कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 62) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 62)

अर्पिता किरण शोभा राधिका श्रुति सभी हॉल में बैठे हुए हैं एवं प्रेम के फोन आने का इंतजार कर रहे है।प्रेम हॉस्पिटल में डॉक्टर्स से बात कर रहा है तो डॉक्टर्स उसे बताते हैं आप उन्हें अभी लेकर जा सकते हो कोई समस्या नही है बस उन्हें टोटल बेड रेस्ट देना होगा।

प्रेम डॉक्टर की बात से सहमत हो कमला और बाकी सब के पास आते हैं और उन्हें बताते है डॉक्टर ने बोल दिया है कि हम चाचीजी को घर लेकर जा सकते हैं।बस उन्हें बेड रेस्ट करने देना होगा।कमला उससे कहती है ठीक है फिर घर पर बाकी सब है उसका ध्यान रख लेंगे।तुम एक कार्य करो घर पर फोन कर शोभा से शीला के लिए कमरा व्यवस्थित करने को बोल दो।

जी ताईजी प्रेम ने कहा एवं अपनी मां शोभा को फोन कर बोला, 'मां हम लोग चाचीजी को लेकर घर के लिए निकल रहे हैं आप उनके लिए उचित व्यवस्था करा दीजिये।

ठीक है प्रेम शोभा जी ने कहा एवं वो शीला के लिए नीचे ही एक कमरे में ठहरने की व्यवस्था करा देती हैं।शान और स्नेहा दोनो ही दरवाजे से समान पकड़े अंदर चले आते है उनके चेहरो पर मुस्कान होती है लेकिन घर के सदस्यो को एक साथ नीचे हॉल में देख उनके चेहरे की मुस्कान के स्थान पर गंभीरता आ जाती है।स्नेहा अर्पिता के पास आकर उसे सामान पकड़ा देती है जिसे लेकर अर्पिता शोभा से कह अपने कमरे में चली जाती है।

सबके चेहरो पर गंभीरता देख शान शोभा के पास गये और बोले, 'ताईजी जी क्या बात है सब यहां एकत्रित है कुछ हुआ है क्या घर'।

शोभा जी बोली :- हां वो छोटी सीढियो से गिर गयी तो उसके पैर में फ़्रैक्चर आ गया है।प्रेम उसे अभी हॉस्पिटल से लेकर आ ही रहा होगा।

शोभा की बात सुन शान परेशान हो जाते है वो बैचेनी से इधर से उधर टहलने लगते हैं।किरण राधिका स्नेहा तीनो एक साथ ही खड़ी होती है।

अर्पिता भी चेंज कर नीचे चली आती है एवं आकर शोभा के पास खड़ी हो जाती है।कुछ ही देर में प्रेम जी शीला को लेकर घर आ जाते हैं।शान तुरंत ही अपनी मां के पास जाते हैं।प्रेम जी और शान दोनो ही शीला को उनके लिए तैयार कमरे में ले जाते हैं।उनके पीछे ही परिवार के सभी सदस्य पहुंचते हैं।शीला जी को बिस्तर पर लिटा कर शान उनके पास ही बैठ गये और बोले, 'मां,आप इतना क्यों सोचती है हर बार अपना ही नुकसान कर बैठती है क्यों नही ध्यान रखती अपना'।आपको पता है कितना दुख हो रहा है मुझे आपको इस तरह देखकर।शान की बात सुन शीला जी बोली, 'तुम परेशान मत हो प्रशांत मैं बिल्कुल ठीक हूँ'। किसी के बुरे कदम इतने भी बुरे नही हो सकते कि मेरी जान पर बन आये बस कुछ ही दिनों की तो बात है मैं फिर से ठीक ठाक हो अपने पैरो पर चलने लगूंगी।तुम बिल्कुल चिंता न करो।

शीला जी की बातों का अर्थ अर्पिता और शोभा दोनो बखुबी समझती है लेकिन फिर भी कुछ कहती नही है।
शोभा बोली देर हो चुकी है अब कुछ रस्मे बची हुई है वो निभा ली जाये फिर हम सब आगे के कार्यक्रम की चर्चा करते हैं।

'हां शोभा' ये सही रहेगा कमला ने कहा और बाहर चली आती है।शान के पिताजी शीला के पास रुकते हैं और शान अर्पिता किरण परम श्रुति सभी बाहर आ कर बची हुई रस्मो को एन्जॉय करने लगते हैं।

