ़र्स्ट एड बॉक्स से एक गोली निकालकर थमा गईं, "यदि बहुत ज़ोर से दर्द हो तो ले लेना. तू सो लेगी तो फ़्रेश हो जाएगी । मेरे ऑफ़िस में भी आज इंस्पेक्शन है नहीं तो मैं छुट्टी ले लेती।"

वह तो चाह ही रही थी कि मम्मी ऑफ़िस जाएँ और वह ख़ूब चीख चीख कर रोये ---अब वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही। मम्मी के बाहर जाते ही उसने सबसे पहले मोबाइल का स्विच ऑफ़ कर दिया, नहीं तो नीरव जाने कितने मेसेज भेजकर उसे परेशान करेगा। दिल हल्के हल्के काँप रहा है, "यदि सच ही उसने ये वायरल कर दिया --तो ---तो ---तो ---वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी। कैसे ये बात बताये ? मम्मी तो उसकी माँ कम दोस्त अधिक हैं लेकिन उन्हें ये गंदी बात कैसे बताये ? वह बेहद शर्म से गढ़ी जा रही है --क्या करे ? मम्मी को तो और भी ये बात नहीं बता सकती। `दृश्यम `फ़िल्म में किस तरह ऐसी बेशर्म बात पर एक स्केंडल हो गया था। कपड़े बदलती लड़की की फ़ोटो के कारण उसके पापा ने क़त्ल तक कर दिया था। --ये तो फ़िल्म थी इसलिए वह पुलिस से बच गए --कहीं उसके पापा टूर से लौटकर ------हे भगवान !अपने परिवार को बेइज़्ज़ती से कैसे बचाये ? क्या पंखे पर लटक जाए ? न--न--न मम्मी ने ही सिखाया है आत्महत्या करना कायरता है। फिर ----फिर ---फिर ---उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। वह रोती सिसकती कुर्सी पर ही कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।

तेज़ बजती कॉल बैल से उसकी नींद टूटी-सामने घड़ी पर उसकी नज़र गई दोपहर के एक बजे थे। इस समय कौन होगा क्योंकि सबको पता है इस घर के लोग दोपहर में अपने अपने काम पर होते हैं। ---ओ कहीं नीरव तो घर तक नहीं आ गया --उसने अपने कदम घसीटते हुए बेहद धड़कते दिल से दरवाज़े के की -होल से झांका, वह बेहद चौंक गई. दरवाज़े के सामने मम्मी अपने रूमाल से पसीना पोंछ रहीं थीं। उसने दरवाज़ा खोला, "आप इस समय ? "

"तेरी तबियत खराब थी तो मेरा ऑफ़िस में कैसे मन लगता। जैसे ही इंस्पेक्शन ख़त्म हुआ, मैं छुट्टी लेकर भागी। "

उन्होंने पर्स रखकर उसका माथा छुआ, " बुखार भी नहीं है तो फिर तू मोबाइल बंद करके क्यों बैठी थी ? मेरी तो कॉल करते करते जान निकल रही थी। "

उसने उनकी कमर में अपनी बाँहें डाल दीं और बुक्का फाड़ कर रो पड़ी। वे घबराकर उसका माथा सहलाने लगीं, "क्या हुआ? --बता तो ---."

वह बेतहाशा रोती रही, "कुछ नहीं हुआ। बस मेरी तबियत खराब है। "

उन्होंने उसकी थोड़ी पकड़कर आँसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया और बोली, "रूही !मैं तेरी माँ हूँ। समझूंगी नहीं कि तू किसी बड़ी मुश्किल में है। "

"मम्मी -----."वह और ज़ोर से रो पड़ी। वे उसकी पीठ सहलाती रहीं। थोड़ा संभल कर उसने कांपते हुए मोबाइल की तरफ़ इशारा किया।

वे उसे उठा लाईं। रूही ने उसे ऑन करके नीरव का मेसेज दिखाया। एक बार को तो मम्मी के चेहरे का भी रंग उड़ गया लेकिन तुरंत उन्होंने अपने को संभाल लिया, "ये वीडिओ कब लिया है? "

"जब मैं सापुतारा के होटल में कपड़े बदल रही थी। "

"मैंने पहले भी कितना समझाया है कि किसी अनजानी जगह अच्छी तरह पर्दे बंद करके कपड़े बदलने चाहिए। "

"सॉरी मम्मी !"

