कैसा ये इश्क़ है.... - (76) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

कैसा ये इश्क़ है.... - (76)

प्रीत दूसरी ओर बैठ पढ़ने लगा है ये देख अर्पिता ने खामोश हो चारो ओर देखा तो।उसकी नजर वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रखी खाने की थाली पर पड़ती है।वो जाकर उठा कर लाती है और जग के पास टेबल पर रखती है।कबर्ड के पास ही फोल्ड रखी चटाई निकाल कर उसे बिछा कर थाली और पानी दोनो ले जाकर उस पर रख देती है। वो शान से वहां आने को कहती है।शान ने सुना तो उठकर चले आते हैं और चुपचाप बैठकर भोजन करने लगते हैं कुछ देर बाद अर्पिता प्रीत के साथ बैठकर उसे अक्षरो का ज्ञान कराते हुए शब्द लिखना सिखाती है।प्रीत को कुछ भी सीखने में ज्यादा समय नही लगता है वो एक बार ध्यान से पढ़ने पर चीजो को याद कर लेता है।प्रीत की मेमोरी पावर इतनी मजबूत जो है।

वहीं शान की नजर अर्पिता के फोन पर पड़ती है तो वो उसे उठा कर चलाने लगते हैं।वो उसमे अपना सोशल अकाउंट ओपेन करते है जिसमे ढेर भर के नोटिफिकेशन और अनगिनत मेसेजेस पड़े हैं।शान कुछ सोचते है और मुस्कुराते हुए अपने सोशल अकाउंट के मेसेजेस का रिप्लाय करने लगते हैं।रिप्लाय करते हुए ही शान की नजर पूर्वी के करीब चार वर्ष किये गये मेसेजेस पर पड़ती है।जिसे पढ़ वो शॉक्ड हो कर बोले ठाकुर जी सबसे बड़ा बेवकूफ तो मैं ही हूँ।और यूँ ही अर्पिता से नाराज हुआ बैठा हूँ।अर्पिता की खबर तो मेरे पास उसके गायब होने के दो महीने बाद ही आ गयी थी और मैं बेवकूफ उसे सब जगह ढूंढ रहा था भूल गया कि आज के समय में सोशल मीडिया से ऐसे खोजबीन के कार्य चुटकियो में किये जा सकते हैं ये तो वही बात हो गयी बगल में छोरा खड़ा है और सारे शहर में ढिंढोरा पड़ा है।

शान के हावभाव देख अर्पिता ने शान की ओर देखा तो शान उस समय खुद के ही आंसू पोंछते हुए मुस्कुरा रहे थे।अर्पिता शान के पास आयी और उसने उनसे यूँ रोने का कारण पूछा तो शान बोले अपनी ही बेवकूफी पर हंस रहा हूँ अप्पू!कहते हुए शान ने अर्पिता के फोन पर पड़ा पूर्वी का संदेश दिखाया जिसे देख अर्पिता बोली, शान ये तो तब भी दो महीने बाद का संदेश है उससे बड़ी पगली तो हम है मां ने कहा नही बाहर कि हम अगर उनसे मिल कर जाते तो ये सब होता ही नही।कहते कहते सब सोच कर वो रो पड़ती है तो शान उससे बोले,जो हुआ उसे भूल जाओ मेरी पगली अब ये बताओ क्या अब भी यहां से जाने का इरादा है या फिर यहीं रहकर हमारे रिश्ते को निभाने का इरादा है।

शान!हम अब कहीं नही जाने वाले हमारी सारी गलतफहमियां दूर हो चुकी है।श्रुति ने बताया हमे कि आपने किस तरह खुद को सम्हाला है हम दोबारा हमारे शान को दुखी नही कर सकते।अर्पिता ने कहा तो शान बोले ठीक है फिर मैं भी तुम्हे माफ करने के विषय मे सोचता हूँ भले ही मैं सही समय पर पूर्वी का संदेश नही देख पाया लेकिन तुम तो सब जानती थी न अप्पू!फिर भी खुद से नही आई,तो अब मैं इस बारे में सोचूंगा।

अर्पिता मुस्कुराते हुए धीमे से बोली - ठीक है आप सोचिये क्योंकि हम भी यहीं है कहीं नही जा रहे है कोशिशें करते रहेंगे।और जिस दिन लगा ज्यादा हो रहा है तो ...

