कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 61) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 61)

अर्पिता का अंदाज देख शान बोले, 'हाय, इन्नी चाहत' कहीं मैं खुशी मर से ही न जाऊं अप्पू!शान की बात सुन अर्पिता बोली 'अभी तो जिंदगी शुरू हुई है शान इतनी जल्दी पीछा तो नही छूटेगा आपका'!


अर्पिता की बात सुन शान उसके पास आये एवं उसके कानो के पास जाकर बोले, 'पीछा छुड़ाना चाहता भी कौन है अप्पू'? शान की इस हरकत से अर्पिता के हृदय की धड़कने सरपट दौड़ने लगी।


शान :- मेरे घर और मेरे जीवन में तुम्हारा स्वागत है अर्पिता!


अर्पिता हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली , "


हम गीत तुम आवाज


हम सरगम तुम साज


हम दीपक तुम ज्योति


हम सीपी तुम मोती


कुछ ऐसा ही तो रिश्ता है हमारा 'शान' ।।


एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नही..


हम्म ये तो सही कहा तुमने अप्पू!खैर अब तुम यहीं बैठो मैं जरा छोटे के पास जाकर देखता हूँ उसे किसी चीज की जरूरत तो नही।शान ने कहा उनकी बात सुन अर्पिता मुस्कुराई और हां में हल्की सी गर्दन हिला दी।शान वहां से निकल कर परम के पास चले गये।


वही दूसरी ओर शोभा शीला के पास गयी।जो अपने कमरे में कबर्ड में बिखरे पड़े कपड़े जमा रही थी।शीला जी को देख शोभा जी ने गहरी सांस ली और दरवाजा बंद कर उसके पास पहुंची।पूछा ,' क्या कर रही हो शीला'?


शीला ने बिन उनकी ओर देखे कहा :-कुछ विशेष नही जीजी, बस बिखरे हुए कपड़े रख रही थी।


शोभा :- वो सब आराम से रखती रहना लेकिन अभी के लिए मेरे साथ चलो और घर की नयी बहु का स्वागत करो!


शीला :- जीजी, उसके लिए आप है न फिर मुझे क्या जरूरत।आपके साथ चल कर खड़ा ही तो होना है आप चलिये मैं आती हूँ।


शीला की बात सुन शोभा नरमी से बोली, शीला चलकर बड़ी बहू का स्वागत करो मैं छोटी का करती हूँ।


जीजी!मैं कुछ समझी नही शीला ने कहा।


उसकी बात सुन शोभा बोली मैं जानती हूँ शीला मेरी बात सुन कर तुम्हे हैरानी होगी,लेकिन जो हुआ वही उचित है इसी में सब खुश रहेंगे और सब ठीक भी होगा,शीला अपने बेटे की पत्नी का गृह प्रवेश कराओ,वो बाहर गाड़ी में बैठ कर इंतजार कर रही है!


शोभा की बात सुन शीला शॉक्ड होते हुए बोली, मेरे बेटे की पत्नी! किससे कर ली उसने शादी?वो भी बिना मेरी मर्जी से!जीजी,आप मजाक तो नही कर रही हैं मेरे साथ।शीला ने लड़खड़ाती जुबां से पूछा!जिसे सुन कर शोभा बोली, शीला अभी प्रश्न करने का समय नही है अभी समझदारी दिखाने का समय है घर की बाते हम सब घर में ही सुलझा लेंगे लेकिन सभी रिश्तेदारों के जाने के बाद।वैसे भी अचानक हुई इस शादी से सभी कुछ न कुछ खुसर फुसर करने में लगे ही है ऐसे में तुम भी स्वागत के लिए नही गयी तो सबकी बहुत फजीहत होगी।तुमसे विनती है मेरी बिना कुछ तमाशा किये मेरे साथ चलो।


नही जीजी,जरूर वही लड़की होगी,जो मुझे रत्ती भर नही सुहाती!मुझसे ये दिखावा नही होगा और न ही मैं उसे स्वीकार कर सकती हूँ।शीला ने एक कदम आगे बढ़ सख्ती से कहा।


