कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 6) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 6)

आरव,किरन और अर्पिता तीनों हेमंत जी की बाइक लेकर कॉलेज के लिए निकलते हैं।आधे रास्ते में पहुंचते ही है कि बाइक ही पंक्चर हो जाती है।

ओह गॉड! इसे भी अभी खराब होना था।पांच मिनट और रुक जाती तो हम सभी कॉलेज कैंपस में होते। किरण अधीर होकर कहती है।

उसकी अधीरता देख अर्पिता उसके सर पर चपत लगाते हुए कहती है ज्यादा अधीर न हो।शुक्र है कि हम सब आधा रास्ते से आगे पहुंच चुके है। कॉलेज अभी ज्यादा दूर नहीं है थोड़ा पैदल चलेंगे न तो पहुंच भी जाएंगे।

हम सो तो है।किरण ने कहा।

अच्छी बात है फिर तो अब एक कार्य करते है कि आप लोग पैदल ही कॉलेज के लिए निकलिए।हम लोग पहले से ही लेट हो चुके है और अगर अब हम सभी यहीं टाइम वेस्ट करेंगे तो और देर हो जायेगी तो इसीलिए एक कार्य करते है आप लोग आगे चलिए मै इसे ठीक करवा कर पहुंचता हूं।इस बार आरव ने कहा।

ओके।कह दोनों पैदल ही कॉलेज के लिए निकलती है।

अच्छा अर्पिता मेरे मन में न बहुत देर से एक प्रश्न फुदक रहा है पूछूं तुझसे।किरण ने अर्पिता की ओर देख पूछा।

अर्पिता किरण को देखती है और कहती है हम न कहेंगे तो भी तुम कौन सा रुकने वाली हो पूछोगी तो फिर भी।इससे अच्छा है कि तुम पूछ ही लो।अर्पिता किरण से कहती है और सामने देखने लगती है।

किरण - वैसे मै तुम्हे लगभग बचपन से ही जानती हूं।मैंने तुम्हे कभी गीत गजल शायरी ये सभी पढ़ते सुनते हुए नहीं देखा।और आज तुम ऐसे फंक्शन में जा रही हो।मै तो कल से यहीं सोच सोच कर हैरान हो रही हूं।

अर्पिता - किरण! हैरान न हो बस ये समझो कि हम अपना रूटीन थोड़ा बदल रहे है।

मतलब ? मै समझी नहीं अर्पिता।

अर्पिता - किरण ऐसे सोचो अगर हम डेली एक ही तरह से एक ही कार्य करते है तो जीवन में नीरसता आ जाती है।तो उसे दूर करने के लिए हम क्या करते है कि अपना रूटीन और कार्य करने का तरीका बदल लेते है।अब जब तरीका बदलते है तो हम कुछ नया भी सीखते है।तो हम भी वही कर रहे हैं।समझी कि नहीं।

किरण - हम समझ गई।

अर्पिता बढ़िया है कहती है।और मन ही मन सोचती है किरण अब तुझे हम क्या बताएं कि हमारे इस प्रोग्राम में जाने का वास्तविक कारण कुछ और है।हम इस प्रोग्राम में जा रहे है उस शख्स से मिलने के लिए जिससे मिल कर हमें कुछ अजनबी सा लेकिन सुखद एहसास होता है।सोचते हुए ही वो हल्का सा मुस्कुराती है।बातें करते हुए दोनों कॉलेज के मुख्य दरवाजे तक पहुंचती है।कॉलेज के दरवाजे पर इस प्रोग्राम में आने वाले सदस्यों की अगवानी के लिए वहां एक व्यक्ति नियुक्त किया जाता है।

अर्पिता कुछ यूं तैयार होकर आती है कि उसे देख कर वहां नियुक्त व्यक्ति उसे इस प्रोग्राम का एक प्रतिभागी समझ लेता है।जिस कारण वो अर्पिता से कहता है आप इस दरवाजे से न जाइए आप के लिए दूसरे दरवाजे से अंदर जाने की व्यवस्था की गई है।

उसकी बात सुन अर्पिता सोचती है शायद यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग जाने की व्यवस्था की गई है।इसीलिए ये व्यक्ति हमें दूसरे दरवाजे से जाने के लिए कह रहा है।इस बात का तो उसे तनिक भी आभास नहीं है कि उसे एक प्रतिभागी समझ कर दूसरे दरवाजे से जाने की इजाजत दी गई है।

अर्पिता और किरण उस व्यक्ति को धन्यवाद कह वहां से दूसरे दरवाजे की तरफ पहुंचते है जहां उसे बिन किसी जांच पड़ताल के अंदर प्रवेश करने दिया जाता है।