तो क्या अर्पिता..शान ने कहा।
अर्पिता बोली:- तो आप देखना सीधे हमे अभी बताना नही है ठीक है

शान बोले :- ठीक है।देख लेंगे!
अर्पिता वहां से उठकर बाहर निकल जाती है। शान चटाई फोल्ड कर उसी जगह रख देते हैं।और फिर से फोन पर लग चलाते हैं अर्पिता वापस आई और प्रीत को लिटाकर थपकी देने लगती है नींद से आँखे उनकी भी बोझिल हो जाती है तो वो भी वहीं सो जाती है उसे देख शान मुस्कुराये उसके पास आये और चादर ओढा कर वहीं लुढ़क जाते है।रात गुजर जाती है अगले दिन शान रेडी होकर बाहर चले आते है।प्रीत सुबह सुबह ही घर में दौड़ भाग करना शुरू कर देता है।
अर्पिता शोभा शीला कमला जी और श्रुति के साथ हॉल में बैठकर बातें करते हुए सबको सुबह की चाय सर्व कर रही है।शान भी वहीं आकर बैठ जाते हैं।शान को देख वो वहीं टेबल पर रखी दो कप कॉफी की ओर इशारा कर देती है।
और धीमे से प्रीत को आवाज देते हुए बोली प्रीत यहां आइये आपकी कॉफी रखी हुई है फिनिश कीजिये। प्रीत ने सुना तो वो दौड़कर अर्पिता के पास आकर खड़ा हो जाता है।अर्पिता कॉफी का छोटा सा मग उठा कर सोफे पर बैठ जाती है और प्रीत को गोद में बिठा कर ठंडी कॉफी वाला मग उसे थमा देती है।कुछ ही देर में चित्रा भी आ जाती है तो शान उससे कही हुई बात याद कर कहते है, चित्रा अच्छा हुआ तुम आ गयी।मुझे अभी कॉफी नही चाय चाहिए थी तो क्या प्लीज तुम मेरे लिए ला दोगी।चित्रा उठते हुए बोली :- हां, बिल्कुल।भला ये भी कोई कहने की बात है प्रशांत जी।चित्रा उठी और अंदर चली गयी।कॉफी मग उठाकर शान चित्रा के पीछे चले आते हैं और अंदर कोफी खत्म कर मग सिंक में रख देते हैं अर्पिता को चिढ़ाने के लिए चाय का प्याला ले बाहर चले आते हैं।
अर्पिता ने देखा तो बस हल्का सा मुस्कुरा दी।घर में मौजूद अन्य सदस्य ने जब ये देखा तो फुसफुसाते हुए बोले अब साइलेंट वॉर शुरू होने वाला है यहां। हम सबको मूक दर्शक बन बहुत आनंद मिलेगा।

चित्रा भी बाहर आ जाती है तो शान आगे बोले:- चित्रा!बहुत दिन हो गये त्रिशा के साथ पोपकोर्न खाते हुए कोई कार्टून मूवी नही देखी प्लीज आज अरेंज कर देना ठीक है।मैं बाहर बगीचे में जा रहा हूँ कुछ देर में आया ठीक है।

चित्रा ने अर्पिता की ओर देखा फिर बोली ठीक है प्रशांत जी हो जायेगा लेकिन आप अभी कहां जा रहे हैं पहले मुझे ये बताते जाओ मूवी के बाद मार्केट जाना है चलोगे!ये कार्य तो आप पिछले कई सालो से कराते आ रहे हैं।

शान ने बाहर जाते ही आवाज दी हां बिल्कुल मूवी के बाद तुम मैं और मेरी एंजेल तीनो चलेंगे।शान बाहर चले जाते है और मन ही मन बोले मेरी पगली अब थोड़ा तंग करना तो मेरा भी बनता है।शान की बात सुन अर्पिता प्रीत को लेकर उठी और वहां से अंदर कमरे में चली जाती है।चित्रा ध्यान से अर्पिता की ओर देख रही है लेकिन उसे कोई भाव नजर नही आता है।कुछ देर बाद शान वापस आये और हॉल में बैठ कर त्रिशा के साथ मूवी देखने लगते हैं।प्रीत को शोभा जी छत पर गार्डनिंग के लिए बुला कर ले गयी है।चित्रा भी शान से कुछ दूरी बनाकर बैठ जाती है अर्पिता वहीं हॉल में ही बैठकर शीला जी से शान के बचपन के बारे में पूछ रही है।अर्पिता ने शान और चित्रा को देख छोटी सी मुस्कान चेहरे पर रख ली।

