कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 8) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 8)

अर्पिता किरण और आरव के पास आ जाती है और उनके साथ कुछ देर बैठ कर एंज्वॉय करती है।वहीं अर्पिता से कुछ ही दूरी पर सात्विक भी मौजूद होता है जिसका ध्यान प्रोग्राम में हो रही प्रस्तुति पर न होकर अर्पिता पर होता है।

सात्विक जानबूझ कर अर्पिता से थोड़ी दूरी पर बैठा है जिससे कि वो मन भर अर्पिता को निहार सके।

***पहले प्यार की कहानियां शुरू हो चुकी है।अर्पिता और सात्विक दोनों का ही ये पहली नज़र वाला प्रेम है।वहीं प्रशांत जी वो अभी तक इन एहसासों से अनजान एक गंभीर लेकिन हालातो के अनुसार ढलने वाले व्यक्तित्व के मालिक है।जिसमें अच्छाई और गुण तो उपर वाले ने झोली भरकर दिया है।लेकिन इन दोनों का ही उपयोग वो हर जगह नहीं करते। टिट फॉर टेट वाली पॉलिसी अपनाते है।अपनो के लिए हर दम खड़े मिलते है दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ये हमारे प्रेम जी की ही कार्बन कॉपी है।***

कुछ समय गुजरने के बाद आरव एक नजर अपने हाथ में बंधी घड़ी पर डालता है।जिसमें रात्रि के ग्यारह बज चुके है।समय देख आरव किरण और अर्पिता से कहता है --

अब हमें घर चलना चाहिए।क्यूंकि रात के ग्यारह बज चुके हैं।घर पर मां पिताजी चिंता कर रहे होंगे।

ठीक है भाई।किरण ने कहा।
ओके फिर चलते है आरव में खड़े होकर कहा।उसके साथ ही किरण और अर्पिता भी खड़ी हो जाती है।अर्पिता को खड़ा देख सात्विक सोचता है," लगता है अर्पिता जी अब घर जा रही है तभी खड़ी हो गई है" सात्विक भी उठ कर अर्पिता के पीछे आ जाता है और चलते हुए कहता है।

तो अर्पिता जी आप शो को आधा ही छोड़कर घर जा रही हैं।

अर्पिता सात्विक की बात सुन कहती है।नहीं तो किसने कहा आपसे सात्विक जी।

अरे कहना क्या है आप तीनों एक साथ खड़े हुए और बाहर की तरफ जाने लगे हो तो तो मैंने गेस कर लिया कि आप घर जा रही होंगी।सात्विक ने कहा।

अर्पिता - जी आपका अनुमान तो बिल्कुल सही है।हम घर ही जा रहे है लेकिन शाम आधी छोड़कर नहीं।क्यूंकि शाम ढल चुकी है ।

अर्पिता की बात सुन किरण आरव और सात्विक तीनों हंस देते है और सभी एक दूसरे से बातचीत करते हुए ऑडिटोरियम से बाहर निकल कॉलेज पार्किंग में आ जाते है।

वैसे अर्पिता जी आपके साथ जो मौजूद है उनसे मेरा परिचय नहीं करवाएंगी।सात्विक ने अर्पिता की ओर देखते हुए कहा।

अर्पिता - अवश्य।सात्विक जी। ये जो है वो हमारी मासी के बच्चे है।ये मासी का बेटा आरव।और ये किरण।और किरण आरव ये हमारे कॉलेज में पढ़ते है सात्विक नाम है इनका कल ही हमसे मुलाकात हुई है इनकी।

सात्विक हाथ जोड़ कर नमस्ते करता है ये देख आरव और किरण दोनों हल्की सी मुस्कान अपने चेहरे पर रखते हुए हाथ जोड़ नमस्ते करते है।

सात्विक मन ही मन सोचता है अर्पिता जी वैसे तो मेरी नमस्ते की आदत है नहीं मै तो सीधा हाथ मिला कर अभिवादन करता हूं।लेकिन आप के स्वभाव को देख कर मै इतना समझ गया हूं कि आपको हर बात में भारतीयता पसंद है।इसलिए आपको प्रभावित करने के लिए ये मेरी छोटी सी कोशिश है।

ओके सात्विक जी बाय अब कल कॉलेज में मिलते है।अर्पिता ने कहा।

सात्विक - जी बाय अर्पिता जी।

अर्पिता किरण और आरव तीनों वहां से बाइक ले घर के लिए निकल आते हैं।उनके जाते ही सात्विक भी गुनगुनाते हुए वहां से निकल जाता है।
घर पहुंच कर तीनों बीना जी हेमंत जी और दया जी मिल कर उन्हें शुभ रात्रि कह सोने के लिए चले जाते है।

