कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 63) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 63)

अर्पिता बोली :- शान क्या कर रहे हो आप?
शान अर्पिता की आंखों में देखते हुए कहते है :- तुम्हे प्रोटेक्ट अप्पू!

अर्पिता :- हमे प्रोटेक्ट किससे शान!
शान :- उन सब बुरी भावनाओ बुरी नजरो और बुरी बातों से जिनसे तुम्हारी आंखों में आंसू आये!

ओह हो शान आपको हमारी परवाह है हम जानते है लेकिन हमे आपसे जुड़े हर रिश्ते की परवाह है आपने जो कुछ देर पहले किया वो गलत है शान, मां को कितना दुख हुआ ये जानकर कि उनका बेटा उनके पास आकर आशीष नही लेना चाहता।

शान थोड़ी तेज आवाज में बोले :- अर्पिता जब उनके बेटे ने बस चन्द शब्द बोले उनसे दूर जाने के लिए तो उन्हें बुरा लगा उनके आंसू आ गये लेकिन जब तुमसे उन्होंने बदचलन चरित्रहीन कहा तब तुम्हे कितना बुरा लगा होगा! क्या तुम इंसान नही हो।तुम्हारे अंदर भावनाये नही है।

शान की बात सुन अर्पिता बोली शान धीरे कहो मां सुन रही है।और हां हमे बुरा लगा तब लगा तब रिश्ते दूसरे थे अब हमारे रिश्ते दूसरे है।जिन्हें हमे हर कीमत पर सम्हालना है।

शीला दोनो के बीच की बातें बड़े ही ध्यान से सुन रही है।

शान शीला से कहते हुए अर्पिता से बोले :- अर्पिता आज शाम तक मां की जितनी देखभाल करनी है न वो कर लो कल सुबह ही मैं तुम्हे लेकर लखनऊ निकल रहा हूँ।मैं यहां अपनी पत्नी को किसी के ताने उलाहने सुनने के लिए छोड़कर नही जाऊंगा।

शान की बात सुन अर्पिता शॉक्ड हो जाती है।वो समझ ही नही पाती है अब क्या कहे,क्या करे।

शान बाकी बातें बाद में पहले मां का आशीर्वाद ले लो।अर्पिता अटकते हुए बोली।

शान :- अरे अर्पिता!तुम क्यों उदास हो रही हो तुमसे मैं कुछ नही कह रहा हूँ मैं बस मां से कह रहा हूँ उन्हें एक बात साफ बताना चाहता हूँ जितनी जगह उनकी मेरे जीवन में है उतनी ही अब से तुम्हारी भी है।जितनी इज्जत मैं उन्हें देता हूँ उतनी ही तुम्हे भी देता हूँ और मैं ये हरगिज नही चाहूंगा कि तुम यहां रहकर रोज नई नयी उपाधियों को प्राप्त करो।सो अपना सामान पैक कर लेना कल सुबह ही हम निकल रहे हैं।कहते हुए शान आगे बढ़ते है और शीला जी के चरण स्पर्श कर वहां से निकल जाते है।अर्पिता शान के इस रूप को देख हैरान हो जाती है।वो मन ही मन कहती है शान आप इतने सुलझे हुए है कि हमे यकीन ही नही हो रहा है कि अभी अभी आप रिश्तो को उलझाने वाली बातें करके गये हैं।आप ये जो कर रहे है न इसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य है जो हम अभी समझ नही पा रहे हैं।वो शीला जी को देख उनके पास जाकर कहती है मां ये सब क्यों कर रहे है हमे कुछ समझ नही आ रहा है लेकिन आप इतना यकीन मानिये हमारा कि हम आप दोनो के बीच में नही आएंगे।हम पूरी कोशिश करेंगे इन्हें यहां रोकने की।लेकिन आप परेशान मत होना।क्योंकि अगर आप परेशान हो गयी तो फिर जल्दी से ठीक कैसे होंगी।और आपको तो हमे डांटने के लिए जल्दी से ठीक होना है।अभी आप ऐसे डाँटेगी तो हम बाहर भी दौड़ कर जा सकते है लेकिन जब आप चलने लगेगी फिर हम कहां जा पाएंगे, कहीं नही न।तो बस परेशानी नही बस चेहरे पर और मन में खुशी रखिये ढेर सारी खुशी।अर्पिता ने इस अंदाज में कहा कि शीला मां न चाहते हुए भी मुस्कुरा देती है।