रस्मे खत्म होने के बाद शोभा किरण को श्रुति के साथ भेज स्वयं स्नेहा और चित्रा के साथ रसोई में चली जाती है।वहीं शान और अर्पिता शीला के पास जाकर बैठते हैं।बच्चो को देख शान के पिताजी वहां से चले जाते हैं।परम प्रेम और राधिका तीनो की तिकड़ी एक बार फिर एक साथ बैठ जाती है और आपस में बातचीत करने लगते हैं।अर्पिता को अपने पास देख शीला शान से बोली, प्रशांत तुम थक गये होंगे जाओ जाकर रेस्ट कर लो।अर्पिता है न मेरे पास तब तुम रेस्ट कर लो।अपनी मां की बात सुन शान को अटपटा लगता है वो अर्पिता की ओर देखते है जिसके चेहरे पर गंभीरता सज रही है।

वो मन ही मन सोचता है कुछ घण्टो पहले तक तो मां अर्पिता को देखना तक पसंद नही कर रही थी और अब अपने पास रुकने के लिए बोल रही है क्यों?
कहीं ऐसा तो नही वो एकांत में उससे कुछ सुनाना चाहती हो।मैं उसे यूँ छोड़ कर नही जा सकता सोचते हुए वो शीला से बोले मां,अर्पिता है तो क्या हुआ मैं भी यहीं रहूंगा मैं अभी नही जाने वाला जब तक आप ठीक नही हो रही तब तक आपका ध्यान मैं खुद रखूंगा।

प्रशांत की बात सुन शीला बोली, मैं कौन से तुम्हे मुझसे दूर जाने को कह रही हूँ प्रशांत मैं बस कुछ देर आराम करने के लिए कह रही हूँ वो कर लो जाकर फिर तुम चले आना उसके बाद अर्पिता चली जायेगी।

ठीक है मां तो पहले अर्पिता जाकर रेस्ट कर ले मैं तो यहीं बैठूंगा और अब इस बारे में कोई बहस नही।शान ने कहा और अर्पिता की ओर देखा।अर्पिता वहां से अपने कमरे में चली जाती है।उसे जाता देख शान ने मन ही मन सोचा, कम से कम चली गयी नही तो मां न जाने इससे क्या क्या बोलती और ये अबला नारी बन सुनती रहती।न जाने लड़कियों को शादी के बाद हो क्या जाता है सबला से अबला बन जाती हैं।मानता हूँ रिश्ते निभाना जरूरी होता है लेकिन निभाने के भी सुनने के अलावा कई और तरीके होते हैं।झगड़ा करना न करना अलग बात होती है लेकिन कोई आपके साथ गलत कर रहा है तो उसका विरोध करना चाहिये फिर गलत करने वाला इंसान घर का सदस्य ही क्यों न हो तभी उसे अपनी गलती का एहसास होता है।मां को अर्पिता के प्रति उनकी भावनाये बदलने में मुझे ही कुछ करना होगा और इसके लिए एक अच्छे बेटे की छवि से इतर लापरवाह ही बनना पड़ेगा मुझे।तभी शायद मां समझेंगी सोचते हुए शान मुस्कुराये और उठ खड़े हुए एवं शीला से बोले, मां मुझे नींद आ रही है मैं चला सोने।अभी आपको तो कुछ चाहिए नही अगर चाहिए होगा तो आवाज लगा देना ठीक है कहते हुए शान कमरे से निकल जाते है।प्रशांत को अचानक से गया देख शीला मन ही मन सोचती है न खुद रुका न ही अर्पिता को रुकने दिया अभी तो एक पल भी हिलने को तैयार नही था और अब देखो बीवी के जाते ही खुद भी निकल लिया।
वहीं अर्पिता कमरे से ब्लैंकेट लेकर वापस शीला के पास आती है और शान को न देख बुदबुदाते हुए कहती है शायद कोई इम्पोर्टेन्ट फोन आ गया होगा।वो शीला जी के पास आकर बैठ जाती है उसे देख शीला जी कहती है तुम वापस आ गयी।प्रशांत तुम्हे यहां देखेगा तो गुस्सा करेगा।

शीला की बात सुन अर्पिता बोली :- वो हम देख लेंगे मां आप बस आराम से रेस्ट कीजिये।ठीक है,लेकिन तुम यहां मेरे पास क्यों बैठी हो अभी मुझे कुछ नही चाहिए जब चाहिए होगा मैं बोल दूंगी।

