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बेपनाह - 15

15

उस ने अपना सामान ले जाकर गाड़ी की डिक्की में रखा और आगे वाली सीट पर बैठ गयी और ऋषभ ने ड्राइविंग सीट संभाल ली ! एक्सिलेटर पर अपने पैर का द्वाब बनाया और गाड़ी को हवा की तेजी से दौड़ा दिया ।

“ऋषभ कार इतनी तेज गाड़ी मत चलाओ, मेरा दिल पहले से ही घबरा रहा है !”

“क्यों क्या हो गया ? यार मस्त रह, सब सही होगा और मैं हल्की गाड़ी नहीं चलाता ।“ ऋषभ मुस्कुरा कर बोले ।

“थोड़ा तो हल्का कर लो प्लीज ।” उस ने उससे मनुहार करते हुए कहा ।

“कितनी हल्की ? वे मुस्कुराए ।

“80 पर कर लो स्पीड !”

“यार तेरे कहने से मैं 100 कर लेता हूँ इससे कम नहीं, वैसे भी गाड़ी आगे ट्रैफिक में ही फंसनी है ! यहाँ रोड साफ है तो आराम मे चलाने दे न यार ।“ ऋषभ ने उसके गाल पर प्यार से अपना हाथ रखते हुए कहा ।

वो मुस्कुरा दी और दिल की धड़कनों की तेजी कुछ और तेज होने लगी थी ।

उस खाली सड़क को पार करके अब कार ट्रैफिक में फंस गयी थी,,,हल्की आवाज में एफ एम पर गाना बज रहा था ! आँखों में तेरी सूरत है और दिल में बसा है तेरा प्यार सजना,,,

“बहुत प्यारा गीत है किस फिल्म का है ?” उस से रहा नहीं गया तो पूछ बैठी !

“पता नहीं शायद यह किसी अल्बम का है,,,!”

“हाँ यार, किसी अल्बम का ही लग रहा है ! आजकल यह अल्बम और वेब सीरीज आने से बहुत अच्छा हो गया लोगों को हॉल तक जाने की जरूरत नहीं है ! अपना मोबाइल निकालो और मनपसंद चीजें देख लो ।”

“तुमने बिल्कुल सही कहा ! इससे निर्माता का भी फायदा और हमारा भी फायदा।“

“अपना कैसे फायदा हुआ ! पूरे टाइम मोबाइल पर लगे रहो और आँखें खराब करने के साथ लाइट का बिल भी बढ़ाओ ।

ट्रैफिक लाइट अभी भी रेड थी ! तभी कार के पास कई लोग अपना समान बेचने आ गए ! उस में एक छोटी सी बच्ची थी जो रेड रोज बेंच रही थी वो ऋषभ के पास जाकर खड़ी हो गयी ।

क्यों भाई तुझे क्या चाहिए ? ऋषभ ने खिड़की से झाँकते हुए पूछा ।

“सर यह गुलाब मैडम के लिए खरीद लो न ! कितनी सुंदर मैडम हैं इनको आज यह गिफ्ट कर देना ।“ वो बच्ची मुस्कुराती हुए बोली ।

ऋषभ कुछ नहीं बोले, एकदम से शांत बैठे रहे ।

“अगर इनको मेरे से प्यार है तो यह रेड रोज जरूर ले लेंगे नहीं तो नहीं लेंगे।” शुभी ने मन ही मन सोचा ।

तभी ऋषभ ने वो गुलाब खरीद लिया ! अरे मैं तो बस सोच ही रही थी और इन तक मेरी अनकही आवाज पहुँच गयी !

ऋषभ ने अपनी जींस की जेब से 50 रुपये निकाल कर उस लड़की को पकड़ा दिये ! अरे यह आज इस ऋषभ को क्या हुआ जो दस रुपये वाला गुलाब 50 में खरीद लिया ! सबको कम करने का उपदेश देने लगते हो फिर आज यह क्या है ? क्या प्यार में इंसान ऐसा ही हो जाता है ।

“यार देखा वो छोटी बच्ची कितनी प्यारी लग रही थी, भोली और मासूम भी ! तुमने उसकी मुस्कान देखी सिर्फ 50 रुपए में कितना खुश हो गयी थी ! उसके लिए वे रुपए शायद बहुत ज्यादा मायने रखते थे और हमारे लिए सिर्फ 50 रुपए थे।” ऋषभ मुस्कुराये शायद ऋषभ उसके मन की बात समझ गए थे ।

“लो शुभी यह आपके लिए,,,!” ऋषभ ने उसको गुलाब देते हुए कहा ।

“थैंक्स ऋषभ !” वो ज़ोर से मुस्कुरा उठी ।

“अब इस प्यारी मुस्कान के लिए मैं क्या कुछ नहीं कर सकता !” कहते हुए उसने शुभी के माथे पर अपना प्रेम अंकित कर दिया ! उसे शर्म आ गयी और उसने शरमा कर अपनी नजरें नीचे झुका ली । ऋषभ उसे देखते ही रह गए ।

