कैसा ये इश्क़ है.... - (75) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (75)

अर्पिता ने शान की ओर देखा।शान ने अपनी पलके झपका कर अर्पिता को आश्वासन दिया सब ठीक होगा मैं हूँ न।शान के मौन को समझ अर्पिता बोली 'जी हमे पता है शान आप हैं लेकिन मन भय से घबरा रहा है न जाने मां क्या सोचेंगी।कैसे क्या हमे सच में घबराहट हो रही है।

शान कुछ नही बोले उन्होंने अर्पिता का हाथ छोड़ा और समान वापस पकड़ कर आगे बढ़ कर डोरबेल बजा दी।अर्पिता शीला जी की सोच को इमेजिन कर इतना घबरा गयी कि वो शान के पीछे जाकर खड़ी हो गयी।

डोरबेल सुनने पर कमला बाहर आयी और उन्होंने दरवाजा ओपन किया।दरवाजे पर प्रशांत को देख वो खुशी से सरोबार हो जाती है इतने वर्षो बाद बेटे को घर वापस देख आँखे भी गीली हो जाती है।मां नही है तो क्या हुआ बच्चे का पालन पोषण सिर्फ एक मां अकेले कर पाये ये कैसे सम्भव है संयुक्त परिवार में तो हर सदस्य का योगदान होता है।कमला को भावुक देख प्रशांत बोले ताईजी,अंदर चलिये अभी मैं कुछ दिन यहीं रुकने वाला हूँ तो अब एक प्यारी सी मुस्कुराहट रखिये।और कुछ नही।हम्म चलो अंदर आओ कमला ने कहा तो शोभा बोली ऐसे इतनी आसानी से जीजी कैसे आप बुला कर ले जा रही है।शीला कहां है जीजी उसे बुलाओ तो इतने दिनों बाद उसका बेटा अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर आया है बिन आरती सत्कार के ऐसे कैसे घर ले जा रही है आप।शोभा की बात सुन कमला ने हैरानी से कहा बेटे बहू से तुम क्या कहना चाह रही हो शोभा चित्रा को प्रशांत ने स्वीकार कर लिया क्या?और ये बच्चा कौन है..?चित्रा का तो नही है शोभा।जीजी पहचानो कौन हो सकता है शोभा जी मुस्कुराते हुए बोली।शोभा की बात सुन प्रशांत के पीछे खड़ी अर्पिता का हृदय और तेज धड़कने लगता है।कमला ने प्रीत की ओर देखा तो असमंजस से बोली शोभा अब क्या यूँ बातों में घुमा रही हो साफ साफ बताओ भी क्या कहना चाह रही हो।शोभा जी बोली जीजी अब कहना कुछ नही है अब स्पष्ट देख ही ले आप क्यों प्रशांत इतने वर्षो बाद वापस आया है।कहते हुए शोभा जी ने प्रशांत की ओर इशारा किया तो शान बोले,अब ये आरती वन्दन आप लोग करते रहो मैं तो अपने बेटे साथ अपने रूम में चला।कहते हुए उन्होंने बेग उठा कर आगे कदम बढ़ा दिया दरवाजे के उस ओर जाते ही कमला जी की नजर वहीं नजर झुकाये खड़ी अर्पिता पर पडती है।कमला जी शॉक्ड हो जाती है जब कुछ ऐसा सामने हो जिसकी हमने कल्पना ही छोड़ दी हो तो फिर व्यक्ति का चौंकना लाजिमी ही है।कमला जी एक दम से बोली अर्पिता तुम..!इसका मतलब छोटी तुम्हारे बारे में बोल रही थी और वो प्रशांत के पास जो ..शीला!शीला बाहर आओ देखो कौन आया है।
वो हड़बड़ा जाती है।और एक बार फिर बोली अरे शीला देखो तो सही कौन आया है जल्दी से बाहर आओ कहां अंदर बैठी हुई हो? छोटी तुम लोग तो बाकी सब अंदर आ जाओ।कमला ने आँखो के आंसू पोंछते हुए कहा।सबको अंदर गया देख अर्पिता ने एक बार नजर उठा कर शान की ओर देखा जो प्रीत को लेकर अपने कमरे में जा चुके है।हे ठाकुर जी शान भी अंदर चले गये अब हम मां का सामना कैसे करेंगे कहीं उन्होंने हमारे चरित्र पर फिर से संदेह किया तो ..!हम क्या करे हमे सामना तो करना ही होगा।ख्यालो में डूबते उतराते हुए वो अपनी।अंगुलियों को क्रॉस लपेट लेती है।कमला के बार बार यूँ आवाज लगाने पर शीला के साथ साथ स्नेहा और सुमित कमरे से निकल आते हैं।वो भी अर्पिता को देख इस तरह चौंकते है जैसे सामने अर्पिता नही बल्कि अर्पिता की छाया खड़ी हो।