ठीक मां कहते हुए अर्पिता वहां से पास ही पड़े लकड़ी के सोफे पर बैठ जाती है।वहीं बैठे हुए ही थके होने के कारण उसे नींद आ जाती है और वो वहीं सो जाती है। ब्रह्म मुहूर्त प्रारम्भ हो जाता है एवं वो उठ कर एक नजर शीला की ओर देखती है जो गहरी नींद में सो रही है ये देख वो वहां से निकल जाती है एवं स्नान वगैरह कर तैयार हो कर नीचे चली आती है।राधु को देख उसे सुप्रभात कहती है एवं उसकी मदद करते हुए आरती वन्दन करती है।आवाज सुन कर किरण भी मंदिर प्रांगण में चली आती है।शान परम प्रेम सुमित स्नेहा चित्रा छाया श्रुति शोभा कमला सभी वही आ जाते है।आरती पूजन सम्पन्न कर अर्पिता सभी को आरती देती है एवं घर में आरती घुमाने लगती है।चलते हुए पैरो में पायलों की रुनझुन सुनते हुए शान धीमी आवाज में कहते है "मेरी वो कहीं तो होगी आज मेरी आंखों के सामने साकार रूप से अपनी पायलों की रुनझुन से मेरे नीरस जीवन को सरस बना कर मेरे घर को गुलज़ार कर रही है"। जिसे सुन कर प्रेम कहते हैं बस यही दुआ है ठाकुर जी से तुम्हारे जीवन में खुशियां यूँ ही बरकरार रहे।

अर्पिता थाली वापस लाकर पूजाघर में रख देती है
उसे देख शोभा कहती है, अर्पिता, किरण आज कुलदेवी की पूजा है उनके लिए अपने हाथो से कुछ मीठा बना लेना बाकी कार्य हम सब मिलकर कर लेंगे ठीक है।शोभा की बात सुनकर अर्पिता मुस्कुराई और किरण के साथ रसोई में जाकर अपने कार्य पर लग जाती है एवं कुछ ही देर में मीठा बना लेती है।शोभा जी स्नेहा भी वहीं आ जाती है तो उनकी मदद करने लगती है।शोभा जी उसे बताती है आज खाना कुलदेवी की पूजा के बाद ही सबको मिलेगा इसीलिए चाय वगैरह भी नही बनेगी।ये सुन अर्पिता विनम्रता से बोली, ताइ जी हम सभी व्रत रख लेंगे लेकिन मां उन्हें भूख लगेगी तो हम बस उनके लिए ही एक कप चाय बनाना चाहते हैं।

हम्म ठीक है अर्पिता शोभा जी कहा तो अर्पिता मुस्कुराते हुए चाय बना कर शीला के पास ले जाती है एवं वहीं टेबल पर रख स्पून से उसे पिलाने लगती है।शीला जी ने नजरे फेर कर मना किया तो अर्पिता बोली, मां आपका गुस्सा एक ओर, एवं स्वास्थ्य एक ओर।एक बार ठीक हो जाइये फिर खूब गुस्सा करना।तब तक गुस्से को इकट्ठा कर एक पोटली बना कर रख लो ताकि जिस दिन आप ठीक हो जाओ उसे खोल खोल कर हमारे ऊपर सब निकाल लेना।
अर्पिता की बातें सुन शीला बोली,प्रशांत कहां है वो नही आया अब तक क्यों?कल रात से नही आया है मेरे पास।

वो थक गये तक गहरी नींद में सो गये होंगे।अभी सुबह तो नहा धोकर बाहर ही थे हम अभी बुलाते है आप बस खुश रहिये तभी तो आप जल्दी ठीक हो पाएंगी।अर्पिता की बात सुन शीला बड़बड़ाई तुम्हारे सामने होने पर भला मैं कैसे खुश रह सकती हूँ।अर्पिता सुन कर मुस्कुराते हुए बोली,मां खुश रहने के लिए किसी के सामने होने न होने से क्या लेना देना।खुश तो हम स्वयं से होते है किसी अन्य से थोड़े ही।खैर हम अब जाते हैं ठीक है कहते हुए अर्पिता बाहर चली आती है और शान को ढूंढने लगती है।शान जो इस समय सबसे इतर छत पर झूले में बैठे हुए मजे से हेडफोन लगा कर सॉन्ग सुन रहे है।अर्पिता नीचे चारो ओर देखती है जब शान नही दिखते है तो अपना फोन निकाल कर शान को संदेश "कहां है आप शान"?लिख कर भेज देती है।
एवं बैचेनी से शान के जवाब का इंतजार करने लगती है।वहीं शान को फोन साइलेंट मोड़ पर होने के कारण अर्पिता के संदेश का पता ही नही चलता वो मस्त मग्न होकर गाना सुनते रहते हैं।

