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बेपनाह - 1

सीमा असीम

1

“शुभी सुनो, कहाँ हो तुम ? आओ यहाँ मेरे पास आकर बैठो ।” मम्मी की हल्की सी आवाज उसके कानों में पड़ी।

हुंह ! बुलाने दो मम्मी को, मैं नहीं जा रही । शुभी मन ही मन बड़बड़ाई ।

“शुभी आओ बेटा ..........।“ मम्मी ने थोड़ा और ज़ोर से आवाज लगाई ।

उसने अपनी मम्मी की बात को फिर से अनसुना करते हुए तकिये में मुँह छिपाया और आँखें बंद कर ली, अब उसकी आँखों के सामने घूम रहे थे कालेज के वे प्यारे दिन, जब ऋषभ उसके साथ में थे। वो और ऋषभ एक दूसरे की जान की तरह, जहां ऋषभ वहाँ शुभी और जहां शुभी वहाँ ऋषभ .... लेकिन अब उसकी जिंदगी के बड़े अजीब से दिन थे, जब पल भर को भी मन में सकूँ नहीं था, न जाने क्यों, पर वो बहुत ज्यादा बेचैन थी। उसने जीवन के बेहद अच्छे दिन उसके साथ बिताए थे ! फिर उसकी ही एक फोन कॉल ने उसे एकदम से तोड़ कर रख दिया था! हालांकि वो उसको बहुत पहले से कुछ अलग सी बातें कर रहे थे लेकिन शुभी उसके प्रेम मे इतनी बुरी तरह से डूबी हुई थी कि उसकी कही हुई किसी भी बात पर उसे यकीन ही नहीं होता था और वो उसे पहले की ही तरह बेइंतिहा प्यार करती और सच्चे मन से रिश्ते को निभा रही थी ! मानों ऋषभ के प्यार में दीवानी सी हो गयी थी ! हालांकि शुभी समझ रही थी कि ऋषभ किसी तकलीफ या परेशानी में भी है तभी उसे फोन किया होगा लेकिन वे अच्छे इंसान होने के बाद भी कभी कभी न जाने कैसी बातें करने लगते हैं जिससे उसे दुख होता और वो उसकी बातों से रो पड़ती। शुभी को कभी ऐसा लगता था कि ऋषभ उसे जान बूझ कर परेशान कर रहे हैं फिर भी शुभी उसके भ्रम से खुद को निकाल नहीं पा रही थी ! उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि एक दिन उसको अपनी गलती का अहसास जरूर हो जायेगा और वे शुभी को मना लेंगे, किन्तु काफी दिनों से उनका व्यवहार उस की समझ से परे होता जा रहा था! वो मौका देखते ही उस पर बुरी तरह बरस पड़ते और उल्टी सीधी बातें करने लगते ! फिर खुद को ही कोसने लगते ! न जाने उनसे क्या गलती हुई थी या क्या तकलीफ हुई थी जो उसके लाख पूछने पर भी कभी नहीं बताते बल्कि बहाने बनाकर झूठ को भी सच की तरह कहते ! इससे उसको भी दर्द होता होगा पर वो अकेले ही हर दर्द को सहना चाह रहे थे, यह बिना जाने कि उसकी इसी बात से शुभी कितनी तकलीफ में है ।

शुभी जब भी कहती कि इस तरह की बातें करके मुझे तकलीफ दे रहे हो ! मुझे बता क्यों नहीं देते लेकिन वे अपनी कोई गलती को मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं होते, और एकदम से खामोश हो जाते ! आखिर क्यों ?

खैर !!

वो पोस्टग्रेजुएशन कर चुकी थी और करीब तीन साल लम्बे बेपनाह प्रेम के इस तरह बिखरने पर बेहद उदास और दुखी थी ! अब उसे ऋषभ के सिवाय किसी और पर भरोसा करना ही नहीं था क्योंकि उसके लिए ऋषभ ही उसके सब कुछ थे, हैं और रहेंगे भी ।

पहला और आखिरी प्यार बस यही है और यही रहेगा, इसके अलावा कोई भी मेरी जिंदगी में नहीं आयेगा ! अपने मन में यह बात उसने बहुत अच्छी तरह से बैठा ली थी। अब और किसी को अपनी जिंदगी में आने की इजाजत कभी नहीं देगी, लेकिन वो इस समय बहुत ज्यादा अकेली पड गयी थी और उसकी बातें किसी से भी नहीं करना चाहती थी, सब कुछ अपने ही मन से कह कर खुद को हल्का करने का मन होता लेकिन आखिर कब तक? कभी उस पर बहुत तेज गुस्सा भी आता लेकिन वो बेबस और मजबूर थी ! उसने खुद को बिस्तर पर गिरा लिया, बस दिन रात सोचते रहना ही एक काम हो गया ! ऑफिस से रोज छुट्टी ले लेती इस तरह पूरे दो महीने उसने ऑफिस का मुँह नहीं देखा।