चित्रा जानबूझकर शान का हाथ स्पर्श करती है और मन ही मन कल्पनाओ के सागर में उतरने लगती है।अर्पिता ये देख लेती है।तो वो सामने से पलट जाती है और शीला जी से कुछ देर में आने का बोल कर वहां से चली जाती है।शीला शोभा कमला श्रुति ने ये देखा तो आपस में फुसफुसाई हो गया न वॉर शुरू।शान ने झटके से अपना हाथ हटाया और चित्रा की ओर सवालिया नजरो से देखा। वास्तविकता का आभास होने पर चित्रा कल्पनाओ के सागर से धरातल पर आ गिरती है जिसे महसूस होने पर वो नजरे चुरा कर त्रिशा को देखने लगती है।

मूवी खत्म हो जाती है तो शान अपना वॉलेट लेने कमरे में जाते है जहां उनकी नजर खिड़की से बाहर ताक रही उदास खड़ी अर्पिता पर पड़ती है।शान कुछ सोच कर तेज आवाज में बोले चित्रा शॉपिंग लिस्ट बना कर रख लेना।और फिर धीरे से इतनी तेज आवाज में बड़बड़ाए (जिसे सिर्फ अर्पिता सुन सके) क्या करूँ किसी को हमारी परवाह ही नही है एक तुम ही हो चित्रा जिसने इतने सालो तक बिन किसी स्वार्थ के मेरा साथ दिया है वरना लोग तो बोल कर मुकरने से भी पीछे नही हटते।पीछे हटने के बाद कोई मरे या जिए किसी को कोई फर्क नही पड़ता।बस बड़ी बड़ी बातें करते हैं कहकर शान बाहर चले जाते हैं।अर्पिता ने शान की बातें सुनी और बिन किसी रिएक्शन के अपना सामान जमाने लगती है।वो शान की बाते सोचते हुए कहती है शान!अपनी बातों से हमे तंग करना नही छोड़ेंगे आप।सब समझते है हम ये सब आप ड्रामा कर रहे हो ताकि हमे तंग कर सको।लेकिन हम नही होने वाले।।कहते हुए वो हल्का सा मुस्कुरा देती है।

बाहर आने के बाद शान चित्रा से बोले मैं साथ तो चल सकता हूँ लेकिन कोई मदद नही कर सकता सारी शॉपिंग तुम्हे खुद करनी होगी।

जानती हूँ आप बस साथ चलिये!और उस समय के लिए सॉरी प्रशांत जी आगे से मैं ऐसा कुछ नही करूँगी।चित्रा ने कहा तो प्रशांत बोले ठीक है याद ही रखना इस बात को।सिर्फ 12 घण्टे दिये है तुम्हे।

अर्पिता को अपने मां पापा की बहुत याद आती है जब से आई है एक बार भी उनसे अब तक बात नही कर पाई है वो शोभा जी के पास जाती है और उनसे मां पापा से बात कराने को कहती है।शोभा जी उनका अक्सर हालचाल लेती रहती थी सो वो वीडियो कॉल के जरिये अर्पिता की बात करा देती है बात करते हुए कुछ देर तो अर्पिता बोल ही नही पाती है वहीं उसके मां पापा अपनी बच्ची को सही सलामत देख भावुक हो जाते हैं ।कुछ देर बात जब दोनो सामान्य होते है तो लम्बी बातचीत के फोन रख देते है।कुछ समय बाद शान और चित्रा दोनो मुस्कुराते हुए बातें करते हुए घर के अंदर प्रवेश करते है जिसे देख अर्पिता मन ही मन सोचती है अब ये इनका नाटक कुछ ज्यादा ही हो रहा है।माना कि ये इनका ड्रामा है जो हमे तंग करने के लिए किया जा रहा है लेकिन चित्रा उसकी तो भावनाये सच्ची है।ऐसा न हो इस ड्रामे को करते करते चित्रा की भावनाएं ही आहत हो जाये।इस ड्रामे को जल्द खत्म करने के लिए अब हमे वही करना होगा जो ये चाहते हैं।यानी हमे परेशान देखना चाहते हैं चाहते है कि हमे इनके किसी के साथ होने से फर्क पड़े तो ठीक है फिर हम भी इनके ड्रामे में साथ देते हैं।सोचते हुए अर्पिता उठी उसने शान की ओर देखा और मुंह फुला कर कमरे में चली जाती है।प्रीत श्रुति के कमरे में होता है अपनी बातों और हरकतों से उसे हंसा रहा है।अर्पिता कमरे में जाती है और वहां से प्रीत की नोट बुक उठा कमरे से बाहर जाने को मुड़ती है।शान सामने से आकर दरवाजे पर रुक जाते हैं।ये देख अर्पिता एक तरफ हो जाती है।शान उसे फुला हुआ देखते है तो हंसी मन में दबाते हुए अंदर चले आते हैं और बड़बड़ाते है सही कह रही थी चित्रा दुनिया की ऐसी कोई बीवी नही है जो अपने पति को किसी युवा लड़की के साथ हंसते मुस्कुराते बाते कर देख पजेसिव न हो।खैर अब थोड़ा और तंग कर ही लूं कहते हुए शान अर्पिता के पीछे पीछे बाहर आये और जाकर हॉल में बैठ गये।वो अर्पिता से बोले :- अर्पिता सुनो, एक गिलास पानी ला दो।
अर्पिता बिन कुछ कहे रसोई की ओर गयी और गिलास में पानी लाकर टेबल पर थोड़ी आवाज करते हुए रख दिया और वही खड़ी हो गयी।

