कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 7) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 7)

अर्पिता आवाज़ की तरफ मुड़ती है तो सात्विक को देख उससे कहती है।

शुक्रिया आपका।

सात्विक - अरे आप इतनी सी बात के लिए शुक्रिया कहेंगी।

अर्पिता - जी।इतनी सी बात तो नहीं है ये।अब आपने तारीफ की है तो शुक्रिया कहना तो मुनासिब है हमारा।

अमा यार अर्पिता जी। इस हिसाब से तो ये शब्द आपको कई बार दोहराना पड़ेगा।सात्विक मुस्कुराते हुए अर्पिता से कहता है।

सात्विक की बात सुन अर्पिता कहती है सात्विक जी आप की बात का तात्पर्य हम कुछ समझे नहीं।क्या आप समझाएंगे?

मैंने ऐसा कुछ विशेष तो कहा नहीं जो आपको समझ में नहीं आया। बस इतना ही कहा कि आप मेरे तारीफ करने पर शुक्रिया कह रही है तो फिर ये आपको यहां मौजूद ज्यादातर लोगों से कहना पड़ेगा।क्यूंकि यहां भी आपकी तारीफ ही हो रही है।

ओके।समझ गए हम।अर्पिता शांति से मुस्कुराते हुए सात्विक से कहती है।और श्रुति की ओर देखने लगती है।

अच्छा सुन यही है क्या तेरे प्रशांत भाई ?अर्पिता धीमी आवाज़ में श्रुति से पूछती है।

श्रुति (धीरे से)- हां जी यही है।अर्पिता प्रशांत की ओर देखती है जो उन दोनों की बातचीत के हिस्से से परे होकर इस सुहानी शाम का आनंद उठा रहा है।

किरण और आरव दोनो ही वहीं उसके पास ही आ जाते है।वहां पर कुछ सीट्स अभी भी खाली होती है।दोनों खाली सीट देख वहीं बैठ जाते है। अर्पिता भी श्रुति और सात्विक से मिल अपने कजिन के पास ही जाकर बैठ जाती है।
और इस सुहानी शाम को एंज्वॉय करने लगती है।

लेकिन मन तो बावरा होता है न कहां वो किसी की सुनता है।उस पर पहला प्यार है वो भी पहली नज़र का प्रेम है कैसे मन माने।वो तो वहीं जाएगा जहां प्रियतम हो। यही हालत इस समय हमारी अर्पिता की है।लाख कोशिश कर रही है कि नज़रें प्रशांत जी के पीछे न भागे। लेकिन जब मन ही खुद के वश में न रहा तो फिर ये तो निगाहें है बिन मन के ये कहां किसी कि सुनती है बावली सी बेलगाम हो वहीं भागे ही जाती है जहां मन को चुराने वाला चोर बैठा हो।चित्त चोर बैठा हो।अर्पिता कनखियो से प्रशांत जी को देखती है।कुछ देर अपलक देखने के बाद फिर से सामने देखने लगती है।

वहीं हमारे प्रशांत जी पूर्ण मनोयोग से सबसे बेखबर हो कर गज़लों की दुनिया में विचरण करने लगते है।वो अपना सर सीट के पीछे टिकाते है और आंखे बंद कर लेते है।होठ मंच पर मौजूद गजल गायक के सुर ताल से संगम करते हुए हिलने लगते है और हाथ रिदम की तान पर नृत्य कर रहे हैं।

श्रुति कभी अपने भाई को देखती है तो कभी सामने बैठे गजल गायक को।दोनों को देख मुस्कुराती है और अर्पिता की ओर देखने लगती है।उसके चेहरे पर भी उसे खुशी ही नज़र आती है।ये देख वो सोचती है मै अर्पिता को यहीं बैठा देती हूं वो और भाई दोनों ही खूब मजे में है। मैं यहां अभी थोड़ी सी बोर हो रही हूं सोचते हुए श्रुति वहां से उठ कर अर्पिता के पास जाती है।और अर्पिता से कहती है

श्रुति - अर्पिता! यार तुम भी इस फंक्शन में मजे ले रही है और वहां भाई भी मजे ले रहे हैं।तो तुम दोनों साथ साथ बैठ एंज्वॉय कर लो।तुम वहां मेरी जगह जाकर बैठ जाओ और मै यहां तुम्हारी जगह बैठ कर कुछ देर गूगल महाशय से ही बातचीत कर लूं।