शीला के गुस्से को देख शोभा बोली, ठीक है शीला तुम अपनी बहु का स्वागत नही करना चाहती तो ककि बात नही कम से कम किरण का ही कर लो उसमे तो तुम्हे कोई परेशानी नही होनी चाहिए।अब न करने की कोई वजह तो नही है तुम्हारे पास!चलो शीला देर हो रही है और ज्यादा देर होगी तो सभी कुछ न कुछ फुसफुसाने लग जाएंगे शोभा ने कहा और दरवाजा खोल कर वहां से बाहर चली आती है।ये लड़की कितनी चतुर निकली ठाकुर जी,मैंने मना कर दिया तो सीधे मेरे बेटे को ही फंसा कर उससे शादी कर ली।मैं कहीं न जा रही हूँ किसी का स्वागत करने। लेकिन जीजी ने कहा है तो फिर जाना पड़ेगा,अभी सब लोग है गृह प्रवेश के बाद सभी निकल जाएंगे तब मै देखती हूँ इन दोनो को बड़बड़ाते हुए शीला भी वहां से बाहर चली आती है।त्रिशा प्रशांत को छोटे के पास देख दौड़ कर उसके पास चली आती है वहीं चित्रा वहां से बगीचे में चली जाती है।प्रेम जी अपनी राधु के पास जा उसका हालचाल लेते हैं।


शोभा और शीला दोनो बहुओ के स्वागत के लिए चली आती है। रिवाज़ अनुसार दोनो ही चेहरे पर घूंघट निकाले खड़ी हो जाती है।शीला अर्पिता की साड़ी देखती है तो उसे चित्रा समझ मन ही मन कहती है, एक बच्चे की मां चलेगी मुझे लेकिन बदचलन लड़की नही।। ये प्रशांत ने समझदारी का कार्य किया है।खुश होकर वो शोभा से कहती है जीजी अपनी बहु का स्वागत तो मैं ही करूँगी।उसके चेहरे पर प्रसन्नता देख शोभा बोली, अच्छा लगा ये देख कर कि कम से कम तुमने इस शादी को स्वीकार तो किया।तुम ही कराओ गृह प्रवेश कहते हुए शोभा मुस्कुराते हुए परम के सामने आ खड़ी हो जाती है।एक एक रस्मे करने के बाद शोभा और शीला दोनो का गृह प्रवेश कराते है।गृह प्रवेश के बाद सभी गेस्ट धीरे धीरे अपने अपने घर के लिए निकल जाते हैं।चूंकि इस विवाह में सभी गेस्ट शामिल हो ही चुके हैं सो रिसेप्शन का प्रोग्राम कैंसल कर दिया जाता है।शीला के चेहरे पर मुस्कुराहट देख राधिका शोभा कमला प्रशांत अर्पिता सभी हैरान होते हैं।वो समझ ही नही पा रहे है कि ये इतनी खुश कैसे रह सकती हैं।जबकि इनका स्वभाव तो ऐसा है ही नही।


सबके जाने के बाद शीला अर्पिता से बोली, चित्रा तुम बैठे बैठे थक गयी होगी चलो मैं तुम्हे तुम्हारे कमरे में छोड़ देती हूँ।


चित्रा नाम सुनकर ही अर्पिता शान और शोभा सभी का हृदय एक पल को तो जोर से धड़कता है।वहीं राधु प्रेम एक दूसरे की ओर देखते है तो परम शान की ओर देखते है जिनके चेहरे पर हैरानी के भाव हैं।


शीला ये तुम क्या कह रही हो ये चित्रा नही है ये अर्पिता है प्रशांत की पत्नी!शोभा ने कहा तो शीला शॉक्ड हो बोली ये आप क्या कह रही है जीजी।ये कपड़े तो चित्रा पहने थी न।


अब घर में महाभारत होना तय है राधु तुम कमरे में चलो इस समय ये सब देखना सुनना हमारी प्रिंसेस के लिए ठीक नही है।प्रेम जी राधिका से बोले और उसे कमरे में ले जाते हैं।