शीला जी कमरे से निकल कर आती है। दरवाजे तक आते आते उनके कदम थम जाते हैं।शीला जी को देख अर्पिता अपनी नजरे झुका लेती है उसके सामने पिछली सारी यादें एक साथ घूम जाती है।वो बिन देर किये चेहरे पर घूंघट लेती है जिसे देख शोभा वही रुक जाती है।शोभा श्रुति चित्रा स्नेहा सभी भरी आंखों से वहीं आकर खड़े हो जाते है।कमला वहां से जाकर आरती की थाली ले आती हैं।शीला जी की आँखे नम हो जाती है वो फिर से आगे बढ़ती है और धीरे धीरे अर्पिता के पास पहुंचती है।अर्पिता के पास पहुंच कर शीला रुकी।उनकी आंख में अश्रु होते है और चेहरे पर खुशी के भाव।'अर्पिता घूंघट हटाओ' शीला जी गम्भीर वाणी में बोली।शीला जी की बात मान वो घूंघट हटाती है तो शीला जी एक जोरदार चांटा अर्पिता के मारती है।अर्पिता की आँखे छलक जाती है।वहीं कमरे में समान निकलते समय शान को यूँ ही दर्द का एहसास होता है वो तुरंत कमरे से बाहर चले आते है।जहां उनकी नजर अर्पिता पर पड़ती है।जिसकी आंखों से आंसू बह रहे है और गालों पर अंगुलियों के निशान है।मां क्या कर रही है आप शान जब तक वहां पहुंचते शीला जी एक तमाचा और जड़ देती है।अर्पिता कुछ नही कहती बस नजरे झुका खामोश ही रहती है वो मन ही मन सोचती है जब सबको अपनी हरकतों से दर्द ही देंगे हम तो हमे भी लौटकर दर्द ही मिलेगा खुशी की उम्मीद करना व्यर्थ ही है।शान आगे बढ़े और अर्पिता के पास खड़े हो गये और शीला से बोले मां,ये क्यों किया इसलिये तो मैं मेरी पत्नी को यहां नही लाया था।शिकायते मुझे भी इससे बहुत है। नाराजगी भी है लेकिन इसका अर्थ ये तो नही कि मैं नाराजगी दूर करने के लिए इस पर हाथ उठाऊं। ये अधिकार किसी को भी नही है आपको भी नही।आपको इससे बात करनी है तो कीजिये नही करनी है तो नही कीजिये लेकिन इस तरह इस पर हाथ मत उठाइये ये कुछ कहेगी नही और मैं ये बर्दाश्त करूँगा नही कि मेरी पत्नी पर परिवार का कोई सदस्य हाथ उठाये।शान की बात सुन शीला बोली क्यों न उठाऊं हाथ इस पर, मां हूँ इसकी गलती करेगी तो क्या आरती उतारूंगी।वैसे तो हर काम मुझसे पूछकर और बताकर कर किया करती थी तो फिर घर से जाते हुए मुझे बताकर क्यों नही गयी।एक बार मिली भी नही बस डॉक्टर को दिखा कर मुझे घर छोड़ा और खुद गाड़ी पार्क कर अपना बेग उठा कर चली गयी।मैं अपनी बहू का इंतजार ही करती रह गयी।खुद लौट कर नही आई मुई खबर आ गयी कि अब ये कभी नही आयेगी।मैं इंतजार ही करती रह गयी। माना कि मैंने वचन लिया इससे कि तुमसे बिन कुछ कहे तुमसे दूर चली जाये।विवाहिता होकर अविवाहिता का जीवन जिये जब तक मैं इसे स्वीकार न कर लूं।जब मै स्वीकार कर पाई तब तक ये ही चली गयी।और अब जाकर आई है।क्यों इतनी देर लगा दी आने में बोलो।सारी बातें मानती गयी मेरी तो फिर जाने से पहले क्यों नही मिली।