किरण अर्पिता दोनों की कॉलेज में प्रवेश करती है।चूंकि कॉलेज में आज विशेष फंक्शन रखा गया है तो उसे सुसज्जित भी किया गया है।कॉलेज प्रशासन ने बहुत सुंदर तरीके से रास्ते को सजवाया है।गुब्बारे, प्लास्टिक की सुन्दर सी बेले,चमकीली लड़िया,श्वेत और लाल रंग के कपड़े का सुन्दर मेल बना कर लगवाया है।

किरण - क्या बात है अर्पिता तुम्हारा कॉलेज तो बहुत ही सुन्दर है।इतना सुन्दर कि इसे देख मेरे मन में एक ही ख्याल आ रहा है कि मै भी अपना दाखिला यहीं इसी कॉलेज में करवा लूं।

किरण की बात सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए कहती है।ठीक है दाखिला ही लेना है न तो बिल्कुल लेना लेकिन इस वर्ष नहीं अगले वर्ष।क्यूंकि हमारा ही दाखिला लास्ट डेट में हुआ है।और हमारी प्यारी पगली! ये आज की विशेष साज सज्जा देख तुम्हारा मन लुभा गया।अरे हम सब कॉलेज में पढ़ने के लिए दाखिला लेने जाते है न कि साज सज्जा देखने के लिए।

हम सही कहा तुमने अर्पिता! अब एक वर्ष इंतजार करना ही पड़ेगा।... कह किरण हंसने लगती है।
पागल... लड़की।अर्पिता कहती है और उसका साथ देते हुए खुद भी मुस्कुराने लगती है।

अर्पिता ने कल कोलेज़ घुमा तो होता है लेकिन पूरा कॉलेज नहीं घूम पाई है। ऑडिटोरियम में अर्पिता और श्रुति दोनों जा ही नहीं पाई थी।जिस कारण अर्पिता को ऑडिटोरियम के रास्ते के बारे में पता ही नहीं होता है।

किरण और अर्पिता दोनों चारो और देखते हुए चल रही है।चलते हुए दोनों ऑडिटोरियम के पीछे वाले हिस्से में पहुंचती है।जहां अर्पिता की नज़र एक दरवाजे पर पड़ती है।उस दरवाजे से सटकर ही दो कमरे बने है।जहां कॉलेज में होने वाले प्रोग्राम के समय कॉलेज के छात्र छात्राएं तैयार होते है।

अर्पिता - किरण दरवाजा तो मिल गया देख वो रहा सामने।अर्पिता हाथो के इशारे से किरण को बताती है।

किरण अर्पिता के हाथो के इशारों की तरफ देखती है जहां दरवाजा उन दोनों से करीब पंद्रह कदम की दूरी पर होता है।

किरण - हम दरवाजा भी मिल गया तो अब एंट्री भी हो जाए।

अर्पिता - हां जी बिल्कुल।कहते हुए आगे कदम बढ़ा देती है।अर्पिता के पीछे ही किरण भी आती है।

आज हमारी उलझन से हमें मुक्ति मिल जाएगी।हमें पता चल जाएगा कि श्रुति के भाई प्रशांत जी आप ही है या कोई और है।

अगर आप ही श्रुति के भाई निकले तो सबकुछ कितना अच्छा होगा न। हमें आपके विषय में और अधिक जानने का मौका मिलेगा।अर्पिता अपने ही ख्यालों में उलझी हुई दरवाजे के अंदर जाती है।जहां वो मंच पर पहुंचती है।

अर्पिता को तनिक भी आभास नहीं होता है।वो धीरे धीरे सोच में डूबी हुई आगे बढ़ रही है।मंच पर किसी को देख वहां मौजूद सभी दर्शक उसे एक प्रतिभागी समझ तालियों की गड़गड़ाहट से उसका स्वागत करने लगते है।तालियों की आवाज़ सुन अर्पिता अपनी सोच से बाहर आती है।और सामने बहुत से दर्शकों को ताली बजाते देख हैरानी।से चारो ओर देखती है।जब उसे स्पष्ट कारण समझ नहीं आता तो पीछे मुड़ देखती है जहां उसकी नजर बड़े बड़े अक्षरों एक बोर्ड पर लिखे "एक शाम लखनऊ के नाम" शब्दों पर पड़ती है।तो चौंक जाती है।क्यूंकि उसके नीचे ही उसकी नज़रें किरण पर जाती है जो दरवाजे के पास एक पर्दे कि ओट में खड़ी हुई उसको देख रही है।और इशारे से नीचे देखने को कहती है।

उसकी बात सुन अर्पिता नीचे देखती है जहां मंच देख उसके होश उड़ जाते है।वो एकदम से घबरा जाती है।

उसका घबराना स्वाभाविक ही है।इतने सारे लोगों के बीच एक ऐसे इंसान का मंच पर पहुंचना जिसका इस क्षेत्र से कोई वास्ता ही नहीं है।