एक दिन सर ने नाराज होकर एक महीने का नोटिस लेटर पकड़ा दिया ! “तुम आराम करो, तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है !” यह कहते हुए ।

यह शब्द उन्होने उससे गुस्से में कहे या उसकी तकलीफ देख कर कहे, उसे कुछ नहीं पता । वो बेहद परेशान तो थी ही थोड़ी परेशानी और बढ़ गयी ! घर में मम्मी नाराज और ऑफिस में भी सब लोग ! उसे लगता कि पूरी दुनिया ही उसकी दुश्मन बन गयी है ! अब तो उसके पास कोई काम नहीं था, बस बिस्तर में लेटे रहना और सोचते रहना । मम्मी पैसों को लेकर पहले से ही बहुत परेशान थी, पापा की पेंशन से कितना खर्चा चल सकता था! हर समय पैसों की दिक्कत थी ! घर में कभी भूले से भी उसकी शादी की बात नहीं चलती थी और शुभी की उमर दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। मम्मी को कहीं ये डर तो नहीं कि उसकी शादी के बाद वे अकेली हो जाएंगी । शुभी के मन में अक्सर यह ख्याल आता।

पापा की बहन सोनी बुआ जब भी घर आती वे जरूर शुभी की शादी की बात करती थी, लेकिन मम्मी उनकी किसी बात पर ध्यान ही नहीं देती । 

कभी कभी वो सोचती कि अगर उसकी शादी हो जाये तो शायद उसका मन थोड़ा सही हो सकता है अन्यथा वो यूं ही सोचते सोचते एक दिन मर जायेगी।

आँखों के रास्ते से उसका दर्द रिसता रहता और वो कुछ नहीं कर पाती क्योंकि यह दर्द या तकलीफ ऐसी थी कि वो किसी से कह भी नहीं सकती थी क्योंकि जिस किसी से भी कहती वो मज़ाक बनाता, उसका फायदा उठाता और उसे ही गलत ठहराता। वैसे देखा जाये तो गलती उसी की ही थी कि उसने ऋषभ के साथ प्रेम को इतना गहरा कर दिया और खुद को दर्द के सागर में डुबो दिया।

प्रेम को मारा नहीं जा सकता इसलिए वो अपने मन को समझा कर उसकी गलती को हर बार माफ करती और हर बार फिर से बेचैनी झेलती।

घर में शुभी और मम्मी बस दो ही लोग थे । जब से पापा गुजरे, मम्मी ने अपने आपको घर के अनगिनत कामों मे व्यस्त कर लिया था। वे हर समय किसी न किसी काम में व्यस्त रहती, ना जाने कहाँ कहाँ से काम निकाल लेती, न जाने उनके पास इतने काम आ कहाँ से जाते और फिर वे उन कामों में खुद को डुबा लेती, वो उनको काम करते देखती तो खुद भी कुछ करना चाहती लेकिन उसका मन बुरी तरह टूट कर बिखर चुका था, समझो मर ही गया था और उसे दुनिया की कोई भी चीज लुभाती नहीं हालांकि मम्मी से सीख रही थी कि खुद को किस तरह व्यस्त रखकर परेशानियों से दूर रहा जाये लेकिन उसे लगता कि मोहब्बत ने उसे कायर बना दिया था । पूरे दिन बिस्तर पर पड़े रहना और रोते रहना बस यही दो कम बचे थे, बाकी किसी भी काम से कोई मतलब नहीं। वो क्या करती ? आखिर मजबूर जो थी क्योंकि दिल साथ ही नहीं देता और बिना दिल के शरीर का क्या काम ? बेचारी मम्मी, वे घर बाहर के सारे काम करती रहती। पापा के न रहने से एक तो उनकी कमी का अहसास और दूसरी उसके उदास दिल की तकलीफ, वाकई बहुत मुश्किल था।

वे जून के महीने के बेहद गरम दिन थे बिजली का आना जाना लगा रहता था, उस दिन सुबह से ही बिजली गायब थी, मम्मी घर के दालान में बैठी आम के आचार को बनाने की तैयारी कर रही थी वे सारे मसाले और कटे आमों के टुकड़ों को मिलाकर जार में भरती जा रही थी और शुभी पसीने में लथपथ देह के साथ कमरे में बैड पर लेटी कोई सैड सॉन्ग सुन रही थी।

