बेपनाह - 9 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 9

9

यह सब क्या चल रहा है यहाँ ! उफ़्फ़ यह कैसे रिश्ते हैं ? क्या यही है एक औरत का जीवन ? क्या मर्द बिलकुल स्वतंत्र है किसी जानवर की तरह । जब उसका जो मन आए वही करेगा ? नहीं यह नहीं हो सकता । मेरे पापा भी तो मर्द थे वे बिलकुल भी ऐसे नहीं थे ! माँ का कितना ख्याल रखते थे । मैंने उनको कभी भी तेज आवाज में मम्मी से बात करते हुए नहीं सुना था ! कितने प्यार से, कितने धीरे धीरे समझा कर बात करते थे । क्या जमाना बादल गया है ? क्या अब मर्द का मन ही नहीं भरता है कभी किसी चीज से? नहीं सब ऐसे नहीं हो सकते, उसका ऋषभ भी तो कितना प्यारा है । शुभी खुद से ही सवाल जवाब कर रही थी कि फिर से लड़ने झगड़ने की आवाजें आने लगी ।

“सुन तू आइंदा कभी इस तरह की बातें मत करना, मैं जीना चाहता हूँ, मुझे मरना नहीं है। अपनी जिंदगी के हर पल को हँसते मुस्कुराते हुए बिताना है । अब तू सो जा, मैं जरा बाहर होकर आता हूँ !” उस मर्द की अकड भरी थोड़ा तेज आवाज गूंजी । “अब इतनी रात को कहाँ जा रहे हो ? मत जाओ, कहीं मत जाओ ।“ औरत के रोने और गिड्गिडाने की आवाजें फिर मारपीट की आवाजें और शांति ।

कितना तेज गुस्सा आया था उस पर, कैसा इंसान है यह जिसे अपनी पत्नी की जरा भी परवाह नहीं है जिसने इसके बच्चों को जन्म दिया, पाला पोसा और अपनी सारी जवानी समर्पित कर दी । शुभी का मन पुरुष जाति के प्रति घृणा से भर गया ।

मैं इस औरत से मिलना चाहती हूँ, मैं इसके बारे में जानना चाहती हूँ । कैसे यह इस पुरुष के साथ निर्वाह कर रही है या अब तक कैसे किया होगा ? कितने ही सवाल थे जो शुभी के मन में गूंज रहे थे मानों कोई कोलाहल मन को परेशान किए हुए था ।

नींद तो पहले ही नहीं आ रही थी, अब तो बिल्कुल ही उड़ गयी थी फिर भी बिस्तर पर लेट कर उसने अपनी आँखें कस कर बंद कर ली, शायद किसी तरह से नींद आ जाये क्योंकि सुबह अगर फ्रेश नहीं हुई तो पूरे दिन मन भारी रहेगा और प्ले में सही से परफ़ोर्म भी नहीं कर पायेगी ।

यह सब सोचते हुए न जाने कब आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला । सुबह आँख खुली तो देखा काजल और नाजमा दोनों नहा धोकर तैयार बैठी हैं लेकिन हिना अभी तक सो रही थी । “उठ गयी शुभी तू ? चल अब जल्दी से नहा धोकर तैयार हो जा, फिर नाश्ता करके सर थोड़ी देर रिहर्सल कराएंगे ।“ नाजमा ने शुभी से कहा ।

“हाँ उठ रही हूँ बहन,। उसके सिर में बहुत भारीपन था। चाय पीने की इच्छा भी हो रही थी और रात की बातें जो सुनी थी वे भी मन में उथल पुथल करने में लगी हुई थी । इस वक्त ऋषभ तो उसके दिलो दिमाग से निकल गया था और वो अनजानी औरत का दर्द उसकी आँखों में बार बार छलक आ रहा था ।

“अरे क्या हुआ बहन तुझे ? तेरी तबीयत तो ठीक है न ? आँखें देखो कितनी लाल हो रही हैं ? क्या रात को नींद नहीं आई सही से ?” नाजमा थोड़ा चिंतित होते हुए बोली ।

“ठहरो ठहरो, इतने सारे सवाल एक साथ ! मैं ठीक हूँ तू चिंता न कर, बस एक कप चाय मिल जाये तो सिर में थोड़ा हलकापन आ जायेगा ।” शुभी ने कहा ।

“चाय तो नाश्ते के साथ ही मिलेगी बहन, अच्छा देखती हूँ शायद बाहर कहीं से मिल जाये तो तेरे लिए एक कप चाय ले कर आती हूँ ।“ नाजमा बोली ।

मेरे कुछ भी कहने से पहले ही वो जा चुकी थी ! इसे एक बार कुछ कह दो फिर यह वो काम कैसे भी पूरा करे लेकिन कर के ही रहेगी । सर के साथ भी यही सब करती है । हमेशा उनके सारे काम देखती है और पूरी ज़िम्मेदारी से निभाती भी है।

थोड़ी ही देर में वो एक काँच के गिलास में चाय लेकर आ गयी थी ! चाय का गिलास उसे पकड़ाते हुए बोली, “ले पहले यह चाय खत्म कर ले फिर बता तुझे कैसा लग रहा है ?”