वहीं प्रशांत शीला जी कमरे से बाहर आ कर सीधे शोभा जी के पास जाते है और उनसे कहते है 'ताईजी सर दर्द हो रहा है क्या आप अपने हाथो से मालिश कर देंगी'

शोभा जी मुस्कुराते हुए कहती है आ जा बैठ मैं करती हूँ बस तेल ले आऊं।

'ठीक है' शान बोले।शीला जी उठकर वहां से चली जाती है तो शान वहीं बैठ उनके आने का इंतजार करने लगते हैं।और मन ही मन सोचते हैं , सॉरी मां आपको अर्पिता के बारे में अपनी राय बदलने के लिए मेरे पास इससे बेहतर कोई और विकल्प शेष नही है।मुझे रूडी होना पड़ेगा आपसे तभी आप अर्पिता की अच्छाई उसकी खूबियों को समझ पाएंगी।आप समझ पाएंगी कि कभी कभी आंखों देखा सच भी झूठ होता है।

शोभा वहां आ जाती है वो शान को सोच में डूबा हुआ देख बोली, 'चलो बताओ अब क्यों परेशान हो शान'!

प्रशांत ने एक बार शोभा जी की ओर देखा और बोले आप भी शान कह बुलाने लगी।

शोभा :- क्यों नही बुलाऊँ!इतना प्यारा नाम मिला है तुम्हे तो क्यों न बुलाऊँ।

शान :- क्या ताईजी आप के मुंह से तो वही अच्छा लगता है प्रशांत!आप वही कहिये।

शोभा (हंसते हुए):- ठीक है ज्यादा बातें न बनाओ।सीधे सीधे कहो किसी स्पेशल के लिए रहने दो ताइ जी।

शोभा की बात सुन शान मुस्कुराते हुए बोले हम्म ताइ जी किसी स्पेशल के लिए रहने दीजिये।

शोभा :- तो अब बातें बहुत हुई ये बताओ क्या हुआ क्यों सर दर्द हो रहा है?किस वजह से परेशान हो।

शान बोले :- ताइ जी मैं आपसे एक सीक्रेट बात शेयर कर रहा हूँ इसे आप हम दोनो के बीच ही रखियेगा जब तक सब ठीक नही हो जाता।

शोभा जी :- ठीक है बताओ फिर क्या बात है।
शान गंभीरता से बोले :- ताइ जी, मैंने आज जानबूझ कर मां का दिल दुखाया है ये एहसास दिलाने के लिए कि किसी से अगर हम कड़वा बोलते है तो कितना बुरा लगता है।आपको तो पता ही है कि कल मैं यहां से वापस लखनऊ जा रहा हूँ।मां को अर्पिता के बारे में अपनी राय बदलने के लिए मैंने उनके सामने यही बोला है कि मैं कल अपनी पत्नी को अपने साथ लेकर जा रहा हूँ।जबकि मैं जानता हूँ अर्पिता हर सम्भव प्रयास करेगी मुझे यही रोकने के लिए।लेकिन मुझे रूडी बन कर यहां रुकना नही है।अंत में वो यही निर्णय लेगी कि वो मां को ऐसे छोड़ कर मेरे साथ नही आयेगी।जिससे मां के सामने अर्पिता से झगड़े का अभिनय कर मैं यहां से निकल जाऊंगा।वो ये भी बर्दास्त कर लेगी लेकिन गलत का साथ नही देगी।मुझे यकीन है वो जल्द ही मां को अपने बारे में राय बदलने पर मजबूर कर देगी।तब तक आप उसका ध्यान रखना।मां अगर कुछ कह भी दे तो आप मेरी पगली को सम्हाल लेना।मैं आपसे बात करता रहूंगा।कहते हुए शान शोभा की गोद में अपना सर छुपा लेते है।ये देख शोभा बोली