ये देख शान बोले लो!आजकल पानी भी ढंग से देने का रिवाज खत्म हो रहा है बताओ भला ऐसे देते है किसी को..मुझे नही लेना ये।और चित्रा से बोले चित्रा अब तुम ही ला दो..किसी से बोलना ही बेकार है कुछ कहो तो टेबल पर पटक कर चीजे दी जाती है जैसे मैं कोई इंसान नही हूँ..!शान की ये बात उसे दुखी कर जाती है उसकी आँखे भर आती है।वो प्रीत की बुक्स को लेकर श्रुति के पास उसके कमरे में चली जाती है।श्रुति अर्पिता को देख प्रीत को पकड़ कर चुप से बैठने को कहती है।तो प्रीत नीचे दौड़ जाता है।मैं इसे देखकर आती हूँ अर्पिता कहीं गिर गया तो तुम ही डांट दोगी कि मैंने ध्यान नही दिया श्रुति ने अर्पिता से कहा और उठकर प्रीत के पीछे चली जाती है।वहीं शान उसे उदास देख समझ जाते है अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है वो भी उठकर अर्पिता के पीछे चले आते हैं।श्रुति के जाने के बाद अर्पिता की नजर टेबल पर रखी शान और श्रुति की फोटो पर पड़ती है जिसे देख वो बड़बड़ाते हुए बोली।

शान !देखो हम बताए दे रहे हैं ये फ्लर्टिंग की आदत न छोड़ ही दो!क्यों करते हो आप ऐसा!अच्छा लगता है क्या आप पर ये सब।नही न फिर भी करते हो हमे कितना बुरा लगता है जब आप हमारे सामने ही किसी से फ्लर्ट करते हैं।अगर यही रहा न तो हम रुठ कर चले जायेंगे फिर मनाते रहना हम वापस नही आएंगे!न ही अभी और न ही फिर कभी।क्यों करते हो आप।माना कि ..अर्पिता आगे कुछ कहती तब तक दरवाजे पर खड़े शान बोले बस अच्छा लगता है तुम्हारी डाँट खाना।अब यही तरीका समझ आता है मुझे तुम्हारी डाँट खाने का।लेकिन तुम हो कि कभी डांटती भी नही हो।इतना कुछ कर दिया मैंने लेकिन फिर भी कुछ नही बोली।

शान!ये कौन सा तरीका है।खैर अभिनय तक तो सब ठीक है लेकिन ये बताओ क्या सच में हमारे अंदर मैनर नही है।ये बात हमे हर्ट कर गयी।बाकी कोई बोलता फर्क नही पड़ता लेकिन आप..!अर्पिता ने सवालिया नजरो से अर्पिता को देख कहा तो शान हैरानी से बोले हे ठाकुर जी मतलब नीचे वो सब नाराजगी सब झूठ थी?