"इंसान वहीं धोखा खाता है जहां विश्वास करता है। ख़ैर ---तू चिंता मत कर। "

"इतनी बड़ी बात हो गई है और आप कह रहीं हैं चिंता मत कर ? हमारी फ़ेमिली की कितनी इंसल्ट होगी। "

"वॉट डु यू मीन बाई इंसल्ट ? तूने किया क्या है ? क्या कोई गलती की है या कोई पाप किया है ? या जो इस वीडिओ में दिखाया गया है वह सिर्फ़ तेरे ही पास है ? किसी और लड़की के पास नहीं है ? या दुनिया की हर औरत के पास है। इसका दूध पीकर ही तो ये इंसान जीवित है। कोई बदमाश धोखे से` शूट `करके इसका तमाशा बनाना चाहता है तो ये उसकी इनसल्ट का प्रश्न है, ना कि तेरी। चल उठ, मुंह धो और तैयार हो जा। तेरी किस्मत से आज यूनिवर्सिटी की फ़ाइन आर्ट्स फ़ेकल्टी में एग्ज़ीबिशन लगी है `ले देख `. तू तो जानती है कि वडोदरा की ये फ़ैकल्टी सारे देश में प्रसिद्द है। ""

"क्या देख ? ` मैं इतनी बड़ी मुसीबत में हूं और आपको एंटरटेंमेंट की पड़ी है? `

"तुम वहीं चलकर देखना। "

----और वह उस फ़ेकल्टी के हॉल में चकित सी देख रही थी एक जांबाज़ यहीं की बीस वर्ष की छात्रा सलोनी सावंत के बनाये भिन्न भिन्न आकार के प्लास्टर ऑफ़ पेरिस के सफ़ेद वक्षों की मूर्तियां । उसने शर्माते, कुछ फुसफुसाते मम्मी से पूछा, " उसे शर्म नहीं आई ऐसी मूर्तियां बनाने में ? "

" क्यों आएगी शर्म ? लड़कियों व स्त्रियों को इन अंगों के कारण क्या कुछ सहना नहीं पड़ता। भीड़ में उन पर क्या गुज़रती है सिर्फ़ वही जानतीं हैं। प्रकृति की इस देन पर क्या शर्माना ? हाँ, इनका अश्लील प्रदर्शन सही नहीं है। तुझे ताज्जुब होगा कम उम्र के लड़के इस एग्जीबिशन को देखने में शर्मा रहे हैं। शायद अब स्त्री की इज़्ज़त करना सीखेंगे। "

उसने भी ध्यान से हॉल में देखा अधिकतर बड़ी उम्र के पुरुष, लड़कियाँ, व स्त्रियां ही हॉल में रूककर रूककर इन सुन्दर वक्षों की मूर्तियां देख रहे थे। उन्हें ऐसे निरीक्षण करते देख उसका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटने लगा। उसकी जो नज़र इन मूर्तियां को देखकर शर्म से झुकी जा रही थी, अब धीरे धीरे उठ रही थी। अब वह बिना संकोच इनकी कलात्मकता का मज़ा ले पा रही थी। फूल, पहाड़, झरने जैसी ही तो ऊपर वाले की बनाई ये अनुपम कृति है।

मम्मी उसके साथ चलते हुए कहतीं जा रहीं थीं, "तू ने सापूतारा में जाकर देखा होगा किस तरफ अफ़ीम के नशे में रहने वाली लड़कियों की नस्ल पूर्णिमा जी ने सुधार दी है या कहना चाहिए डाँग के जंगलों में अनेक सूरज उगा दिए हैं और देख बड़ौदा की इस लड़की ने कितना बड़ा चिराग जलाकर शहर के बीचों बीच रख दिया है। अपने अंगों के लिए शर्म कैसी लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि उनका भौंड़ा प्रदर्शन हो। "

" इसका क्या फ़ायदा ? "

` `तू समझ नहीं पाई ? जिस तरह डाँग की आदिवासी लड़कियों को अफ़ीम चटाकर उनकी मंद बुद्धि करके उन्हें व्यक्तित्वहीन बनाया जा रहा था। उसी तरह स्त्रियों को उनके अंगों के लिए डराकर, उनके लिए गालियां गढ़कर उन्हें शर्मिंदा किया जाता है। स्त्रियों की आधी ऊर्जा तो यही डर सोख लेता है। उनका आधा समय यही सोचने में नष्ट होता है कि ये करें या ना करें --हाय ----समाज क्या कहेगा ? इसी जड़ता को समाप्त करने का प्रयास किया है इस जांबाज़ लड़की ने। कभी इससे तुझे मिलवाउंगी। " `

`अभी क्यों नहीं ? "

"रिसेप्शन पर कोई बता रहा था कि वह कोई ज़रूरी क्लास अटेंड करने गई है और ये लड़की क्या बहुत सी स्त्रियां व पुरुष स्त्री में यही खोये हुए आत्मविश्वास को जगाने का काम कर रहे हैं। और जानती है जो स्त्रियां ऐसा काम करतीं हैं उनके जीवन में कुछ लोग नर्क घोलने का काम करते रहतें हैं लेकिन वे मुश्किलों से लड़ना सीख जाती हैं। "

"लोग स्त्रियों के जीवन में नर्क कैसे घोलतें हैं ? "