वहीं प्रशांत के पास से कमला त्रिशा को वहां से ले जाती है।स्नेहा आर्य को लेकर पहले से ही कमरे में चली जाती है।वहीं बाहर बगीचे में बैठी हुई चित्रा मन शांत होने पर बाहर से अंदर चली आती है।चित्रा को बाहर से आता देख शीला का गुस्सा फूट पड़ता है वो प्रशांत से कहती है तुम्हारी इतनी हिम्मत बढ़ गयी कि तुमने बिना परिवार वालो की मर्जी से शादी भी कर ली।


शोभा चित्रा को देख उससे अपने पास आने को कहती है।चित्रा सोचते हुए पास आ जाती है।शोभा उससे कहती है किरण को उसके कमरे में ले जाओ नयी बहू का पहला दिन है इस घर में और उस पर ये सब तमाशा हो रहा है वो क्या सोच रही होगी कैसा पढ़ा लिखा परिवार है ये।


जी आंटी जी मैं समझ गयी चित्रा ने कहा और किरण के पास जाकर उससे बोली, लगातार रस्मे करते करते तुम भी थक चुकी होगी चलो तुम भी थोड़ा रेस्ट कर लो।


किरण उठी और चित्रा के साथ बेमन से चली जाती है।उसके मन में अर्पिता को लेकर चिंता बढ़ रही है।


किरण के जाने के बाद शोभा बोली, छोटी प्रशांत ने बिन परिवार की मर्जी से कुछ नही किया है! तुम्हे छोड़ कर इस विवाह से किसी को कोई समस्या नही है सबके लिए बच्चो की खुशी पहले है बाकी सब बाद में है।


जीजी आप तो चुप ही रहो!आपसे बोला था मैंने मुझे ये लड़की अपने बेटे के लिए नही चाहिए।मुझे चित्रा स्वीकार है लेकिन ये लड़की नही।शीला ने क्रुद्ध होकर कहा जिसे सुन शोभा बोली, शीला तुम समझ क्यों नही रही हो, आज का समय बच्चो पर अपनी मर्जी थोपने का नही है बल्कि अपने और बच्चो दोनो की इच्छाओं में संतुलन बनाये रख कर चलने का है।नही तो तुम आये दिन अखबारों में, अडोस पड़ोसियों,नाते रिश्तेदारों से कितनी घटनाये सुनती रहती हो।बच्चे छोड़ कर चले गये,वापस लौट कर नही आये।बेटे ने पत्नी घर दोनो छोड़ किसी और से विवाह कर अपना संसार अलग बना लिया।कभी कभी तो आत्महत्या के भी कई किस्से सुनने में आते है क्यों आते है ये शीला इस बात को समझो और बच्चो की खुशी में खुश रहना सीखो।


शोभा की बात सुन शीला बोली, जीजी आपकी बात सही है लेकिन आप भी तो समझिये मैं भी एक मां हूँ यूँ ही जानबूझकर अपने बेटे को खुद के खोदे गड्ढे में कैसे गिरने दूँ।न जीजी मुझे ये शादी स्वीकार नही है।ये लड़की मेरे लिए कुछ भी नही है मैं इसे स्वीकार नही कर सकती बस कहते हुए वो अपने कमरे में चली जाती है।शीला की बात सुन अर्पिता और शान दोनो की आँखे नम हो जाती है।शोभा अर्पिता के पास आती है और उसके सर पर हाथ रख कहती है अर्पिता धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा।बस अब तुम अपनी ओर से उसका मन जीतने का प्रयास करती रहना।बाकी यहां से तुम अब कहीं नही जाओगी ठीक है और शान की ओर देखती है तो शान आगे बढ़ अर्पिता से कहते है अर्पिता चलो कुछ देर रेस्ट कर लो अभी भी कुछ रस्मे बाकी है जो शाम को होगी।


ठीक है शान अर्पिता ने इतनी धीमे स्वर में कहा जिसे पास खड़े शान ही सुन पाते हैं।शान अर्पिता को लेकर ऊपर उसके कमरे में छोड़ने जाते समय फुसफुसाते हुए कहते हैं आज तो तुम्हे यहीं छोड़ देता हूँ लेकिन कल कुलदेवी की पूजा के बाद से हम हमारे कमरे में रहेंगे।