“शुभी बेटा, बाहर आ जाओ, यहाँ थोड़ी बहुत हवा तो आ रही है।“ मम्मी ने बाहर से फिर आवाज लगाई ।

उसने मम्मी की आवाज को सुना और सुनकर भी उन्हें अनसुना कर दिया ।

“आ जाओ बेटा !” मम्मी ने एक बार फिर ज़ोर से आवाज लगाई । यह लड़की जिंदगी में न जाने क्या करेगी ? इसे न अपनी और न मेरी फिक्र है ! वे मन ही मन बुदबुदा रही थी ।

इस बार उसे उठकर बाहर आना ही पड़ा। “क्या है मम्मी, आपको तो कोई न कोई काम करते ही रहना है, इतनी गर्मी है ऊपर से यहाँ धूप की तापिश भी है।“

“कम से कम यहाँ हवा तो आ रही है।“

“हुंह बड़ी हवा आ रही है !” वो मुंह फुलाते हुए बडबड़ाई ! आपको जो करना है किया करो, मुझे क्यों परेशान करती हो ।“

“इस लड़की को न जाने क्या हो गया है यह नहीं देखती कि पापा भी नहीं है मैं अकेली किस किस काम को देखूँ ! बेटा थोड़ा तो समझा करो ।“ मम्मी ने उसे समझाने के लहजे में कहा । वो बस यूं ही बैठी रही बिना किसी बात का जवाब दिये और माँ अपनी बातें कहती रहीं। सारे काम मम्मी की दिनचर्या में माला के मनकों की तरह एकसार गुँथे रहते थे । उनके हर काम में सलीका और बेहद तरतीबी होती थी। वे अचार, चटनी, मुरब्बे बड़े शौक से खूब अच्छे करके बनाती थी और उनका यही शौक अब आमदनी का जरिया भी बन गया था ! वे खूब अच्छे तरीके से मुरब्बों, अचारों, चटनियों, के जार सजा सजा कर रखती थी । लाल, हरे, पीले और सफ़ेद रंग के वे अचार मुरब्बे देखने में जितने सुंदर लगते उससे भी ज्यादा खाने में स्वादिष्ट होते थे ! रंग, रूप, और स्वाद की यह तरतीबी उस सज्जा को अनूठा और अद्भुत बना देती। उनके पास सिर्फ काम, काम और काम था। वे हर मौसम में ही बहुत व्यस्त रहती। कभी घर के नल, घर के पंखे, लाईट ठीक कराती, तो कभी किचन के सिंक की रुकी हुई नालियाँ सही करती । न जाने वे इतने काम निकाल कहाँ से लेती और निकाल भी लेती तो उन कामों को करने में मन कैसे लगा लेती ! शुभी तो उन्हें देख देख कर ही उकता जाती थी । भला उनके उन कामों में वो हाथ कैसे बंटा पाती, जो उसके बस के ही नहीं और न इंटरेस्ट के।

खैर उसने उकता कर थिएटर में काम करने का प्रयास शुरू कर दिया था, जिससे उसका थोड़ा मन बदले और उसे मम्मी के व्यंग बाणों से भी कुछ समय को मुक्ति मिले। कहते हैं न “जहां चाह वहाँ राह” और ठीक इसी तरह शुभी को ब्रजेश सर के साथ काम करने का अवसर मिल गया । वो काफी समय से थिएटर से जुड़े हुए थे और उनके पास कई सालों के काम का अनुभव भी था । अब उसको थिएटर की रोज होने वाली रिहर्सल में बेहद मजा आता, मम्मी के बोरियत भरे रूटीन से भी निजात मिलती फिर भी अकसर जिन्दगी की उलझन में उलझी रहती हालांकि मम्मी के रहते उसे घर की किसी भी समस्या से कोई भी लेना देना नहीं था क्योंकि एक अकेले ही वे सब कुछ देख लेती थी लेकिन शुभी तो अपने दिल के हाथों मजबूर और बेबस सी हो गयी थी । न जाने किस गलतफहमी का शिकार थी कि वो आ जाएगा वापस मेरे पास, वो लौट आएगा मेरे पास ...शायद वो भी यूं ही मेरा इंतजार कर रहा हो, बस यही उलझने और यही उठा पटक उसके मन में चलती रहती थी।

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