'पागल लड़का' ये भी कोई कहने की बात है।तुम दोनो समझदार हो तुम जो करने जा रहे हो वो तरीका टेढ़ा जरूर है लेकिन कारगर यही होगा।देख लेना एक दिन अर्पिता और शीला की बॉन्डिंग मेरी और राधु की तरह ही होगी सबसे मजबूत।उसके दो कारण है पहला, तो दोनो का लगभग एक जैसा होना।और दूसरा दोनो की ताकत उनके पति का प्यार ही है।जो उन्हें कभी हारने या कमजोर नही पड़ने देगा।तो अब से तुम्हारी पगली की जिम्मेदारी मेरी तुम आराम से निश्चिन्त होकर जाओ।लेकिन प्रशांत एक समस्या ये है कि पगफेरे की रस्म भी होनी है तुम सब कल निकल रहे हो फिर ये रस्म कैसे होगी।

शान बोले :- ताईजी रस्म तो तब होगी न जब अर्पिता मां को छोड़कर जाने को तैयार होगी।मैं भी यहां नही रहूंगा न ही सुमित भाई,स्नेहा भाभी, प्रेम भाई राधिका भाभी परम श्रुति चित्रा ये सभी तो कल ही निकल रहे हैं।दोनो ताऊजी और पापा अपने कार्य में व्यस्त हो जाएंगे।बचे आप और कमला ताईजी उनके लिए ढेर भर का कार्य तो मां की देखभाल के लिए वो ये रस्म नही करेगी।

शोभा बोली :- इतना भरोसा!
शान :- हां उसे मुझसे ज्यादा अच्छे से कोई नही जानता।
शोभा :- अगर मैंने कहा तब तो जरूर जायेगी मेरी बात नही टालेगी।

शोभा की बात सुन शान हंसते हुए बोले आप बस एक बार बोलना दोबारा नही।न उसने कोई बात बना दी तो कहना।इस बात पर आप मुझसे शर्त लगा लो।

शोभा :-ठीक है प्रशांत लगी शर्त!मैं बस एक ही बार कहूंगी।अगर वो टाल गयी तो भी मुझे गर्व ही होगा कि इस घर की नयी बहू कोई कामचोर नही है।कहते हुए शोभा मुस्कुराई तो उनके साथ शान भी मुस्कुराने लगते हैं।

शोभा जी :- तो अब सर दर्द बंद हो गया न।
शान :- जी ताईजी।गुड तो अब एक कार्य करो अपनी पैकिंग कर लो जाकर ठीक।

शान :- जी ताइ जी ठीक है।कहते हुए उठे और अपने कमरे की ओर चले जाते है।वहीं शीला जी को सोया देख अर्पिता भी धीरे से उठकर बाहर निकल आती है।

और शान से बात करने के लिए उनके कमरे की ओर बढ़ जाती है।पायलों की आवाज सुन शान बोले मुझे पता था समय मिलते ही तुम जरूर आओगी अप्पू।वो जाकर बालकनी वाली खिड़की पर खड़े हो जाते हैं।अर्पिता कमरे से अंदर आती है और आते हुए दरवाजा बन्द कर देती है। वो शान की ओर बढ़ती है और पीछे से शान के गले लग जाती है।उसका सर शान की पीठ पर और हाथ शान के सीने पर है।
शान हल्का सा मुस्कुराते हुए बोले, अप्पू,तुम्हारा यूँ मेरे इतने करीब होना मुझे एहसास दिला रहा है तुम्हारा मेरे जीवन में मेरे अस्तित्व का।