अर्पिता कुछ नही कहती बस हल्का सा शरमा जाती है।शान उसे वहीं कमरे में छोड़ कर नीचे अपने कमरे में चले आते हैं।वहीं अपने कमरे में मौजूद शीला बैचेनी से सोचते हुए इधर से उधर टहल रही है।मां है तो बच्चे की फिक्र रहना स्वाभाविक है।शीला दिल की बुरी नही है बस स्वभाव और सोच थोड़ी अलग है उनकी।वो कुछ सोचती है और निर्णय करते हुए अर्पिता के कमरे की ओर बढ़ती है।


थकान के कारण सभी अपने अपने कमरो में रेस्ट कर रहे है हॉल में कोई नही है ये जान कर शीला कमरे से बाहर निकलती है और अर्पिता के कमरे की ओर बढ़ जाती है।दरवाजा खुला ही होता है सो शीला अंदर जा कर दरवाजा बन्द करती है।दरवाजे पर आहट सुन अर्पिता पीछे मुड़ कर देखती है तो शीला जी को देख बेड से झट से खड़ी हो जाती है।


शीला अर्पिता से बोली :- नीचे मैं तुमसे ज्यादा कुछ कह नही पाई क्योंकि नीचे घर के सभी ज्येष्ठ मौजूद थे।अब मैं तुमसे सीधी और स्पष्ट बात कहती हूँ, अर्पिता एक बार अगर किसी की छवि बिगड़ गयी तो उसे लाख प्रयत्न करने पर भी वैसी ही बनाना सम्भव नही है उसमे कोई न कोई कमी अवश्य रह जाती है उसी तरह मैं तुम्हारे इस रिश्ते को भी स्वीकार नही कर सकती।


अर्पिता सौम्य स्वर में बोली :- हम ऐसा क्या करे मां जिससे आपके मन में घुली कड़वाहट को मिठास में बदल सके।


शीला :- मेरे बेटे के जीवन से चली जाओ।


अर्पिता :- ये सम्भव नही है मां।उन्होंने वचन लिया है हमसे हम अपना वचन तोड़ नही सकते।


शीला आगे बढ़ी और बोली :- तुम अपना वचन नही तोड़ सकती हो तो एक वचन मुझे भी दो अर्पिता।


शीला की बात सुन अर्पिता बोली - इनके जीवन से जाने के अलावा जो भी वचन आप लेना चाहती है आप ले सकती हैं।


ठीक है शीला ने कहा और मन ही मन सोचने लगी एक स्त्री का रूप एक पुरुष के मन में दबी भावनाओ को जगाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।चूंकि विवाह तो हो चुका है एवं मैं चाह कर भी अब इस बात से इंकार नही कर सकती कि तुम इस परिवार की बहु हो और प्रशांत की पत्नी हो लेकिन क्या तुम इसके लायक हो ये बात मुझे पता करनी है इसीलिए मैं एक वचन लेकर तुम दोनो के रिश्ते की सच्चाई और गहराई दोनो समझ पाउंगी।


अर्पिता,ठीक है फिर मुझे ये वचन दो कि जब तक मै तुम्हे अपनी बहू के रूप में स्वीकार न कर लूं तब तक तुम विवाहिता होकर भी अविवाहिता का जीवन व्यतीत करोगी।एवं तुम्हारे द्वारा दिया गया ये वचन टूटने पर तुम उसी पल यहां से चली जाओगी फिर कभी वापस नही आओगी।


शीला जी की बातें सुन अर्पिता बोली, मां इस वचन के जरिये आप हमारे रिश्ते की गहराई और सच्चाई पता करना चाहती है ठीक है हमने आपको वचन दिया जब तक आप हमे स्वीकार नही करेगी जैसा आपने कहा है हम वैसा ही जीवन जियेंगे।आप मां है हमारी तो आप हमारा बुरा सोच ही नही सकती।अर्पिता की बातों को सुन शीला एक पल को हैरान रह गयी वो सोची इसे मेरे मन की बात कैसे पता चल गयी।वो आगे बोली -