अर्पिता बस खामोश ही रही।और मन ही मन सोची क्या कहे अब हम मां ये ही नियति है जो होना होता है वही होता है सब कुछ हमारे मन के अनुसार कहा होता है।

वहीं कमरे में किसी को न देख प्रीत मम्मा!छान पापा कहता हुआ दौड़कर बाहर चला आता है और शान के पास उसके पैरो से जाकर खड़ा हो ऊपर देखने लगता है।प्रीत को देख शान ने उसे गोद में उठाया और उससे पूछा क्या हुआ प्रीत आप ऐसे क्यों चले आये..? अर्पिता बोली इन्हें अकेले रहने की आदत नही है शान!आप इन्हें बिन बताये आ गये होंगे इसीलिए पीछे पीछे ये भी चले आये।

शीला बच्चे को देख चौंक जाती है।वो हैरान परेशान सवालिया नजरो से कभी शान तो कभी अर्पिता की ओर देखती है

नन्हा सा प्रीत बातें करते हुए अर्पिता की ओर देखता है तो उसकी आंखों में आंसू देख लेता हैऔर कहता है,मम्मा आप लो क्यों लही है?छान पापा मम्मा लो लही है देखो?
अर्पिता ने अपने आंसू पोंछते हुए बोली नही प्रीत वो एक छोटा सा कीड़ा आंखों में गिर गया था मम्मा नही रो रही है।

अर्पिता और शान की बात सुन शीला जी चकित हो जाती है वो आगे कुछ कहने ही वाली होती है कि तभी शान बात को सम्हालते हुए बोल बोले मां, फिर से वही गलती मत दोहराना।अर्पिता मेरी पत्नी है और प्रीत मेरा बच्चा।ये ही सच है..!

शान की बात सुन शीला जी बोली, प्रशांत!लेकिन ये कब कैसे क्या सच में..!शीला जी के प्रश्नों को सुन अर्पिता पलट जाती है उसकी आँखे भर आती है।ये देख शान ने उसके आगे आकर उसका हाथ थामा और बहुत ही धीमी आवाज में कहा, अर्पिता पीछे पलटो मुझे पता है सच!मुझसे बेहतर तुम्हे कोई नही समझता।मां तुमसे प्रेम करती है तुम्हारा इंतजार कर रही है ये खबर उन्हें अचानक मिली है इसीलिए ऐसा बोल रही है तुम कुछ गलत न सोच कर पीछे पलटो।

शीला जी आगे बोली पूरी बात तो सुन लो अर्पिता कि पहले ही भावुक हो मेरी बातों को गलत तरीके से सोचने लगी।इतना डर गयी हो मुझसे क्यों?बताओ जवाब दो।माना कि मैंने गलती की थी तुमसे वो सब बोल कर लेकिन फिर एहसास हुआ न लेकिन तब तक तुम ही चली गयी न ही कुछ कहा न कुछ सुना।

अर्पिता ने शान की ओर देखा तो शान ने पीछे देखने का इशारा किया।अर्पिता ने डरते डरते पीछे देखा तो शोभा जी बोली क्या कब कैसे हुआ ये नही पूछूँगी मुझे बस मेरी बहू पर बेटे से ज्यादा विश्वास है। बस तुमसे शिकायत है तुम्हे एक बार तो लौट कर आना चाहिए था अर्पिता देखना चाहिए था यहां सब तुमसे कितना प्रेम करते है।अब सब शिकायते बाद में फिलहाल मैं इस परिवार के नये सदस्य की आरती उतार लूं शीला जी ने कहा और खुद मुस्कुराते हुए आरती वन्दन कर प्रीत अर्पिता और शान की आरती उतार कर घर में ले आती है।शीला को ये सब करते देख अर्पिता आगे बढ़ उनके चरण स्पर्श करती है तो शीला जी उसे गले से लगा लेती है और आशीष देती है।शीला जी बात सुन शान मन ही मन बोले अर्पिता तुम सच में पगली हो जो आज मां का मन भी जीत ही लिया तुमने।शान प्रीत से सबका परिचय कराते है तो प्रीत सबको चरण स्पर्श करते हुए प्रणाम करता है और अर्पिता के पास आकर खड़े हो उसे देखने लगता है।अर्पिता ने नीचे देखा तो प्रीत को देख शीला जी से बोली मां हम कुछ देर में आते है प्रीत को भूख लगी है लेकिन उससे पहले स्नान कराये फिर हम आते हैं..!

