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बेपनाह - 6

6

यूं ही तो कोई बेवफा नहीं होता कोई न कोई मजबूरिया रही होगी ! शुभी ने सोचा।

“शुभी यार,मुझे माफ तो कर दो, तेरा गुनहगार हूँ मैं ! मैंने गलत किया था खुद को सजा देने के लिए लेकिन अनजाने में मैं तुम्हें ही सजा दे गया ।“

“चलो अभी हम इस बात को यहीं पर खत्म करें ! यह शाम जो इतने दिनों के बाद मिली है क्या उसे शिकवा शिकायतों में ही निकाल देंगे ?

यूं ही तो कोई बेवफा नहीं होता कोई न कोई मजबूरियां रही होगी ! शुभी को यह शेर याद आया ।

“ओहह,,मैं भी कितना बेवकूफ हूँ । चलो, कहीं बैठ कर कोफ़्फ़ी पीते हैं ।”

“ऋषभ इस समय कॉफी ? सर यहाँ से कहीं बाहर देने की इजाजत नहीं देंगे ।”

“हाँ यह भी सही है ! मैं तो भूल ही गया था ! चलो मैं बात करता हूँ, उनसे पर्मिशन लेकर तो जा सकते हैं न ?”

“क्या बात करोगे ? बेकार में बात का बतंगड़ बन जाएगा ! अब तो तुम आ गये हो न ? किसी दिन चलेंगे ।”

“हाँ यार, तू सही कह रही है ।”

“सच में, अब कभी कहीं न जाने के लिए आ गए हो, हैं न ?

“हाँ, लेकिन तुम अपना विश्वास कम कभी मत होने देना ।”

“कभी भी कम नहीं होने दूँगी ।”

“पता है, विश्वास खोना सबसे आसान है और विश्वास बनाए रखना सबसे मुश्किल और जिसने विश्वास बनाए रखा, वो दुनिया का महानतम इंसान बन जाता है ।”

“शुभी मुझे दुनिया के लिए महान नहीं बनना है, तुम्हारी नजरों में चमक या खुशी भर दे बस अब मुझे वही काम करना है ।“

कितना प्यारा है मेरा ऋषभ, आखिर मेरा विश्वास जीत गया और ऋषभ फिर से जीवन में खुशियाँ बिखेरने चला आया ! यह उस ईश्वर की ही इच्छा है जो फिर से बहार ले आया ! उसके वो सारे आँसू जो बह बह कर जमीन पर गिरे थे सब महकते हुए फूलों में बदल गए हैं और महक उठे हैं । शुभी यह सोच कर मुस्कुरा उठी ।

“अरे शुभी, किधर सोचने को चली गयी, तेरी तो कुछ समझ ही नहीं आता ! न जाने किस दुनिया में खोई रहती है ! ना जाने किस आसमा में विचरती रहती है ? कभी तो हम धरती वालों पर भी अपनी कृपादृष्टि बरसा दे ! ओ मेरी देवी माँ ।“ शुभी को नाजमा की आवाज सुनाई दी !

“ऋषभ अभी तुम यहाँ से जाओ, नजमा आ रही है ।”

“कौन नजमा ?”

“हमारी सीनियर आर्टिस्ट है ! बहुत तेज है, किसी से डरती नहीं ! मुझे अपनी छोटी बहन जैसा प्यार देती है ।“

“शुभी यह नाजमा है कहाँ मुझे तो दिख नहीं रही है ।”ऋषभ ने पूछा !

“जाओ ऋषभ, यहाँ से जल्दी चले जाओ, हम कल मिल ही रहे हैं न और हमारा प्ले हो जाये तभी हम शहर और आसपास घूमने जाएँगे ! सर से कह कर तुम्हें भी अपने साथ ले चलेंगे लेकिन अभी जाओ ।“

“ठीक है ! मैं अभी चलता हूँ ! कहते हुए ऋषभ ने शुभी को बाहों में भरकर उसका माथा चूम लिया ।“

“ऋषभ तुम भी न, किसी ने देख लिया तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी ! कि यह भैया है या सइयाँ ।”

“शुभी की पूरी बात सुने बिना ही वो निकल गया था ।”