ठीक है इस बात का भी ध्यान रखना कि हमारे मध्य हुई इस बातचीत का जिक्र भी किसी के सामने न हो किसी के भी नही।उम्मीद है तुम ये कर पाओगी अर्पिता।शीला ने कहा जिसे सुन अर्पिता बोली, "आप निश्चिन्त रहिये मां हम कर लेंगे"।


ठीक है कहते हुए शीला कमरे से बाहर चली जाती है वहीं अर्पिता ये सोच कर मुस्कुराने लगती है चलो कम से कम मां ने हमें एक मौका तो दिया हमसे अच्छे से बात तो की।बाकी हम उनकी गलतफहमी दूर कर हमारे रिश्ते को मजबूत करने की पूरी कोशिश करेंगे।मुस्कुराते हुए अर्पिता ठाकुर जी का धन्यवाद करती है एवं कबर्ड में चेंज करने के लिए कपड़े देखती है लेकिन वहां कुछ नही होती है कुछ याद कर वो मन ही मन कहती हे ठाकुर जी एक यही तो साड़ी है हमारे पास पहनने को। बाकी सब तो सूट ही है अब हम क्या पहने कल तो कुलदेवी की पूजा भी है।अब यूँ बार बार बाहर निकलना भी नही समझ आता है शाम होने वाली है अब हम करे तो करे क्या।वो सोच में पड़ जाती है एवं कुछ सोच कर वो शान को फोन लगाती है - अर्पिता का फोन है ये देख उनके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ जाती है ऐवं वो फोन उठा कर कहते हैं, क्या बात अभी एक घण्टा भी नही हुआ अलग हुए हमारी इतनी याद आई कि फोन घुमा दिया।शान की बात सुन अर्पिता बोली, " याद वाद कुछ नही आई शान ,अभी एक प्रॉब्लम है शान आप प्लीज ताइ जी को ऊपर भेज दीजिये हमे उनसे कुछ कहना है"!


क्या हुआ अर्पिता, सब ठीक है न?शान ने पूछा।


शान की आवाज में फिक्र महसूस कर अर्पिता बोली सब ठीक है शान समस्या ये है कि हमारे पास पहनने के लिए साड़ियाँ और बाकी कपड़े नही है पहले सूट कुर्ती फ्रॉक वगैरह चल जाता था लेकिन अब रिश्ते बदल चुके है शान,तो अब नही चलेगा न


अर्पिता की बात सुन शान बोले बस इतनी सी बात चलो अभी शॉपिंग कर आते है अब तो मैं करा ही सकता हूँ हक है मेरा!


ओह हो शान!हम जा ही तो नही सकते बाहर!आप ताईजी को भेजिये न वो कोई रास्ता निकाल लेंगी।अर्पिता ने कहा।


हम्म ठीक है भेजता हूँ मैं भेजता क्या उन्ही को फोन दे देता हूँ तुम खुद बात कर बता देना उन्हें वेट अ मिनट अप्पू!


हम्म ठीक है अर्पिता ने कहा वहीं शान अपने कमरे से निकल कर बाहर शोभा के कमरे में जाते है और दरवाजा नॉक कर अंदर चले जाते है।


शोभा जो उस समय शाम को की जाने वाली रस्मो की तैयारी कर रही है प्रशांत को देख मुस्कुराते हुए बोली, तुम यहां कोई काम था ?


जी ताईजी अर्पिता आपसे बात करना चाहती है?शान बोले।


ठीक है लाओ फोन दो शोभा ने कहा तो शान ने फोन आगे बढ़ा दिया।


शोभा :- हां अर्पिता बोलो क्या कहना चाहती हो?


