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साधन

जब मैं समझदार हुआ तब मेरा ध्यान सड़क किनारे बैलगाड़ी पर छप्पर ताने लोगो पर गया।तब मुझे पता चला।ये गड़रिया लुहार है।महाराणा प्रताप को महलों को छोड़कर जंगलो में रहना पड़ा था।ये उसी परम्परा का निर्वाह कर रहे है।आपको शहरों,कस्बो ही नही कही कही गांवो किनारे भी एक दो घर इनके मिल जाएंगे।
पहले मैं सोचा करता था।ये लोग कैसे संसाधन विहीन या कम संसाधनों के रहते जीवन बिता लेते है।आज जब मानव ने इतनी तरक्की कर ली है चांद। पर जा पहुंचा है इंसान तब भी ये लोग आदिम युग मे जी रहे है।कहीं कही कुछ मात्रा में संसाधन जैसे बिजली,मोबाइल आदि को अपना भी रहे है।
इनको देखकर याद आता है कि कैसे हमारे पूर्वज जीते होंगे।हमने इस बारे में किताबो में पढ़ा है।पहले मानव जंगलो में रहता था।पशु और फल आदि उसके आहार थे।फिर उसने तन ढकना सीखा।उतरोतर विकास के क्रम से गुजरते हुए मानव ने घर बनाये।और इस तरह परिवार समाज गांव शहर प्रदेश और देश बने।
विज्ञान की प्रगति के साथ नए नए आविष्कार होने लगे।इंनकी वजह से मानव जीवन सुगम,आरामदायक और अच्छा हो गया।पहले की तुलना में आज जीना बहुत ही आसान हो गया है।लेकिन क्या ऐसा ही होता है।
मेरी नौकरी लगते ही शादी के लिए प्रस्ताव आने लगे थे।यह पचास साल पुरानी बात है।और आखिर एक जगह रिश्ता तय हो ही गया।और दुल्हन घर मे आ गयी।चूंकि नौकरी तो मैं शहर में करता था लेकिन माँ गांव में रहती थी।इसलिए शादी गांव से हुई थी।उस समय के हिसाब से शादी में दहेज भी आया था।पत्नी छः महीने तक गांव में रही फिर मैं साथ ले आया था।
मैं शहर में एक छोटे से कमरे में रहता था।मैं था सरकारी कर्मचाती लेकिन उन दिनों पगार मिलती ही क्या थी।मात्र दो सौ रुपये। उसमे मैं पत्नी और गांव में रह रहे भाई बहन और माँ के लिए खर्च भेजना।
मेरे पास एक कमरा था और एक अटेची और एक खाट और खाना बनाने का कुछ सामान।शादी में मिला दहेज का कोई सामान मैं गांव से नही लाया था।
पत्नी ने कम तनख्वाह में समान जोड़ना शुरू किया।कमरा छोटा था इसलिए मकान बदला।और किराये के मकान में दो बच्चे हुए।पत्नी जरूरत के हिसाब से सामान जोड़ती रही और बच्चे बड़े होते रहे।और फिर प्लाट खरीद लिया और धीरे धीरे घर भी बन गया।बेटी ब्याह कर चली गयी।बेटे की शादी हुई और फिर दूसरी मंजिल भी खड़ी हो गयी।पहले एक कमरे के किराए के मकान में रहते थे।फिर दो कमरे के में और अपने मे पहले चार कमरे थे।बाद में ऊपर भी बन गये।जगह बढ़ती रही उसी हिसाब से सामान बढ़ता रहा।बेटे के देहज में आया सामान उसके साथ और भी सामान आता रहा।कंप्यूटरर,होम थिएटर आदि चीजे भी आ गयीं।ऊपर नीचे के कमरे और सब जगह सामान से भर गई।
समय ने करवट ली और बेटा बीमार पड़ा और फिर सही होने के बाद दूसरे शहर चला गया अपने परिवार को लेकर।
अब मैं भी वही जाऊंगा।इतना सामान साथ नही ले जा सकता।पहले जो सामान खरीदा गया अब बेचना है।
आदमी ज्यादा साधन होने पर जीता है तो कम साधन होने पर भी जीवन गुजार सकता है।

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