कैसा ये इश्क़ है.... ? (भाग 5) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... ? (भाग 5)

अर्पिता तुम बताओ तुम्हारी फ़ैमिली में कौन कौन है? मुझे भी तो पता चले।आखिर इतनी बोल्ड लड़की को कौन कौन झेलता है घर में।श्रुति मुस्कुराते हुए कहती है।

हमारे घर में यहां पर तो मासी, मौसा जी,उनके दो बच्चे और दादी इतने सब है।

ओह तो तुम यहां लखनऊ में अपने मौसा मौसी के साथ रहती हो।

हां जी।अर्पिता ने कहा।तभी श्रुति का फोन बजता है जो उसके घर से होता है।अर्पिता घर से फोन है मै तुमसे बाद में बात करती हूं ठीक है।

ओके श्रुति! नो प्रॉब्लम।तुम आराम से बात कर लो।हम यहीं पढ़ते है तुम बात कर लो फिर निकलते है घर के लिए।

हम्म।कह श्रुति वहां से एक तरफ चली जाती है।और बात करने लगती है।

सात्विक जो बहुत देर से अर्पिता को देख रहा है वो मुस्कुराता है और फिर से अपना कार्य करने लगता है।

अर्पिता और सात्विक वहीं गार्डन में बैठे हुए है। कि तभी कोरिडोर की तरफ से कुछ शोर सा सुनाई देता है।अर्पिता ध्यान देती है तो वहां से उठ कर जाने लगती है।सात्विक भी वहां से उठ कर कोरिडोर की तरफ जाता है।अर्पिता कॉरिडोर में जाती है।जहां कॉलेज के छात्र छात्राएं चारो ओर से घेरा बनाए हुए है उनके बीच से आवाज़ आ रही है त्रिपाठी सर आप ठीक है।त्रिपाठी सर कुछ बोलिए क्या हुआ आपको।त्रिपाठी सर...!

अर्पिता और सात्विक दोनों ही ये आवाज़ सुनते है।और परिस्थिति समझ आसपास के छात्रों को वहां से हटने के लिए कहते है।

अर्पिता : आप लोग एक तरफ हट जाइए!हवा आने दीजिए सर पर। प्लीज़ सभी एक तरफ हटिए।

वहीं सात्विक भी सबसे एक तरफ हटने को कहता है।आसपास की जगह भी खाली हो जाती है।छात्र कुछ पीछे हट जाते है तो अर्पिता और सात्विक दोनों ही त्रिपाठी सर के पास पहुंचते है।त्रिपाठी सर उस समय लगभग अचेत अवस्था में होते है।त्रिपाठी सर के पास कॉलेज के ही कुछ छात्र होते है जो उन्हें मूर्च्छा अवस्था से बाहर लाने की कोशिश कर रहे है।

सर को पंखे के नीचे ले जाना होगा।सात्विक सर को देखते हुए कहता है।इन्हे पसीना निकल रहा है।हो सकता है सर को गरमी की वजह से चक्कर आ रहे हो जिस कारण इनका स्वास्थ्य खराब हो गया हो।
प्लीज़ आप में से कोई मेरी मदद करो।जिससे मै सर को वहां हॉल में ले जा सकूं।

सात्विक की बात सुन कुछ छात्र आगे बढ़ते है एवम् त्रिपाठी सर को उठा कर कंधे का सहारा दे कर उन्हें धीरे धीरे हॉल में ले जाते है जहां एक बेंच पर उन्हें लिटा देते है।अर्पिता जाकर पानी ले आती है। हवा लगने से धीरे धीरे त्रिपाठी सर के शरीर पर आया हुआ पसीना सूखने लगता है।

कुछ क्षणों में त्रिपाठी जी की मूर्च्छा टूट जाती है।एवम् वो अपनी आंखे खोलते है।कॉलेज के अन्य साथी प्रोफेसर सदस्य वहां आ जाते हैं।एवम् त्रिपाठी जी से उनके स्वास्थ्य के विषय में पूछतें है।

साथी प्रोफेसर है तो औपचारिकता तो निभानी ही पड़ेगी।त्रिपाठी जी मन ही मन सोचते है हृदय में राम बगल में छुरी।लेकिन व्यावहारिकता और संस्कार।ये दो बेड़ियां जो प्रत्येक इंसान के व्यक्तित्व पर इस क़दर हावी है कि उसे बनावटी पन रखने के लिए मजबूर कर देते हैं। यही हमारे त्रिपाठी जी कर रहे हैं।साथी प्रोफेसर से उनके संबंध कुछ विशेष अच्छे नहीं है लेकिन व्यवहारिकता है तो दिखाना पड़ेगा कि मुझे भी आपका इस तरह हालचाल पूछना अच्छा लगा।