ओके! अर्पिता ने कहा।और मुस्कुराते हुए खड़ी हो श्रुति की सीट पर आकर बैठ जाती है।बैठते हुए उसका दुपट्टे का सिरा फिर से प्रशांत के हाथ पर जाकर गिरता है।और पिछली बार की तरह इस बार भी अर्पिता को ध्यान ही नहीं होता है।

प्रशांत के करीब बैठते ही उसे एक अनोखा एहसास होता है।उसका ह्रदय सामान्य गति से तेज धड़कने लगता है।और हृदय में गुदगुदी सी उठती है जिसे उसके लिए किसी शब्द का नाम देना ही मुश्किल लगता है।

वहीं प्रशांत जी अपनी धुन में मस्त होते है।उन्हें हाथ पर किसी वस्तु के होने का एहसास होता है।वो अपनी आंखे खोलता है तो नीले रंग के दुपट्टे का सिरा हाथो में देख वो अर्पिता की ओर देखता है जिसके चेहरे पर सुकून के साथ साथ मुस्कान होती है और हाथो से रिदम तथा ताल के साथ एंज्वॉय कर रही होती है।

सुनो...! प्रशांत ने अर्पिता को आवाज़ देते हुए कहा।अर्पिता उसकी बात का कोई जवाब नहीं देती है।क्यूंकि वहां इतने सारे लोग होते है एवम् उनमें से कुछ साथ ही साथ गुनगुना भी रहे होते है जिस कारण वो सुन ही नहीं पाती हैं।

सुनो...! प्रशांत दोबारा कहता है।अर्पिता एक बार फिर से प्रशांत की ओर देखती है।तो उसे अपनी तरफ देख प्रशांत हाथ ऊपर करते हुए कहता है।सुनो ....आपका दुपट्टा!

ओह सॉरी।अर्पिता कहती है और फुर्ती से दुपट्टा हटाती है।प्रशांत उसके कुछ पास आ कर उससे कहता है सुनो तुम्हारी "प्रस्तुति बहुत अच्छी थी" और वापस से अपनी धुन में मस्त हो जाता है।

प्रशांत की बात सुन कर अर्पिता मुस्कुराती है और मन ही मन कहती है "करम हुआ हम पर हमारे खुदा का"।एवम् मंच पर प्रस्तुत की जा रही गजल ध्यान से सुन गुनगुनाने लगती है।

तभी प्रशांत का फोन रिंग करता है।प्रशांत फोन निकाल कर नम्बर देखता है एवम् नम्बर देख उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।वो अर्पिता से कहता है सुनो...ये गजल दस मिनट बाद खत्म हो जाएगी।तुम श्रुति की दोस्त हो तो उस से कहना कि मै बाहर उसका इंतजार कर रहा हूं।

अर्पिता - जी।हम उसे बता देंगे।
प्रशांत थैंक्स कहता है और वहां से बाहर चला जाता है।

प्रशांत के जाने के बाद अर्पिता श्रुति की ओर देखती है जो इस समय प्रस्तुत की जाने वाली गजल को बड़े ही ध्यान से सुन रही होती है।

कुछ ही देर में गजल समाप्त हो जाती है।अर्पिता श्रुति के पास जाती है और उससे कहती है श्रुति तुम्हारे भाई बाहर खड़े हो तुम्हारा इंतजार कर रहे है।

श्रुति - ओह गॉड।यानी अब मुझे जाना होगा।अभी तो मैंने शो को एंज्वॉय करना शुरू किया था।अभी तो पूरी शाम बाकी है।

शाम!! अर्पिता ने हैरानी से कहा।

हां जी शाम! क्यूंकि इस प्रोग्राम का नाम भी तो यही है एक शाम लखनऊ के नाम।तो हुई न शाम अभी बाकी।श्रुति ने उठते हुए कहा।

अर्पिता - ओके चल हम भी तेरे साथ बाहर तक चलते हैं।

ये अच्छा है।चलो।कह दोनों थोड़ा आगे बढ आती हैं।

श्रुति हम जरा किरण और आरव को मेसेज कर सूचित कर देते हैं।श्रुति से कहते हुए अर्पिता किरण के नबर पर मेसेज कर देती है।