हम्म तो शान!अब अस्तित्व है तो है।आप एक बात बताइये कल हम सच में यहां से चले जाएंगे।

शान :- हम्म।जाना तो पड़ेगा!ऑफिस भी दस दिनों से बंद है और कोचिंग के बच्चे भी हमारा इंतजार कर रहे होंगे।तुमने उन्हें दस दिनों का समय दिया था।

अर्पिता झिझकते हुए बोली :-शान तो क्या मां इस हालत में अकेले रहेंगी यहां।अगर हम मां को भी साथ ले चले तो।

अर्पिता की बात सुन शान मन ही मन बोले इस बारे में मैंने क्यों नही सोचा!फिर वो बातें बनाते हुए बोले मां की देखभाल वहां कैसे करोगी अप्पू!सेकण्ड फ्लोर पर हम लोग रहते है उस पर दो ही रूम है।अब तो रूम भी चेंज करना होगा थ्री रूम वाला फ्लोर देखना पड़ेगा।और तुम मां को साथ ले जाने की बात कर रही हो।

अर्पिता शान की पीठ से सर हटाते हुए बोली, शान हमारा बिल्कुल मन नही है मां को छोड़कर जाने का।
शान मन ही मन बोले जानता हूँ और अर्पिता से बोले अब तुम्हे मेरे साथ चलना पड़ेगा,बीवी हो मेरी तो मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलना पड़ेगा।

अच्छा जी जिद!हुकुम वो भी अर्पिता व्यास पर!अर्पिता ने सामने आते हुए कहा।

उसकी बात सुन शान मुस्कुराये और उसे गले से लगाते हुए बोले व्यास नही स्वीटहार्ट अर्पिता मिश्रा!जो अब मेरी बीवी है।

अच्छा सुनो न, हम क्या कह रहे थे शान हम यही रुक जाये तो! मां ठीक हो जाएंगी तो हम वापस लखनऊ आ जाएंगे।अर्पिता ने कहा।

तो शान रूडी होते हुए बोले!मां की फिक्र है,पति की नही।ये नही सोच रही हो नयी नयी शादी हुई है थोड़ा टाइम पति के लिए भी निकाले जो बेचारा कल से इसी इंतजार में है कब हम पर थोड़ी मेहरबानी हो जाये।
शान के चेहरे के हाव भाव देख अर्पिता बोली तभी तो कह रहे है रुक जाइये न।

शान थोड़ा गुस्से का अभिनय करते हुए अर्पिता से अलग होते है और बोलते है ठीक है तुम्हे नही फिक्र है न मेरी मत करो मैं अभी जा रहा हूँ रहो तुम अपनी मां के साथ।कहते हुए वो कमरे से बाहर चले आते है।शान का व्यवहार देख अर्पिता भावुक हो जाती है उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं।वही शान कमरे से बाहर जा कर बाहर बगीचे में जाकर बैठ जाते है और अपने आंसुओ को पोंछते हुए कहते है सॉरी अर्पिता, इसके अलावा अभी कोई विकल्प नही है मैं जानता हूँ तुम मां का ही साथ दोगी तभी तो मैं निश्चिन्त होकर जा पाऊंगा और वहां बेफिक्री से अपना कार्य कर पाऊंगा।

कुछ देर अर्पिता यूँ ही कमरे में बैठी रहती है फिर शोभा जी के पास जाकर उनकी मदद करने लगती है।सांझ हो जाती है स्नेहा भाभी के साथ मिल कर वो अपनी बहन किरण के लिए उसका कमरा सज्ज कर देती है।
स्नेहा उसे छेड़ते हुए कहती है 'बहन के लिए सारी तैयारी खुद कर रही हो और तुम्हारा क्या'!