श्रुति जो किरण के पास से हॉल में आ रही है अर्पिता को बैचेन देख उसके पास आइ और पूछते हुए बोली, "क्या बात है अर्पिता, तुम कुछ परेशान दिख रही हो?आवाज सुन अर्पिता ने श्रुति की ओर देखा और हम बोली परेशान नही है श्रुति बस हम शान को ढूंढ रहे है तुम्हे पता है वो कहां है? अर्पिता की बात सुन श्रुति हैरानी से बोली, "कौन शान अर्पिता"?अब ये शान कौन है?

श्रुति की बात सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली शान अर्थात तुम्हारे भाई, उन्हें ढूंढ रहे है कहीं देखी हो उन्हें तुम?
अर्पिता की बात सुन श्रुति शरारत से बोली "अरि ओ कृष्ण की राधा,अगर कृष्ण को ढूंढना है तो जाकर कुंज गलियो में ढूंढो यहां घर में तुम्हे तुम्हारे श्याम न मिलने वाले, तुम्हारे श्याम तो बैठे होंगे संगीत की धुन में मग्न हो कर किसी कुंज लताओं में आनंद ले रहे होंगे प्रकृति का जाकर वहीं ढूंढो"कहते हुए श्रुति आगे बढ़ जाती है।उसकी बातें सुन अर्पिता खुद से ही बड़बड़ाती है ये लड़की भी गोल गोल बातें करना सीख ही गयी है।अब यहां कुंज गली तो बगीचा ही हो सकता है जो कि एक नीचे है और एक छत पर है।नीचे के दरवाजे इतनी जल्दी खुले नही है अर्थात छत पर ही होंगे अब वहीं जाना होगा हमे! कहते हुए अर्पिता छत की ओर बढ़ जाती है।वहीं सॉन्ग सुनते हुए शान को अर्पिता के इत्र की खुशबू महसूस होती है और वो गाना बंद कर मुस्कुराते हुए आँखे बंद कर वैसे ही सर रख बैठ जाते हैं।गाना बंद होते ही उन्हें पायलों की आवाज भी सुनाइ देती है जिसे सुन वो मन ही मन कहते हैं "तुम्हारे आने की चुगली ये पहले ही कर देती है मेरी पगली"।अर्पिता ऊपर आती है और शान को आँखे बंद किये मुस्काते देख कहती है अभिनय हो गया हो तो अब ये बताओ शान इतनी सुबह सुबह यहां क्या किया जा रहा है।

शान ने कुछ नही कहा बल्कि वो तो वहीं बैठे हुए अर्पिता के कुछ बोलने का इंतजार करने लगते हैं।ये देख अर्पिता कुछ सोचकर वापस मुड़ती है और दरवाजे की ओर जाने लगती है, उसके जाने की आहट सुन शान आँखे खोल उठते है और तुरंत उसके आगे दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते है।शान की ये हरकत देख अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली, तो आ गये आप लाइन पर शान"!

प्रशांत बोले हां आना ही पड़ा नही तो तुम नीचे चली जाती जिससे मैं तुम्हारे साथ के दो मिनट चुरा नही पाता।

'अच्छा जी' ये बात है अर्पिता बोली।
हाँ जी ये ही बात है शान ने अर्पिता की आंखों में देखते हुए कहा।शान को यूँ इतने पास देख अर्पिता की धड़कने पहले से तेज हो जाती है उसे शीला मां का लिया हुआ वचन याद आता है और वो शान से कहती है ठीक है लेकिन वक्त चुराने का अभी सही समय नही है शान!आप नीचे चलिये मां याद कर रही है आपको, वो मिलना चाहती है आपसे।

हम्म ठीक है तुम चलो अप्पू मैं आता हूँ शान ने कहा तो अर्पिता ठीक है कह नीचे चली जाती है वहीं शान कुछ सोचते हुए नीचे आते है और शीला जी के कमरे की ओर बढ़ जाते हैं।