शुक्रिया आप सभी का।अब मै बेहतर महसूस कर रहा हूं।त्रिपाठी जी ने संक्षिप्त सा उत्तर देकर वाक्यांश को समाप्त कर दिया।

साथी प्रोफेसर गण वहां से चले जाए है उनके साथ ही त्रिपाठी जी स्टाफ रूम में चले जाते हैं।।त्रिपाठी जी के जाते ही सभी छात्र वहां से तितर बितर हो जाते हैं।अर्पिता भी वहां से चली आती है और आकर बागीचे में बैठ जाती है।

सात्विक जिसने अभी अभी अर्पिता का एक अलग ही रूप देखा था अर्पिता के बारे में सोच मुस्कुराते हुए कहता है लगता है बहुरंगी व्यक्तित्व है आपका मिस अर्पिता जी।

सात्विक भी वहां से चला आता है और अर्पिता के पास जाता है।एवम् उससे बातचीत करना शुरू करता है।

परोपकारी स्वभाव है आपका अर्पिता जी।सात्विक ने बात शुरू करते हुए कहा।

अर्पिता जो लाइब्रेरी से लाई हुई पुस्तकों का अध्ययन कर रही है आवाज़ सुन ऊपर की तरफ देखती है।

जी ऐसा नहीं है कि परोपकारी स्वभाव है।बस जहां आवश्यकता होती है और हमें लगता है कि हम मदद कर सकते है तो अवश्य करेंगे।बाकी परोपकार का स्वभाव तो नहीं है।अर्पिता बड़ी ही स्पष्टता से कहती है।

क्या विचारधारा है आपकी।इसी को तो कहते हैं नेकी कर दरिया में डाल!सात्विक ने मन ही मन कहा।
कुछ क्षण में लिए दोनों चुप हो जाते है। सात्विक बातचीत को जारी रखने के लिए आगे कहता है --

अगर आप बुरा न समझे तो क्या मै आपसे कुछ गुफ्तगू कर सकता है।

सात्विक की बात सुन अर्पिता सवालिया निगाहों से उसकी तरफ देखती है।

अरे आप ऐसे न देखिए।मै ज्यादा निजी बात नहीं करूंगा बस ऐसे ही कुछ सामान्य जानकारी जानना चाहता हूं एक कॉलेज सहयोगी के तौर पर।मुझे उम्मीद है कि आपको इससे कोई परेशानी नहीं होगी।

अर्पिता कुछ सोचती है और कहती है ठीक है आप पूछिए अगर उचित लगेगा तो हम आपको उत्तर अवश्य देंगे।

बहुत अच्छा!सात्विक ने कहा।और अर्पिता से कुछ प्रश्न पूछने लगता है!

सात्विक - अर्पिता जी क्या आप यहीं लखनऊ से है?
अर्पिता - जी नहीं! यहां से तो नहीं है लेकिन फिलहाल यहीं रहते हैं।

ठीक है।वैसे क्या आपको साहित्य से विशेष लगाव है ?

जी! लगाव तो है।हमे पढ़ना बेहद पसंद है।फिर चाहे वो हिंदी साहित्य की पुस्तके हो या फिर संगीत जगत से संबंधित कोई जानकारी।

धन्यवाद! वैसे एक बात कहूं मै कि ये पढ़ने की आदत बहुत होना अच्छा है।हर किसी को ये आदत नहीं पड़ सकती।सात्विक ने चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कुराहट रखते हुए कहा।

जी बिल्कुल सही कहा आपने।पढ़ने की आदत इतनी आसानी से नहीं पड़ती।इसके लिए धैर्य की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है।धैर्य का ये गुण अगर हमारे पास है तो ज्ञान का भंडार होना कोई बड़ी बात नहीं।

आप बातें बहुत अच्छी करती है।सात्विक ने कहा।

जी शुक्रिया।अर्पिता कहती है।श्रुति भी बातचीत कर वापस से अर्पिता के पास आ जाती है।श्रुति अर्पिता और सात्विक की बातचीत सुनती है।

अच्छा एक अंतिम प्रश्न और है!

