बेपनाह - 4 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 4

4

उसकी सारी चिंताएँ लगभग खत्म सी हो गयी थी, अब वो बेफिक्र होकर प्ले में जाने की तैयारी कर रही थी । निश्चित दिन सब लोग निकल गए । उसके घर में सर ने अपनी एक सेविका भेज दी जो उनके घर में हर समय रहती थी । अब वापस आने तक वो सेविका दिन रात उसके घर में मम्मी के साथ ही रहेगी । वो मम्मी की हमउम्र थी और मम्मी को उसके साथ अच्छा लगेगा यह सोचकर शुभी थोड़ा बेफिक्र और खुश थी क्योंकि अब कहीं भी जाने में कोई परेशानी नहीं थी ।

आज पहली बार अपने होश में इतनी दूरी का ट्रेन का सफर कर रही थी । यह सफर उसकी जिंदगी का बेहद खूबसूरत सफर था । न जाने यह कैसी खुशी थी जो उसके भीतर से आ रही थी ।

उसे ऊपर वाली बर्थ दी गयी थी । उसके सामने वाली सीट पर नजमा थी । शुभी अपनी पानी की बोतल लेकर ऊपर आकर बैठ गयी परंतु नाजमा सब लोगों के साथ बैठ कर मस्ती कर रही थी । बातें, अंताक्षरी, गेम । सब मजे कर रहे थे और वो सीट पर लेटी न जाने किन ख्यालों में खोई हुई थी । उसे लग रहा था जैसे वो सफर में नहीं बल्कि मंजिल की तरफ बढ़ रही है । कभी कभी ऐसा ही होता है कि हर बात का हमें अंदाजा हो जाता है । इस समय उसे ऋषभ की बेसाख्ता याद आई और उसकी आंखे नमी से भर गयी । उफ़्फ़ क्यों आता है वो मुझे याद ?

उसने अपना सिर झटका । चलो मम्मी से बात कर लूँ । यह सोचकर फोन निकाला तो देखा उसमें अननोंन नंबर से कई मिस काल पड़ी हुई थी । अरे यह किसका फोन नंबर है?

किसी अंजान फोन नंबर पर बात करने का मन नहीं था लेकिन फिर ख्याल आया कि कहीं कोई जरूरी न हो ! असमंजस में थी कि उसी नंबर से फिर से काल आ गया । उसे लगा कि कहीं मम्मी की तबीयत न खराब हो यह सोचकर फौरन फोन उठा कर हडबड़ाहट में भरकर बोली, “हैलो ! मम्मी ठीक हैं न ?”

“हैलो ।“ उधर से पुरुष स्वर गूंजा ।

“जी आप कौन ?”

“मैं ऋषभ ।“

उसे ऐसा लगा कि फोन उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर जाएगा । मैं ऋषभ ! मैं ऋषभ ! मैं ऋषभ ! मैं ऋषभ ! यह आवाजें लगातार उसके कानों में गूंजने लगी ।

“हैलो !” उधर से फिर आवाज आई ।

“जी !” उसके मुंह से कोई आवाज निकल ही नहीं सकी ।

“कैसी हो ?”

“ठीक हूँ ।“

“कहाँ हो ?”

“मैं रास्ते में हूँ ।“

“रास्ते में ?”

सच ही तो था वो मुझे आधे रास्ते में छोडकर चला गया था ! मेरा मन भटका गया था या मैंने ही उसे छोड़ दिया था टूट कर । शुभी ने सोचा ।

“जी मैं देहारादून जा रही हूँ !” वो बोली ।

“अच्छा, अच्छा ! किसके साथ ? क्या किसी काम से ?”

“जी, मेरे थियेटर के लोगों के साथ ! वहाँ कोंपटीशन में मेरा शो है ।“ शुभी ने कहा ।

“अरे तुम थियेटर कब से करने लगी ?”

वे बिलकुल औपचारिकता पर उतर आए थे ! उनके बात करने के ढंग से लग रहा था जैसे हम रोज मिलते रहे हैं और हमारा रिश्ता अभी भी बिलकुल वैसा ही है ।

“जबसे आप मुझे छोडकर गए, आई मीन आप जबसे मुझे भूल गए ।“

उसकी बात सुनकर उधर से कोई आवाज नहीं आई, शायद उनको शुभी की बात सुनकर तकलीफ हुई थी।

“मैं भूल गया तो तुमने याद क्यों नहीं दिलाया ?” उनकी आवाज कुछ रुंधी रुंधी सी थी।

उसकी आँखों से भी आँसू बह निकले थे ! उसके रोकने के बाद भी यूं ही बह रहे थे और आवाज नहीं निकल पा रही थी ।

“हैलो !” उधर से फिर आवाज आई ।

“जी !”

