बेपनाह - 17 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 17

17

“चल ठीक है अभी खाना क्या खाएगा बता दे ?”

“हम लोगों ने अभी ढाबे पर खाया है, शुभी को तेज भूख लग रही थी।“

“मतलब खाना नहीं खाना है ।” वो थोड़ा गुस्से से बोले ।

“कल शाम को बना कर रखना यही आकर खाऊँगा ।“

“चल कोई नहीं ! तुम दोनों के सोने का इंतजाम कर देते हैं ।”

दोनों कमरों में बेड पड़े हुए थे ! एक में उसकी पत्नी, उसकी बेटी और शुभी सो गए दूसरे में ऋषभ और उसका दोस्त ।

सुबह जल्दी उठना था इसलिए शुभी तो लेटते ही सो गयी लेकिन ऋषभ न जाने कब तक बातें करते रहे।

सुबह जब तैयार होकर कार में बैठी तब काफी अच्छा मौसम हो रहा था ! ठंडी हवाएँ भी चल रही थी और सूर्य देव भी अपने तेज के साथ चमक रहे थे ।

“रात को अच्छे से नींद आ गयी थी शुभी तुझे ?” ऋषभ ने शुभी से पूछा ।

“हाँ मैं तो लेटते ही सो गयी ! बहुत अच्छी नींद आई थी।“

“मैं तो देर तक अपने दोस्त से बातें करता रहा था।”

“तुम्हारी नींद पूरी नहीं हुई होगी ?”

“नहीं ऐसा नहीं है ! मैं सो गया था ।”

“ऋषभ कल तुम कह रहे थे न कि कोई लड़की आ गयी थी तुम्हारी लाइफ में ?

हाँ आ तो गयी थी न जाने कैसे मुझ पर कब्जा सा कर लिया था और मैं फंस गया जबकि मैं सिर्फ तुम्हें चाहता हूँ, प्यार करता हूँ, कल आज और हमेशा करता रहूँगा, मेरे दिल में सिर्फ तुम ही हो।”

“अब तुम सफाई क्यों दे रहे हो जो हुआ सो हुआ अब पिछला भूल जाओ और अगला याद रखो ।“

“लेकिन वो गलत था सब गलत ! मेरी तो जान पर बन आई थी मैं किससे कहती तुम्हारी गलतियाँ या वे दुख जो तुम मुझे उपहार में दे गए थे।”

“यार मुझसे गलती हुई थी, माफ कर दे ।“

“सुनो ऋषभ जो तकलीफ तुमने दी वो मेरी जान ले रही थी ! मैंने मरना भी चाहा लेकिन मुझे तुमसे मिलना था तो मैं बच गयी ।”

“मैं भी तो कैसे ही बच गया हूँ, न जाने कहाँ प्राण अटके हुए थे शायद हमें मिलना था ।”

“हाँ सही कहा ! कहते हैं न,, होहिए सोही जो राम रची राखा।”

“लेकिन यार मैं उस घटना को भुलाए नहीं भूलता हूँ कि मैं इतना समझदार होकर भी कैसे उसकी बातों में आ गया और उसके झूठे प्रेम जाल में फंस गया।”

“हो जाता है ऐसा लेकिन तुम्हें मुझसे यह सब बातें शेयर कर लेनी चाहिए थी तुम मुझसे न कहकर खुद ही अकेले घुटते रहे, सहते रहे और डिप्रेशन का शिकार हो गए, अगर कहा होता तो हम दोनों ही सुखी होते।”

“मैं डर गया था, मैं तुम्हें किसी कीमत पर खोना नहीं चाहता था और मुझे ऐसा लग रहा था कि अगर मैंने तुम्हें सच बताया तो तुम मुझसे नफरत करने लगोगी ! तुम मुझे प्रेम करती हो ऐसे में तुम्हें दुख कैसे दे सकता था ? कैसे उस गंदे सच को तुम्हें बता देता ! तुम्हारी नजरों में गिर जाता फिर मैं जी नहीं पाता ।” ऋषभ के चेहरे पर दर्द के भाव थे ।

“तुम गलत सोच रहे थे अगर सब कुछ सच कहा होता तो हमारे रिश्ते और भी ज्यादा मजबूत हो जाते क्योंकि मैं तुमसे अलग नहीं हूँ ! अच्छा एक बात बताओ ऋषभ, मान लो अगर मेरे साथ ऐसा हो जाता और मैं तुम्हें न बताती तो तुम्हें क्या लगता ?” मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े !

“बहुत ज्यादा दुख शायद बता देने पर थोड़ी देर तकलीफ होती।”

“अब खुद सोच लो ।”

“हाँ यार मैं उस वक्त कुछ कह नहीं पाया ! वो मुझे प्रेम करती है और पाना चाहती है इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार थी ! उसे पता था कि मैं तुम्हारे प्यार में हूँ फिर भी न जाने क्यों मुझे लूटने आ गयी !” यह कहते हुए ऋषभ फफक कर रो पड़े ।

“गाड़ी रोको ऋषभ ! उसके सिर पर अपना हाथ फिराया ! गाड़ी एक साइड में करके वो उसके कंधे पर अपना सिर रखकर रोने लगा ! जब हम रो रहे होते हैं तब हम सबसे ज्यादा कमजोर होते हैं ! हमारा सारा शरीर बेजान सा हो जाता है !