हमारा, हमारा क्या भाभी 'पहले पतिदेव को तो मना ले जिद पर अड़े है कल साथ लेकर ही जाएंगे'

ओह ऐसी बात है। फिर तो बहुत मेहनत करनी पड़ेगी अर्पिता, क्योंकि देवर जी पहले तो गुस्सा करते नही है और जब करते है तो मनाना आसान नही है।

हम्म भाभी।अर्पिता बोली और दोनो ठिठोली करते हुए बाहर चली आती हैं।सांझ हो गई है और शान अब तक घर नही आये।सर्दी में बिन स्वेटर शॉल के बीमार पड़ने का पूरा इरादा है।पूछते है कहां है वो मन ही मन सोचते हुए वो शान को कॉल लगाती है?घर के बगीचे में परम के साथ बैठे हुए शान जान बूझ कर इग्नोर कर देते हैं।अर्पिता एक बार फिर कॉल लगाती है इस बार परम देख लेते है और फोन लेकर अटैंड कर लेते है, " जी छोटी भाभी कहिये"

ओह तो फोन आपके पास है परम जी।आप के भाई कहां है?अर्पिता ने पूछा।
परम :-भाई भी यहीं है न जाने क्यों उखड़े हुए बैठे हैं।

अर्पिता :- अच्छा! ये बताइये गुस्से में गर्म कपड़ो से त्यागपत्र तो नही दे दिया आपके भाई ने।

परम (हंसते हुए):- हां भाभी! तापमान इतना गर्म है कि बाहरी सर्दी हवा हो गयी इसके सामने।

अर्पिता :- कहां है आप दोनो वैसे ?
परम :- बाहर वाले गार्डन में।

"ठीक है फोन जरा स्पीकर पर डालना"!अर्पिता ने कहा!
"हम्म ठीक है छोटी भाभी" परम ने कहा और फोन स्पीकर पर डाल दिया।

अर्पिता अपने हाथ में घास का एक तिनका पकड़े हुए होती है वो उसे जबर्दस्ती छींक लाने के लिए उसे अपनी नोज में हल्का सा रखती है जिसके कारण छींकना शुरू कर देती है।
आ...छी..!शान..!आ..छी..!देखो वापस ..आ..छी
ओह गॉड ये लड़की जिद्दी है कहते हुए शान उठते है और परम से फोन ले अंदर की ओर चले जाते हैं।शान के अंदर जाते ही परम कहते है ये सही है शेर को सवा शेर!नही नही शेरनी कहो!क्या दिमाग लगाया है भाई को लाइन पर लाने के लिए।चलो अब अंदर देखे तो क्या होता है।कहते हुए परम भी अंदर चले आते हैं।

शान चारो ओर देखते हुए बढ़ते हैं।अर्पिता कहीं नही दिखती।तो सोच में पड़ जाते है इसे मैं कहां ढूँढू! ऊपर या नीचे या मां के पास!तभी एक बार फिर से छींकने की आवाज आती है अर्पिता तिनका पहले ही तोड़ मोड़ कर फेंक देती है अब तो जो परिणाम है वो सामने है।

आवाज तो मेरे ही कमरे से आ रही है देखता हूँ जाकर कहते हुए शान कमरे में आते है तो अर्पिता को देखते है जिसका चेहरा लाल पड़ चुका है।शान अर्पिता के पास आकर बैठते हुए उसकी पीठ पर हाथ रख सहलाते हुए बोले अप्पू!क्या हुआ इतनी छींके क्यों?सर्दी लग गयी होगी। तुम इतनी पगली क्यों हो बताओ मुझे!अर्पिता कुछ कह नही पाती और खांसते हुए शान की गोद में आकर लुढ़क जाती है।शान उसका सर सहलाने लगते है।कुछ देर बाद उसकी छींके शांत हो जाती है वो उठती है और चुपचाप कबर्ड में जाकर शान के लिए एक स्वेटर निकाल लाती है और उनकी ओर पहनने के लिये बढ़ाती है।