शीला जी मुस्कुराते हुए बोली ठीक है तब तक मैं इसके लिए ओट्स बनाकर लाती हूँ।वो उठकर वहां से चली जाती है।अर्पिता भी प्रीत को लेकर ऊपर सीढियो की ओर बढ़ती है जिसे देख शान आगे बढ़े और तेज कदमो से अर्पिता के पास से गुजरते हुए बोले हमारा कमरा नीचे है ऊपर नही।कहते हुए वो ऊपर फ्लोर पर खड़े हो जाते है।अर्पिता नीचे न लौट कर ऊपर ही बढ़ती है और अपने पहले वाले कमरे में जाकर रुक जाती है।वहां वो एक नजर देखती है उसे कुछ नही मिलता।शान बिन कुछ कहे वहां से छत पर निकल जाते हैं।

हमारा सामान कहां है कहीं नीचे कमरे में हमे लेकर आना होगा कहते हुए प्रीत से बोली प्रीत आप यहीं रुकिये हम अभी आते है कोई शैतानी नही करना ठीक है।सख्त हिदायत दे वो नीचे कमरे के गेट पर आकर रुक जाती है।वो मन ही मन सोचती है काश शान सब पहले जैसा होता..!उसकी आँखे भर आती है वो पीछे मुड़ देखती है हॉल में सभी सदस्य बैठे हुए बातचीत कर रहे हैं।चित्रा भी वहीं हॉल में होती है त्रिशा के जिद करने पर वो उठकर छत पर कमरे की ओर जाती है तो अर्पिता चित्रा के पास आती है उसे कश्मकश में देख चित्रा बोली क्या हुआ अर्पिता कुछ कहना चाहती हो?
चित्रा को इतना सहज देख वो बोली जी वो शान के कमरे में हमारा मतलब आपके कमरे में शान ने हमारा और प्रीत का समान रख दिया है आप चलकर निकाल देती तो ..!अर्पिता की बात सुन चित्रा बोली सामान ही तो है ले आओ न अर्पिता।वैसे भी मुझे क्या तुम्हारे शान के अलावा किसी को भी उस कमरे में जाना तक अलाऊ नही है।बस चाची जी ही जिद कर चली जाती थी।उन्होंने ही उस कमरे को अभी तक मेंटेन रखा है। दिवाली पर सारे घर में पुताई होती थी लेकिन तुम्हारे कमरे को चाची जी ने साफ सुथरा कर लॉक कर दिया था।चित्रा ने कहा और त्रिशा के साथ ऊपर चली गयी।

चित्रा की बाते सुन अर्पिता कमरे में अंदर आती है तो कमरे को वैसा ही देख उसकी आँखे छलक आती है।चित्रा जो कह रही है उसके हिसाब से तो वो कभी भी इस कमरे में नही आई।अगर वो हमारे शान की पत्नी है ..कह अटकते हुए चुप हो जाती है।इन दो वर्षो में क्या हुआ है हमे पता लगाना होगा कहीं ऐसा न हम एक बार फिर हमारे शान का दिल दुखा दे।इस टिया ने भी तो ऐसा ही कुछ कहा था कि शान और चित्रा सिर्फ नाम के रिश्ते में है।हमे पता करना होगा।हम कैसे पता करे।चित्रा भी तो वैसे ही रहती है जैसे पहले रहती थी फिर शादी हुई है कैसी शादी हुई है।हे कान्हा सब कितना उलझ रहा है प्लीज ये सब सुलझाने में हमारी मदद कीजिये।विनती कर वो जल्दी से बेग खोलती है और प्रीत के कपड़े निकाल एवं उन्हें लेकर ऊपर कमरे में चली आती है कुछ ही देर में प्रीत को तैयार कर उसे नीचे ले आती है जहां वो प्रीत को ओट्स खिलाते हुए सबके साथ बातचीत करने लगती है।शोभा के पास प्रेम का वीडियो कॉल आ जाता है जहां प्रेम राधिका अर्पिता से बात करते है और उसे सकुशल देख अपनी खुशी व्यक्त करते हैं।

