बेपनाह - 16 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 16

16

“क्यों रहने दो भला, एक बार तुम यहाँ पर मेरे साथ कुछ खा लो फिर बार बार आने का मन करेगा।”

“इनकी बात मान लेने के अलावा और कोई तरीका ही नजर नहीं आया।”

“फ्राइड राइस और मंचूरियन मंगा लेते हैं।”

“हाँ ठीक है !लेकिन एक प्लेट ही ऑर्डर करना मैं तुम्हारी प्लेट से ही शेयर कर लूँगी।“

“क्या यार, खाना तो सही से खा लिया करो।”

“खाना वाकई बहुत कमाल का था ।”

“ऋषभ सुनो, तुम अपने दोस्त के घर रुकोगे और खाना खाकर जा रहे हो तो वहाँ पर खाना नहीं खाओगे ? वो इंतजार कर रहा होगा।”

“क्यों करेगा वो मेरा इंतजार ? मैंने उसे बताया ही कब है?”

“बता देना चाहिए था ! बेचारा अचानक देखकर परेशान हो जायेगा।”

“क्या कह रही हो तुम, वो मेरा यार है और यार परेशान नहीं होते, हम लोग यही करते है अचानक से किसी के घर भी जा सकते हैं ! यारी की है तो निभानी भी पड़ेगी।”

“ठीक है जी,” उनकी हर बात पर सहमत होना ही है, वो थोड़ा मुस्कुरा कर बोली।

“शुभी अब यहाँ से फटाफट निकल लो वरना आधे घंटे का सफर दो घंटे में भी पूरा नहीं हो पायेगा।”

“क्यों जी ?”

“क्योंकि इन पहाड़ी रास्तों में घुमाव बहुत होते हैं पता ही नहीं चलता कब मोड आ गया।”

“हाँ ऐसा तो होता ही है।” उसे बचपन की अपनी पहाड़ी यात्रा आ गयी।

ऋषभ ने सौंफ के कुछ दाने अपने मुंह में डाले और थोड़े से उसके हाथ में देते हुए उठ कर खड़े हो गए। “चलो भाई अब निकल लो।”

“हाँ चलो ।“ यह कहती हुई वो उठकर कार की तरफ चलने लगी ! ऋषभ भी लपक कर उसके साथ चलने लगे ! इस समय शुभी के दिल की धड़कनें बहुत तेज हो रही थी मानों अभी उसका दिल जिस्म से बाहर निकल कर आ जायेगा, ऋषभ का साथ और रात का समय, दोनों ही अकेले, तन्हा, और कोई भी नहीं शायद ऋषभ का दिल भी शुभी के दिल की तरह से धडक रहा था ! उसने शुभी के हाथ को अपने हाथ में ले लिया और इतना कस कर पकड़ लिया जैसे वो कहीं खो न जाये या कहीं दूर न चली जाये । शुभी को अच्छा लगा उसका यूं परवाह करना लेकिन अगले ही पल दिल घबरा उठा । अगर घर में मम्मी को यह सब बातें पता चल गयी तो वे कितना परेशान हो जायेंगी । मैं मम्मी को अपनी तरफ से कोई दुख नहीं देना चाहती वो वैसे भी बीमार हैं । जब उन्हें मेरी इस हरकत के बारे में पता चलेगा कितना आहत हो जायेंगी, उनके मन को कितनी चोट पहुंचेगी । शुभी ने मन में सोचा ।

“क्या सोच रही है यार ?” ऋषभ ने आगे बढ़कर उसके माथे को चूमते हुए कहा।

“यह क्या कर रहे हो ऋषभ, मैं वैसे ही परेशान हूँ ।“ शुभी ने अपना हाथ उसके हाथ से छुडाते हुए कहा ।

“क्यों भई ? अब क्या हुआ ? मैं आ गया न वापस, तेरी लाइफ में हमेशा के लिए फिर कैसी चिंता ? मैं सिर्फ तेरा हूँ ! तू जो कहेगी मैं वही करूंगा ! तेरे लिए आसमां से तारे भी तोड़ कर ला सकता हूँ और अपनी जान भी दे सकता हूँ ।“ ऋषभ ने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रखते हुए कहा।

उसकी आँखेँ भर आई शायद यह खुशी के आँसू थे । मैं इस दिन के लिए ही तो उसका इंतजार करती रही थी या ईश्वर ने हमारे प्रेम को प्रगाढ़ करने के लिए ही हमें एक दूसरे से दूर किया था ! तू जो भी करता है या करेगा सही ही करेगा यह मेरा विश्वास है ! सच्चा विश्वास कभी नहीं टूटता ! शुभी ने अपनी नजरें आसमा की तरफ उठाते हुए मन ही मन यह सब दोहराया।

“अरे अब जल्दी से आकर बैठ जा, बहुत ओस और कोहरा सा हो रहा है।“

“हाँ !” वो जल्दी से ऋषभ के पास जाकर कार में बैठ गयी।

“बस आधे घंटे का सफर और कर लेते हैं फिर रात भर आराम, सुबह निकलेंगे अपने गाँव जाने के लिए।“

यार तू भी तो कुछ बोल न या सिर्फ मैं ही बोलता रहूँ ?” शुभी को चुप देखकर ऋषभ ने कहा।

“मैं क्या बोलू ?”