जी पूछिए?

अर्पिता जी आप आगे किस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहती है।मेरे कहने का अर्थ है आप आगे क्या करना चाहती है।

हम एक सफल संगीत अध्यापिका।

ये तो बहुत अच्छा है।सात्विक ने कहा।
अगर आपको उचित लगे तो क्या हम अच्छे दोस्त बन सकते है।वो क्या है न मै आपकी विचारधारा से बेहद प्रभावित हूं।और मेरा मानना है कि अगर हमे कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो हमे प्रथम बातचीत में अपनी बातो की गहराई से प्रभावित करे तो उससे मित्रता कर लेनी चाहिए। आपसे बातचीत करते हुए मुझे इस बात का एहसास हो रहा है।सात्विक ने संजीदगी से अपने मन की बात कही।जिसे सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए कहती है।ठीक है। हमे आपसे मित्रता करने से कोई गुरेज नहीं है लेकिन हमारी भी एक आदत है हम यूंही हर किसी से मित्रता नहीं करते है।हमारे लिए मित्रता करने के कुछ पैमाने है अगर आप उन पर खरे उतरे तभी हम आपकी मित्रता के प्रस्ताव को स्वीकृति देंगे।क्यूंकि भगवान कृष्ण भी कहते हैं किसी से मित्रता बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए।क्यूंकि मित्रता निभाना अत्यंत कठिन होता है।और एक बार मित्रता करने पर जीवन पर्यन्त उसे निभानी चाहिए।

सच में इनके विचार कितने उच्च है।सात्विक ने मन ही मन खुद से कहा।और अर्पिता से पूछा।जब आपने ये बता दिया है कि आपके मित्र बनने के कुछ विशेष पैमाने है तो अब आप मुझे उनकी भी जानकारी दे दीजिए जिससे कि मै ये समझ सकूं कि मै आपके मित्र बनने योग्य भी हूं या नहीं।

अरे इतनी शीघ्रता करने की जरुरत तो है नहीं जैसा कि हमने अभी कहा कि धैर्य नाम का भी एक गुण होता है।अर्पिता ने सात्विक से कहा।

ठीक है मिस अर्पिता जी तो अभी तो हम ऐसे ही फॉर्मल बातचीत कर सकते हैं कि नहीं।

बिल्कुल इसमें क्या बुराई है।अर्पिता ने कहा।और श्रुति के साथ बातचीत करने में व्यस्त हो जाती है।सात्विक मुस्कुराते हुए वहां से चला जाता है। और अपना किताबों वाला बेग लेकर उन दोनों के पास आकर बैठ जाता है।अर्पिता उसे देखती है फिर से अपने कार्य में लग जाती है।

वहीं सात्विक भी अपनी पुस्तक निकालता है और पढ़ने लगता है।कुछ एक चीजे उसे समझ में नहीं आती है।तब वो अर्पिता से उन्हें डिस्कस करने लगता है।

अर्पिता जी! क्या आप मुझे इन दो टॉपिक्स को क्लियर करवा सकती है।सात्विक ने किताब अर्पिता को दिखाते हुए कहा।

अर्पिता किताब देखती है किताब में दो टॉपिक्स पर गोल सा निशान बना होता है।

यही वाले न जो गोल गोल है।अर्पिता ने पूछा।

जी।

ठीक है हम बताते है अर्पिता कहती है और सात्विक को टॉपिक्स क्लियर करा देती है।सात्विक ध्यान से उसे समझता है और उसके टॉपिक क्लियर हो जाते है।

धन्यवाद अर्पिता जी।आपने बहुत ही सरल तरीके से बताया अब समझ में आ चुका है।

अच्छी बात है। अर्पिता कहती है।श्रुति अर्पिता और सात्विक की बातचीत बड़े ही ध्यान से बातचीत सुनती है।एवम् सात्विक के पूछे गए टॉपिक्स को देखती है जो उसके भी क्लियर नहीं हुए होते है।उसे भी सरलता से समझ आ जाते है।

हे सात्विक।थैंक्यू? फॉर आस्किंग दीज़ क्वेश्चन?ये तो मेरे भी क्लियर नहीं थे।आज आपकी वजह से क्लियर हो गए।

ओह माय गॉड।इसे कहते है चिराग तले अंधेरा!सात्विक छूटते ही कहता है।उसने बात इस तरह कही होती है कि अर्पिता और श्रुति दोनों की ही हंसी छूट जाती है।

