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महाकवि निराला कोमल फूल पर तलवार का पानी

संस्मरण ०

महाकवि निराला जयन्ती "कोमल फूल पर तलवार का पानी" (महादेवी वर्मा)

के0बी0एल0 पाण्डेय

वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मदन मोहन मालवीय हॉस्टल (हिन्दू हॉस्टल) में महाकवि निराला की षष्ठि पूर्ति का आयोजन था। कार्यक्रम था तो छात्रावास के परिमित सभागार में पर उसका औदात्य अन्तरिक्षीय था। विश्वविद्यालय के नियमानुसार किसी हॉस्टल में न रहने वाले छात्र को डेलीगेसी के छात्र की तरह किसी हॉस्टल से सम्बन्धित होना पड़ता था। मैं हिन्दू हॉस्टल से जुड़ा था।

महाकवि आये और मंच के नीचे श्रोताओं की अग्र पंक्ति में कुर्सी पर बैठ गये। मंच पर बैठने के निवेदन उनकी तुरीयावस्था तक नहीं पहुँच पाये। देवदारू जैसा लम्बा शरीर, दृढ़ स्कन्ध, अनुशासन की अवज्ञा करते छितराये बाल और अनतिप्रलम्ब दाढ़ी, कमर में लुंगी और खुले बदन पर कंधे पर उपेक्षा से पड़ा कुर्ता । आँखें जैसे प्रस्तुत से परे मनुष्यता का कोई विराट स्वप्न देख रही हों। लग रहा था जैसे धरती पर नयी अनुभूति और नयी भाषा लेकर कोई परग्रही उतरा हो।

मैं महाकवि के ठीक पीछे बैठने में सफल हो गया। निराला जी को मैंने पहली बार नहीं देखा था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के बाद अपने मित्र के साथ उन्हें उनके निवास पर देख चुका था पर महाकवि के प्रिय और बार-बार प्रयुक्त शब्द 'नव' और 'नवल' की तरह वह स्वयं भी हर बार नये और अदृष्टपूर्व लगते थे। इतनी उमंग थी उन्हें देखने और उनके शब्द सुनने की, कि मैं प्रत्येक क्षण को कई जीवनों की तरह जी लेना चाहता था। अद्भुत रोमांच। उनका रचा हुआ संसार स्मृति से बाहर आकर सजीव हो रहा था। 'विरोध ही पाता रहा जीवन, तुलसी, सरोज, पत्थर तोड़ती मजदूरिनी भिक्षुक, विधवा, जुही की कली, वसन्त, मँहगू कुल्ली, चतुरी, प्रिय स्वतंत्र रव की कामना सब महाकवि के आसपास ही हों। वसन्त का अग्रदूत जो वहाँ बैठा था।