शुभी के गाल खुशी से चमकते हुए लाल हो रहे थे, आज कितने दिनों के बाद उसका मन खुशी से भर गया था, ना जाने क्यों वो इतना प्यार करती है अपने ऋषभ से ? तभी उसकी आत्मा से आवाज आई, क्योंकि वो सच्चा और बहुत प्यारा इंसान है ।

“अरे शुभी, तू यहाँ है और हम तुझे ना जाने कहाँ कहाँ देख आये ? अरे तू इतना घबराई हुई क्यों है ?” नाजमा उसके पास आते हुए बोली ।

कहीं इसने मुझे ऋषभ के साथ बात करते हुए तो नहीं देख लिया । शुभी यह सोच कर घबरा रही थी ।

“क्या हुआ भाई ? कोई खुद के साथ बातें करता है क्या ? अरे हाँ हाँ पागल करते हैं और तू किसी पागल से कम थोड़े ही न है ।” यह कहते हुए नज़मा बड़े ज़ोर से ठट्ठे मार कर हंसी । “अब अंदर चल ! यहाँ कितनी ठंड हो रही है और सर अभी रिहर्सल भी करा रहे हैं।“

“ओहह, रिहर्सल ? अब तो मेरी डांट पड़ेगी ।”

“नहीं नहीं ! अभी तो वे व्वायज के साथ हैं ।”

“हम्म फिर ठीक है ! चल नज़मा चलो अंदर ही चलते हैं ! शुभी चौंकते हुए ऐसे बोली मानों नींद से जाग गयी हो ! वैसे देखा जाये तो वो इतने दिनों से नींद में ही तो थी मानों किसी खुमारी से भरी हुई ! ऋषभ को डिप्रेशन हुआ था लेकिन वो मुझे क्यों डिप्रेशन में डाल गया क्या उसे सब पहले ही नहीं बताना चाहिए था, अपने हमेशा अपने ही रहते हैं वो यह बात कैसे भूल गया ! खैर उसने अपने सिर को उन ख्यालों से झटका और नाजमा का हाथ पकड़ कर अंदर जाने लगी, तभी सामने से सर आते दिखे, कहाँ घूम रहे हो तुम दोनों ? चलो अभी रिहर्सल कर लो क्योंकि रात तो हमारी है और कल हमारा प्ले मंचित होगा, प्रयोजक पता नहीं कौन सा समय दे दें ! क्यो ठीक है न शुभी ?” वे शुभी से मुखातिब होते हुए बोले ।

“जी-जी हाँ सर, आप सही कह रहे हैं अगर अभी मतलब आज रात को तैयारी कर लेंगे तो फिर कल के लिए बेफिक्र हो जाएँगे फिर सर कोई भी समय दें फर्क नहीं पड़ेगा । शुभी बोली ।

“वेरी गुड, यही तो मैं भी कह रहा था लेकिन तुम्हें कहाँ परवाह है । मजे में यहाँ अकेले घूम रही हो ! बेटा यह अंजान जगाह है और शाम का समय भी है, ध्यान रखो ! बेटा तुम मेरी जिम्मेदारी हो तुम ।” सर ने समझाया ।

“जी सर !” शुभी ने अपनी नजरों को झुकाते हुए कहा ।

अभी तक सहमी सहमी हुई सी नाजमा अब मुस्कुराने लगी थी और सर की डांट के बाद शुभी अपनी गलती को महसूस कर रही थी । सर सही ही तो कह रहे थे लेकिन वो तो ऋषभ के प्यार में फिर से इस कदर दीवानी हो गयी है कि कुछ समझती ही नहीं ! क्यों नहीं समझती कि प्रेम सिर्फ एक छलावा मात्र ही है ! पर ऋषभ ऐसा नहीं है वो कभी छल नहीं कर सकता कभी भी नहीं, वो अपना विश्वास कभी कम नहीं होने देगी ।

“यहाँ पर मौसम थोड़ा ठंडा होने गया है इसलिए गरम कपड़े पहन लेना ! शुभी तुम लेकर तो आई हो न ?” सर ने पूछा ।

“अरे शुभी, सुन नहीं रही क्या ?” नजमा में उसके हाथ को हिलाते हुए कहा ।

“हाँ हाँ मैं सुन तो रही हूँ । कितनी ठंडी हवाएँ चलने लगी हैं, है न ?”