“आती क्या खंडाला ?” ऋषभ ने उसे छेडते हुए कहा ।

“हम्म ।“ क्या करूँ आके मैं खंडाला उसने कहना चाहा लेकिन चुप रही ।

“देख कितना फॉग हो रहा है अभी ज्यादा समय भी तो नहीं हुआ है फिर भी कितना अंधेरा हो गया है। ”

“ऋषभ तुमने अभी गाँव न जाने का डिसीजन लेकर बहुत सही किया है वरना पता है हम लोग कहीं फंस जाते। शुभी एकदम से बोली।

“हाँ मुझे भी यही लगता है ।“ ऋषभ ने उसके चेहरे की तरफ देखा लेकिन अंधेरे में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था ।

जंगल है आधी रात है लगने लगा है डर ......... एफ़एम पर यह गाना बज रहा था और सच कहूँ तो शुभी को वाकई बेहद डर महसूस हो रहा था और दिल बहुत घबरा रहा था ! हालांकि अभी घड़ी में सिर्फ 8 बज रहे थे ! उसका जी चाह रहा था अपनी आँखें कस कर बंद कर ले लेकिन ऋषभ को कहीं यह न लगे कि मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा हूँ और यह सो गयी ।

“सुनो शुभी, तुम्हें कहीं डर तो नहीं लग रहा है ? मैं हूँ तेरे पास ।” उसने शुभी के कंधे पर हाथ रख कर हल्के से दबाया ।

इसको कैसे पता चल गयी मेरे मन की बातें ? शायद ऐसा ही होता है कि दिल को दिल से राह होती है और इसके दिल तक मेरे दिल की आवाज पहुँच गयी है ! मुझे पता है कि तुम हो मेरे साथ ! अब मैं निश्चिंत हूँ ऋषभ । शुभी ने मन ही मन यह दोहराया ।

“अब तुम्हें कभी घबराने की जरूरत नहीं है ! तुम जानती हो तुमसे दूर जाकर मैं कितना तड़पा हूँ ! मैं तुमसे अलग नहीं हूँ ! मैं तेरा ही हूँ, सिर्फ तेरा ।“

“ऋषभ अभी यह सब बातें मत करो चुपचाप ड्राइविंग करो।”

“हाँ मेरी माँ ! ड्राइव ही कर रहा हूँ !” अभी गाड़ी की स्पीड 30 थी इससे ज्यादा बढाई ही नहीं जा सकती थी क्योंकि इतना फॉग हो रहा था । उसका मन खुशी से लबरेज था पर कोई अंजाना सा डर भी हाबी था।

“ऋषभ यह एफ़एम का चेनल चेंज कर दो न ! कोई बढ़िया सा गाना लगा लो प्लीज।“

“अब इस गाने में क्या हुआ ? चल अच्छा बता कौन सा लगा दूँ ?”

“तुम अपनी पसंद का कोई भी गाना लगाओ न ऋषभ ?”

“यार तू मुझे कभी कभी पागल लगती है।”

“हाँ मैं हूँ न पागल ।“

“सच में तू मूर्ख ही है “ ऋषभ ने मुस्कुराते हुए कहा। “तू मुझे इतना क्यों चाहती है ? क्यों मेरी पसंद को अपनी पसंद समझने लगती है ?”

“हाँ मैं सच में मूर्ख ही हूँ जो तुम पर इतना विश्वास करती हूँ।“ शुभी ने नाराजगी जताते हुए कहा। “अगर मैं तुमसे प्यार करती हूँ तो मूर्ख हो गयी ? अगर तुम्हारी पसंद ही मेरी पसंद बन जाती है तो इसमें मेरी क्या गलती है ? सुनो ऋषभ बस इतना करना कि मुझे उस दर्द में फिर से मत डूबने देना । जिसमें तुम मुझे डूबा कर चले गए और मैं रोती और तड़पती रह गयी थी । तुमने सोचा भी नहीं न कि मेरी परवाह कौन करेगा ?”

“स्त्री तो हर बात को गांठ में बांध कर रख लेती है और पुरुष वो भी तो उस दर्द को चुपचाप भोगता है न ? वैसे वो मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी, अब कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा और तुम उन बातों को कभी भी याद मत करना, मुझे दुख होता है।”

“तुम्हारे एक बार सोर्री कहने से या अपनी गलती मान लेने से हमारे वे दर्द या दुख कम तो नहीं हो जाएँगे न ? वे दर्द जो मैंने अकेले भोगे हैं कैसे भूल जाऊँ ऋषभ ?”