हम्म सब एक्टिंग थी क्योंकि शुरुआत आपने ही की थी।और आपके इस ड्रामे को खत्म करने के लिए अभी कुछ शब्द कहे थे हम।अर्पिता बोली।

शान अर्पिता की आंखों में झांकते हुए बोले :-अप्पू! इतना भरोसा किसलिए?इसकी वजह?
अर्पिता :- क्योंकि हमे पता है आप कहने में नही करने में यकीन रखते हैं।आप बोलकर नही कर के दिखाते हैं।और वैसे भी अगर आपको ये सब करना ही होता तो हमे यहां लाने के लिए इतने पापड़ नही बेलते।इतना लम्बा इंतजार नही करते।चित्रा तो आपके साथ थी न तब आपके मन में उसके लिए कोई फीलिंग नही आई तो अब क्या फीलिंग आसमान से टपकेगी।प्रेम का आधार विश्वास है पतिदेव!जब आपके विश्वास से हमारी सांसे चल रही है तो हमारा विश्वास इतना कमजोर होगा ये आपने कैसे सोच लिया शान। जाइये जाइये हमे तंग करने के लिए कोइ और युक्ति लगाइये।अभी हम बहुत व्यस्त है हमे आपको मनाने के तरीके ढूंढंने है शान! आप नाराज है न हमसे।
अर्पिता शान की बातें शान के पीछे आई चित्रा सुनती है और वो वापस चली आती है।

ओ तेरी मैं तो भूल ही गया था कि मैं तुमसे नाराज हूँ।हां तुम तरीके ढूंढो मैं चला शान ने कहा और वहां से चले गये।शान की बात सुन अर्पिता को हंसी आ गयी और वो उनके पीछे चली आती है।शान चित्रा के पास जाकर बोले कोशिश फेल हो गई आपकी चित्रा।मेरा भरोसा जीत गया।

चित्रा कुछ सोचते हुए बोली :- हां मैंने सब सुना और देखा प्रशांत जी।मैं गलत थी तुम दोनो का रिश्ता मेरी सोच से भी गहरा है।अब मैं कुछ ऐसा करूँगी जो तुम्हारे इस रिश्ते को मजबूत ही बनायेगा।

चित्रा की बाते सुन शान बोले :- तुम्हे इसकी जरूरत नही पड़ेगी चित्रा।तुम बस खुश रहकर जीवन में आगे बढ़ो।यही हम सब चाहते है चित्रा।

चित्रा बोली :- हम्म ठीक है प्रशांत जी।

श्रुति नीचे प्रीत को पकड़ रही है लेकिन नन्हे प्रीत फुर्ती से बीच निकलते हैं।शान को देख प्रीत दौड़कर उनके पास चला आता है तो शान उसे उठाकर कमरे में ले जाते हैं।जहां शान से बाते करते हुए उसे नींद आ जाती है और वो शान की गोद में ही पलके झपकाने लग जाता है कुछ ही देर में वो नींद की आगोश में चला जाता है।कुछ देर बाद शीला जी उसे देखने आती है तो उसे सोया देख मुस्कुराते हुए वहीं से वापस लौटती है शान ने प्रीत को बेड पर लिटाया मां को देख भावुक हुए और उनके पास आकर बोले, थैंक यू मां!अर्पिता को स्वीकारने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
शीला जी ने शान के सर पर हाथ रखा और बोली देर से समझ आया मुझे बेटा।लेकिन आ गया अब अर्पिता से मुझे कोई शिकायत नही है।तुम भी मत रखो।तुम्हारे लिए खुद को सम्हालना फिर भी आसान रहा होगा।लेकिन तुम उसके बारे में सोचो उसने अपने स्त्रीत्व के साथ अकेले अपनी मेहनत से स्वावलंबी बन कर जीवन जिया है। गर्भावस्था में लगातार कार्य करना कितना मुश्किल रहा होगा उसके लिए।लोगों की नजरो का सामना भी किया होगा लेकिन खुद को हारने नही दिया होगा।एक छोटे बच्चे के साथ कार्य कर पेट भरना दुनिया का सबसे दुरूह कार्य है बेटे।जब व्यक्ति अकेला हो तब उसके लिए कार्य करना कोई मुश्किल नही होता है लेकिन जब साथ में एक नन्ही सी जान जिम्मेदारी के रूप में साथ हो तो बहुत मुश्किल होता है।परेशानियां उसने भी सही है बस फर्क इतना है तुमने अपने दर्द को खामोश होकर सहा है और उसने मुस्कुराते हुए।जितना तुम उसके लिए परेशान हुए हो उससे कहीं ज्यादा वो परेशान हुई होगी।क्योंकि वो तुम्हारी तरह अकेली नही थी वो वापस आ सकती थी अगर मैं उससे जाकर वापस न आने के लिए नही कहती।उससे तुमसे दूर न जाने को कहती बहुत कुछ कहा मैंने उससे लेकिन उसने कोई जवाब नही दिया यहां तक मेरे कड़वा बोलने पर भी मुस्कुराती ही रही।अर्पिता को समझने में मैंने देर कर दी। हर व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है अर्पिता का स्वभाव भी अलग है वो विचारो से आधुनिक होने के साथ साथ सबको साथ लेकर चलना भी चाहती है अब क्या कहूँ मै कहते कहते शीला चुप हो जाती है और आगे बढ़ कर प्रीत को लेकर वहां से चली जाती है।

