कैसा ये इश्क़ है ....(भाग 2) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है ....(भाग 2)


अर्पिता उसकी तरफ देखती है।न जाने क्या दिखता है उसे उस चेहरे में कि वो उसकी तरफ खिंचती चली जाती है।

सुनिए...कहां खोई है आप अर्पिता को अपनी तरफ यूं देखता पाकर वो उससे दोबारा कहता है।

अ ... जी! अर्पिता ने हड़बड़ाते हुए कहा।
आपका दुपट्टा! ये मेरे हाथो पर। प्लीज़ हटाइए इसे।उस लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा।

स...स.सॉरी!अर्पिता ने कहा और वो अपना दुपट्टा सम्हाल लेती है।

लड़का मुड़कर वापस से अपने कार्य में लग जाता है।
अर्पिता उसे एक पल को देखती है और वापस से बुक पढ़ने में लग जाती है।

उसके मन में अभी भी उसके कहे हुए शब्द गूंज रहे है। सुनो ....आपका दुपट्टा!पढ़ते हुए ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

वो एक बार फिर उसकी तरफ देखती है उसे तल्लीनता से पढ़ता हुआ देख वो खुद ब खुद उसे देखने लगती है।

हाय अर्पिता! की आवाज़ से उसका ध्यान टूटता है।ओह गॉड।हम ये क्या कर रहे थे।अर्पिता खुद से कहती है और नज़रे फेर सामने देखती है जहां किरण उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठी है।

अर्पिता स्माइल करती है। किरण उससे अभी आने का कहती है और अपनी बुक ले वहीं लाइब्रेरी में मौजूद एक प्रोफेसर के पास जाकर कुछ डाउट क्लियर करने लगती है।

उसके पास जो लड़का बैठा होता है वो अपने हाथ में बंधी घड़ी देखता है।फिर खड़ा हो अपनी किताब उठा कर अपने बैग में रख लेता है।और जल्दी जल्दी कदम बढ़ा वहां से चला जाता है।अर्पिता जब उसकी तरफ देखती है तो उसके व्यक्तित्व को देख उसके मुख निकलता है ओह माय गॉड! हाउ अट्रैक्टिव एंड चार्मिंग पर्सनैलिटी।उसकी नज़रे दरवाजे तक उस लड़के का पीछा करती है।

आंखो से ओझल होने पर वो वापस से अपनी किताब की तरफ ध्यान देने लगती है।लेकिन उसका ध्यान नहीं लगता।उसके जेहन में उसके कहे वो तीन शब्द सुनो... तुम्हारा दुपट्टा बार बार लगातार घूम रहे है।उसकी नज़र वापस उस जगह पड़ती है जहां वो बैठा हुआ था तो एक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ जाती है।

ये क्या हो रहा है हमे।ओह गॉड हमारा मन ही नहीं लग रहा है।हम कुछ देर बाहर ही निकल जाते है यहां रहेंगे तो ऐसे ही उलझन में रहेंगे सोचते हुए अर्पिता खड़ी हो जाती है।उसके खड़े होते ही उसके दुपट्टे के सिरे में उलझा हुआ लाइब्रेरी कार्ड गिर जाता है।जो कि उसी लड़के का होता है।अर्पिता उसे उठा लेती है।और उस पर लिखा नाम पढ़ती है।

प्रशांत! प्रशांत मिश्रा।अर्पिता नाम को इस तरह से पढ़ती है जो सीधा उसके हृदय की गहराइयों में उतरता चला जाता है।

कितना प्यारा नाम है प्रशांत! ये अवश्य ही उसी लड़के का होगा।हम देखते है उसे शायद बाहर ही कहीं हो।अगर होगा तो हम उसे ये लौटा देंगे।कहते हुए अर्पिता उस कार्ड को लेकर बाहर चली जाती है। बाहर आकर वो चारो ओर देखती है लेकिन उसे प्रशांत कहीं नहीं दिखता।

अर्पिता - प्रशांत जी तो यहां कहीं नहीं दिख रहे है लगता है वो जा चुके है।अब इसे हम अपने पास ही रख लेते है।दुनिया गोल है अगर कभी घूमते हुए टकरा गए तब हम उन्हें लौटा देंगे।वैसे इसे लौटाने का दूसरा तरीका भी है यहां की लाइब्रेरियन को जाकर दे देना।लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे कम से कम एक याद तो हम अपने पास रखेंगे। सॉरी गॉड जी थोड़ा स्वार्थी हो गए हम।बस इतने से ही हां।मन ही मन गॉड जी से कहती है और कार्ड अपने बैग में रख लेती है।और फोन निकाल लेती है।