कुछ देर खुद से छत पर बिता कर शान ऊपर से नीचे आये और सीधे कमरे में चले जाते हैं।जहां बेड पर अर्पिता का समान देख मुस्कुराते हुए मन ही मन कहते है शुक्र है जिद नही की इसने।वो कबर्ड से कपड़े निकाल कर नहाने चले जाते है।सफर की थकान के कारण सभी फ्रेश हो रेस्ट के लिए चले जाते है।प्रीत को शीला जी अपने साथ ले जाती है अर्पिता श्रुति के पास उसके कमरे में चली जाती है वो अंदर उसके पास बैठ बोली नाराज हो?

श्रुति गुस्से से बोली:-क्यों नही हो सकती?
अर्पिता बड़े ही प्यार से बोली :-बिल्कुल हो सकती हो श्रुति।लेकिन हमे ये तो बताओ इस गुस्से को दूर कैसे किया जाये।क्या करे हम ऐसा जिससे हमारी श्रुति हमसे नाराजगी जताना छोड़ प्यार से गले लग जाये बताओ क्या करे हम ऐसा?कहो तो उठक बैठक कर ले या फिर एक जादू की झप्पी ही दे दे बोलो क्या करे हम।अर्पिता ने धीरे धीरे बड़े ही मासूमियत से कहा जिसे देख श्रुति हंसते हुए बोली तुम बाते बहुत बनाती हो अप्पू।बातों से काम चल गया।मैंने तुम्हे मांफ किया कहते हुए श्रुति अर्पिता के गले से लग जाती है।इतने सालो के बाद मिलने से दोनो की आँखे भर आती है।और दोनो भावुक हो जाती है।

अप्पू!मैंने तुम्हे कितना मिस किया मेरी शादी पर सब थे राधु भाभी प्रेम भैया स्नेहा भाभी,किरण भाभी सब थे लेकिन मेरी कॉलेज की सहेली और प्रशांत भाई नही थे।कितना रोयी थी मैं तुम्हारे लिए लेकिन तुम ऐसी गयी जो अब जाकर वापस आयी हो।क्यों चली गयी थी तुम अप्पू!क्यों तुमने किसी के बारे में नही सोचा।हम में से किसी के बारे में नही सोचती लेकिन प्रशांत भाई उनका तो सोचा होता।
मैं तुम्हे बताती हूँ तुम्हारे जाने के बाद क्या क्या हुआ...!श्रुति ने कहा और अपनी आंखों के आंसू पोंछते हुए बोली :-

तुम्हारे जाने के बाद शोभा मामी और परम भाई प्रशांत भाई को कितनी मुश्किलो से यहां लाये।वो तुम्हारे बिन क्लिफ से हटने तक को तैयार नही थे।तो परम भाई और शोभा मामी ने प्रशांत भाई को नींद का इंजेक्शन दिया फिर यहां लेकर आये।यहां आकर भी उन्होंने किसी से बात नही की और खुद को कमरे में लॉक कर लिया।बहुत देर बाद वो बाहर निकले और जब बाहर निकले तो मामी बात रही थी कि उनकी आँखे लाल थी उनके बाल और कपड़े अस्तव्यस्त थे..!उन्हें देख कर साफ लग रहा था कि वो बहुत दर्द में थे।उन्होंने तुम्हारी लिखी डायरी पढ़ी जिसमे तुमने चित्रा से शादी के लिए बोला था.।उन्होंने साफ मना कर दिया और ये कह गिटार हाथ में लेकर घर से निकल गये कि अब जब भी लौटेंगे तुम्हे लेकर ही लौटेंगे।वो कहां गये कहां रह रहे थे किससे मिले किसी को कुछ खबर नही थी अर्पिता।यहां हम सब ये सोचकर परेशान थे कि कहीं उन्हें तुम्हारे यूँ अचानक जाने का सदमा न लग जाये।यहां सब दिन रात बस भाई के लिए ही सोचते।श्रुति बोलती जा रही थी और अर्पिता की आँखे भीग रही थी।