अर्पिता कुछ देर बाद कमरे में वापस आती है उसके हाथ में एक बाउल है जो ढंका हुआ है।वो बाउल टेबल पर रखती है और शान के पास जाती है। शान उसे गले से लगा लेते हैं एवं धीरे धीरे कर सारा दर्द सारी शिकायते नाराजगी सभी आंसुओ के जरिये निकलने लगते हैं।शान को अपने पास देख अर्पिता अपने हाथ उनकी पीठ पर रख लेती है।वर्षो बाद दो प्रेमी सब भूल कर मिल रहे है दोनो की आँखे भरी हुई है।इतने दिनों बाद अपनी पगली के गले लग शान उसके कानो में बोले आ तो गयी हो अप्पू अब फिर कभी जाना नही।

हम्म अब जाने की कोई वजह भी नही होगी और अगर हुई भी न तो भी नही जाएंगे।कोई भी वजह इतनी बड़ी नही हो सकती जो अर्पिता को उसके शान से दूर ले जा सके और खामोश हो गयी।हम्म मेरी पगली!कहते हुए शान उसके माथे को चूम कर अलग हो जाते है।

अर्पिता बोली वैसे हम आपके लिए कुछ लेकर आये थे शान लेकिन अब लगता है आपको इसकी जरूरत नही है।क्योंकि आप तो हमारी किसी कोशिश के बिना ही मान गये।

अर्पिता की बात सुन शान बोले वैसे नाराज तो था लेकिन तुमसे ज्यादा देर नाराज होना आता ही नही मुझे।कोशिश की थी दिनों तक नाराज रहने की लेकिन कामयाब नही हुआ।क्या करूँ जब तुम्हारी आंखों में देखता हूँ तो इनमे उलझ कर रह जाता हूँ।सारा गुस्सा और नाराजगी हवा की तरह बह जाती है।अर्पिता सिखा दो न मुझे भी नाराज होना..!शान ने कहा तो।अर्पिता मुस्कुरा दी और बोली

ठीक है शान। अब जब नाराजगी खत्म हो चुकी है पतिदेव।तो फिर कुछ मीठा हो जाये..!आपका पसंदीदा मूंग दाल हलवा विद काजू..!अर्पिता ने बाउल उठा कर शान की ओर बढ़ाते हुए कहा। हमें मां ने बताया कि आपको ये बहुत पसंद है तो सोचा इसे ट्राई करते हैं।देखते है आपके मन का बना है कि नही अब प्लीज टेस्ट करके बताइये।

हम्म ठीक है अर्पिता शान ने मुस्कुराते हुए कहा
और यूँही एक बाइट ली और मुंह बनाते हुए बोले ईयू..ये क्या है अर्पिता।

शान की बाते सुन अर्पिता बोली :- क्या क्या है वही है जो आप खा रहे है मूंग दाल का हलवा और बहुत टेस्टी भी है मां ने और दोनो बड़ी मां ने टेस्ट करके बताया था।तो ये तरीके बदल ही दीजिये पतिदेव।

तो जब समझ गयी हो तो फिर मेरी मांग पूरी करो शान बोले तो।

हम्म ठीक है कहते हुए अर्पिता ने खुद से दो बाइट खिलायी और ये बोलते हुए पीछे हट गयी सेवा समाप्त पतिदेव जी।

अच्छा हमसे मसखरी ठीक है फिर सेवा भी करा ही लेते है शान ने कहा और मुस्कुराते हुए कुछ लम्हे चुरा ही लेते हैं।