यार गाड़ी आगे बढ़ाओ न। इतनी देर से सब अपने हार्न बजाए जा रहे हैं, क्या ऊंचा सुनते हो या इश्क में इतना खो गए कि खुद का ही होश नहीं रहा ! यह प्यार मोहब्बत घर के अंदर करना तो ज्यादा बेहतर है । बाहर से किसी ने कहा ।

ऋषभ कुछ बोले ही नहीं।

“यार तुम्हें समझ नहीं आ रही कोई बात या लड़की देख कर बौरा गए हो ?” कोई बोला।

“ऋषभ सुन क्यों नहीं रहे ? कोई कुछ कह रहा है !” शुभी ने उसे टोंका !

“हाँ शुभी सुन रहा हूँ यार !”

“तो गाड़ी आगे बढाओ न, देखो बाहर कितनी भीड़ लग गयी है ।“

“अभी चला रहा हूँ पहले इसके मन की गंदगी निकाल लेते हैं, देखे और क्या क्या बोलेगा।”

“सुनो जाने दो इसे, चलो गाड़ी निकाल लो, अभी भी ग्रीन लाइट है, रेड होने वाली ही हैं।” शुभी ने समझाया।

कार फिर से हवा से बात करने लगी थी।

“सुन शुभी, हम यहाँ से अपने पुश्तैनी गाँव तक चलते हैं रात वहीं पर ही गुजारने का सोच रहा हूँ ।“

“ठीक है चलो, पर है कितनी दूर ?” उसने सवाल किया ।

“बस चार घंटे का ही रास्ता है ।”

“चार घंटे ...रात के 10 बज जायेगा और यह इलाका कैसा है ?”

“बिल्कुल साफ सुथरा है लेकिन पहाड़ी इलाका है ।”

“तो फिर संभाल कर ड्राइविंग करना ! वैसे हम यहाँ भी रात को रुक सकते है ।“

“यहाँ रुक कर क्या करेंगे। अभी पहुँच जाएँगे तो रात बच जाएगी और हमारी नींद भी खराब नहीं होगी।“

“हाँ चलो फिर ठीक है !” अब उस ने भी उसकी हाँ में हाँ मिला दी ।

“पहले गाड़ी रोक कर तुम्हें कहीं पर चाय पिलवा देता हूँ ।”

“नहीं ऋषभ, रहने दो प्लीस मैं वैसे भी ज्यादा चाय नहीं पीती हूँ।” वे एकटक नजरों से शुभी को देखे जा रहे थे, कितना प्यार उमड़ रहा था उनकी आँखों से ।

“चाय नहीं पीती हो ?”

“कभी कभार पी लेती हूँ जब ठंड बढ़ जाये और मम्मा जबर्दस्ती करें ।“

“ध्यान से सुनो मेरी बात ! अभी तुम मेरे साथ चल रही हो न, तो तुम्हें मेरी हर बात माननी ही पड़ेगी ।” ऋषभ बड़े प्यार और हक से उसको समझाते हुए बोले ।

“हर बात का क्या मतलब है जनाब ?” शुभी उसे छेड़ते हुए बोली ।

“अब तो बस तुम चलो मेरे साथ, हर बात का मतलब समझ आ जायेगा।”

“रहने दो ऋषभ, मुझ यही पर उतार दो, मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना, मैं वापस अपनी टीम के पास चली जाऊँगी।”

“अरे यह एकदम से क्या हुआ, जो नहीं जाओगी?”

“पता नहीं क्यों मुझे घबराहट हो रही है, वहाँ पर तुम मेरे साथ न जाने कैसा व्यवहार करोगे ?”

“क्यों क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है ? यार मैं तुझे प्यार करता हूँ और तेरी खुशी के लिए ही सब करता हूँ ! तू जैसा कहेगी वैसा ही होगा, अब तो ठीक है न?”

“फिर ठीक है, जैसा मैं कहूँगी वैसा ही होगा न?” शुभी ने मुँह बनाया ।

“हाँ बिलकुल वैसा ही ! देखो अभी 6:30 बज रहे हैं ! मेरे ख्याल से हम ग्यारह बजे तक वहाँ पहुँच सकते हैं लेकिन रात हो जाएगी और इलाका पहाड़ी है तो थोड़ा डर भी लग रहा है क्योंकि तुम मेरे साथ हो।”

“कोई बात नहीं न, अभी तो तुम चलो आगे देख लेंगे ।“ उस ने ऋषभ की हिम्मत बंधाई।

“ओहो क्या बात शुभी ! इतनी ज्यादा हिम्मती कैसे और कब से हो गयी ? तुम पहले तो एकदम नाजुक, छुईमुई सी थी?”

“जब तुम मुझे अकेला छोड़कर गए तभी से मैं थोड़ा मैच्योर हो गयी, क्या करती तुम तो बदल गए थे न?”