“चलो फिर बाद में बात करते हैं ।“ कहकर उधर से फोन कट गया !

आज उसे खुद पर ही गुस्सा आ रहा था कि उसने उनके न तो हाल चाल पूछे और न ही उनकी तकलीफ को समझा बल्कि उल्टा उन पर ही ब्लेम लगाने लगी !उसका जी चाह रहा था कि वो अभी इसी वक्त ऋषभ के पास पहुँच जाये और उनके गले से लगकर अपने सारे दर्द बयान कर दूँ ।

“शुभी ऊपर क्या कर रही हो ? आओ नीचे आओ, देखो हम सब लोगों को कितने मजे आ रहे हैं ।“ अलिशा ने उसे बुलाते हुए कहा ।

“हाँ हाँ ! मैं आ रही हूँ ।“ उसका गला रुँधा हुआ था लेकिन खुद को संभालते हुए वो बोली ।

“क्या हुआ तेरी तबीयत तो ठीक है न ?” नाजमा ने उसकी आवाज को भाँपते हुए पूछा।

“अरे हाँ बहन मैं बिल्कुल ठीक हूँ, बस जरा मम्मी की याद आ गयी थी ।“

अब मन की उलझन सुलझ चुकी थी या और भी ज्यादा उलझ गयी थी उसे समझ नहीं आ रहा था ! कितनी मुश्किल से उस ने मन को समझाया था और खुद को व्यस्त किया था ! उस ने अपनी आँखें बंद करके ईश्वर का नाम लिया, हे रब मेरी मदद कर ! हालांकि वो अभी भी उसकी जिंदगी का हिस्सा था लेकिन दबा हुआ पर उसने फोन करके फिर से उलझा दिया ! शायद वो भी पल भर को उसे भुला नहीं पाया था।

“अरे आओ न शुभी, ऊपर अकेले बैठोगी तो मम्मी की ही याद आयेगी ।“ नाज़मा ने पुकारा ।

लो बस आ रही हूँ ! कह कर वो फिर से सोचने लगी । उसके पास मेरा नया नंबर कहाँ से आया, यह तो कुछ समय पहले ही बदला था ! वैसे जिसे खोजना होता है शायद वो पताल से भी खोज निकालता है और जिसे भुलाना होता है वो चाह कर भी याद नहीं कर पाता है ! उसे तो खुश होना चाहिए कि वो आ गया है, वो लौट आया है वापस, लेकिन मानव मन है न जितना मिलता है वो उसमें संतुष्ट कहाँ होता है ? कुछ और, कुछ और अधिक की पाने चाह ! बस यही सब बातें इंसान को बेचैन किए रहती है ।

शुभी सबके साथ आकर बैठ गयी थी, सब लोग अंताक्षरी खेलने का प्लान कर रहे थे लेकिन वो तो उसमें खोई हुई थी जिसे भूलने के लिए और दूर जाने के लिए उसने थियेटर जॉइन किया था ।

“चल कोई भी “म” से गाना गाओ शुभी ।“ नजमा उसे हिलाते हुए बोली ।

“हम्म,, तुमने क्या कहा नाजमा बहन ?” शुभी चौंकते हुए बोली ।

“अरे कहाँ खोई हुई है, सुना नहीं तूने म से गाना गाओ ।“

“वो माँ !”

“क्या हुआ माँ को ? वे घर में ठीक हैं ? तू इतनी चिंता क्यों कर रही है ?