कुछ दिन यूँ ही गुजरते है और शान अर्पिता चित्रा त्रिशा और प्रीत सभी शीला जी और शोभा से कह वापस लखनऊ चले आते हैं।श्रुति वहीं रह जाती है।

लखनऊ में पहुंचने पर चित्रा और त्रिशा वहां से राधिका के पास जाने के लिए निकल जाती है।वहीं रूम पर परम और किरण दोनो अर्पिता से नाराज होते हैं अर्पिता और शान के वहां पहुंचने पर उन्होंने खुद को कमरे में लॉक कर रखा है। अर्पिता उनसे बाहर आने को कहती है लेकिन वो दोनो अर्पिता की बात मान ही नही रहे है।कुछ देर यूँ ही बाहर आने का आग्रह करने के बाद अर्पिता ने शान से चुप रहने का इशारा किया और प्रीत को साथ लेकर आगे बढ़ते हुए बोली, परम जी हमसे नाराज है हमसे बात नही करेंगे ठीक है मत कीजिये नाराजगी दिखा लीजिये आखिर हमारा रिश्ता भी ऐसा ही है।लेकिन इनसे भी नाराज है क्या।हमारे छोटे से प्रीत से तो मिल लीजिये।कब से अपने चाचू से मिलने के लिए उतावले हो दरवाजे की ओर देख रहे है देखिये हमारे प्रीत की उम्मीद मत तोड़िये।आ जाइये न बाहर प्लीज..!

अर्पिता की बात सुन रूम में लॉक्ड परम झट से दरवाजा खोलते है तो उनकी नजर सामने खड़े नन्हे प्रीत पर पड़ती है।

अर्पिता प्रीत से बोली प्रीत आपके परम चाचू!जाइये इनके पास!
ओके मम्मा!नन्हे प्रीत ने कहा और दौड़कर परम के पास जाकर खड़ा हो जाता है।प्रीत ने परम के पैर छुले तो परम की आंखों में खुशी की चमक आ गयी उन्होंने प्रीत को गोद में उठाया और प्रीत से बोले अरे वाह आप तो बहुत समझदार है प्रीत किसने सिखाया है आपको ये सब।

मम्मा ने चाचू प्रीत ने कहा।प्रीत की आवाज सुन किरण भी बाहर आ जाती है अर्पिता उसको देख दौड़ कर उसके पास जाती है और उसके गले से लग जाती है।किरण..!कैसी हो तुम।

किरण गुस्से में ताने मारते हुए बोली :- क्यों बताऊ मैं तुम्हे मैं कैसी हूँ।मैं कौन हूँ तुम्हारी कोई नही न।न ही दोस्त और न ही बहन।कुछ तो समझती नही हो मुझे।तभी तो दो दो बार मुझे तुम्हारे मरने की खबर मिली और मैं दो दो बार टूटी।

नही करनी मुझे तुमसे बात दूर हटो मुझसे।कहते हुए किरण ने अर्पिता को गले से अलग करने की कोशिश की तो अर्पिता ने अपनी बांहो को और कस लिया।

माफ कर दे न यार।गलती इंसानो से ही होती है हम भी इंसान ही हैं।प्लीज..!मान जाओ न इतने दिनों से एक बार भी बात भी नही की तुमने।अब मान भी जाओ प्लीज!अर्पिता ने उदास होते हुए कहा तो किरण बोली ये तेरा सही है किसी को भी अपनी बात मनवाने के लिए बस थोड़ा से उदास लहजा अपना ले तेरी तो आवाज ही ऐसी है कि अच्छा खासा कठोर इंसान पिघल जाये।ठीक है माफ किया लेकिन अब मैं तुझे कही जाने नही दूंगी।क्योंकी पिछली दोनो बार भी मैं तेरे पास नही थी।किरण की बात सुन अर्पिता बोली ठीक है नही जाएंगे।

प्रीत ने अपने हाथ की दो अंगुलिया आगे की और परम से पूछते हुए बोले चाचू ये बताओ कितने हैं।परम ने मुस्कुराते हुए झट से कहा दो है प्रीत।

नही चाचू.. ये दो नही है ये छः है।प्रीत ने कहा तो परम बोले कैसे प्रीत बताइये तो?