“वे दुख तुमने अकेले नहीं भोगे, मैं हमेशा तुम्हारे साथ में ही था, तन से नहीं लेकिन मन से तो था ही न।”

“मैं बहुत कमजोर हूँ ऋषभ, मैं रोने के सिवाय कुछ नहीं जानती हूँ मेरा दुख रोने से कम होता है ।”

“नहीं यार, मैं तुम्हें अब कभी रोने नहीं दूंगा । मैं सच कह रहा हूँ वो तो मुझसे गलती हुई थी, न जाने क्यों मैं ऐसा हो गया था और डिप्रेशन में चला गया।”

“वो डिप्रेशन फिर से भी तो हाबी हो सकता है ?”

“कैसे होगा, अब तुम हो न मुझे संभालने के लिए।”

“मैं तो पहले भी थी।”

“हाँ थी तो लेकिन अब मुझे सीख मिल गयी है । मैं सब समझ चुका हूँ कि दुनिया में कौन अपना है और कौन पराया।” ऋषभ ने बड़े प्यार से उसके बालों को सहलाया ।

“ऋषभ तुम मुझे अपनी बातों से पिघला देते हो ! मुझे मत सताओ मेरा तुम्हारे सिवाय इस दुनिया में कोई भी नहीं है जो कुछ हो सिर्फ तुम ही हो।”

“मत रोया कर शुभी, तेरे रोने से मुझे तकलीफ पहुँचती है ! तू प्रामिस कर कि अब कभी नहीं रोयेगी ।”

“मैं प्रामिस नहीं करती बल्कि तुम प्रामिस करो कि मुझे कभी नहीं रुलाओगे । बोलो ठीक है न ?”

“मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी कौन सी बात तुझे चुभ जायेगी ! बस तू कभी न रोने की कसम खा ले।”

“अच्छा चलो ठीक है ! अभी आराम से गाड़ी चला लो।”

“यार कोई बातें बनाना तो तुमसे सीखे ! एकदम से बात को पलट देना।”

“ओके अब मैंने ऐसा क्या कर लिया ! मैं प्रेम करती हूँ तुम्हें, परवाह है तुम्हारी और करती रहूँगी भले ही तुम कहीं भी चले जाओ या किसी लड़की को बीच में ले आओ ।” उस ने ऋषभ को छेड़ते हुए कहा।

“ठीक है, ठीक है, मैंने बता दिया तो छेड्ना शुरू बिना कुछ जाने समझे ।“

“अब छोडो भी, न मुझे कुछ जानना है, न ही समझना है।”

“चलो देर आयद दुरुस्त आयद, ऋषभ ने पानी का घूंट लेते हुए पानी की बोतल उसे पकड़ा दी और कहा, “लो ठंड में ठंडा पानी पियो तरावट बनी रहेगी।“

वो ऋषभ से बोतल लेकर पानी पीने लगी ! वाकई मुंह एकदम से सूख गया था पानी पी कर थोड़ी राहत मिली।

ऋषभ को पानी की बोतल देकर पूछा, “अभी कितनी देर और लगेगी पहुँचने में ?”

“बस आ गया समझो ! देखो, रोशनी दिखनी शुरू हो गयी है न ?”

“हाँ थोड़ी थोड़ी दूर पर चमक रही है।”

“समझ लो पहुँच गए हैं ! यहाँ से इस शहर की शुरुआत है ।“ ऋषभ ने मुसकुराते हुए कहा ।

“ठीक है ! उसके चेहरे पर सकूँ भरी मुस्कान आ गयी।”

बहुमंजिला बिल्डिंग में सातवें फ्लोर पर वो एक टू रूम सेट था उसमें ही ऋषभ का दोस्त अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहता था ! हम लोगों को देखते ही बड़ी खुशी से उछल कर हम लोगों से मिला ऋषभ को तो इतने कस कर गले से लगाया कि बेचारा वो दब गया होगा।

“और सुना भाई क्या हाल हैं तेरे ?”

“सब बढ़िया है ।“

“इतनी रात को आने की क्या तुक हुई यार ! या मुझे बता तो देता।“

“कैसे बता देता यार अचानक से गाँव जाने का प्रोग्राम बन गया तो सोचा रात तेरे यहाँ ही निकाल लें, सुबह निकल जाएंगे ।”

“तू सिर्फ रात गुजारने आया है ?”

“हाँ यार, यह है शुभी, इसे अपना गाँव दिखाना है शाम को वापस आ जाएँगे फिर यहाँ रुक जाएँगे।”

“देख ले यार, यह अच्छी बात नहीं है ।”

“यार मजबूरी है समझा कर ।”