Teri Kurbat me - 19 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-19) - अंतिम भाग

जब तक ऋषि की ट्रेन संचिता की आखों से ओझल नहीं हो गई , तब तक वह उस ट्रेन को भरी आखों से देखती रही । अनुज ने उसे इस तरह एक टक ट्रेन की दिशा में देखते हुए देखा , तो बोला ।

अनुज - चलिए दी । ट्रेन जा चुकी है ।

संचिता - तुम जाओ अनुज , मैं थोड़ी देर बाद आऊंगी ।

संचिता की हालत देख और उसके जज्बात को समझ अनुज ने उसे कुछ देर अकेला रहने देना ही बेहतर समझा । अनुज वहां से चला गया और संचिता जाने कब तक वहीं जड़वत खड़ी रही । अनुज बाहर आया ।

यकायक आधे घंटे बाद , उसे बहुत ज़ोर के धमाके की आवाज़ आई । फोन चला रहे अनुज के हाथ से फोन छूटकर जमीन में गिर गया । आखें डर से चौड़ी हो गई , कान कुछ पल को सुन्न हो गए और वह प्लेट फार्म के अंदर फटी आंखों से देखता रह गया । जहां वो खड़ा था , वहां अफरा तफरी मच गई । अनुज तुरंत फोन जमीन से उठाकर स्टेशन के अंदर की तरफ बढ़ गया । भीड़ इतनी थी , कि वह अंदर जा ही नहीं पा रहा था । किसी तरह वह अंदर पहुंचा । वह प्लेट फार्म एक पर आया । और उसने जैसे ही सामने की तरफ नजरें घुमाई , प्लेट फार्म नंबर दो ......, धूं - धूं कर जल रहा था । वहां एक बड़ा और खतरनाक बम ब्लास्ट हुआ था। पूरा प्लेट फार्म और आस पास खड़ी रेल गाडियां..., आग की लपटों में समाती जा रही थीं । वह बुरी तरह घबराया सा संचिता को ढूंढने लगा । उसने पूरे स्टेशन का चप्पा - चप्पा छान मारा , लेकिन उसे संचिता कहीं नज़र नहीं आई ।

ऋषि को अपना शहर छोड़े लगभग एक घंटे हो चुके थे, लेकिन उसकी हालत जस की तस थी । वह संचिता का छुपकर अपने आसूं साफ करना , उसका ट्रेन छूटते टाइम हाथ पकड़ना...., भूल ही नहीं पा रहा था । घर की याद भी उसे बहुत आ रही थी । खासकर अनुज , कृति और उसकी मां की । तभी उसका फोन बजा , जो कि शायद किसी दोस्त का था, जो उसके पड़ोस में रहता था और उसके ही स्कूल में पढ़ता था । ऋषि ने अपनी पलकों के आसूं पोंछ कॉल रिसीव की । वहां की बात सुनकर ऋषि के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई। वह खुद को ठगा सा महसूस करने लगा । वह तुरंत अपनी सीट से बिना अपना सामान लिए उठा और गेट की तरफ दौड़ा पड़ा और जैसे ही उसने चलती ट्रेन के बाहर कदम रखा , किसी अंजान शक्श ने उसका हाथ पकड़ उसे रोक लिया और झटके से पीछे खींच बोला।

अनजान शक्श - ये तुम क्या कर रहे हो???? मर जाओगे । चलती ट्रेन से कोई कूदता है क्या ।

ऋषि को उसकी बात सुनकर आभास हुआ , कि वह क्या करने जा रहा था । उसने अटकती सांसों के साथ कहा।

ऋषि - मुझे वापस अपने शहर जाना है । मेरा नोएडा जाना बहुत जरूरी है । प्लीज मुझे जाने दीजिए ।

शक्श - पागल हो क्या??? मर जाओगे तो क्या तुम अपने शहर पहुंच पाओगे??? पांच मिनट में दिल्ली का इस रूट में पड़ने वाला पहला स्टेटेशन आने वाला है , वहां उतर जाना और नोएडा के लिए वापसी की ट्रेन पकड़ लेना ।
ऋषि आखों में तेज़ धार आसूं लिए उसकी बात मानकर वहीं खड़ा हो गया । तभी उसे लगा जैसे , उसके बगल में उसी के जैसा कोई इंसान खड़ा है । उसने पलटकर उसकी तरफ देखा , तो पाया कि ये तो वही है, उसी की तरह चेहरा , उसी की तरह शरीर । उसे समझते देर न लगी , कि ये उसका साया है । उस साए ने ऋषि की तरफ देखकर उससे पूछा ।