हम सही कहा सात्विक आपने।इसी बात पर आज से हम फ्रेंडस।बोलो मंजूर है?श्रुति ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।

हां हां क्यों नहीं।नेकी और पूछ पूछ! कहते हुए सात्विक अपना हाथ आगे बढ़ा हाथ मिलाता है।

गुड।तो फिर आज हम आपको इस नई नई दोस्ती की खुशी में कुछ मीठा खिलाते है श्रुति ने एक्साईटेड होकर कहा।और अपने बेग में से पांच पांच रुपए की दो फाइव स्टार चॉकलेट निकाल लेती है।

ये लो मेरी फेवरेट फाइव स्टार चॉकलेट।इसे खाओ और फाइव स्टार का मज़ा लो।श्रुति मुस्कुराते हुए कहती है।

ओह रियली। इट्स योर फेवरेट तो फिर जरूर स्वाद लेना चाहिए।सात्विक ने कहा और चॉकलेट हाथ में ले लेता है।वहीं अर्पिता अपनी किताबे देखने लगती है।जिसे देख श्रुति कहती है ओ मिस.. किताबों की शौकीन।अब तुम्हारे लिए क्या अलग से इन्विटेशन दें हम।देखो आज ही हमारी भी दोस्ती की शुरुआत हुई है तो तुम्हारा भी मुंह मीठा करना बनता है।

अर्पिता श्रुति की ओर देखती है और चॉकलेट लेते हुए उससे कहती है। जब कुछ देर पहले हमने तुम्हे देखा था न तब तो ऐसे चुप बैठी थी जैसे तुमने कुछ कहा तो जुर्म हो जाएगा।और अब ऐसे बातचीत कर रही हो जैसे डर कौन सा पंछी है पता ही नहीं हो।

हम ये सब तुम्हारी संगत का असर है श्रुति हंसते हुए कहती है।

हमारी संगत श्रुति? अर्पिता हैरान होकर पूछती है।

हम्म! तुम्हारी संगत।अब इतनी ब्रेव गर्ल का साथ होगा तो स्वयं को परिवर्तित करने में समय कितना लगेगा।श्रुति मुस्कुराते हुए कहती है।वैसे सच कहूं अर्पिता तो डरती तो मै किसी से नहीं हूं बस वो लड़के थोड़े ज्यादा बदतमीज है इसीलिए उनसे उलझना मुझे समझ नहीं आता।इसीलिए उन्हें इग्नोर करना ही बेहतर समझती हूं।

ये तो बहुत अच्छी बात है कि तुम किसी से डरती नहीं हो।अर्पिता सहजता से कहती है।अच्छा अब हम चलते है।कल शाम को ही मिलेंगे।अर्पिता ने अपनी किताबें समेटते हुए कहा।

शाम को क्यूं अर्पिता जी।सात्विक ने पूछा।
क्यूंकि शाम को हम भी कॉलेज ऑडिटोरियम में आयोजित होने वाले प्रोग्राम में आएंगे। कह अर्पिता चुप हो जाती है और सोचती है आना तो पड़ेगा ही आखिर हमें किसी के भाई से भी तो मिलना है।

ओह तो ये बात है।आप कल होने वाले प्रोग्राम में शिरकत कर रही है अर्पिता जी।

अरे नहीं शिरकत करने नहीं।हम तो दर्शक बन कर जा रहे है।अभी इतना हुनर नहीं है कि ऐसे प्रोग्रामो में शिरकत कर सके।

हुनर तो होता ही है अगर नहीं हो तो कुछ सीखा भी जा सकता है।इसमें कौन सी मुश्किल है।

जी सही कहा सात्विक जी आपने। सीखा जा सकता है लेकिन ये ग़ज़ल लिखना, शायराना अंदाज़ रखना हर किसी के वश की बात नहीं है।और हम समझते है कि ये ऐसे हुनर है जिन्हे सीखा नहीं जा सकता।ये तो कुदरती तौर पर हुनर के रूप में गॉड गिफ्टेड होते है। हां बस इतना किया जा सकता है इस हुनर को अभ्यास के साथ निखारा जा सकता है।

वाह क्या बात कही है आपने अर्पिता जी सौ टका सच।

जी शुक्रिया! अब हम चलते है बाय बाय।अर्पिता कहती है और कॉलेज से घर के लिए चली आती है।