श्रुति आगे बोली फिर दो महीने बाद एक दिन टीवी पर कोई प्रोग्राम चल रहा था जिसमे भाई ने परफॉर्म किया और हमे भाई के शिमला में होने का पता चला।शोभा मामी ने ये देख चित्रा दी को प्रशांत भाई के पास भेजा क्योंकि एक त्रिशा ही थी जिसके साथ भाई सहज हो सकते थे, और त्रिशा इतनी छोटी थी कि उसके लिए अकेले रहना कैसे पॉसिबल होता।चित्रा दी वहां गयी और त्रिशा के जरिये भाई का ध्यान बंटाने लगी।

वहां भाई ने उनसे साफ साफ कह दिया कि उनके कमरे में वो किसी भी सूरत में प्रवेश न करे।भाई सुबह निकल जाते और शाम को ही वापस आते वो कमरे से बहुत कम निकलते थे।वो इतने कठोर और सख्त हो गये थे कि मुस्कुराना ही भूल गये।न ही लोगों से मिलते जुलते बस अकैडमी संगीत और तुम्हारी यादें यहीं उनकी दुनिया थी।चित्रा दी ने हर सम्भव प्रयास किया प्रशांत भाई के स्वभाव को बदलने का उनके ह्रदय में घर किये दर्द को बाहर निकालने का लेकिन वो कामयाब ही नही हुई।होती भी कैसे अर्पिता।ये कोई शरीर पर लगे जख्मो का दर्द थोड़े ही था जो वो भर देती ये तो रूह पर लगने वाले जख्म थे जो तुमने भाई को दिये।वो हर रविवार को सुबह सुबह मसूरी जाते और शाम की फ्लाइट से लौट आते वो हमेशा यही बोलते कि तुम उन्हें वापस वहीं मिलोगी।यार क्या बताऊं मैं किस्मत वाली हो तुम अर्पिता जो इतना लविंग जीवनसाथी मिला है।और तुम पगली की पगली सब जानते हुए भी उनसे दूर रही।खैर उसके बाद फिर मेरी शादी तय हो गई शादी से दो दिन पहले मैंने चित्रा के जरिये भाई से बात की और लखनऊ आने के लिए जिद की तो भाई चित्रा के साथ मेरी शादी में आये जहां मेरे इन लॉज ने भाई और चित्रा के रिलेशनशिप पर प्रश्न उठाये और शादी तोड़ने की धमकी दे दी।क्या खूब तमाशा हुआ उस दिन अर्पिता, तो भाई ने मेरी शादी ही तुड़वा दी।क्योंकि बात ज्यादा बढ़ चुकी थी वो लोग गाली गलौज और मारपीट पर उतर आये थे।आगे से ऐसा न हो इसीलिए चित्रा ने ही इस समस्या का हल कोर्ट मैरिज बताया।क्योंकि भाई को यकीन था कि तुम एक दिन आओगी इसीलिए वो कभी भारतीय रिवाजो से शादी नही करते।चित्रा की बात सुन भाई बहुत गुस्साए तो चित्रा बोली मैं हक तो वैसे ही नही जता रही प्रशांत जी।बस श्रुति के लिए ऐसा करने को कह रही हूँ।बाकी जब आपकी अर्पिता आ जायेगी तो ये शादी वैसे ही अमान्य हो जायेगी।इससे न आपको कोई समस्या आयेगी और न मेरा कोई नुकसान होगा।ये नाम का रिश्ता होगा वो भी अर्पिता के वापस आने तक।राधु भाभी ने चित्रा दी को बहुत रोका यहां तक कि उनसे झगड़ा भी कर लिया लेकिन वो नही मानी।

श्रुति की बात सुन अर्पिता बोली हम क्या कहे श्रुति हमारे तो शब्द ही खत्म हो गये है।शान...श्रुति हम तुमसे बाद में मिलते है अभी प्रीत को देखकर आते है ठीक है अर्पिता ने भावुकता से कहा और उठकर वहां से नीचे कमरे में चली आती है।कमरे के पास आकर उसकी नजर सर हिलाते हुए शान पर पड़ती है वो अंदर आती है और हमेशा की तरह दरवाजा बन्द कर पीछे से शान के सीने पर हाथ रख सर पीठ पर रख लेती है।उसकी आँखे भरी होती है वो कहना बहुत कुछ चाहती है लेकिन कह नही पा रही है बस रोये ही जा रही है।

अर्पिता को यूँ देख शान ने अपनी आँखे बन्द कर ली।और बस खामोश हो गये।
शान!हमसे गलती हो गयी हमे माफ कर दीजिये न।चुप मत रहिये हमे डांट लीजिये चाहे तो मां की तरह हाथ भी उठा लीजिये लेकिन हमसे बात कीजिये ..!शान कुछ तो बोलिये न..!