अरे जो सर ने कहा कि गरम कपड़े लाई हो या नहीं ? नाजमा उसे टोंका ।

“शायद मैं कुछ नहीं लाई हूँ !” शुभी बोली ।

“हाँ भला, तू कैसे कुछ लाएगी ! तुझे खुद का तो होश नहीं है और न ही अपने आसपास का ।”

सर नाजमा की बात सुनकर हंस दिये, नाजमा भी मुस्कुरा दी ।

कितना अधिकार जताती है लेकिन निभाती भी है इसलिए शुभी को उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं लगता ।

“क्यों रखूँ मैं अपना ध्यान, तू है न मेरे साथ ।”

“हाँ, मुझे पता था इसलिए मैं दो स्वेटर रख लाई थी । मैं ही दे दूँगी ।”

सर बहुत तेजी से चलते हुए आगे निकल गए थे और वे दोनों धीरे धीरे चलते हुए हाल में पहुँच गये वहाँ सब लोग बैठे हुए थे । सर के अंदर आते ही उन लोगों की बातें बंद हो गयी थी । एक किनारे से बैठे हुए करन और अंकित चने मूँगफली खा रहे थे, काजल और आलिया भी आपस में बातों में मगन थी इसी तरह 20,25 लोगों का ग्रुप सर के न होने से मजे कर रहा था । यह बहुत बड़ा सा हाल था जिसमें पर्दे लगाकर कमरे जैसा लुक दिया गया था । बराबर वाले हॉल में शायद उड़ीसा से आए हुए लोग थे वे ड्रम बजाकर उड़िया गाने गा रहे थे ।

“उफ़्फ़ कितना शोर है मुझे लगता है यहाँ पर हम लोग सही से रिहर्सल नहीं कर पायेँगे सर !” सर के हॉल में अंदर आते ही करन जल्दी से बोल पड़ा ।

“क्यों नहीं कर पायेंगे यह लोग तो अभी अपने कमरों में चले जाएँगे ।”

“जी सर ! मुझे अपनी ही कही बात पर शर्मिंदगी सी महसूस हुई ।”

“अब सभी लोग थोड़ी देर शांत हो कर अपना दिमाग रिहर्सल में लगा लो !” मनीष भाई ने सबको चुप रहने का इशारा करते हुए कहा ! सर के हरेक काम को मन से करने वाले मनीष भाई के ऊपर ही मैनेजमेंट की सारी ज़िम्मेदारी थी । वे बखूबी हर काम को ईमानदारी से निभाते भी थे ।

“ओ शुभी दाँत अंदर करके और अपना मोबाइल स्विच ऑफ करके जरा शांति से बैठ जाओ !” मनीष भाई ने डाँटते हुए कहा ।

मैंने तो कुछ कहा भी नहीं फिर मुझसे क्यों कह रहे हैं,मतलब मुझे लपेटना जरूरी है ! क्या मेरे सिवाय किसी को कोई और नहीं दिखता है ।

मैं कुछ नहीं कहती, उनकी हर बात हंस कर जो टाल देती हूँ ! चलो कोई नहीं अपना समझते हैं तभी कुछ कहते हैं ।

“तू नाराज हो गयी, जो ऐसे मुंह बनाकर बैठ गयी ?” वे उसके पास आकार बोले ।

“नहीं तो भाई ! आपसे भला क्यों नाराज होंगे ।”

“ठीक है फिर ।”

“रिहर्सल शुरू हो गयी थी ! ये नाजमा तुझे कितनी बार बताना पड़ेगा ! एक बार में सब समझ जाते हैं, सिर्फ तुझे छोडकर !” सर ने उसे डांटते हुए कहा ।

सही ही तो कहा ! एक ही बात बताते और समझाते हुए पूरा महीना निकल गया और इसे वही गलती बार बार दोहराना होती है और स्टेज पर एकदम से परफेक्ट कर आती है ।

वो चुपचाप खड़ी रही ! “अब करोगी भी या फिर बताना पड़ेगा।” सर फिर भड़के ।

“हाँ हाँ कर रही हूँ !” वो घबराती हुई बोली ! सच में इसकी बड़ी डांट पड़ती है ! क्या पता यह जानबूझ कर गलती करती हो । शुभी ने मन में सोचा लेकिन जानबूझ कर भला क्यों करेगी ?शायद इसलिए कि लोग उसे तवज्जो दें ।

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