मंच पर निराला जी का समकाल प्रतिष्ठित था। जानकी वल्लभ शास्त्री, सुमित्रा नन्दन पंत, महादेवी वर्मा के अलावा और भी कई कवि। निराला जी के एक शिष्य ने 'बादल राग' कविता का ऐसा सस्वर पाठ किया जैसे बादल सचमुच उमड़ घुमड़ रहे हों। जानकी वल्लभ शास्त्री निराला जी के प्रिय पात्र रहे हैं। उन्होंने अपने संस्मरण सुनाये। सुमित्रा नन्दन पंत बोलने को खड़े हुए। सौकुमार्य और सौन्दर्य द्वारा सकरूण पौरूष का अभिनन्दन। पंत जी ने जब निराला की छन्द मुक्त कविता की प्रशंसा में कविता लिखी तो निराला ने पंत जी को लिखा था-'तुम भाषा के सम्राट कहे जाते हो। किसी व्यक्ति की प्रशंसा में कविता मत लिखा करो " निराला और पंत अपने समय की कविता के कीर्ति शिखर थे। पंत जी का वही कलात्मक डिजायनर सूट, माथे पर झूलती बालों की सघन लट। जैसे कौसानी की सुरम्य प्रकृति से मिली मूल देहानुभूति को उन्होंने अनुरूप अभिव्यक्ति दे दी हो। पंत जी ने कहा-निराला जी ने और मैने कंधे } से कंधा भिड़ा कर काम किया है।' महाकवि बुदबुदाये-यस, आइ हैव नेवर यील्द्विड माइ शोल्डर्स टु एनीबडी।' मैं चकित । निराला जी अंग्रेजी बोल रहे हैं। और वह भी इतने शुद्ध उच्चारण के साथ। पास बैठे मेरे मित्र ने बताया कि महाकवि आजकल अंग्रेजी ही बोलते हैं। मैं कभी किसी के सामने नहीं झुका। सच है महाकवि, वरना लोग तो जरा से प्रलोभन या दबाव में झुकना ही क्या दण्डवत् हो जाते हैं, अपनी सारी कला, अपना कौशल और ज्ञान तश्तरी में लेकर। महादेवी वर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा-निराला जी बहुत कोमल हैं। उनका व्यक्तित्व ऐसा है जैसे कोमल फूल पर तलवार का पानी चढ़ा दिया हो। निराला फिर अंग्रेजी में बुदबुदाये-शी इज द ग्रेटेस्ट पोर्ेटैस ऑफ द डे। इसमें क्या सन्देह महाकवि! वह तो थी ही अपने समय की श्रेष्ठ रचनाकार। सक्रिय करूणा/ श्रृंखला की कड़ियाँ तोड़ने की रचनात्मक तत्परता, स्नेह और ममता की मूर्ति । नीर भरी दुख की बदली, क्षितिज तोड़ कर उस ओर देख लेने की अभिलाषा जिस पंथ से युग कल्प चले जा रहे हैं, ससीम का असीम हो जाना । महादेवी व्याख्यान दें तो लगे जैसे सरगम के सुरों में किताब बाँची जा रही हो।

अब निराला जी से काव्य पाठ का निवेदन किया गया वह अंग्रेजी में ही बोले- अगर आप मेरी कविताएँ काव्यत्व के लिए सुनना चाहते हैं तो मेरी पुस्तक पढ़ लें। अगर संगीत के लिए सुनना चाहते हों तो कोई ग्रामोफोन रिकार्ड सुन लें। फिर मैं क्यों सुनाऊँ? और नहीं सुनायी तो नहीं ही सुनायी । फिर बोले-आजकल मैं संस्कृत के अमुक कवि (ठीक से याद नहीं

उन्होंने लिय कवि का नाम लिया था । शायद कालिदास को पढ़ रहा हूँ। उनका एक श्लोक है। "निराला जी ने श्लोक सुनाते हुए उसका अर्थ बताया कि धूल में एक स्त्री का पद चिह्न अंकित है। उसमें उँगलियों छाप भी स्पष्ट है और एड़ी की छाप भी उभरी है। उँगलियों और एड़ी के बीच का भाग नहीं उभरा है इससे स्पष्ट है कि वह स्त्री जब चलती है तो पुष्ट स्तनों के कारण उँगलियों पर भार पड़ता है और पृथुल नितम्बों के कारण एड़ी पर।'

उस दिन महाकवि एक भी शब्द हिन्दी में नहीं बोले। यह व्याख्या करके कार्यक्रम के औपचारिक समापन की प्रतीक्षा किये बिना वह कंधे पर पड़ा हुआ कुर्ता सँभालते मत्त गेंद की तरह झूमते हुए चले गये 'अभी न होगा मेरा अन्त' अभी क्या कभी नहीं होगा को महाकवि आपका अन्त और जिस हिन्दी कविता आप पोसते असीसते रहे हैं उसका भी कभी अन्त नहीं होगा।

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70, हाथीखाना

दतिया (म०प्र०)

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