अर्पिता की बात सुन शान बोले.!अप्पू हटो अभी मुझे रेडी होने दो भूख लगी है खाना चाहिए..उसके लिए बाहर डायनिंग पर जाना होगा।अब ऐसे तो मै नही जाऊंगा न।

हम्म ठीक है शान अर्पिता ने कहा और वो पीछे हट जाती है।उसके हटने पर शान ने ड्रायर किया टीशर्ट डाली ।हाथ में घड़ी पहन ली।हल्का सा परफ्यूम स्प्रे किया और मुड़ गये।

शान!तो आप बताइये आपकी नाराजगी कैसे दूर होगी।अर्पिता ने बाल सम्हालते हुए कहा।
शान कुछ नही बोले बस एकटक उसे देखते रहे।
शान बताइये न।अर्पिता ने फिर पूछा तो शान हल्की सी बेरुखी से बोले ये तुम खुद सोचो।कहते हुए वो आगे बढ़ गये।शान के बाहर जाने के बाद कमरे में अकेली खड़ी अर्पिता बड़बड़ाई अब पतिदेव नाराज है तो सोच अर्पिता ऐसा क्या करे कि ये गुस्सा छोड़ दे।सब गलती हमारी ही चले थे सब सही करने!सब गड़बड़ कर के बैठ गये।और अब यहां खड़े हो पतिदेव को मनाने के तरीके सोचने पड़ रहे है।

हे ठाकुर जी पतिदेव बोल कर गये है खाना चाहिए और हम यहीं अपनी ही बक बक में उलझ गये।चलो अर्पिता अब देखते है क्या है क्या नही कहते हुए वो कमरे से बाहर चली आती है।चलते हुए उसके मन में ख्याल आता है यहां सब है लेकिन परम और किरण नही है।अब ये दोनो क्यों नही है लगता है ये भी नाराज होकर ही बैठे होंगे।

अर्पिता रसोई में देखती है तो खाना कुछ भी रेडी नही है।शान को बोलकर आते है थोड़ा समय लगेगा कहते हुए पलटी तो शान से ही टकरा जाती है।शान को देख वो बोली आप यहां क्या कर रहे है शान?

शान कुछ नही बोले और आगे बढ़ कर चुपचाप कार्य करने लगते हैं।अर्पिता ने शान का हाथ पकड़ा और बाहर डायनिंग पर लाकर बैठा कर छोड़ते हुए बोली देखिये शान गुस्सा करना है न खूब कीजिये लेकिन यहां बैठकर कीजिये। और अब यहां से उठना नही इतने सालो में हमने खाना पानी कपड़े ऑफिस घर बच्चे सब सम्हालना सीख लिया है।पंद्रह मिनट दीजिये हम वापस आते है ठीक है।कहते हुए अर्पिता वहां से निकल जाती है तो उसके जाने के बाद शान मुस्कुराते हुए बोले लगता है समझ रही हो अप्पू कि मैं क्या चाहता हूँ तुमसे..
पंद्रह मिनट बाद अर्पिता खाना डायनिंग पर लाकर सामने रख देती है।खाने की खुशबू से सभी वहीं आ जाते है।तो शान अपनी थाली उठा कर उसमे एक्सट्रा खाना रख कमरे में निकल जाते हैं।

प्रीत भी शीला के साथ बाहर आ जाता है और शोभा जी के साथ बैठ जाता है नटखट तो वो है ही सो वहीं एक खाली कुर्सी पर बैठ सबको ध्यान से देखने लगता है और शोभा जी जैसा करती वैसा ही करने लगता है।अर्पिता ने उसे देखा तो उसके पास आकर बोली प्रीत ये आपके लिए नही है इसमे मिर्च बहुत है जो आपको लगेगी जाकर।

ओके मम्मा तो मैं छान पापा के पास जाता हूँ कहते हुए वो कुर्सी से उतर अंदर दौड़ जाता है।शौर्य और त्रिशा दोनो ही खाना खाकर वहीं दौड़ने लगते हैं।सुमित सबसे बोले अभी कुछ देर बाद हमे निकलना होगा कल ऑफिस में बहुत कार्य है।सुमित की बात सुन कमला बोली,लेकिन बेटे सांझ हो चुकी है इस समय जाना मुझे नही लगता सही होगा।