“हाँ हाँ, वे ठीक हैं ।“

“अरे इसे रहने दो यह न जाने कहाँ खोई हुई है ? तू गा अलिशा !” नजमा ने झींकते हुए कहा ।

सच मे वो फिर से खो गयी थी, उसे गाने का मन नहीं कर रहा था, वो उदास थी जबकि वो खुश होना चाहती थी ।

क्यों आ गया ? कैसे आ गया ? क्या हुआ होगा ? न जाने कितनी बातें जो दिमाग मे उथल पुथल मचाए हुए थी ! क्या वाकई उसे सच में याद आई होगी ? क्या वाकई उसे कमी खली होगी ! खैर कुछ भी हो, वो लौट तो आया है ! उसने अपनी आँखें बंद कर ली! उसकी आँखों के सामने वही सब किसी चलचित्र के समान चलने लगा ! वो कितने प्यारे दिन थे, न कोई चिंता थी न कोई फिक्र थी ! हम हमेशा साथ रहते, हरदम जुड़े हुए किसी न किसी तरह से ! वे कितना चाहते हैं उसे, यह सोचकर ही वो खुशी से भर जाती थी फिर अचानक से न जाने क्या हुआ कि वे एकदम से बदले बदले से लगने लगे, उनका व्यवहार, उनका बातचीत करने का ढंग, सब कुछ अलग अलग सा ।

कहते हैं न, जब हमारे पास खुशियाँ होती हैं तो हम और भी ज्यादा खुशियाँ पाने के लिए लालायित होते हैं और इसलिए भटक भी जाते हैं ! यही सब उसके साथ भी हुआ वो भटक गया ! उसका भटकना शुभी को दर्द से भर गया ! जो बातें पहले खुशी देती थी अब वही बाते उसे दुख देने लगी ! कभी वो सिर्फ हँसना ही जानती थी, अब तो हँसना ही भूल गयी थी और आज उसका यूं आना वो समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिएक्ट करे ? क्या उसे फिर से पाना चाहुंगी ? दिल क्या चाहता है ? इसी उधेडबुन में ही उसका पूरा सफर गुजर गया था ! देहरादून के स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहले शुभी की नजर उस पर पड़ी । अरे इसको कैसे पता चला ? मन में खुशी की लहर सी आई । अरे चाहने वाले सब जानते हैं ! वे सब जान जाते हैं, उन्हें सिर्फ खुद का ही नहीं पता होता है लेकिन उसकी हर बात पता होती है जिसे वे चाहते हैं, जो दिल में अपने पूरे अधिकार के साथ बसा होता है।

क्या कहकर इसको सबसे मिलवाउंगी ? उसके मन में यह सवाल उठा ।

“हैलो, एवरीवन मैं ऋषभ ।“ शुभी के सोचने से पहले ही वो सबसे आकर बोल पड़ा ।

“जी नमस्कार !” सर ने शिष्टता के साथ उससे नमस्ते की ।

“सर मैं ऋषभ हूँ, शुभी का कज़िन ! यहाँ पर मेरा घर है ! आप लोगों को अगर यहाँ पर कोई भी परेशानी हो तो आप सभी का मेरे घर में स्वागत है !” वे बड़े आत्मविश्वास के साथ बोल रहे थे ।

“शुक्रिया भाई ! अगर जरूरत पड़ी तो जरूर बता देंगे ।“

“हाँ हाँ जरूर बताएं, मुझे खुशी होगी ।“

“शुभी आप अपने भाई के घर रहोगी या हम लोगों के साथ ? सर ने उस से सवाल पूछा ।“

“अरे सर, हम तो आप सब लोगों के साथ ही रहेंगे, मुझे कहीं नहीं जाना है ।“ शुभी बोली ।

ऋषभ को उसने अपनी तरफ बड़े ध्यान से देखते हुए पाया लेकिन न जाने कैसी हिचक थी कि उससे बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई ।

“शुभी कैसी हो ? घर में सब ठीक तो है न ?” ऋषभ उसकी परेशानी को या नाराजगी को समझ स्वयं ही बोल पड़ा था ।

“हाँ सब सही है ! आपसे बाद में बात करती हूँ ! वैसे आप हमारा प्ले देखने आइयेगा !” शुभी ने कहा ।

“ठीक है आऊँगा !” कहते हुए वो मुस्कुरा दिया ! वही प्यारी मुस्कान, कितना प्यारा लगता था वो उसे मुस्कुराता हुआ, वो उसकी मुस्कान पर जान देती थी, उसे बीते पल याद आ गए ! मन अभी भी दुविधा में था कि क्या वजह हो सकती है इनके यूं जाने की और फिर अचानक से वापस लौट आने की, शायद अब रह नहीं पाया होगा ? खैर क्या करना, ईश्वर जो करेंगे अच्छा ही करेंगे । यह सोचते हुए उसने अपने मन को उसकी तरफ से हटाने का प्रयास किया ।