अर्पिता और किरण दोनों अपने कमरे में बेड पर लेती होती है।और दोनों आज के फंक्शन के बारे में ही बातचीत कर रही है।

किरण - अर्पिता ! तुम मुझे एक बात बताओ।तुमने इतनी आसानी से मंच पर प्रस्तुति दे कैसे ली।जहां तक मै जानती हूं मैंने तुझे ऐसे सोंग सुनते हुए नहीं देखा।इनफैक्ट मैंने तो तुझे गाना सुनते हुए देखा ही नहीं है।फिर कैसे तुम वो लाइनें बोल गई और जगजीत जी की गजल भी गा गई कैसे?

अर्पिता - ओह हो किरण! माना कि हमने घर पर गाने नहीं सुने लेकिन आज कल के ऑटो रिक्शे वाले कम थोड़े ही पड़ते है।ऐसे ही एक दिन ऑटो में जाते हुए सुन ली थी।

किरण - ओह तो ये बात है।तभी मै सोचूं तुमने गजल गा कैसे ली।वैसे प्रस्तुति तो लाजवाब ही रही।

ओके।अब हमे नींद आ रही है।कल सुबह बात करते हैं।रात के बारह बज रहे है किरण! और हमे लगता है कि अब देर नहीं करनी चाहिए।सो शुभ रात्रि।अर्पिता किरण से कहती है।

किरण - ओके अर्पिता! गुड नाईट! स्वीट ड्रीम्स।
दोनों ही चादर तान के सपनों की दुनिया में खो जाती हैं।

अगले दिन अर्पिता जल्दी जाग जाती है।एवम् सारे दैनिक कार्य कर दया जी के पास चली आती है।दया जी उस समय अपने बाल गोपाल की अर्चना पूजा में रत होती है।

अर्पिता भी वहां आकर उनकी मदद करने लगती है।दया जी अर्पिता को अपने पास देख मुस्कुराती है और फिर से अपने कार्य में लग जाती हैं।

दया जी के पास से आकर अर्पिता हेमंत जी के पास जाती है जो हॉल में बैठ कर न्यूज पेपर पढ़ रहे होते है।अर्पिता उन्हें गुड मॉर्निंग कहती है।और वहां से बीना जी के पास जाती है।

अर्पिता - गुड मॉर्निंग मासी!
बीना जी - गुड मॉर्निंग लाली!तुम सुबह सुबह यहां।कुछ चाहिए था क्या?

वो मासी हमे अपने लिए एक स्ट्रॉन्ग कॉफी बनानी है।कॉफी का खाली मग हाथ में ले कर अर्पिता कहती है।

ओके तो तुम चलकर बैठो कॉफी मै बना कर लाती हूं।बीना जी रसोई कार्य करते हुए कहती है।

नहीं मासी कॉफी तो हम खुद से बना लेंगे।आप हमे ये बता दीजिए कॉफी का डिब्बा रखा कहां है।

ठीक है लाली।डिब्बा वो सामने के खाने में रखा है।
बीना जी इशारे से बताए हुए कहती है।अर्पिता जाकर कॉफी का छोटा सा डिब्बा उठा लेती है और दूध उबलने रख देती है।बीना जी हेमंत जी के लिए ग्रीन टी तैयार कर देती है।
इतने में कॉफी फेंटने लगती है।कुछ ही देर में कॉफी तैयार हो जाती है तो अर्पिता कॉफी और ग्रीन टी ले कर रसोई से बाहर चली जाती है।हेमंत जी को ग्रीन टी दे खुद भी वहीं बैठ कर कॉफी पीने लगती है।

अर्पिता आपका कॉलेज कैसा जा रहा है।मन रम गया कि नहीं वहां।हेमंत जी ने अर्पिता से पूछा।

जी मौसा जी।अर्पिता कहती है।

हेमंत जी - अर्पिता कॉलेज में एक दो फ्रेंड्स बने कि नहीं।मेरे ख्याल से अब तक तो एक दो फ्रेंड भी बन चुके होंगे।

जी मौसा जी फ्रेंड्स भी बन गए हैं।श्रुति! नाम है उसका यहीं लखनऊ से ही है।

गुड! तो फिर अब चिंता की कोई बात नहीं अब तो मन भी रमने लगेगा।हेमंत जी ने न्यूज पेपर पलटते हुए कहा।

अर्पिता - जी !