“चुप हो जाओ ऋषभ मैं सब समझ रही हूँ अब तो हम मिल गए हैं, हमें खुश होना चाहिए फिर यह रोना धोना क्यों ?”

“यार वो मुझे बर्बाद कर के चली गयी, हजारो रुपए खर्च करा दिये मेरे और मैं मूर्ख उसे अपना समझता रहा ।”

“तुमने अपनी गलती मान ली तो अब बात खत्म करो ! बहुत रोई हूँ मैं, अब यूं तुम्हारा रोना मुझे अच्छा नहीं लगता ! चुप हो जाओ प्लीज।” “हाँ मैं समझ रहा हूँ मैंने गलती से जिसे अपना समझ कर पालता रहा वो चली गयी और जिसे गैर समझा वो अडिग सच्चाई के साथ मेरे साथ खड़ी है।” उनके आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ।

“मैं तुम्हारी ही हूँ कोई गैर नहीं हूँ, मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ी रहूँगी।”

तुम सच हो शुभी, कल भी थी आज भी हो और हमेशा रहोगी !

उनके रोते हुए चेहरे को शुभी ने अपनी हथेली में लेकर माथे पर चुंबन ले लिया !

मैं तुम्हें रोता हुआ नहीं देख सकती ! तुम कमजोर नहीं हो ! सुनो आज के बाद न इस गलती को कभी दोहराना और न ही कभी याद करना ! भूल जाओ ऋषभ, प्लीज भूल जाओ ! जो बात या जो चीज आपको दुख या कष्ट दे उसे भूल जाना ही बेहतर है ! एक बात याद रखना ऋषभ कि गलती सिर्फ एक बार ही होती है !

मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ इसलिए तुम्हें स्वीकार कर लूँगी लेकिन तुम कभी मेरे विश्वास को मत तोड़ना, कभी मेरे प्रेम का अपमान मत करना । जब विश्वास टूटता है तब बहुत दुख होता है, मरने से भी भयंकर दुख जिसे कहा नहीं जा सकता है सिर्फ महसूस कर सकते हैं।”

“मैं शर्मिंदा हूँ ! समझ नहीं आ रहा कैसे मैं तुम्हें वो परिस्थितियाँ बता सकूँगा !” ऋषभ थोड़ा झेपते हुए बोले।

“क्या जरूरत है यह सब बताने की तुम समझ गए हो न, बस उतना ही काफी है ! शुभी ने कहा।

“यार वो मुझे मूर्ख बना रही थी मेरा फायदा उठा रही थी ! ताज्जुब होता है मुझे कि न जाने क्या हो गया था मुझे उन दिनों ?”

“मैं तुम्हारी बातें सुनकर हैरत में हूँ कि क्या कोई लड़की भी इस तरह से कर सकती थी !”

“आज के दौर में कोई भी कुछ भी कर सकता है, इसमें हैरत की क्या बात है ?

हाँ यह तो सही कहा !” शुभी ने उदास स्वर में कहा !

“अब तू क्यों उदास होती है अभी तो मुझे समझा रही थी और अब खुद ही उदास हो गयी !” ऋषभ ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया था ।

“नहीं यार॰ मैं उदास नहीं हूँ लेकिन मैं तुम्हारी उस मनःस्थिति को सोच कर घबरा रही हूँ कि तुमने कैसे वो सब अकेले झेला होगा ! मैं नहीं जानती थी कि तुम इतने कष्ट में हो लेकिन ऋषभ सुनो, तुम्हें मुझसे एक बार तो सारी बात खुलकर बता देनी चाहिए था।”

“मैं तुम्हें खोने से डरता था ! मेरी एक बात तुम भी सुनो !”

“क्या बोलो ?”

“अगर मैं तुमसे कांटेक्ट नहीं कर पाया तो तुम भी कर सकती थी न !”

“हाँ मैंने सोचा था लेकिन फिर मुझे लगा कि अगर मैं अभी तुमसे बात करूंगी तो तुम मुझे कभी नहीं मनाओगे और मैं चाहती थी कि तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो और तुम मुझे मनाओ।“

“यह बढिया रहा ! तुम्हें कैसे मनाता जब मैं खुद ही अपाहिज बन कर घर के अंदर बैठा हुआ था।”

“अपाहिज ?”

“डिप्रेस्स्ड़ !”

“ओहह हाँ !”

