बेपनाह - 3 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 3

3

जिंदगी बेरौनक़ सी लगने लगी, किसी और काम में मन ही नहीं लगता । अब वो चाहती थी कि कोई ऐसा काम करे जिससे निरंतर व्यस्तता बनी रहे । वो एक क्षण को भी खाली नहीं रहना चाहती थी क्योकि जरा सी देर भी खाली रहना मतलब खुद को दर्द के साये में धकेल देना और यह दर्द इतना असहनीय सा लगता कि जान निकलती, आँखों से आँसू बहते और लगता कि कोई जिस्म से जान खींचे लिए जा रहा है । उसके दिल में ऋषभ ने अपना कब्जा जमा लिया था जो बात बात पर उसकी याद दिलाता, इतनी दूर जाने के बाद भी वो अभी तक उसके दिल पर उतने ही अधिकार के साथ काबिज था। जिंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर घिसटने लगी थी । काम तो कई मिल रहे थे लेकिन उन कामों में से कोई भी उसके मन का काम नहीं था और बेमन से किए गए काम में न तो मन लगता है और न ही उसे सही से किया जा सकता है । करीब एक महीना यूं ही निकल गया था कि एक दिन अचानक सर का फोन आया । “शुचि, क्या तुम प्ले को करने के लिए शहर से कहीं बाहर भी जा सकती हो ?”

अंधा क्या चाहे दो आँखें, उस ने मम्मी से कुछ कहे सुने बिना ही हाँ कर दिया ।

“हाँ सर मैं चलूँगी !” शुभी एकदम से बोल पड़ी ।

“पहले घर में सबसे पूछ लो, फिर आराम से बता देना, ऐसी कोई जल्दी नहीं है ।“ सर बोले ।

“सर घर में सिर्फ मेरी माँ है और मैं उनको मना लूँगी इसलिए मेरी तो हाँ ही समझिए।“

“थैंक्स बेटा, काम के प्रति तुम्हारा इतना समर्पण देख मुझे बहुत खुशी होती है । मुझे तुम पर गर्व है और उससे भी ज्यादा खुशी की बात यह है कि तुम मेरे ग्रुप का सबसे अहम हिस्सा हो।“

उनके यह चंद शब्द उसके अंदर काम के प्रति और भी ज्यादा लगन के भाव भर देते । वो और भी ऊर्जा से भर जाती ।

शुभी के लिए मम्मी को मनाना कोई कठिन काम नहीं था, वे मान गयी थी और उसकी रिहर्सल फिर से शुरू हो गयी।

वही सब लोग और वही प्यारा सा माहौल एक बार फिर से मिल गया था । मन खूब खुश रहने लगा, कुछ हद तक पुरानी यादें जेहन से दूर चली गयी । बस अब खुशी इस बात की थी कि उसे अपने शहर से बाहर की दुनियाँ भी अपने प्यारे साथियों के साथ देखने को मिलेगी । बाहर जाने के लिए तैयारियां शुरू हो गयी थी । संस्था की तरफ से सभी लोगों के टिकट हो गए । जाने के पंद्रह दिन शेष थे कि अचानक से मम्मी की तबीयत खराब हो गयी । डाक्टर ने उन्हें आराम की सलाह दी । अब उसे लगा कि उसका जाना तो केंसिल ही है क्योंकि उसके अलावा मम्मी की देखभाल करने वाला कोई नहीं था और ऐसी हालत में वो अपनी मम्मी को किसी भी कीमत पर अकेला नहीं छोड़ सकती थी ।

वो मन ही मन परेशान होती और उसके चेहरे पर इस बात की छाप साफ नजर आती । रिहर्सल के समय उसे परेशान देख कर उस दिन नजमा ने पूछा, “तुम्हें आजकल क्या हुआ है, बड़ी उदास और परेशान रहती हो ?”

“अरे नहीं नहीं, कुछ खास बात नहीं ।“

“मुझे भी नहीं बता सकती ।“नजमा थोड़ा उदास होते हुए बोली ।

“बहन ऐसा क्यों कहती हो, तुमसे क्या छुपाना, बस यह बात सर को मत बताना, वरना सर नाराज हो जाएँगे ।“ शुभी ने कहा ।

“बता तो सही ऐसा क्या हुआ है और सर भला क्यों नाराज हो जाएँगे ?”

“मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है और उनको डाक्टर ने आराम करने की सलाह दी है । बहन मैं उनको यहाँ अकेला छोडकर प्ले करने के लिए बाहर कैसे जा पाऊँगी और फिर सर नाराज होंगे ।“ शुभी ने उदास शब्दों में कहा ।

“इसमें इतना परेशान होने की कोई बात ही नहीं है बल्कि सर को बताओगी तो समस्या का हल निकल आयेगा ।“

“ठीक है, अगर तू कह रही है तो मैं मौका देखकर सर से बात करूंगी ।“ शुभी बोली ।

बात ही बात में यह बात सर तक पहुँच गयी । वे सुनते ही बोले, “अरे बेटा तुम मुझे गैर समझती हो न ? तुम्हारी माँ यहाँ मेरे घर में आकर रहेंगी, तुम बिल्कुल परेशान मत हो।“

“जी ठीक है ।“ उस ने सर को बोल तो दिया था लेकिन उसे पता था कि अपना घर छोडकर माँ कहीं नहीं जायेँगी फिर भी शुभी को सर के उपर फख्र महसूस हुआ कि आज के दौर में कोई गैर भी इतना ख़्याल रख सकते हैं ।