हम्म ठीक है पहनता हूँ कहते हुए शान ने स्वेटर लिया तो अर्पिता बोली हम मां को देख कर आते है उन्हें किसी चीज की आवश्यकता तो नही।कहते हुए वो बाहर निकल जाती है उसकी खामोश आँखे देख शान को अच्छा महसूस नही होता।स्वेटर पहन वो भी बाहर चले आते है जहां उन्हें हॉल में खड़े हो मुस्कुराते हुए परम मिल जाते हैं।

परम :- क्या बात है भाई!तब से बाहर यूँ उखड़े हुए बैठे थे और अभी मुस्कुराते हुए बाहर निकले हो।।

शान बोले :- जाओ छोटे किसी को इंतजार कराना भी अच्छा नही है।

परम :- हम्म सो तो है भाई।
परम वहां से चले जाते हैं।वहीं अर्पिता भी शीला जी के पास जाकर उनके पास बैठ कर बातें करने लगती है।
शीला जी अर्पिता को देख मुंह फेर लेती है।जिसे देख अर्पिता बोली मां इसका भी विकल्प ढूंढ लिया है हमने!अब से हम आपके कमरे में घूंघट निकाल कर आया करेंगे ठीक फिर तो आपको कोई समस्या नही होगी न।

शीला न चाहकर भी जवाब दे देती है "नही "!
अर्पिता खुश होते हुए बोली, "फिर ठीक है मां"! अच्छा हम ये पूछने आये थे आपको कुछ चाहिए?कहीं दर्द वगैरह तो नही हो रहा है।

शीला हल्का सा झल्लाते हुए कहती है, " नही दर्द नही हो रहा है अर्पिता!लेकिन तुम अगर यूँ ही बैठ कर चपड़ चपड़ लगी रही तो सर दर्द अवश्य शुरू हो जायेगा"।

क्या मां भला बातों से भी किसी के सर दर्द होता है।कैसी बातें कर रही हो आप!

शीला जी बोली, "अर्पिता, शांत हो जाओ मुझे अब नींद आ रही है तो मुझे सोने दो" दवाओं का असर भी होना चाहिए न तभी तो मैं जल्दी ठीक हो पाउंगी।

हां मां और तभी तो आप मुझे यूँ घूम फिर कर डांट पाएंगी।तभी तो मुझे एहसास होगा कि मेरी भी मां जैसी सासु मां है।कहते हुए अर्पिता ने मुस्कुराते हुए शीला जी की ओर देखा जो गुस्से से अर्पिता की ओर ही देख रही थी।ये देख अर्पिता बोली मां गुस्सा नही खुशी रखिये चेहरे पर हम चलते है शुभ रात्रि!अगर कुछ भी चाहिए हो तो आवाज लगा दीजिएगा ठीक है कहते हुए वो उठी उसने शीला जी के चरण स्पर्श किये और वहां से हॉल में चली आती है।शोभा जी जो कमला के साथ रसोई में होती है अर्पिता को देख बोली, " अर्पिता कहां घूम रही हो जाओ जाकर तुम भी रेस्ट कर लो कल तुम्हे भी निकलना है, शीला के पास आज जीजी रुकेगी।तो उनकी चिंता तुम न करो ठीक है।

जी ताईजी अर्पिता बोली और छत की ओर अपने कदम बढ़ा देती है हॉल में बैठे हुए शान वहां से उठकर अपने कमरे में चले जाते है।शोभा अर्पिता के पीछे उसके कमरे तक आती है और कहती है अर्पिता तुम्हारा कमरा नीचे है जो थोड़ा बहुत समान था न स्नेहा ने सब पैक कर नीचे ही रखवा दिया है तो अब यहां नही बेटे हक से अपने कमरे में जाओ।