अर्पिता यार तुम यहां बाहर क्या कर रही हो।किरन ने लाइब्रेरी से बाहर आते हुए पूछा।

अर्पिता - कुछ नहीं यार! वो हम यहां ये फोन अटेंड करने आए थे।अपना फोन दिखाते हुए अर्पिता ने किरण से कहा।

ओह।अब बात करना लाइब्रेरी में तो अलाउड ही नहीं है । किरण ने कहा।

हम।अर्पिता ने खोए हुए कहा।वो किरण को कार्ड के बारे में नहीं बताती है

अच्छा सुन अर्पिता मैंने न क्लास बंक कर दी है।अब मै क्लास में थी फिर भी मन में यही ख्याल आ रहा था कि तुम यहां अकेली हो तो मै निकल आईं वहां से।

अरे यार इसकी जरूरत नहीं थी वैसे।हम तो आराम से बैठ कर पढ़ रहे थे।तुम अगर चाहो तो अपना लेक्चर ले सकती हो।अर्पिता ने कहा।

अरे यार!अब मन नहीं है।चलो अब बाहर चलते है।मै क्या सोच रही हूं चलो मॉल में चलते है घूम कर आते है।किरण ने चहकते हुए कहा।

चल ठीक है।हम मासी को फोन कर बता देते है।
अर्पिता ने अपना फोन निकालते हुए कहा।

अरे ओ मासी की चमची।क्या कर रही है मासी को अगर पता चला कि मै कॉलेज के लेक्चर रूम में न होकर मॉल में घूम रही हूं कसम से बहुत डांट पड़ जानी है।तुम उन्हें कुछ न बोलो।हम लोग घर पहुंचने के टाइम पर ही घर पहुंच जाएंगे।

अरे कैसी बात कर रही हो तुम।हम कहां जा रहे है ये तो घर पर किसी न किसी को पता होना जरूरी है।अर्पिता ने किरण से कहा।

ओह गॉड।मै भी न किससे सर खफा रही हूं।किरण ने अपना सर पीटते हुए कहा।तुझे हमेशा वही करना है जो तेरे हिसाब से सही है।यार हम मॉल ही जा रहे है किसी जंग पर नहीं जो इतनी छोटी बात भी बतानी है।

अच्छा ठीक है हम तेरे बारे में मासी को नहीं बताएंगे।हम ये कहेंगे कि हम मॉल आ गए है ओके।अब कोई बहस नहीं यार।कहते हुए अर्पिता अपना फोन निकाल लेती है और बीना जी को कॉल लगा देती है।

अर्पिता (बीना से) - हेल्लो मासी! हम कॉलेज से निकल कर मॉल जा रहे है कुछ सामान खरीदना है।आपसे ये पूछने के लिए फोन किया कि आपको मॉल से कुछ मंगाना तो नहीं है।हम ले आएंगे।

बीना जी - नहीं अर्पिता! हमें कुछ नहीं चाहिए।और आप अकेली क्यों जा रही है किरण को भी बुला ले जाइए।वो मदद कर देगी आपकी।

जी मासी।अर्पिता ने कहा।रखते है मासी।कह अर्पिता फोन रख देती है।

किरण अर्पिता के चेहरे की ही तरफ देख रही होती है।उसके चेहरे पर टेंशन देख अर्पिता थोड़ा बनते हुए उससे कहती है मासी ने कहा है कि ... की अकेली क्यों जा रही हो किरण को भी अपने साथ ले जाओ।

किरण उसकी बात सुन खुशी से चिल्लाते हुए कहती है सच में अर्पिता।फिर तो अच्छा नहीं बहुत अच्छा है चलो तो फिर देर क्यों करना।किरण ने बहुत ही उत्साहित होकर कहा।

चलो कहते हुए अर्पिता और किरण दोनों ऑटो से मॉल के लिए निकल पड़ती है।

किरण एक बात बताओ।तुम्हे मॉल में जाने की इतनी एक्साइट मेंट क्यूं थी।क्या कुछ खरीदना है या फिर क्लासेज से बच कर टाइम पास करना है।अर्पिता ने किरण से पूछा।

अर्पिता तुम ये जासूसी करना छोड़ो बात बस इतनी सी है कि आज मन नहीं था क्लासेज अटेंड करने का।किरण ने बड़ी ही बेफिक्री से कहा।