जैसे जैसे जाने के दिन करीब आ रहे थे, उसे मम्मी की फिक्र सता रही थी । उस दिन वो घर में बैठी इसी सोच में डूबी हुई थी कि अचानक से घर की डोरवेल बजी । कौन हो सकता है ? मन में सोचती हुई शुभी ने जाकर दरवाजा खोल दिया ।

“अरे सर आप ?” सामने सर को देख वो चौंक गयी ।

“क्यों मैं आ नहीं सकता ?” उन्होने उल्टा सवाल कर दिया ।

“अरे क्यों नहीं सर जी, आप आइये न ।“ शुभी अपने दोनों हाथ नमस्ते की मुद्रा में जोड़कर अपना सिर झुकाते हुए कहा ।

“अरे भाई अंदर आने का रास्ता तो दो ?” सर बोले ।

“हाँ हाँ सर आइए न प्लीज,,आइये आइये ।“ वो हड्बड़ाकर दरवाजे से पीछे हटती हुई बोली।

शुभी उनको ड्राइंग रूम में बैठा कर मम्मी को बुलाने उनके कमरे में चली गयी । देखा वे सो रही हैं । मम्मी को जगाने का मन नहीं किया लेकिन उसने उनको हिलाते हुए कहा, मम्मी उठो, देखो मेरे सर आए हैं ।“ यह कहकर उन्हें जगाया और सर के लिए पानी का गिलास ट्रे में रखकर वहाँ पहुंची तो देखा सर वहाँ पर लगी तस्वीरों का बड़े ध्यान से जायजा ले रहे हैं ।

“बेटा यह आपके पापा हैं न ?”

“जी सर ।”

“इनका नाम राजीव सिंह है ?”

“जी हाँ सर ! आप नाम कैसे जानते हैं ?” मानसी ने अचंभित होते हुए कहा ।

“वो इसलिए कि हम साथ में ही पढ़ते थे, इसको पढ़ाई का शौक था और मुझे नाच गाने का । इसलिए यह बड़ा ऑफिसर बन गया और मैं अदना सा कलाकार, यह मेरा पक्का यार था ।“

“ओहह ! सर कलाकार अदना सा नहीं होता है और आप तो महान हैं । सर अब कभी ऐसे मत कहना ।“ शुभी बोली !

“बेटा शुभी ?” मम्मी की बहुत हल्की सी आवाज आई !

“बेटा, क्या हम आपकी मम्मी को देखने उनके कमरे में जा सकते हैं ?”

“सर मम्मी अभी यहाँ आ रही हैं ।“

वे चुप हो गए और मम्मी धीरे धीरे चलती हुई आ गयी । मम्मी वाकई बहुर कमजोर हो गयी थी । शुभी ने उनकी तरफ बड़े ध्यान से देखते हुए सोचा ।

वो दीवान पर बैठ गयी और अपने दोनों हाथ जोड़कर सर को नमस्ते की ।

थोड़ी बहुत औपचारिक बातचीत के बाद सर ने माँ से कहा, “भाभी जी आप निश्चित होकर हमारे घर पर रहें, वहाँ आपको कोई भी तकलीफ नहीं होगी और राजीव तो वैसे भी हमारे बचपन के साथी थे ।“

लेकिन मम्मी अपना घर छोडकर जाने को तैयार नहीं हुई, अतः सर ने अपनी एक सेविका को मम्मी की देखभाल करने के लिए उस के घर पर छोड़ देने के लिए मम्मी को मना लिया । मम्मी के मान जाने से अब वो टेंशन फ्री हो गयी थी ।

जाते समय सर एक लिफाफा उसे पकडाते हुए बोले, “बेटा किसी चीज की कोई भी परेशानी हो तो मुझे बताना ?”

“नहीं सर, कोई भी परेशानी नहीं है ।“ उसने लिफाफा को लेने से मना करते हुए कहा ।

“बेटा तुम्हारे पापा का मित्र होने के नाते क्या तुम मुझे मेरा फर्ज नहीं निभाने दोगी ? लो यह पैसे रख लो ।“ वे बड़े अधिकार पूर्वक बोले ।

उनकी बात का मान रखते हुए उसने वो पैसे रख लिए और उनको बाहर तक छोडने गयी । वे अपनी बड़ी सी कार से आए थे उन्होने कार की डिक्की खोलकर उसमें से फल की एक पेटी ड्राईवर से निकलवाई और उसके मना करने के बाद भी घर के अंदर रखवा दी ।

“बेटा यह आपकी मम्मी के लिए हैं अभी आप उनका ध्यान रखो ।“ सर ने बड़े प्यार से कहा !

शुभी असमंजस में पड़ गयी, क्या आज के दौर में कोई इस तरह से निस्वार्थ भाव भी रखता है ? उसे समझ नहीं आ रहा था कि सर उसको इतना मान सम्मान और प्यार क्यों दे रहे हैं क्योंकि प्ले के लिए तो और भी लड़कियां मिल जाती, किसी और को अपने साथ ले जाते । उसने इतना अच्छा और प्यारा व्यवहार आज तक किसी का नहीं देखा था । सच मे आज वो बहुत खुश थी कि जब हर आस टूट जाती है तब कोई न कोई सहारा बनाकर भगवान जरूर भेज देता है और वो आकर हमें हर मुश्किल से बाहर निकाल लेता है ।