ओके लेकिन ये किरण और आरव है कौन ये तो तुमने मुझे बताया ही नहीं?श्रुति अर्पिता से कहती है।

अर्पिता - ओह सॉरी हमने तुम्हारा परिचय नहीं कराया।किरण और आरव हमारी मासी के बच्चे है।अभी तुम जिनके साथ बैठी थी वही है।

ओके कहते हुए श्रुति पीछे मुड़ कर देखती है जहां किरण और आरव अर्पिता की ओर देख रहे है।और अर्पिता को अपनी तरफ देखता पा हाथ उठा कर थंब दिख देते है।

चलो।अब चलते है श्रुति ने कहा वहीं सात्विक भी उनके पास ही होता है जिसे देख श्रुति उससे कहती है --

श्रुति - ओके सात्विक मिलते है कल कॉलेज में।अभी तो मै निकलती हूं।
ओके।तो क्या अर्पिता जी भी जा रही है तुम्हारे साथ सात्विक ने पूछा?

श्रुति - नहीं अर्पिता नहीं जा रही है वो अपने कजिन के साथ आएगी।

थैंक गॉड! सात्विक खुद से बुदबुदाता है।फिर ठीक है सात्विक कहता है।ओके कह श्रुति अर्पिता के साथ बाहर चली जाती है।

बाहर प्रशांत अपनी बाइक पर बैठा होता है।और फोन पर किसी से बात कर रहा है।उसकी बातों में इस समय गंभीरता के स्थान पर चुलबुला पन होता है।

प्रशांत - हेल्लो! माय स्वीट एंजेल क्या बात है आप इतनी चुप क्यूं है।नाराज हैं क्या?
..........
गुड! अच्छे बच्चे नाराज नहीं होते।मै कल आऊंगा आपसे मिलने! और ये सीक्रेट है।अपनी मम्मा को इस बारे में नहीं बताना ठीक है।

गुड ..... ! माय स्वीट लिटल एंजेल।बाय। लव यू।कहते हुए प्रशांत फोन रख देता है।

अर्पिता प्रशांत की बात सुन शॉक्ड हो जाती है।उसके मासूम दिल को जोर का झटका लगता है।वो समझती है कि वो बच्ची प्रशांत ......! नहीं..!अर्पिता एकदम से बोल पड़ती है।

क्या हुआ अर्पिता....? क्या नहीं..!श्रुति हैरान होकर अर्पिता से पूछती है।

कुछ नहीं श्रुति वो बस दिमाग में कुछ ख्यालात चल रहे थे तो उसी में कह गए।तुम बताओ प्रशांत जी इतने प्यार से किससे बात कर रहे थे।

श्रुति - भाई! भाई उनकी एंजेल से बात कर रहे थे। वो दो साल की प्यारी सी बच्ची और भाई की जान है।हमारे कजिन भाई की वाइफ की फ्रेंड की बच्ची है त्रिशा।बहुत प्यारी है भाई उससे सप्ताह में एक दिन मिलने अवश्य जाते है।आज जा नहीं पाए तो वो गुस्सा जता रही होगी और भाई उसे मना रहे होंगे।जान बसती है दोनों की एक दूसरे में।

ओह हाउ स्वीट! अर्पिता ने श्रुति से कहा।दोनों प्रशांत के पास पहुंचती है।जहां श्रुति प्रशांत से कहती है -

श्रुति - भाई ये मेरी दोस्त है अर्पिता!मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती है।

तुम्हारी दोस्त है ये तो मुझे पता है क्युकी जब ये मंच से नीचे आकर तुम्हारे पास आई थी तो मैंने गेस कर लिया था। लेकिन तुम्हारे साथ कॉलेज में पढ़ती है ये कैसे..? मेरा मतलब है कि मैंने इन्हे दूसरे कॉलेज की लाइब्रेरी में बुक्स पढ़ते हुए देखा है.!!जहां मै अक्सर जाता रहता हूं।प्रशांत ने अर्पिता की ओर देखते हुए कहा।

इसका अर्थ ये है कि हम अब तक प्रशांत जी को याद है।तभी तो ये लाइब्रेरी की मुलाकात का जिक्र कर रहे हैं।अर्पिता मन ही मन सोचती है।और कहती है

जी हम वहां हमारी कजिन के साथ उसके कॉलेज गए थे वो कॉलेज में अपना लेक्चर अटैंड करने लगी थी सो हम लाइब्रेरी आकर बैठ गए....!