“मैं कोई मौसम तो नहीं हूँ जो बदल जाऊंगा और सुनो मैं कभी नहीं बदला न बदलूँगा बस थोड़ा वक्त का सताया हुआ था।“ “अब तो मुझे माफ कर दो यार, अब बार बार वही बात मत करो मुझे दुख होता है।“ ऋषभ उदास स्वर में बोले ।

“ठीक है जी, नहीं करूंगी कोई पुरानी बात ! वो दोहा है न बीती ताही बिसार दे आगे की सुध लेय ! सही है ? लेकिन ऋषभ मैं कितना रोई थी शायद तुम्हें अहसास ही न हो ?”

ऋषभ ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया चुपचाप गाड़ी ड्राइव करते रहे।

गाड़ी फिर से तेज रफ्तार में दौड़ रही थी, रोड भी खाली था, बड़े मजे आ रहे थे। ऐसा लग रहा था, मानों हम आसमा में पंख फैलाये उड़े जा रहे हैं और खुशी से हमारे मन किसी कमल के फूल की तरह खिल गए हो। होठों पर ठहरी हुई मुस्कान हटने का नाम ही नहीं ले रही थी ! सच में खुशियाँ यूं ही तो आ जाती हैं बिन बताए ! चलो चले मितवा इन ऊंची नीची राहों पर,,,,एफ एम पर यह गाना अपनी पूरी लय के साथ सुमधुर स्वर बिखेर रहा था। मौसम थोड़ा ठंडा होने लगा था और फॉग जैसा गिर रहा था।

“शुभी सुन ऐसा करते हैं हम रात में गाड़ी नहीं चलाएँगे,सुबह जल्दी निकल लेंगे अभी मेरे दोस्त के घर चले चलते हैं।”

“कौन सा दोस्त ? कहाँ रहता है ?” वो एकदम से उनसे सवाल कर बैठी ।

“परेशान मत होओ ! मेरा दोस्त सपरिवार रहता है और यहाँ से करीब आधे घंटे का रास्ता है ।” ऋषभ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

शुभी के पूरे बदन में अजीब सी झुरझुरी हुई और मन खुशी से मुस्कुरा उठा कि इसे मेरी परवाह है।

आगे चल रही एक गाड़ी जो हमारे साथ ही चल रही थी कभी आगे, कभी पीछे होते हुए वो सड़क के एक साइड़ में रुक गयी, ऋषभ ने भी गाड़ी रोक ली।

“क्या हुआ चलो न !”

“अरे यह गाड़ी रुकी है तो थोड़ा हम भी रुक कर फ्रेश हो ले।”

“कहाँ पर ?”

“सामने ढाबा नहीं दिख रहा है तुझे ? यार तू भी न बड़ी बहमी हो गयी है।”

वो मुस्कुराइ और ऋषभ के कंधे पर अपना सिर टिका दिया उसने प्यार से बालों पर हाथ फेरते हुए कहा, “चल आ जा जल्दी से चाय पीते हैं ।”

वो एक बहुत ही सुंदर ढाबा था ! एक तरफ से कई दुकानें लगी हुई थी और उसमें अपनी पसंद का कुछ भी खा पी सकते थे ! ऋषभ ने एक टेबल की तरफ इशारा करते हुए कहा, “तुम यहाँ बैठो मैं फ्रेश होकर आता हूँ ।”

“लो पहले चाय पियो ! कभी तुमने कुल्हड़ में चाय पी है ? नहीं न ?” वे चाय लेकर आये और उसे देते हुए बोले, इस समय वो बहुत खुश नजर आ रहे थे ।

“ऋषभ मैं चाय ही नहीं पीती हूँ फिर कुल्हड़ हो या कप ?” वो बोली ।

“अरे यार आज पियो क्या याद रखोगी कि पहली बार चाय पी और वो इतनी बढ़िया ! पता है हमें अपनी जिंदगी में कुछ नया करते रहना चाहिए।”

“ठीक है भाई, पी रही हूँ क्योंकि तुम कहाँ मानोगे और सुनो तुम सही ही कह रहे हो कि जीवन में हमेशा कुछ नया करते रहना चाहिए।“

“मैं हमेशा ही सहीं कहता हूँ जो मान लेता है उसका फायदा ।”

“और जो न माने उसका क्या ?”

“फिर उसकी तो वो ऊपर वाला ही जाने ।”

चाय का पहला सिप लेते ही पता चल गया कि चाय बहुत अच्छी बनी है ! ऋषभ बिल्कुल सही कह रहे थे ।

“तुम तो चाय पीती नहीं हो लेकिन आज एक बार में ही सब खत्म कर दी?”

“हाँ, बहुत अच्छी लग रही थी ! बनी ही इतनी अच्छी थी इसलिए खत्म कर दी।“

“चलो अब मैन्यू देख लो, क्या खाना है बताओ ?”

“घर चलकर खाना खा लेंगे न, यहाँ पर रहने दो।”

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