शोभा जी की बात सुन अर्पिता होठों से मुस्कुरा देती है।लेकिन मन ही मन सोच में पड़ जाती है।हम शान के साथ..उन्हें रोकेंगे कैसे।अब तो कोई बहाना भी नही बना सकते और नही रोका तो हमे उनसे दूर जाना पड़ेगा!हम क्या करें हे ठाकुर जी हमने शीला मां को वचन दे तो दिया लेकिन बिन शान को बताये इसे पूर्ण करेंगे कैसे।शोभा अर्पिता को नीचे साथ लाकर वहां से वापस कमला के पास चली जाती है।
अर्पिता धीरे धीरे कमरे में पहुंचती है और दरवाजा बंद कर सोच में डूबी वहीं खड़ी रह जाती है।

शान जो बेड पर आँखे बन्द किये सोने की कोशिश कर रहे है पायलों की रुनझुन से मुस्कुराते हुए आँखे खोलते है और दरवाजे की ओर देखते हैं।वहां अर्पिता को थोड़ा असहज और परेशान देख वो उठते है और उसके पास जाकर उसका हाथ थाम कर वहां से आगे ले जाते है और मिरर के सामने खड़े हो पीछे से उसके गले लग उसके कांधे पर अपना चेहरा रख उससे कहते है अर्पिता जरा देखो तो तुम कितनी परेशान और घबरायी हुई लग रही हो।अर्पिता,मेरी पगली को उसके शान से घबराने की जरूरत नही है।तुम इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में अभी शायद असहज महसूस कर रही हो।कोई बात नही अर्पिता अब तो तुम मेरी हो चुकी हो हमारी शादी हो चुकी है।मैं तुम्हारा इंतजार पूरी लाइफ कर सकता हूँ।इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए तुम जितना चाहे उतना समय ले सकती हो।

शान की बात सुन अर्पिता भावुक हो पीछे मुड़ शान के गले लग जाती है और कहती है, आप कैसे समझ लेते है हमारी हर बात,कैसा ये इश्क़ है शान ..

शान मुस्कुराते हुए बोले ..बस ऐसा ही ये इश्क़ है मेरी जान..!

दोनो के बीच शब्द खत्म हो जाते है और रह जाता है बस एहसासो से जुड़ा मौन,और धड़कनो की आवाज़!

कुछ देर बाद शान बोले:-अप्पू, अब पूरी रात सर्दी में मैं यूँ ही खड़ा नही रह सकता,नींद आ रही है अब तो मै तो चला सोने कहते हुए शान बेड पर जाकर लेट जाते हैं।

हम्म ठीक है गुड नाइट शान अर्पिता ने कहा और बेड के दूसरी ओर जाकर आँखे बंद कर लेट जाती है।शान बस मुस्कुराते हुए अपनी पत्नी को देखते रहते है और जल्द ही नींद की आगोश में चले जाते है।

सुबह हो जाती है और अर्पिता उठ जाती है वो देखती है शान वहां नही है।वो एक नजर कमरे की ओर डालती है शान को न देख वो तुरंत उनके समान को देखती है वो भी वहां नही होता है।वो घबराकर उठती है एवं अपने सभी कार्य कर तैयार हो बाहर चली आती है और चारो ओर शान को देखती है।शान नही दिखते तो उदास हो मन ही मन सोचती है लगता है बिन मिले ही निकल गये।वो जाकर शोभा जी की मदद करने लगती है।घर के सभी सदस्य उठ चुके है एवं सभी स्नान वगैरह कर तैयार भी हो चुके है।सबको देख अर्पिता सोचती है लगता है शान हमसे नाराज होकर ही निकले है।तभी तो सबके साथ नही गये अकेले ही निकल गये हमने मना जो कर दिया था साथ न जाने के लिए।

वो उदास हो जाती है।शोभा जी अर्पिता से बोली,ये चाय लेकर शीला को दे आओ' तब तक मैं सबके लिए खाना पैक कर देती हूँ यहां से घर जाकर बनाना नही पड़ेगा।