किरण यार अब हम कोई छोटे बच्चे नहीं है।पोस्ट ग्रेजुएशन में आ गए है।तो थोड़ा बहुत तो जिम्मेदार होना सीखना ही चाहिए।अर्पिता ने किरण से कहा।

जिसे सुनकर किरण अर्पिता से कहती है।अरे अरे अब तुम अपना ये अमूल्य ज्ञान मुझे घर जाकर देना आराम से बैठ कर सुनूंगी।अभी तो हम लोग चैन से मॉल में घूम ले। प्लीज़।किरण ने अर्पिता से बच्चो कि तरह फेस बनाते हुए कहा।

किरण का फेस देख कर अर्पिता को हंसी आ जाती है।चल ठीक है।घर ही ज्ञान देंगे तुम्हे।अर्पिता ने स्माइल करते हुए कहा।

कुछ ही देर में दोनों मॉल पहुंचते है।आलमबाग के पॉप्यूलर मॉल में इस समय दोनों होती है।किरण तो चारो और देखती है और अर्पिता का हाथ पकड़ उसे फूड सेक्शन में जाती है।

अर्पिता मुझे भूख लगी है चल पहले कुछ खा लेते है।फिर कुछ और करते है।किरण ने अर्पिता से कहा।

अर्पिता - चलो ठीक है।बताओ क्या लोगी हम ऑर्डर कर देते है।

तुम रहने दो मै ये मेनू चेक कर लेती हूं फिर खुद ही ऑर्डर कर दूंगी तुम बताओ तुम्हे क्या मंगवाना है। तो बालिके आज के लिए तुम बस एन्जॉय करो।किरण ने अर्पिता से कहा।

हां ठीक है नौटंकी वाली बेस्टी।अर्पिता ने मुस्कुराते हुए किरण से कहा और अपनी बुक निकाल उसके पन्ने पढ़ने लगती है।

अरे ओ मिस पढ़ाकू! अभी के लिए इन्हे अंदर रख दे लाइब्रेरी की बुक है।कहीं खाने का कोई स्पॉट लग गया न तो बहुत खराब लगेगा।किरण ने अर्पिता को टोकते हुए कहा।

हम समझ रहे है बुक में स्पॉट क्यूं लगाया जा रहा है।चल हम वैसे ही रख दे रहे है ठीक है।तुम चिंता कर अपने चेहरे के रिंकल्स न बढ़ाओ अर्पिता ने मुस्कुराते हुए किरण से कहा।और किताब वापस रख देती है।

किरण कुछ हल्का फुल्का ऑर्डर कर देती है।और अर्पिता से बातचीत करने लगती है। इन दोनों का रिश्ता बहुत ही अनोखा है। बहने तो है उससे भी ज्यादा बहुत अच्छी दोस्त है इसका मुख्य कारण तो किरण और अर्पिता का एक साथ बचपन गुजारना है।दोनों ने ही अपना बचपन अपने ननिहाल में साथ ही गुजारा है।

किरण का दिया हुआ ऑर्डर आ जाता है तो वो उसे फिनिश करने लगती है वहीं अर्पिता ने अपने लिए एक कॉफी मंगवाई थी उसे एन्जॉय करने लगती है।

कुछ देर में दोनों वहां से बाहर आ जाती है।और दोनों शॉपिंग करने लगती है।शॉपिंग कर अर्पिता अपना सामान लेकर वहां से निकल रही होती है कि पीछे से उससे टकराते हुए एक लड़का बाहर दौड़ता हुए निकल जाता है।उसके हाथ में शॉपिंग बैग्स होती है।

ओ हेल्लो, किस बात की इतनी जल्दी है...कहते हुए अर्पिता जब सामने उसे देखती है तभी वो लड़का मुड़ता है और उससे सॉरी कह वहां से चला जाता है।

ओह गॉड प्रशांत जी...!अर्पिता एकदम से कह जाती है जिसे सुन किरण हैरान हो सवालिया नजरो से उसकी तरफ देखती है

वहीं अर्पिता उसे देखती रह जाती है।जब तक वो फिर से आंखो से ओझल नहीं हो जाता।...

अर्पिता गया वो।किरण हाथ के इशारे से अर्पिता की बताते हुए कहती है।

किरण की बात सुन अर्पिता एक दम से चौंकती है और कहती है हां गया अब हम लोग भी चले।

हम चलो।किरण ने कहा।और मन ही मन सोचती है कुछ तो बात है किरण।अब तुझे अपना जासूसी वाला दिमाग थोड़ा दौड़ाना पड़ेगा।

क्रमशः....