कैसा ये इश्क़ है....( भाग 1) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है....( भाग 1)

लखनऊ नवाबों की नगरी है मियां यहाँ के जर्रे जर्रे मे तहजीब और नजाकत बसी हुई है।यहाँ की तहजीब के किस्से इतने सुनाये जाते है तो सोचिये जनाब तहजीब और नजाकत के इस खूबसूरत शहर मे इश्क़ के कितने किस्से सुनाये जाते होंगे।इश्क़ की कितनी ही कहनियो ने इस शहर मे रुहानियत को जिया होगा कितने ही किस्सो ने इस शहर की फिजाओ को अपने प्रेम की महक से महकाया होगा।यहाँ के तो इश्क़ मे भी तह्जीब और नजाकत की झलक ही देखने को मिलती है।वो इश्क़ जो हमे इस दुनिया से उस दुनिया मे ले जाता है जिसे लोग अक्सर जन्नत कहते हैं।वो इश्क़ जो एक कमजोर और हारे हुए इंसान को शिला से भी अधिक मजबूत बना देता है।एसा है हमारा लखनऊ।तभी तो हर लखनऊ वासी शान से कहता है मुस्कुराइये आप लखनऊ में है”।

ट्रेन मे सफर करते हुए मिस्टर खन्ना ने अपने साथ ही सफर कर रहे एक सज्जन रविंद्र मिश्र से कहा जो उनसे लखनऊ के बारे मे पूछ रहा था।रविंद्र जी शिक्षा विभाग मे एक सरकारी मुलाजिम् है।मिस्टर खन्ना और रविंद्र जी के बीच हो रही बातचीत को उसी रेलगाड़ी मे मौजूद कोई और भी बड़े ही ध्यान से सुन रहा है और वो है उसी ट्रैन मे सफर कर पहली बार लखनऊ जा रही एक लड़्की जिसका नाम है अर्पिता व्यास।सफेद रंग का फ्रॉक सूट पह्ने हुए वो खिड़की वाली सीट पर बैठी दोनो की बातचीत सुन कर मुस्कुरा रही है।

*उनकी बातचीत सुन कर मन मे ये जिज्ञासा उठना स्वाभाविक है कि क्या सच में जैसा इन्होने अभी लखनऊ के बारे में वंर्णन किया है वैसा ही है।या इससे भी भिन्न रंग है इस शहर के मौसम के।*

अपने भविष्य की परतों से अंजान अर्पिता मुस्कुराते हुए खिड़्की पर अपना सर टिकाती है और इस शहर के ख्यालातो मे खो जाती है।

कुछ घंटो बाद ट्रेन लखनऊ जंक्शन पर रुकती है।ट्रेन के रुक जाने के कारण खिड़्की से हवा के झोंके आना बंद हो जाते है जिससे अर्पिता की आंख खुल जाती है।वो ट्रेन की खिड़्की से झांक कर देखती है तो लखनऊ जंक्शन का बोर्ड उसे दिखाइ पडता है।आखिर हम लखनऊ पहुंच ही गये। अर्पिता खुद से ही कहती है और मुस्कुरा देती है।अर्पिता अपना सामान उठाती है और इस शहर की तरफ़ अपना पहला कदम बढाती है।ट्रेन से पहला कदम बाहर रखते ही एक हवा का झोका आता है और उसे छूकर गुजर जाता है।जैसे ये झोंका इस शहर ने अर्पिता के स्वागत के लिये ही भेजा हो।स्टेशन खचाखच भरा हुआ है।अर्पिता भी अपना बैग उठाती है और इस भीड़ मे शामिल हो स्टेशन से बाहर आ जाती है।अर्पिता एक ऑटो पकड़्ती है और उसे आलमबाग चलने को कहती है।लखनऊ की साफ सुथरी सड़के देख उसे बहुत अच्छा लगता है। आज तो मासि को हम सरप्राइज दे ही देंगे।हमें यहाँ लखनऊ मे देख मासी तो एकदम से चौंक ही जायेंगी।इसीलिये तो हमने मासि को हमारे आने के बारे मे नही बताया। मासी का एड्रेस हमने मां से लिया और हम पहुंच गये लखनऊ। सच मे यहाँ आकर तो एक अलग ही एहसास हो रहा है यहाँ की तो हवा मे भी जादू सा लगता है। चारों ओर इतना शोर होने पर भी कितनी शांति सी लग रही है लगता है ये शहर हमें बहुत रास आने वाला है।अर्पिता मन ही मन ये सब सोचते हुए खुश हो रही है।कुछ ही देर मे ऑटो आलमबाग मे बताये हुए पते पर जाकर रुकती है अर्पिता ऑटो से बाहर उतरती है।ऑटो वहां से चला जाता है और अर्पिता अपनी मासी के घर के सामने जा कर बेल बजा देती है।

अर्पिता की मासी आकर दरवाजा खोलती है और सामने अर्पिता को देख चौंकते हुए कहती है अर्पिता तुम यहाँ।