“पुरानी बातों को नमस्कार जी, अभी यह टोपिक थोड़ा ज्यादा लंबा हो गया है ! थोड़ा यहाँ की ताजी हवा खा लो, अपने या फिर मेरे होने का अहसास करा दो ।“

“मैं तुम्हारी हूँ ऋषभ, सिर्फ तुम्हारी ही ! मैं खुद बेहद दुखी और डिप्रेस्ड थी ! आज का दिन मेरे लिए सबसे ज्यादा खुशी का दिन है कि हमारे पुराने दिन लौट आये, हमारा प्यारा वक्त फिर आ गया ! मैं खुश हूँ ऋषभ, बहुत खुश ! आई लव यू ऋषभ ! जब मुझे अपने दिल से आवाज आती सुनाई देती है उस वक्त मेरी खुशिया चौगुनी हो जाती है।“

“सुनो ऋषभ, कल तुमने उस रेस्टोरेन्ट में एक बरगद का पेड़ देखा ?”

“हाँ जो बाहर की तरफ लगा हुआ था ?”

“हाँ वही !”

“क्या था उसमें ऐसा ?”

“वो कितनी शांति से न जाने कितने बरसों से वहाँ पर खड़ा हुआ होगा ! उसकी छांव कितनी शीतल होगी और उसकी लंबी लंबी जटाएँ देखी मानों धूनी रमाए तपस्या में लीन है।“

“हाँ यह सब तो सही है लेकिन तुम कहना क्या चाहती हो ?”

“मैं यह कहना चाहती हूँ कि एक इंसान भी अगर किसी पेड़ की तरह हो जाये तो कितना अच्छा हो मतलब निस्वार्थ ! जैसे पेड़ को कुछ नहीं चाहिए वो सिर्फ देता है, पत्थर मारो तो भी फल दे देता है बस यही कहना था मुझे कि तुम अपना स्वार्थ छोड़ दो ! अपनी खुशी के लिए तुम न जाने कितने लोगों को दुख दे देते हो ! कभी सोचा है खुद के लिए जिये तो क्या जिये ।“

“सच में तुमने सही कहा !”

“सच्ची खुशी तो अपनों की खुशी में होती है न?”

चिकनी काली तारकोल की सड़क पर कार फिसलती चली जा रही थी ! ठंडे हवा के झोंके कार की खुली खिड़की से अंदर आकर कभी उसके बाल कभी उसके गाल चूम जा रहे थे ! हरियाली बढ़ती जा रही थी और शहर के प्रदूषण का राज खत्म होता जा रहा था ! ऋषभ कोई गाना मन ही मन गुनगुना रहे थे !

“ज़ोर से गाओ न मुझे भी सुनना है ।”

“यार पहले यह विंडो बंद कर बड़ी ठंडी हवा है।”

“होने दो कोई बात नहीं ! मैं हूँ न तुम्हारे साथ, तुम्हें बीमार नहीं होने दूँगी।”

“हाहाहा तू क्या कर देगी।”

“जब बीमार पड़ोगे पता चल जाएगा।”

“हा हा हा अब यह जानने के लिए मुझे बीमार होना पड़ेगा।”

“हाँ जी ! कहते हुए वो ज़ोर से खिलखिला कर हंस पड़ी ! कुछ देर पहले जो दर्द भरा माहौल था अब खुशगवार हो उठा था।”

“अभी और कितना दूर है तुम्हारा गाँव ?”

“बस आने वाला है वो देखो दूर कुछ घर दिख रहे हैं न ? बस वही है मेरा गाँव।”

पहाड़ों से घिरी हुई यह सुंदर सी वैली थी, जहां पर ऋषभ का पैतृक घर बना हुआ था ! यहाँ से दूर दूर तक पहाड़ और देवदार ही नजर आ रहे थे ।

“बहुत प्यारा है तुम्हारा गाँव।”

“हाँ मेरी तरह से प्यारा, हैं न ?”

“नहीं यह गाँव ज्यादा प्यारा है।“

“सुनो, मैंने पहले कभी गाँव नहीं देखा, मैं कितनी खुश हूँ पहली बार गाँव आने से बता नहीं सकती।”

“वो तो तुम्हारे चेहरे से दिख रहा है बताने की कोई जरूरत ही नहीं है।”

सड़क से थोड़ा नीचे उतर कर ऋषभ का पुश्तैनी घर था ! कार घर के सामने तक चली गयी थी ! घर में दादी, बाबा और एक कुत्ता ! खूब बड़े बड़े कमरे, खुला हुआ आँगन और खूब सारे फूलों के गमले ! यह सब देख कर मन कर रहा था पहले इन सब के बारे में ऋषभ से सब जानकारी ले ले लेकिन वो तो अपनी बीमार दादी के साथ बातों में लगे हुए थे ! ऋषभ अपनी दादी को कितना प्यार करता है सच में प्यारे लोग सभी से प्यार करते हैं इसलिए उनसे बहुत सारी गलतियाँ हो जाती है।

“दादी तू इससे मिल, यह है तेरी होने वाली पौत्र वधू ।” ऋषभ ने उसको दादी के सामने करते हुए कहा ।