"जी ठीक है ताईजी" अर्पिता ने कहा! और वो शीला जी के कमरे की ओर बढ़ जाती है।अर्पिता शीला जी के पास आई और चाय रख घूंघट निकलते हुए बोली, 'मां आपकी सुबह की चाय'! शीला अर्पिता को देखती है तो कहती है अच्छा किया तुमने अर्पिता।वहीं शान समान गाड़ी में रख कर अंदर आते हैं।और चारो ओर देखते है तो शोभा उसे शीला जी के कमरे की ओर जाने का इशारा कर देती है।

शान शीला के कमरे की ओर बढ़ जाते है एवं अर्पिता को देख नकली गुस्सा चेहरे पर लाकर कहते है तो इस लिए तुम यहां से जाने से मना कर रही थी अर्पिता।एक तुम हो जो इनकी खुशी के लिए हर सम्भव हद में झुकने को तैयार हो और एक ये हमारी मां है जो एक बार भी तुम्हे समझने की कोशिश ही शुरू नही कर रही हैं।अब बहुत हुआ अर्पिता समय हो चुका है हमे अब निकलना चाहिए।

अर्पिता शान को अपने सामने देख हैरान होती है।उससे भी ज्यादा शॉक्ड ये जानकर होती है कि शान के साथ उसे भी यहां से जाना है।

शान!जाना जरूरी है अर्पिता ने धीमे से पूछा तो शान बोले, "बेहद जरूरी"!

अर्पिता बोली लेकिन मां को ऐसे छोड़कर जाने का हमारा मन नही है शान माफ कीजिये हम नही चल सकते अर्पिता ने अटकते हुए कहा जिसे सुन शान और दरवाजे पर खड़ी शोभा जी मन ही मन बोले, पता था तुम्हारा यही जवाब होगा।

शान मुंह फेर कर रूडी हो जाते है और कहते है, "तो ये तुम्हारा अंतिम फैसला है अर्पिता"?

अर्पिता नजरे झुकाये हुए बोली :- हां शान!मां है वो उन्हें ऐसे छोड़कर तो नही जा सकते हम।

शान गुस्से का अभिनय कर तेज आवाज में बोलते है, " जब वो तुम्हे कुछ नही समझती फिर भी तुम उनके लिए मुझसे दूर होने को तैयार हो,उन्होंने तुम्हे इतना कुछ सुनाया फिर भी तुम उनकी ही सेवा करना चाहती हो,फिर तो अप्पू तुमसे बड़ी पगली इस दुनिया मे कोई नहीं है।यहीं रहना है न रहो,अब से न मै तुमसे कोई बात करूंगा न ही कॉल करूंगा तब तक जब तक तुम खुद से वापस लखनऊ नहीं आ जाती।ठीक है रहो।इनसे तो मै बात करूंगा ही नहीं लेकिन तुमसे मुझे ये आशा नहीं थी चलता हूं बाय!कहते हुए शान वहां से चले आते है उनकी आंखे आंसुओ से भरी होती है जिन्हे वो अर्पिता से छुपाते हुए बाहर निकल आते है।शोभा शान को देखती है तो उसके पीछे आती है उनके पीछे ही अर्पिता भी आती है।कमरे से कुछ दूर आने पर शान शोभा से कहते है मैंने आज बहुत रुलाया है उसे आप ध्यान रखना उसका। वो पीछे ही खड़ी है मैंने अगर मुड़ कर देखा तो इससे ज्यादा एक्टिंग मुझसे नहीं होगी और सब किए कराए पर पानी फिर जाएगा।चलता हूं बड़ी मां (ताइ जी) फोन पर आपसे बातचीत होती रहेगी कहते हुए शान बिन पीछे देखे बुक की हुई गाड़ी में जाकर बैठ जाते है।अर्पिता पीछे आती है लेकिन तब तक शान निकल चुके होते हैं।अर्पिता वहीं खड़ी उन्हें जाते हुए देखती रह जाती है।

क्रमशः....