प्रीत अपनी छोटी छोटी अंगुलियों के पोरों को गिनाते हुए बोला वन टू थ्री....सिक्स।प्रीत की बात सुन परम ने हैरान होकर अर्पिता और शान की ओर देखा।शान हंसते हुए धीरे से बोले परम इसे कहते है शेर को सवा शेर तुमसे भी एक कदम आगे है सही जमेगी दोनो की।

परम हंसते हुए बोले :- हम्म भाई शुरुआत देख कर ही लग रहा है।अर्पिता आगे आई और प्रीत को गोद में लेते हुए बोली प्रीत चलिये पहले गुड बॉय की तरह हाथ मुंह धुलिये फिर थोड़ा रेस्ट कीजिये और फिर चाचू के साथ मस्ती कीजिये।

अर्पिता की बात सुन किरण बोली सिर्फ चाचू के साथ नही प्रीत समर्पिता के साथ भी जो अभी सो रही है जब जागेगी तब तुम दोनो आराम से खेलना।किरण की बात सुन अर्पिता खुशी से चौंकते हुए बोली समर्पिता मतलब परम जी और तुम्हारी बच्ची किरण।

हम्म छोटी भाभी तीन साल की हो गई है।अभी अभी सोइ है सुबह से आप दोनो के आने का इंतजार कर रही थी नींद आई तो यहीं सोफे पर ही सो गयी।अभी उसे उठाकर अंदर लिटाया है।परम ने कहा।
ठीक छोटे जब जाग जायेगी तब हम उससे मिलेंगे।ठीक।अभी बस फ्रेश हो ले फिर आकर बैठते है।इस बार शान बोले।

ठीक है भाई परम ने कहा।शान प्रीत अर्पिता अपने रूम में जाते है जिसे किरण ने सुन्दर सा सजा कर रखा है।प्रीत अंदर आकर अपने जूते मोजे खुद निकालता है और उन्हें उठाकर अर्पिता की नकल करते हुए एक किनारे रख देता है।मम्मा पानी ..प्रीत ने कहा तो शान उसे अपने साथ ले जाते है।

कुछ देर में सभी फ्रेश हो कुछ देर कमरे में रेस्ट करने लगते है।प्रीत को भूख लगती है तो शान उसे बिस्किट का पैकेट देते है जिसे प्रीत फिनिश कर बेड पर सो जाता है।

प्रीत के सोने के बाद अर्पिता शान के पास आई और उनके गले में बांहे और कांधे पर सर रख कुछ देर खामोश बैठ गयी।

क्या हुआ अप्पू!शान ने पूछा!तो अर्पिता ने एक हाथ उठा शान का हाथ थामा उनकी अंगुलियों में अपने हाथ की अंगुलियों को कसते हुए बोली शान हुआ कुछ नही बस मन किया कुछ देर आपके साथ बिताने का तो आ गये।

अच्छा!शान ने मुस्कुराते हुए कहा।

हम्म शान।अब कल से आप भी व्यस्त हो जाएंगे किरण प्रीत दोनो ही वर्किंग है।प्रीत अपनी बहन के साथ व्यस्त होंगे हम घर पर अकेले रह जाएंगे आप सोचिये न इस बात को।

अर्पिता की बात सुन शान बोले :- हम्म बात तो सही है अप्पू।तो इस समय को तुम अपने सपने को पूरा करने में लगाओ।अपनी छूटी हुई पढ़ाई शुरू करो और संगीत की प्रोफ़ेसर बनने का सपना पूरा करने में जुट जाओ।

अर्पिता बोली :-शान अब पढ़ाई कैसे होगी।प्रीत भी छोटा है उनकी कितनी जिम्मेदारियां है।ऐसे में पढ़ाई कैसे होगी।

क्यों नही होगी देखो मेरे अंदर कितना टैलेंट है इस बात से तुम अंजान तो नही हो।जब तुम नही थी तब छोटे और मै ही सब मैनेज करते थे।इसिलिये खाना कपड़े बर्तन सारे कार्य का अनुभव है और प्रीत की आदतों से भी परिचित हो गया हूँ।तो मैं इतना सक्षम तो हूँ कि जिम्मेदारियां मिल कर पूरी कर सकूँ।कुछ तुम करना कुछ मैं करूँगा बाकी समय तुम अपनी पढ़ाई और मैं ऑफिस।प्रॉब्लम सॉल्व।

हम्म शान समस्या सॉल्व।आप साथ है तो सब मुमकिन है शान।कहते हुए अर्पिता खामोश हो जाती है।

*********