कमला की बात सुन सुमित बोले मां,बस से जाएंगे तो कुछ ही समय में पहुंच जाएंगे कल ऑफिस में पहुंचना बहुत जरूरी है।कुछ एक क्लाइंट से मिलना है और स्नेहा का भी तो ऑफिस पहुंचना होगा न किरण अकेले कैसे मैनेज कर पायेगी उसे अभी इतना कहां अनुभव होगा।

सुमित के तर्को को सुन कमला चुप रह गयी भरे मन से उन्होंने सुमित को जाने की मंजूरी दी।सुमित स्नेहा और शौर्य तीनो अर्पिता और प्रीत से मिल कर वहां से चले जाते हैं।हम भी न आये है तब से इतना व्यस्त रहे कि स्नेहा दीदी के साथ तो बिल्कुल बैठ ही न पाये न जाने क्या सोच रही होंगी हमारे विषय में इतनी दूर से मिलने आये और दो मिनट ढंग से बैठे भी नही।अब लखनऊ जाकर ही उनसे और राधु दी से मुलाकत हो पायेगी सोचते हुए अर्पिता कार्य करने लगती है तो शोभा बोली अर्पिता ये सब हम देख लेंगे तुम जाकर खाना खा लो ठंडा हो गया तो फिर कोई स्वाद नही लगेगा।

'जी बड़ी मां' अर्पिता ने कहा और पानी का जग लेकर कमरे में जाती है।वहां शान प्रीत के साथ पकड़म पकड़ाई खेल रहे हैं।उन दोनो की हंसी कमरे में गूंज रही है।अर्पिता को आया देख प्रीत दौड़ कर अर्पिता के पीछे छुप जाता है।शान अर्पिता के पास आकर खड़े होते हुए बोले प्रीत छान पापा थक गये आप जाओ बैठते है।

ओके पापा प्रीत ने कहा और पीछे से निकलकर शान के पास जाकर बैठ जाता है।अर्पिता कुछ सोच प्रीत से बोली प्रीत कॉपी दैट छान पापा!

प्रीत ने शान की ओर देखा और बोला ओके मम्मा!शान जाकर बेड पर लेट गये तो शान की नकल करते हुए प्रीत भी लेट जाता है।शान ने अपना हाथ से सर खुजाया तो प्रीत भी वैसे ही करने लगता है।ये देख अर्पिता हंसने लगती है तो शान ने अर्पिता की ओर देखा ये देख प्रीत ने भी वैसा ही किया।शान ने प्रीत की हरकतों को नोटिस की और उठकर खड़े हो तो उनके पीछे प्रीत भी उठकर खड़ा हो गया।ओहो तो कॉपी दैट का मतलब ये है हमारी ही नकल उतारी जा रही है।शान को सुन प्रीत भी वही दोहराने लगता है लेकिन स्पष्ट बोल नही पता है सो हाथो की ही नकल उतार कर वैसे ही खड़ा हो जाता है।

शान अपने दोनो हाथ बांध सर को हिला कर सारे बाल बिखेर लेते है तो नकलची प्रीत भी हाथ बांध कर सर को हिला कर बाल बिखेर लेता है..!ये देख शान हंसते हुए बोले प्रीत रुको बस करो।

प्रीत भी नकल करते हुए बोला पिलित लुको बछ कलो।शान ने अपने हाथ से सर पीट लिया और अर्पिता की ओर देखा तो प्रीत ने भी बिल्कुल वैसा ही किया..! अर्पिता सब समझ कर हंसते हुए बोली प्रीत बस रुक जाइये पापा सच में थक गये अब हम लोग खेलेंगे लेकिन कुछ देर बाद तब तक आप वहां ये बुक लेकर वर्णमाला पढिये।ठीक कहते हुए अर्पिता ने हाथ में पकड़ा जग टेबल पर रखा और बेग से किताब निकाल कर प्रीत को पकड़ा दी।तो प्रीत किताब हाथ में पकड़ कर बेड के दूसरी ओर जाकर बैठ जाता है।

क्रमशः....