शान को देख शीला जी बेहद खुश होती है और शान को अपने पास आने को कहती है।शान शीला जी के पास तो जाते है लेकिन कुछ दूरी रख खड़े हो जाते हैं।ये देख शीला जी बोली,क्या हुआ प्रशांत तुम वहां क्यों खड़े रह गये यहां आगे मेरे पास आओ।शान कुछ नही कहते बस वहीं खड़े रहते है।अर्पिता बाहर सबके साथ ही होती है।प्रशांत शीला जी से बोले, 'मां अभी नही मैं बाद में फुर्सत से आपके पास बैठता हूँ वो क्या है न बहुत काम पड़ा हुआ है ठीक है' कह शान बाहर चले आते हैं।शोभा जी शान को देख उसे आवाज दे अपने पास बुलाती है -

शोभा जी -प्रशांत! छोटी तो साथ चल नही सकती तो कोई बात नही है पूजा हम लोग मिल कर कर आते हैं।घर पर जीजी है वो छोटी के पास रहेंगी।सारी तैयारियां हो चुकी है तो तुम, परम,अर्पिता, किरण और सुमित चारो एक गाड़ी में निकलो मै राधु प्रेम और स्नेहा ये दूसरी गाड़ी में आते हैं।ठीक है।

जी ताईजी शान बोले और बाहर गाड़ी निकालने चले जाते हैं।किरण भी लाल रंग की हल्के प्रिंट वाली साड़ी पहन कर तैयार हो चुकी है अर्पिता एवं किरण दोनो साथ ही साथ बाहर निकलती हैं।परम शान और सुमित तीनो बाहर ही होते है।दोनो जाकर गाड़ी में बैठ जाती है।परम शान के पास आकर बोले, 'भाई आप बड़े हो न तो गाड़ी आप ड्राइव करो मैं तो आराम से बैठ कर जाऊंगा'कहते हुए वो तिरंत पीछे बढ़ते है और सीट पर जाकर बैठ जाते है।उसकी ये हरकत देख शान बोले, 'छोटे तेरी हरकते नही सुधरेंगी'!

परम हंसते हुए बोला ,'न भाई,छोटे जो ठहरा'!
शान :- हम्म,उसी का फायदा उठा कर बच जाते हो हर बार।

अच्छा चलो बैठो।शान ने कहा और गाड़ी ड्राइव करने लगता है।सुमित खिड़की की ओर सर रख आँखे बन्द कर लेते हैं तो शान गाड़ी का मिरर अर्पिता की ओर सेट कर लेते है जिसे देख अर्पिता मंद मंद मुस्कुराने लगती है।

अर्पिता चोरी चुपके शान की ओर देखने लगती है।वहीं शान भी साथ ही साथ गुनगुनाते हुए गाड़ी ड्राइव कर रहे है लेकिन बीच बीच में एक नजर अपनी नयी नवेली पत्नी पर भी डाल ही लेते हैं।

परम किरण के पास जाकर धीरे से उससे कहते है तुमने कभी लव बर्ड्स देखे है।
किरण :- नही तो।
परम :- ठीक है फिर देखो आज तुम्हे एक नही तीन तीन लव बर्ड से मिलवाता हूँ।एक को तो तुम यही देख लो गाड़ी में।किरण ने प्रशांत और अर्पिता की ओर देख कर कहा।

किरण बड़बड़ाते हुए कहती है हम्म सो तो है आखिर इनकी बीरबल की खिचड़ी पक ही गयी।

कुछ कहा तुमने किरण।परम ने पूछा तो किरण बोली यही कि बाकि के दो कहां है।
अच्छा वो, मंदिर पहुंचने पर बताऊंगा।सो इंतजार करो तब तक।

ठीक करती हूँ उसके अलावा कोई और विकल्प ही कहां है किरण ने उदास लहजे में कहा जिसे सुन परम मुस्कुराते हुए बोला इसका भी अपना अंदाज है किरण!