"यदि वे आगे बढ़कर कुछ अलग करना चाहतीं है तोउनका आत्मविश्वास तोड़ा जाता है। यदिअविवाहित हैं तो कहेंगे पिता या भाई से अपना काम करवा लिया होगा। यदि विवाहित है तो कहेंगे कि अपने पति के बूते उछल रही है. कुछ लोग और अश्लील बात करेंगे कि अरे औरतों को सफ़ल होने में कितनी देर लगती है, ज़रा लटके झटके मार दिए और किसी के साथ सो लीं ---आगे तुम खुद समझदार हो।"

फ़ेकल्टी से लौटकर रूही का आत्मविश्वास लौट आया था। उसने अपना मोबाइल ऑन किया वआरव, त्रिशा व मीनल को सारी बता दी व आगाह किया कि ये उसकी लड़ाई है, वह अपनी तरह से `टेकल` करेगी। दोनों सहेलियां तो जोश में आ गईं व सलाह देने लगी, "चल मोबाइल लेकर नीरव के ख़िलाफ़ पुलिस में ऍफ़ आई आर दर्ज़ कर आएं या कल कॉलेज में हम सब अपनी चप्पलों से उसकी पिटाई करें? " "

रूही ने उत्तर दिया, "पुलिस कहाँ तक हर लड़की की समस्या हल करती फिरेगी ? तुम लोगों को बीच में आने की ज़रुरत नहीं है.ये मेरी लड़ाई है, मैं ही अकेले इस समस्या को हल करूंगी। "

दूसरे दिन कॉलेज के गेट पर ही नीरव उसे देख कर अपने हाथ का मोबाइल दिखाकर कुटिलता से मुस्कराया, "मेरे साथ चल रही हो ? "

"कहाँ और क्यों ? "

"अब तुम बच्ची तो नहीं हो जो समझ ना पाओ कि जब एक लड़का एक लड़की को एकांत में चलने को कहता है तो उसका मतलब क्या होता है ? "

वह अपने दोनों हाथ आगे बांधकर तनकर खड़ी हो गई, "मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना। जो करना है कर लो। "

"लो तुम्हारे सामने ही ये वीडिओ क्लास में वाइरल कर रहा हूँ। "वह अपनी घृणित मुस्कान से मोबाइल के बटन दबाने लगा।

रूही अकड़ती हुई बोली, " वो वीडिओ वाइरल कर लिया ? चलो, अब क्लास में चलते हैं। `

वह खिसियाया सा उसके पीछे चलने लगा

क्लास में अभी तक सर नहीं आये थे कुछ लड़के लड़कियां यहां वहां खड़े गप्पें मार रहे थे। कुछ मोबाइल हाथ में पकड़े सरगोशियां करते हुए मुस्करा रहे थे या आँखों से आपस में इशारा कर रहे थे. रूही के कमरे में कदम रखते ही मोबाइल देखने वाले लड़के सिर उठाकर उसे शरारत से देखने लगे। रूही ने हाथ से ताली बजाकर कहा, "प्लीज़ !लिसेन गाईज़। "

बाकी जो बात कर रहे थे, वे भी रूही की तरफ़ देखने लगे। वह आगे बोली, "आपको पता ही है हम लोग सापूतारा एक सर्वे केलिए गए थे और मैं होटल में कपड़े बदल रही थी तो इन नीरव मींस मेरे वन ऑफ़ बेस्ट फ्रेंड्स ने मेरा वीडि ओ बनाया और आप सबको भेज दिया है। जिन्होंने अब तक नहीं देखा है वे भी देख लें। "

नीरव मुंह झुकाये भौंचक खड़ा था। कुछ लड़के जो मोबाइल देख रहे थे उन्होंने झेंपकर मोबाइल ऑफ़ कर दिया और बाकी लड़के चीख उठे, "यू----नीरव ---शेम ऑन यू."

एक लड़के ने अपना जूता नीरव पर फेंक कर दे मारा।, , "नीरव !शी इज़ आवर क्लासमेट। "

दो चार लड़के लड़कियां वाकई उसे घेरकर चांटे मारने लगे।

क्लास के सारे लोग चीख उठे, "यू----नीरव ---शेम ऑन यू."

रूही ने सबको रोक दिया, " नीरव को सज़ा मिल चुकी है। चाहती तो मैं वी सी के पास जाकर इसको रेस्टीकेट करवा सकती थी या पुलिस के पास जा सकती थी लेकिन इसकी ज़िन्दगी ख़राब हो जाती।अब इस सबक़ से ये ज़िंदगी में आगे लड़कियों की इज़्ज़त करना सीखेगा। "

और नीरव शर्मिन्दा हो आंसुओं से रोये जा रहा था, "--रूही !प्लीज़---मुझे माफ़ कर दो। मुझे माफ़ कर दो। "

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नीलम कुलश्रेष्ठ, अहमदाबाद

e-mail –kneeli@rediffmail.com

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