हां मासी हम यहाँ हो गई शॉक्ड आखिर।बस यही रिएक्शन हम आपके चेहरे पर देखना चाहते थे।अर्पिता ने अपनी मासी के गले लगते हुए कहा।

हाँ अर्पिता बिल्कुल मै तो हैरान रह गयी।मै तो कब से कह रही थी तुमसे कि लखनऊ घूम जाओ लेकिन तुम ही नही आइ।अच्छा किया जो चली आइ मेरा भी अब मन लगा रहेग। अरे दरवाजे पर ही काहे रुक गयी हो आओ अंदर आओ मासी ने कहा तो अर्पिता अपना बेग उठा अंदर आ जाती है।घर को अच्छे से मैन्टेन किया गया होता है। अंदर जाते ही सामने हॉल होता है उसी से सटे हुए सारे कमरे और रसोई होती है जो मिलकर अर्ध चंद्र आकार बनाते है।

उस घर मे कुल मिला कर पांच सदस्य होते है।बीना जी(मासी),हेमंत जी(मौसा जी), आरव(बीना जी का बेटा),किरण(बीना जी की बेटी)और सबसे बड़ी और घर की मुखिया दया देवी जी( हेमंतजी की मां) आरव और किरण अपने अपने कॉलेज गये हुए होते है वहीं हेमंत जी अपने ऑफिस के किसी काम से शहर से बाहर गये हुए है घर पर इस समय बीना जी और दया जी होती है।अर्पिता अंदर आकर सोफे पर बैठी हुइ दया जी को हाथ जोड कर नमस्ते करतीहै।

दया जी अपना चश्मा ठीक करती है और उसे लगा कर सामने देखती है। कौन अर्पिता! नमस्ते नमस्ते।दया जी ने बडी ही मधुर आवाज मे कहा।

जी हम ही है दादी मां।अर्पिता ने बड़ी ही शालीनता से कहा।

अच्छा अर्पिता तुम यहाँ बैठो मै पानी लाती हूँ।बीना जी ने मुस्कुरा कर कहती है और रसोइ मे जाती है तथा ठंडा पानी लाकर अर्पिता को देती है।थंक्यू मासी अर्पिता ने बीना कहा और उनके हाथ से बॉटल ले सारा पानी पी जाती है।बीना जी वही बैठ जाती है। अर्पिता और बीना जी कुछ देर बातचीत करती है।

बीना जी: अर्पिता तुम थक गयी होगी एसा करो किरण के कमरे मे जाकर पहले चेंज कर फ्रेश हो जाना फिर थोड़ा रेस्ट कर लेना ठीक है।

जी मासी।अर्पिता ने कहा और वहां से उठकर कमरे में चली जाती है।अर्पिता के कमरे मे जाने के बाद बीना जी दया जी कहती है “मां जी अर्पिता इस शहर में आगे पढने के लिये आइ है अगर आपको कोइ दिक्कत न हो तो क्या ये हमारे साथ यही रुक सकती है वो क्या है न अगर किसी अपने के साथ ही रहे तो बच्चेके साथ साथ उसके परेंट्स को भी कोइ चिंता नही रहती ”। बीना जी की बात सुन दया जी कहती है अरे बीना ये भी कोई पूछने वाली बात है अर्पिता जब तक चाहे यहाँ रह सकती है।

दया जी की बात सुन बीना जी दया जी को धन्यवाद कहती है और रसोइ मे चली जाती है।धीरे धीरे शाम हो जाती है आरव किरण दोनो घर आ जाते हैं।अर्पिता को देख दोनो बहुत खुश होते हैं।और तीनो बैठकर गप्पे मारने लगते है।अगले दिन किरण और आरव कॉलेज के लिये तैयार हो कर नीचे डायनिंग पर आ जाते है।अर्पिता भी नहा धोकर तैयार हो नीचे आ जाती है।उसने पीले रंग का चिकन की कढाइ वाली लोंग कुर्ती पहनी हुई है जो उस पर खूब फब रही है। अरे वाह बहुत सुंदर लग रही हो अर्पिता बीना जी अर्पिता से कहती है।आओ बैठो तुम भी हम सब के साथ नाश्ता कर लो।

जी मासी लेकिन दादी मां अब तक नही आई।

तुम खाओ बिटिया वो अभी स्नान वगैरह कर ध्यान पूजा करेंगी उसके बाद तुलसी को जल अर्पण कर के ही वो अन्न ग्रहण करती है।

क्या सच मे मासी।इसका मतलब क्या दादी मां बदल गयी है।पहले जब हम उनसे मिले थे तब तो वो एसा कुछ नही करती थी बल्कि उन्हे भूख बहुत लगती थी। तो सुबह उठने के आधे घंटे बाद ही उन्हे कुछ न कुछ खाने के लिये चाहिये होता था।अर्पिता ने थोड़ी तेज आवाज में कहा।जिसे सुन कर किरण आरव के साथ साथ बीना को भी हंसी आ जाती है।लेकिन बीनाजी अपनी हंसी दबा लेती है।