वो ताइ जी हमारे पास दूसरी कोई साड़ी नही है पहनने को।अर्पिता ने झिझकते हुए कहा जिसे सुन शोभा बोली ठीक है तुम चिंता मत करो मैं अभी अरेंज कर भिजवाती हूँ थोड़ी देर इंतजार कर लो ठीक है।शोभा जी बड़े प्यार से बोली।


जी ताइ जी धन्यवाद!अर्पिता ने कहा तो शोभा जी फोन रख दिया और प्रशांत से बोली तुम गाड़ी निकालो मैं स्नेहा को तुम्हारे साथ भेजती हूँ जल्द ही शॉपिंग कर आना फिर कुछ रस्मे और है उन्हें भी करनी है ठीक है।जी ताइ जी प्रशांत ने कहा और वहां से गाड़ी की चाबी ले बाहर निकल जाते है शोभा जी स्नेहा के पास गई और बोली, स्नेहा तुम अभी प्रशांत के साथ जाकर अर्पिता के लिए शॉपिंग करा लाओ।आर्य को मैं जीजी को दे आती हूँ वो सम्हाल लेगी ठीक है।


'जी चाची' स्नेहा ने कहा और अपना पर्स उठा कर वहां से निकल जाती है।शीला अपने कमरे में गुमसुम परेशान बैठी हुई है उनके मन में इस समय कई ख्यालात चल रहे है।अर्पिता से वादा लेने पर भी उनके मन को संतुष्टि नही मिल रही है।ये मानसिकता ही है कि इंसान एक बार किसी विषय में कोई राय बना लेता है उसे आसानी से बदल नही सकता।शीला जी अपने कमरे से उठी और छत पर जाने के लिए निकलती है मन में ख्यालात चल रहे है वो सीढियां चढ़ती जाती है ख्यालातों में इतना डूब जाती है कि सीढियो पर पैर जम नही पाता है और वो चीखते हुए लुढ़क कर नीचे आ जाती है।


चीख सुन कर घर में अपने अपने कमरो में आराम कर रहे सदस्यो की नींद खुल जाती है और सभी आवाज की दिशा में दौड़ पड़ते हैं।बाहर आकर वो देखते है शीला जी दर्द से कराहती हुई सीढियो से नीचे पड़ी है उनके सर पर भी चोट लगी है और एक पैर में सूजन आने लगी है।अर्पिता, किरण परम प्रेम राधिका सुमित चित्रा सभी आते हैं।


चाची जी क्या हुआ आप चीखी क्यों?सभी आते हुए बोले।एवं चोट देख सब समझ गये शोभा सुमित से बोली, सुमित जल्दी से अपनी गाड़ी निकालिये शीला को हॉस्पिटल लेकर निकलना होगा।


जी चाची कहते हुए सुमित चाबी उठा वहां से निकलते है वहीं प्रेम और परम दोनो शीला को सहारा देकर गाड़ी तक ले जाते है एवं प्रेम नृपेंद्र जी कमला तीनो शीला के साथ गाड़ी में बैठ जाते हैं।प्रेम जी गाड़ी दौड़ा देते है एवं हॉस्पिटल के सामने ही रोकते हैं।जहां वो शीला जी को स्ट्रेचर की मदद से अंदर ले जाते है डॉक्टर्स शीला जी को ट्रीट करने लगते है एवं कुछ देर बाद बाहर आकर बताते है "पेशेंट के पैर में गहरा फ्रेक्चर आया है।जिसे ठीक होने में कम से कम दो महीने लगेंगे।मैंने पट्टी कर दी है इन्हें कम से कम एक महीने पूरा बेड रेस्ट करना होगा।सर पर पट्टी कर दी है आप लोग चाहे तो उनसे मिल सकते हैं'।कह डॉक्टर वहां से चले जाते है।प्रेम घर फोन कर शोभा जी को पूरी बात बताते हैं।


शोभा जी :- ठीक है प्रेम फिर तुम डॉक्टर्स से डिस्चार्ज के बारे में बात कर लो कब तक कर देंगे।


जी मां!प्रेम ने कहा और फोन रख दिया।वहीं बेड पर लेटी शीला जी मन ही मन सोचती है आज घर में तुम्हारा पहला दिन था अर्पिता और आते ही मेरी टांग तुड़वा दी तुमने.....


क्रमशः