“हाँ नाजमा ! वैसे तुम परेशान मत हो, मैं ठीक हूँ ।”

“हाँ तू तो ठीक ही है लेकिन मुझे लगता है कि अगर तेरी जरा भी तबीयत खराब हो तो फौरन डाक्टर को दिखा देना चाहिए क्योंकि कहीं ज्यादा न खराब हो जाये फिर हम सब परेशान हो जाएँगे ।“

“ओफफो कितना परेशान होती है बेकार की बात पर चिंता करके ।”

“बहन, यह न तो बेकार की बात है और न ही बेकार की परेशानी ! चिंता सिर्फ इस बात की है कि आज का प्ले अच्छे से हो जाये और सब सही रहें ।”

“हम्म ...तो यह सब प्ले का चक्कर है ।“ उसके चेहरे पर मज़ाकिया मुस्कान थिरक गयी।

“हाँ, तेरे से ज्यादा इस वक्त मुझे प्ले की फिक्र है क्योंकि जिस काम के लिए हम यहाँ आये हैं वो काम तो सही से तरीके से पूरा होना ही चाहिए न ?”

“हाँ यह भी सही कहा तुमने, चलो अब मैं फ्रेश होकर जरा बाहर घूम कर आती हूँ, थोड़ी ताजी हवा लगेगी तो सिर का भारीपन खत्म हो जायेगा ।”

वैसे उसका बाहर जाने का एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह से उस रात वाली महिला से एक बार मिल लिया जाये ।

उसे पता था कि अगर वो कुछ पाने की या जानने की कोशिश करेगी तो जरूर उसकी तह तक पहुँच जायेगी ! हालांकि अभी समय कम है क्योंकि रिहर्सल के लिए समय देना है और आज ही परफ़ोर्मेंस भी करनी है,,चाय पीने से सिर का भारीपन थोड़ा कम हुआ था और उस औरत से जाकर मिलना है, उसके बारे में जानना है, इस बात को सोचकर अभी बिल्कुल सही हो गया लग रहा था ।

जल्दी से नहा कर वो तैयार हो गयी थी । यह देखकर नाजमा ने उसे टोंका, “क्यों भाई क्या बात है आज तो बड़ी जल्दी रेडी हो गयी और चेहरे पर यह मनमोहक मुस्कान आखिर क्या राज है, मुझे भी तो पता चले ?”

“हम्म तुम्हें तो हर बात ही पता रहती है ! मैं तुम से कभी कुछ छुपा ही नहीं सकती हूँ ! क्या कभी कुछ ऐसा हुआ है जो मैंने तुम्हें न बताया हो ?”

“नहीं कभी नहीं, पर आज क्यों ?”

“अभी तुम मेरे साथ चलो, सब पता चल जायेगा ।“

“कहाँ चलना है ? पहले सर से पूछ लो ?”

“यही बाहर तक ही तो जाना है, कहीं दूर थोड़े ही न ।”

“लेकिन कहाँ यार ?” नाजमा थोड़ा चिड़चिड़ाई ।

“तुम चलो तो सही ।“

“मैं सर को बिना बताए कहीं नहीं जाऊँगी ।“

“कितना डरती है तू उनसे ?”

“हाँ मैं सच में उनसे बहुत डरती हूँ ।” नाजमा ने कहा ।

“क्यों डरना भला ? हम कोई गलत काम तो कर नहीं रहे हैं न,,आखिर सर भी तो एक इंसान ही हैं कोई जानवर तो हैं नहीं, जो हम उनसे ड़रें ?” शुभी ने उसे समझाया ।

“हाँ सही है, पर मैं उनकी इज्ज़त करती हूँ इसलिए शायद डरती हूँ ।”

“ओफफो, मुझे तेरी बातें समझ नहीं आती हैं, खैर चलो अभी पहले जल्दी से पाँच मिनट के लिए मेरे साथ चलो फिर आकर सर से बात कर लेंगे । तू मेरे ऊपर डाल देना हर बात, अगर सर कुछ कहते हैं तो,,ठीक है न ?” शुभी ने कहा ।

“तू बहुत जिद्दी है शुभी ।”

“हाँ वो तो मैं हूँ ही ! तुझे आज पता चली यह सब बातें ?”

“मज़ाक मत कर मुझे डर लग रहा है लेकिन तेरी बात भी माननी है और तेरे साथ भी जाना है ।”

“हाँ देख, यह हुई न बात ।”

शुभी नाजमा का हाथ पकड़ कर उसे जल्दी से बाहर खींचती हुई ले आई ! हर तरफ भीड़ भाड़ वाला माहौल था जबकि अभी सुबह के 9 बज रहे थे। शायद यह जगह मेन मार्केट में थी इसलिए भी इतनी भीड़ हो सकती है ।

“यार अब तो बता दे, मुझे यहाँ पर क्यों लेकर आई है ?”

“बस अभी सब पता चल जायेगा।“

मैं उस घर को कैसे ढूँढ पाऊँगी जहां से रात को रोने और चीखने की आवाजें आ रही थी ! उसने मन में सोचा ।

अभी मुश्किल से थोड़ा ही दूर गए थे कि रात को जो पुरुष बोल रहा था उसी के बोलने की आवाज सुनाई दी ! इस आवाज को तो मैं कभी भी नहीं भूल पाऊँगी इतनी गहराई से दिल में उतर गयी हैं वे कल रात की बातें । शुभी ने सोचा ।