वहीं सात्विक और श्रुति भी एक दूसरे को बाय कह वहां से भाग चले जाते है।

अर्पिता घर पहुंचती है।जहां किरण और बीनाजी दोनों ही हॉल में बैठ उसका इंतजार कर रहे है।
हेल्लो!मासी हम आ गए है।अर्पिता ने हॉल में पड़े सोफे पर बैठते हुए कहा।

बहुत बढ़िया।लाली।अब आप बैठिए मै आपके लिए कॉफी लेकर आती हूं।बीना जी कहती है।अर्पिता वहां से उठकर चली जाती है। वहीं बीना जी किरण को कुछ देर में रसोई में आने का कह वहां से चली जाती है।

कुछ ही देर में अर्पिता भी नीचे आ जाती है।और कॉफी पीते हुए टेलीविजन पर लेटेस्ट न्यूज देखने लगती है।इसी तरह ये दिन भी निकल जाता है।

अगले दिन शाम को अर्पिता कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगती है।उसने लाइट ब्लू रंग की ड्रेस पहनी हुई है।और बालो को फोल्ड कर जुड़ा बना उनमें क्लिप लगाती है।कानों में उसकी ड्रेस से मैचिंग इयर रिंग डालती है।एक हाथ में गोल्डेन वॉच और दूसरे में हाथो में पहने जाने वाला ब्रेसलेट पहनती है।हलके नीले रंग में चिकन की कारीगरी वाली फ्रॉक सूट पहने अर्पिता बेहद खूबसूरत लग रही है।उसके मन में वो मुड़ते हुए प्रशांत का चेहरा घूम रहा है जो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट का काम कर रही है।अर्पिता इतने जतन से तैयार हो रही है कि करीब दस मिनट में पूरी तरह रेडी होने वाली अर्पिता से कब तीस मिनट संजने संवरने में व्यतीत हो गये उसे पता ही नहीं चला।
वो पूरी तरह तैयार हो जाती है और किरण को आवाज़ दे कहती है," किरण हम कैसे लग रहे है"?

किरण जो तैयार हो कर अर्पिता का ही इंतजार कर रही है।अर्पिता को देख कहती है थैंक गॉड यार जो तुम तैयार हो गई आज इतना ज्यादा टाइम लिया न तुमने तैयार होने में तो मुझे सोच सोच कर ही टेंशन हो रही थी कि कहीं तुम्हारा स्वास्थ्य खराब तो नहीं है।

क्या...! लेकिन हम तो रोज की तरह ही तैयार हुए हैं।उतना ही समय लिया है यार हमने और तुम कह रही हो कि तीस मिनट... हो चुके हैं! कहते हुए अर्पिता घड़ी देखती है और चौंक जाती है।ओह गॉड..! ये तो फॊर थर्टी हो चुके है।

जी....मैडम जी।फोर थर्टी।किरण ने हाथो के इशारे से कहा।

इसका अर्थ है तुम सच कह रही थी किरण।हमने वाकई में तीस मिनट लगा लिए तैयार होने में।

जी यही कह रही थी मै तबसे।चलो कोई बात नहीं समय लगा सो लगा लेकिन तुम लग बहुत सुंदर रही हो।किसी की नज़र न लगे।

तारीफ करने के लिए शुक्रिया।किरण! हमे लगता है कि हमे अब निकलना चाहिए देरी हो रही है।

हम सही कहा चलो अब।किरण कहती है।और अपना बेग उठा अर्पिता के साथ हॉल में आ जाती है।जहां बीना जी की नज़र अर्पिता पर पड़ती है तो वो उसकी नज़र उतारते हुए कहती है मेरी अर्पिता आज बहुत सुंदर लग रही है किसी कि नज़र न लगे।

अर्पिता मुस्कुरा देती है।वहीं किरण थोड़ा चिढ़ते हुए कहती है सही है मां अपनी लाडली की ही नजर उतारना भूल गई आप?

बीना जी किरण के पास आते हुए कहती है अरे तुम तो मेरी प्रिंसेस हो आपकी नज़र उतारना कैसे भूल सकते है।लगते हुए अपनी आंखो के कोरो से काजल चुरा कर किरण के कान के पीछे लगा देती है।तब तक कमरे से किरण का भाई भी आ जाता है।और तीनों बीना जी, हेमंत जी,और दया जी को बाय कहा वहां से कॉलेज के लिए निकल जाते है।

क्रमशः....