कुछ एसा ही समझ लो अर्पिता बीना जी कहती है।

अच्छा किरण एक काम करो तुम आज अर्पिता को अपने साथ कॉलेज ले आओ शाम तक तुम्हारे पापा आ जायेंगे तब मै उनसे अर्पिता की पढाई के विषय में आगे बातचीत कर लूंगी।क्युंकि इसको म्युजिक टीचर बनना है तो उसी से रिलेटेड कॉलेज भी देखना होगा। तुम्हारे पिता से इस बात पर डिस्कशन कर कल इसका भी दाखिला किसी अच्छे कॉलेज मे करा देंग।आज ये घर बोर हो जायेगी तो तुम इसे अपने साथ ही ले जाओ।

स्योर मां।मुझे भी अर्पिता के साथ बड़ा मजा आयेगा।क्यूं अर्पिता चलोगी मेरे साथ किरण ने पूछा।

ठीक है हम अपना बैग लेकर आते है।तुम एक काम करना हमें लाइब्रेरी से कुछ किताबें इश्यू करा देना और तुम अपना लेक्चर अटेंड कर लेना ठीक है।अर्पिता ने कहा और और अंदर कमरे से अपना बैग उठा लाती है।

अब चले।अर्पिता ने कहा।

ह्म्म्।किरण कहती है और दोनो बीना से कह वहां से कॉलेज के लिये निकल जाती है।और कुछ देर बाद दोनो कॉलेज पहुंचती है।अर्पिता किरण का कॉलेज देखती है और उससे कहती है ‌‌-

अर्पिता – किरण ! तुम्हारा कॉलेज तो बहुत बड़ा है और काफी खूबसूरत भी है।

किरण्- हां अर्पिता मेरा कॉलेज काफी बडा है।ये कैम्पस जो है।तुम घूमते हुए लगभग थक ही जाओगी।

हाँ लेकिन हमें कैम्पस नही घूमना है तुम तो हमें बस अपने कॉलेज के पुस्तकालय ही ले चलो हमें तो बस किताबों की दुनिया मे ही घूमना भाता है।अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।

ओके डियर।चलो फिर कहते हुए किरण अर्पिता को कॉलेज की लाइब्रेरी मे ले जाती है।

किरण – लो आ गये ह्म पुस्तकालय्।

अर्पिता पुस्तकालय को गौर से देखती है काफी बड़ा कमरा होता है।चारों ओर बस किताबें ही किताबें।अर्पिता को यूं गौर से देखता पाकर किरण उससे धीरे से कहती है अर्पिता आरामसे देखती रहना पहले तुम अपने पढने के लिये किताबें चुन लो क्युंकि मुझे लेक्चर अटेंड करने भी जाना है।मेरे पास कार्ड है तो मै इश्यू करा दूंगीफिर तुम उन्हे चाहे यहाँ रीड करो या घर पर।

ठीक है ह्म देख लेते है अर्पिता कहती है और रैक की तरफ बढ जाती है।और वहां से कुछ किताबे चुनती है जो हिंदी साहित्य से समबंधित होती है।और एक किताब चुनती है जो संगीत जगत से रिलेटेड होती है।अर्पिता तीन किताबें चुन कर किरण के पास आ जाती है और उसे किताबे देते हुए कहती है।अभी के लिये हम ये तीन पुस्तके चुन कर ले आये है। तुम इन्हे अपने कार्ड से इश्यू करा दो।हम इन्हे दो दिन बाद लौटा देंगे।

ठीक है कहते हुए किरण लाइब्रेरियन के पास जाती है और अपना कार्ड देकर किताबें इश्यू करा लेती है।

किरण‌‌ - अर्पिता ये ले अपनी किताबें।यहां बैठ कर आराम से पढ ले मै क्लास के लिये निकलती हूँ।ठीक है बाय। दो घंटे बाद आकर मिलती हूँ। कहते हुए किरण वहां से निकल जाती है।

बाय! अर्पिता ने कहा और खाली जगह देख कर बैठ जाती है।जिस जगह आर्पिता बैठी हुई होती है उस जगह पिछे दीवार पर एक फेन लगा हुआ है जिसकी हवा उसके ऊपर पर भी पड़ रही है।इसी हवा की वजह से उसका दुपट्टा उड़ रहा होता है और उसका एक सिरा उड़्कर वहीं पास ही मे बैठे व्यक्ति के हाथो पर जाकर गिरता है।वो पढने मे इतना मगन हो जाती है कि उसे इस बात का ध्यान ही नही रहता है।

सुनो... आपका दुपट्टा। एक सधी हुई आवाज अर्पिता के कानों मे पड़ती है।वो आवाज की तरफ देखती है।उसके पास ही करीब तेईस बरस का एक सांवला सा लड़्का बैठा है। जो उसकी ही तरफ देख रहा है।उसके उस लड़्के की तरफ देखने पर कहता है।

सुनो..... आपका दुपट्टा।

क्रमशः...