अर्पिता भी वहां खड़ी हो चारो और देखती है।और मन ही मन सोचती है ओह गॉड! ये कहां फंस गए हम।अब ये सभी दर्शक तो तालियां बजा बजा कर हमारा उत्साह वर्धन भी कर रहे है अब कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा। लेकिन हम कहे भी तो क्या कहे। हमें तो कुछ नहीं आता इससे तो अच्छा है हम सत्य बोल कर यहां से चले जाते हैं।

अर्पिता कुछ बोलने ही वाली होती है तभी उसकी नज़र सामने से तीसरी पंक्ति में बैठी श्रुति पर पड़ती है।श्रुति हाथ ऊपर कर उसे कुछ कहने के लिए प्रेरित कर रही होती है।अर्पिता उसे देख खुद से बुदबुदाती है अगर श्रुति यहां है तो उसका भाई भी यहीं होगा इसके आस पास।अर्पिता उसके आसपास देखती है जहां प्रशांत को देख उसके चेहरे पर चमक आ जाती है।और मुख से कुछ शब्द खुद ब खुद निकलने लगते हैं।

खोए हुए थे हम किताबो की दुनिया में
तभी किसी का हमारी दुनिया में आना हुआ।
कौन था वो अजनबी,जिसके लिए हम अपनी दुनिया ही भूल गए..!
थी सांवली सी सूरत उसकी, उस पर ये नशीली आंखें।
उन आंखों में थे कुछ सपने,कुछ इंतजार और उस इंतजार में भी थी बैचेनी।

उसकी उस बैचेनी ने हमारा चैन चुराया है
हां शायद कोई चुपके चुपके इस दिल में आया है।

पहली बार हुआ है ये हमें एहसास
शायद इसे ही कहते है पहली नज़र का प्यार।

पहली नज़र का प्रेम!आज के इस आधुनिक दौर की युवा पीढ़ी शायद ही इस बात को स्वीकार करेगी कि पहली नज़र का प्रेम वास्तविक भी होता है।बहुत से लोगो के लिए ये बातें किस्से कहानियों वाली होंगी।वहीं कुछ के लिए ये बाते कोई फिल्म,या महीनों, सालों चलने वाले किसी टीवी सीरियल की कहानियों में ही मिलने वाली होगी।

लेकिन हमारा मानना है कि ये पहली नज़र का प्यार सिर्फ किस्से कहानियों में जीवित नहीं है।ये बात तो वास्तविकता में भी अस्तित्व में है।

इतिहास खंगाला जाए तो हमे श्रीराम और देवी सीता का प्रथम दृष्टया मिलने पर एक दूसरे को अपलक निहारना इस बात का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।इसके अलावा राजा दुष्यंत और शकुन्तला के प्रेम का सफ़र भी इसी प्रथम नज़र के प्रेम से ही शुरू हुआ था।आज भी कहे अनकहे कुछ किस्से हमे खंगालने पर मिल ही जायेंगे।इसी पहली नजर के प्रेम को संदर्भित करती ये जगजीत सिंह जी की शानदार आवाज़ में सजी ये ग़ज़ल जिसे हम आप सबके लिए प्रस्तुत करते है ...

चांद भी देखा! फूल भी देखा। बादल बिजली !! तितली जुगनू कोई नहीं है ऐसा...तेरा हुस्न है जैसा।तेरा हुस्न है जैसा।मेरी निगाह ने ये कैसा ख्वाब देखा है!! जमीन पर चलता हुआ महताब देखा है।मेरी आंखो ने चुना है तुझको दुनिया देखकर।मेरी आंखो ने चुना है तुझको दुनिया देखकर।किसका चेहरा !! किसका चेहरा अब मै देखूं तेरा चेहरा देखकर.....।अर्पिता ने बेहद खूबसूरती के साथ इस गजल को पूर्ण किया।

इन्हीं शब्दों के साथ हम अपनी वाणी को विराम देते है।कहते हुए अर्पिता चुप हो जाती है।और सामने बैठे प्रशांत को देखने लगती है जो अन्य व्यक्तियों के साथ मिल कर उसके लिए तालियां बजा रहे है।

अर्पिता मंच से नीचे आ जाती है और श्रुति के पास जाकर बैठती है।

वाओ! अर्पिता।काफी अच्छी प्रस्तुति दी है तुमने। मुझे तो सरप्राइज ही कर दिया।कमाल की लाइनें कही है तुमने।श्रुति ने खुश होते हुए अर्पिता से कहा।

बस बस।बहुत तारीफ हो गई।अर्पिता श्रुति से कहती है।अब तारीफ वाला काम किया है तो तारीफ तो होगी ही .......।पास ही से आवाज़ आती है जो पास ही में बैठे सात्विक की होती है।..

क्रमश....