अरे कोई बात नहीं।तुम्हे मुझे सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है।ठीक है।वैसे मै प्रशांत! पेशे से एक बिजनेस मेन के साथ पार्ट टाइम म्यूजिक टीचर हूं यहीं पास ही में एक एकेडमी में इंस्ट्रूमेंट बजाना सिखाता हूं।स्पेशली गिटार।प्रशांत ने हाथ आगे बढ़ाते हुए अर्पिता से कहा।

प्रशांत के उसकी तरफ हाथ बढ़ाने पर अर्पिता के चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है।मन में तो खुशी के लड्डू फूटने लगते हैं।मन मयूर बाग बाग हो नृत्य करने लगता है लेकिन चेहरे के भावों को सामान्य रखने की पूरी कोशिश करते हुए हाथ आगे बढ़ाती है।प्रथम स्पर्श के आनंद की अनुभूति उसके मन के तारो को छेड़ते हुए हृदय की धड़कनों में झंकार करते हुए रूह तक पहुंचती है।

प्रशांत हाथ मिला कर हाथ को पीछे कर लेता है और श्रुति से कहता है।क्या बात है छुटकी! तेरी दोस्त तेरे साथ है और तुमने उसे कुछ ऑफर भी नहीं किया। तबसे यहीं खंभे जैसी खड़ी हो।थोड़े बहुत मैनर है कि नहीं।

प्रशांत की बात सुन श्रुति कहती है आपको तो मै घर पर देख लूंगी।और अर्पिता से कहती है वहां आइसक्रीम वाला खड़ा है चलो चल कर खाते है।

अर्पिता - नहीं श्रुति।अभी नहीं।फिर कभी।और एक बात कहें हम।

श्रुति - बोलो!! पूछती क्यों हो यार बोल दिया करो!

अर्पिता - ठीक।हम कह रहे हैं कि हम सहेलियां है न तो सहेलियों में (फॉर्मेलिटी) औपचारिकता की कोई जरुरत नहीं है।अगर एक दूसरे का मन होगा तो हक से कह सकते हैं यू खाना पूर्ति के लिए नहीं समझी कि नहीं अर्पिता ने प्रशांत की तरफ देखते हुए कहा।

अर्पिता की बात सुन श्रुति प्रशांत की ओर देखती है और मुस्कुराते हुए कहती है हम समझ गई।और शायद कोई और भी समझ गया है।

वहीं प्रशांत अर्पिता की इस बात पर मुस्कुराए बिन नहीं रहता।मन ही मन सोचता है क्या बात है सलीके और सभ्य तरीके से जवाब देने की कला अच्छे से आती है इन्हे!

प्रशांत - तो अब चला जाए छुटकी।देर हो रही है। हमम भाई।श्रुति कहती है।प्रशांत अर्पिता की ओर देख कहता है तुमसे मिल कर अच्छा लगा।
हमे भी आपसे मिल कर बेहद खुशी हुई।अर्पिता
खुश होते हुए कहती है।

प्रशांत बाइक स्टार्ट कर देता है और श्रुति अर्पिता के गले लग जाकर प्रशांत के पीछे बैठ जाती है और दोनों अर्पिता से बाय कह वहां से चले जाते हैं।

अर्पिता प्रशांत को जाते हुए देखती है और सोचती है अच्छा हुआ हम यहां आए इससे हमारा संदेह भी दूर हुआ साथ ही साथ आपको करीब से जानने समझने का थोड़ा ही सही मौका तो मिला।बाइक के आंखो से ओझल होने के बाद अर्पिता भी वहां से वापस किरण और आरव के पास चली आती है।

अब कैसे होगी इनकी पुनः मुलाकात! क्या नए रंग दिखेंगे एक दूसरे के व्यक्तित्व के इनकी अगली मुलाकात में।....जानने के लिए जुड़े रहिए हमारे साथ उपन्यास कैसा ये इश्क है.....? से।।

क्रमश....