अच्छा! तो अब आप अपना कार्य करिए मै अब रेडी हो ऑफिस के लिए निकलता हूं।कहते हुए हेमंत जी वहां से चले जाते है।वहीं अर्पिता गृह कार्य में किरण की मदद करने लगती है।

अर्पिता! लाली !.. बीना जी ने रसोई से निकलते हुए आवाज़ दी।

अर्पिता जो साफ़ सफाई में किरण की मदद कर रही होती है बीना जी की आवाज़ सुन कहती है "जी मासी"!

बीना जी हॉल में आ जाती है और अर्पिता को कार्य करता देख उसे डांटते हुए कहती है।अर्पिता कितनी बार मना किया है तुमसे ये सब कार्य तुम रहने दो किरण और मै दोनों कर लेंगी तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।तुमने कभी ये सारे कार्य नहीं किए है सो तुम्हे आदत भी नहीं होगी।और तकलीफ भी होगी वो अलग।

ओह हो मासी! माना कि कभी नहीं किया है।लेकिन कार्य सीखा भी जा सकता है न।सो हमें कुछ तो करने दो।ऐसे तो हम बहुत बोर हो जाएंगे।और हमे भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा।कहते हुए अर्पिता दुखी होने का अभिनय कर मुंह लटका लेती है।

बीना जी अर्पिता की नौटंकी देख हंस देती है और उसके पास आकर उसके सिर पर हाथ रख कहती है चलो ठीक है करो मदद।लेकिन ज्यादा नहीं उतनी ही जितनी देर किरण कार्य करती है।

सच मासी।बीना जी की बात सुन अर्पिता खुश होकर कहती है।

हम।अच्छा वो मै तुमसे ये पूछने आयी थी आज तुम कॉलेज से कितने बजे वापस आ जाओगी।मै मॉल जाने का सोच रही थी। अगर तुम्हारे पास टाइम बचता है तो तुम भी चलना।वहीं फीनिक्स में चलेंगे।
बीना जी ने कहा। मां ने अर्पिता से कहा है मुझसे नहीं ये सोच कर किरण उदास हो जाती है।अर्पिता की नज़र किरण पर पड़ती है।

अर्पिता - मासी तो क्या हम अकेले ही जाएंगे किरण नहीं चलेगी।अर्पिता किरण की ओर देखते हुए कहती है।जिसके चेहरे पर अर्पिता की बात सुन मुस्कान खिल जाती है।और पलके झपका कर अर्पिता को थैंक्स कहती है।

हां हां किरण भी जाएगी।जानती हूं मै की अब तुम दोनों साथ हो तो भला अकेले कहीं घूमने जाने से तो रही।ये तो न जाने कैसे कॉलेज अलग अलग मिल गए तुम्हे।वरना एक ही कॉलेज होता तो फिर तो चौबीस घंटे एक दूसरे के नाम की माला जपते रहते।

सही कहा आपने मां।हम बहने है तो इतना प्यार तो लाजिमी है न।किरण अर्पिता के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रख साइड से गले लगते हुए कहती है।

हां।और मै भी यही चाहती हूं कि तुम्हारे इस प्यार को किसी कि नज़र न लगे।बीना जी खड़े हो दोनों हाथो से बलाए लेती हुई कहती है।

किरण और अर्पिता एक दूसरे को देख मुस्कुराती है और अपने कार्य को निपटाने में लग जाती है।
ठीक तुम दोनों इस काम को खत्म कर कॉलेज जाने के लिए रेडी हो जाना। शाम को पांच बजे हम तीनो मॉल चलेंगे।

जी मासी।अर्पिता ने कहा।बीना जी वहां से दया जी के पास चली जाती है।किरण और अर्पिता अपना कार्य समाप्त कर कमरे में चली जाती है।और कॉलेज जाने के लिए रेडी होने लगती हैं।कुछ ही मिनटों में दोनों तैयार हो जाती है।और अपने कॉलेज बेग उठा फटाफट कमरे से नीचे आती है।

मासी।हम कॉलेज के लिए निकल रहे है।अर्पिता ने हॉल से बीना जी को आवाज़ देते हुए कहा।

ओके लाली।ध्यान से जाना दोनों।बीना जी ने रसोई से आवाज़ देते हुए कहा
ठीक है मां। कह किरण और अर्पिता दोनों एक साथ बाहर निकलती है।

आलमबाग से निकल कर अर्पिता किरण को बाय कर ऑटो में बैठ कर कॉलेज निकल जाती है।वहीं किरण कुछ आगे पैदल चल कॉलेज कैंपस जाने के लिए ऑटो पकड़ती है।