कुछ समय गुजरने के बाद शान कुलदेवी के पास पहुंच गाड़ी रोक देते हैं।शोभा राधु प्रेम स्नेहा भी पहुंच जाते है।सभी गाड़ी से उतर कर धीरे धीरे मंदिर परिसर में पहुंचते है।जहां शोभा जी अपने परिवार के रिवाज अनुसार पूजन कार्य सम्पन्न कराती है एवं दोनो नव विवाहित जोड़ो को देवी का आशिष दिलाती है।कुछ समय सभी वहीं परिसर में ही बैठते है।प्रेम राधु के पास ही होते है शोभा से पूछ कर उसे कुछ हल्का खाने और पीने को देते हैं।उन दोनो को ऐसे देख परम किरण से कहता है तो अब तुम मिलो हमारे परिवार के दूसरे लव बर्ड्स से जिनके बारे में मैंने सिर्फ फोन पर बताया था,प्रेम भाई और राधु भाभी!हमारे परिवार का सबसे स्वीट कपल।अब इनके बारे में जानने के लिए तो इनकी डायरी पढ़ो अधूरा इश्क़!जिसके बारे में सबको पता है यहां तक कि इनके दादाजी को भी।परम की बात सुन किरण हैरान होते हुए कहती है क्या सच में दादाजी को भी!
परम :- जी!इनकी कहानी को मुकम्मल कराने के लिए हम सबने बहुत पापड़ बेले हैं तुम्हे सब फुर्सत में बताऊंगा।वो जो देख रही हो न स्नेहा भाभी को वो घर की सबसे बड़ी बहू और राधु भाभी की कजिन बहन है।ये है हमारे परिवार के तीसरे लव बर्ड्स।इनकी शादी हमारी तरह अरेंज मैरिज हुई है लेकिन लव बर्ड्स ये भी है।

हम्म इनसे तो मैं शादी में मिली हूँ परम जी।किरण ने कहा।शोभा जी के कहने पर सभी हल्का फुल्का नाश्ता करते है एवं फिर वापस घर के लिये निकल आते हैं।इस बार गाड़ी सुमित ड्राइव करते हैं और शान आगे सुमित के पास ही बैठते हैं।

घर पहुंचने के बाद शान अर्पिता और किरण परम दोनो जोड़े सभी बड़ो का आशीर्वाद लेते हैं।ये देख शोभा जी बोली -

:- यहां तो सबका आशिष मिल गया है सबको लेकिन अभी इस घर की एक सदस्य और बाकी है वो है शीला! तो चारो जाओ उनका भी आशीष ले लो उसके बाद अपने नये जीवन की शुरुआत करना।

जी मां, ताईजी चारो ने कहा और शीला जी के कमरे की ओर बढ़ जाते हैं।कमरे में पहुंच कर शान परम से कहते है छोटे पहले तुम दोनो चरण स्पर्श कर लो हमे यहीं कुछ देर रुकना है।

'जी भाई' परम ने कहा और आगे बढ़ कर दोनो ने शीला जी के पैर छुए एवं उनका आशीष ले वहां से चले आते है।

उनके जाने के बाद शान और अर्पिता आगे बढ़ते है लेकिन शान दो कदम बढ़ वहीं रुक जाते हैं।
अर्पिता शान की ओर सवालिया नजरो से देखती है तो शान बोले, नही अप्पू,मां का आशीर्वाद हमे नही मिलेगा तो चरण स्पर्श करने से क्या लाभ।उनके लिए तो तुम उनकी कोई हो ही नही।शान के कहे शब्द अर्पिता के साथ साथ शीला जी को भी चकित कर देते हैं।

अर्पिता हैरान हो बोली :- आप ये क्या कह रहे है शान!वो आशीष दे या न दे ये उनकी मर्जी है शान हमे तो आगे बढ़ना चाहिए न मां है वो आपकी।

शान ने मुंह घुमा कर नजरे फेरते हुए कहा :- मां है अर्पिता!लेकिन तुम भी मेरी पत्नी हो।जहां तुम्हारा तिरस्कार हो अपमान हो मैं वहां नही झुक सकता।फिर चाहे वो मां ही क्यों न हो मैं जा रहा हूँ सॉरी अप्पू लेकिन मैं ये नही कर सकता।कहते हुए शान वहां से चले आते है।अर्पिता कभी शान को तो कभी शीला जी को देखने लगती है।वहीं शीला शान के ऐसे व्यवहार से दुखी होती है उनकी आंखों में आंसू आ जाते है।अर्पिता उनके पास जाकर कहती है हम अभी उन्हें बुला कर लाते है आप प्लीज रोइये मत।कहते हुए अर्पिता बिन शीला का जवाब सुने वहां से शान के पास चली जाती है जो वहीं कमरे के बाहर ही खड़े हो कर किसी को कॉल लगा रहे हैं।
अर्पिता शान के पास जाती है और उनका हाथ पकड़ खींच कर वापस शीला के कमरे में ले आती है और दरवाजा बंद कर उनका फोन उनके हाथ से छीन देती है।

क्रमशः...