साया - तुम पागल हो गए हो क्या ऋषि??? बचपन से होश संभालते ही तुमने जिस सपने को देखा है , जिसके लिए तुमने जी तोड़ मेहनत की है , उसे तुम यूं ही छोड़ रहे हो । तुम्हारा फाइनल सिलेक्शन हो चुका है, तुम आर्मी के लिए सैनिक के रूप में चुने गए हो । अगर तुम इसे छोड़कर आज ऐसे ही चले जाओगे , तो फिर तुम्हें ये मौका कभी मिलेगा या नहीं , इसकी गारंटी नहीं है ऋषि । ऐसा मत करो , सब कुछ खत्म हो जाएगा नहीं तो । तुम्हारा कैरियर , तुम्हारे सपने , खुद तुम....., सब ....., सब खत्म हो जायेगा ।

ऋषि ने उससे कुछ कहना चाहा , लेकिन उसकी आवाज जैसे सिल चुकी थी , वह कुछ नहीं बोल पाया । तभी उसे किसी पैसेंजर का धक्का लगा और वह जैसे होश में आया । उसने गेट की तरफ देखा , तो दिल्ली का स्टेशन आ चुका था । वह बिना इस बात की परवाह किए , कि ट्रेन अभी तक पूरी तरह से स्टेशन पर खड़ी नहीं हुई है , उससे कूद गया । उसे ऐसे कूदते देख , बाकी पैसेंजर्स चिल्ला पड़े , लेकिन तब तक ऋषि कूद चुका था और वह चलती ट्रेन से कूदने की वजह से चोटिल हो चुका था। लेकिन तब भी जैसे उसे अपनी चोट की परवाह न हो , इस तरह वह तुरंत जमीन से उठ गया । उसने तुरंत नोएडा की ट्रेन पता की , तो उसे पता चला कि नोएडा की ट्रेन एक घंटे बाद है । एक घंटे...., ये सुनकर ऋषि स्टेशन से बाहर आ गया । उसने जल्दी से एक टैक्सी के ड्राइवर की तरफ अपने कदम बढ़ाए और ज्यादा पैसे देकर उसे नोएडा छोड़ने के लिए मना लिया । वह टैक्सी ड्राइवर ज्यादा पैसे की लालच में मान गया और उसे नोएडा के सिटी हॉस्पिटल में छोड़ दिया ।

ऋषि भागता हुआ हॉस्पिटल के अंदर आया । उसने रिसेप्शन पर संचिता का नाम और उसकी डिटेल्स बताई । रिसेप्सनिष्ट ने उससे डिटेल्स ली और कंप्यूटर स्क्रीन में चेक कर कहा ।

रिसेप्सनिष्ट - सॉरी सर...., शी इज़ नो मोर ।

रिसेप्सनिस्ट की बात सुनकर ऋषि वहीं निढाल सा जमीन पर बैठ गया । उसकी आखों से आसूं बहना बंद हो गए । जब वहां से गुजर रहे लोगों ने और रिसेप्सनिस्ट ने उसे ऐसे देखा , तो उसे तुरंत उठाकर खड़ा किया और एक चेयर पर बैठाया । एक कंपाउंडर उसे होश में लाया , एक ने पानी पिलाया , तब तक डॉक्टर भी वहां आ गए और उसे चेक कर बोले ।

डॉक्टर - इन्हें किसी बात का गहरा सदमा लगा है।

तब रिसेप्सनिस्ट ने डॉक्टर को सारी बातें बताई , जो कुछ अभी कुछ देर पहले ऋषि के आने के बाद हुआ वो सब । सारी बातें सुनकर , डॉक्टर ने ऋषि की तरफ देखा और उसे सदमे से बाहर लाने की कोशिश करने लगे । किसी तरह ऋषि पूरे होशो हवास में आया । तो उसे संचिता के बारे में रिसेप्सनिस्ट की कही हुई बात याद आई और वह फूट - फूटकर ज़ोर - ज़ोर से वहीं रोने लगा । उसका रोना इतना मार्मिक था , कि वहां खड़ा हर इंसान खुद की आखों में आए आसुओं को रोक न सका । डॉक्टर ने भी उसे जी भरकर रोने दिया । डॉक्टर कुछ देर के बाद उसे चुप कराने लगे , लेकिन ऋषि चुप नहीं हुआ..., बल्कि रोता ही गया । उसे संचिता के साथ बिताया एक - एक पल याद आ रहा था । शायद आज ऋषि के दर्द की इंतहा थी । एक दोस्त से बढ़कर इंसान को हमेशा के लिए खो देने की भावना , उसे सही अवस्था में आने ही नहीं दे रही थी । वह संचिता की इस दुनिया से जाने की बात को सहन ही नहीं कर पा रहा था और बस , रोता ही जा रहा था ।

समाप्त

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