कुछ ही देर में अर्पिता कॉलेज पहुंच जाती है जहां सात्विक कॉलेज के दरवाजे पर ही खड़ा हो अर्पिता के आने का इंतजार कर रहा होता है।

अर्पिता को ऑटो से उतरते देख धीरे से कहता है थैंक गॉड! अर्पिता जी आ गई। ऑटो वाले को पैसे दे अर्पिता कॉलेज के दरवाजे पर पहुंचती है।

सात्विक - हे! अर्पिता! सात्विक ने हाथ हिलाते हुए कहा।

अर्पिता - हेल्लो ! सात्विक जी।

सात्विक - अर्पिता जी आप बुरा न माने तो एक बात कहूं!

अर्पिता - अब ये तो आपकी कही बात तय करेगी कि हमे बुरा लगेगा या नहीं।आप कहिए!

सात्विक - ओके।मुझे कहना था कि आप पर ये हरा रंग अच्छा लगता है।

ओह।थैंक यू! सात्विक जी।और चारो ओर देखने लगती है।

सात्विक जी! लगता है अभी तक श्रुति आई नहीं है।
अर्पिता ने पूछा।

जी अभी तक नहीं आई है बस वो आने वाली ही होगी।सात्विक ने कहा।

ठीक है तो हम जाकर लाइब्रेरी हो आते है।कुछ साहित्य की किताबें ही इश्यू करा लेते है।लेकर शुरू होने में अभी बीस मिनट का समय है।अर्पिता ने घड़ी देखते हुए कहा।

ठीक है अर्पिता जी मै भी आपके साथ चलता हूं।सात्विक ने कहा।

आप यहीं रुकिए।श्रुति आ जाए तो आप प्लीज उसे बता दीजिएगा कि हम लाइब्रेरी में है।बेकार में वो हमें ढूंढ़ते हुए परेशान होगी।

ठीक है।कह सत्विक वहीं खड़ा हो जाता है।और अर्पिता आगे बढ़ जाती है।कुछ कदम चलती है कि तभी उसे बाहर बाइक के रुकने का हल्का सा स्वर सुनाई देता है।

ये स्वर तो बिल्कुल उसी तरह का है जैसा कल हमने प्रशांत जी की बाइक का सुना था।अर्थात आज श्रुति को छोड़ने प्रशांत जी आए हुए है।ख्याल आते ही अर्पिता तुरंत पीछे मुड़ कर देखती है।उसकी नज़र दरवाजे पर जाकर टिक जाती है।दरवाजे के उस पार प्रशांत जी श्रुति के साथ ही होते है।

ओह गॉड कहीं ये स्वप्न तो नहीं है।अर्पिता अपनी आंखे मसलते हुए कहती है।.. नहीं ये स्वप्न नहीं है हकीकत है।ये प्रशांत जी ही है।अर्पिता अपने कदम पीछे खींच वापस दरवाजे की ओर बढ़ जाती है।

श्रुति अर्पिता को देखती है तो हाथ हिला कर हाय कहती है।अर्पिता मुस्कुराते हुए हाथ उठा कर हिला देती है।अर्पिता और सात्विक दोनों ही आगे बढ़ श्रुति के पास आ जाते हैं।

प्रशांत एक बार अर्पिता को देखता है और चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट रख हेल्लो कहता है।

हाय। कितनी प्यारी आवाज़ है।अर्पिता मन ही मन खुद से ही कहती है।क्यूंकि स्पष्ट कहने की उसमे अभी इतनी हिम्मत ही नहीं है।

जी। हेलो।अर्पिता ने कहा।

प्रशांत श्रुति की ओर मुखातिब होकर कहता है आज शाम को ठीक सही समय पर मॉल में पहुंच जाना।मै चित्रा और त्रिशा दोनों के साथ मॉल पहुंच जाऊंगा।शाम को मूवी का प्लान है मिस मत करना।बाकी सभी भी वहीं आ जाएंगे ओके।...

ओके भाई आप टेंशन न लो! मै शाम को ठीक पांच बजे फीनिक्स में ही मिलूंगी।

ओके।बाय फिर।मिलते है शाम को।कह प्रशांत अपनी बाइक मोड़ता है।और रोक कर मुड़ते हुए कहता है अर्पिता....सुनो..!। अगर शाम को फ्री हो तो तुम भी श्रुति को ज्वाइन कर सकती हो।कह प्रशांत वहां से चले जाते है।लेकिन जाते हुए अपने कहे शब्दों के द्वारा अर्पिता के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान छोड़ जाता है...

क्रमशः..