पं0 जवाहर लाल नेहरू का लेखन कृष्ण विहारी लाल पांडेय द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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पं0 जवाहर लाल नेहरू का लेखन

पं0 जवाहर लाल नेहरू का लेखन, ज्ञान और संवेदना का रचनात्मक संयोग

डा0 के0बी०एल० पाण्डेय

आधुनिक भारत के प्रमुख शिल्पी युग पुरुष पं० जवाहर लाल नेहरू अन्तर्राष्ट्रीय जगत् के शीर्ष राजनेता तो थे ही, उनमें गंभीर विचारक, विशद अध्येता, उत्कृष्ट लेखक, मानवतावादी चिन्तक और कलाप्रेमी के दुर्लभ गुणों का संयोग भी था। व्यवित्तत्व के इन विविध आयामों ने उन्हें जहाँ जीवन के प्रति प्रवृत्तिपरकरता से सम्पन्न किया, वहीं देश-विदेश में व्याप्त लोकप्रियता भी प्रदान की पं0 नेहरू का मानसिक 1. और बौद्धिक धरातल अत्यन्त उदात्त और प्रखर था। राजनीति के सर्वग्रासी और निर्मम क्षण भी उनकी स्वाभाविक स्वप्रदर्शिता, भावुकता, करूणा, कल्पनाशीलता और जीवन्तता को क्षति नहीं पहुँचा सके।

लेखक के रूप में पं0 नेहरू की विचार सम्पदा अत्यन्त मूल्यवान् है। व्यस्त जीवन में इतना अध्ययन और प्रभूत लेखन विस्मयकारी है। आत्मकथा, भारत की खोज, तथा विश्व इतिहास की झलक जैसी श्रेष्ठ कृतियों के अतिरिक्त उन्होंने स्फुट लेखों के रूप में विपुल साहित्य की रचना की है। शिक्षा, साहित्य, भाषा, विज्ञान, यात्रा, संस्मरण आदि विषयों पर लिखे हुए उनके लेख रचनात्मक साहित्य के सुन्दर उदाहरण हैं। उन्होंने आत्मकथा में लिखा है-कविता से मुझे गहरा लगाव रहा। और सब चीजें अदलती बदलती रहीं पर कविता का प्रेम मुझमें बराबर बना रहा। उनका आग्रह था कि जीवन को एक कविता बनाना चाहिए। साहित्य के प्रति इसी अनुराग के कारण उनका मैथिलीशरण गुप्त, सेठ गोविन्ददास दिनकर आदि से व्यक्तिगत सम्पर्क रहा। गुड अर्थ, जैसे विश्व प्रसिद्ध उपन्यास की लेखिका पर्ल बक के शब्दों में हमारा युग कुछ और शान्त होता तो जवाहर लाल नेहरू श्रेष्ठ सर्जक साहित्यकार के रूप में हमारे सामने आते क्योंकि उनकी शैली विशिष्ट है और कल्पना सदा जीवित और वेगपूर्ण राजनीतिक जीवन के माध्यम में उनकी प्रतिभा समर्पित नहीं होती तो जिन मूल्यवान ग्रन्थों का निर्माण वह कर पाते उनके वरदान से वंचित रह जाने का विषाद हमें न होता। इसी सन्दर्भ में एक बार इंग्लैण्ड की एक महिला पुस्तक विक्रेता ने नेहरू जी से कहा था कि आपको जेल में बन्द कर दिया जाना चाहिए ताकि आप और अधिक लिख सकें क्योंकि आपकी पुस्तकों की बहुत माँग रहती है।

पं० नेहरू के लेखन में प्रतिबिम्बित उनकी दृष्टि और वैचारिकता उनकी मानसिकता की निर्मित्ति में निहित है। विज्ञान और इतिहास के अध्ययन ने उनकी धारणाओं को प्रभावित और निर्धारित किया। विज्ञान ने उन्हें वैज्ञानिक की भौतिक विश्लेषण दृष्टि और रूढ़ियुक्त आस्था दी। इतिहास ने उन्हें समय को अविच्छिन्न क्रम में देखने की ओर प्रेरित किया। पं0 नेहरू में परम्परा और संस्कृति जीवन्त तत्वों का स्वीकार भी है और नये युग की परिवर्तित मूल्य चेतना के अनुसार नवनिर्माण की अधीर व्यग्रता भी है। राष्ट्र के प्रति गहरे निजत्व के साथ ही उनमें विश्व मानवता के व्यापक संदर्भ भी हैं। सारी दुविधा के गरीब, शोषित और कृत्रिम विभेदों से त्रस्त जनता के प्रति उनके मन में गहरी संवेदनशीलता थी। उनमें अपनी घारणाओं के प्रति आस्था थी लेकिन स्वयं को अतर्क्य माने का दुराग्रह नहीं था। सत्य और सद्विचार का स्वागत वह किसी भी वातायन से करने को प्रस्तुत रहते थे। लोकतंत्र उनका राजनीति में ही नहीं, जीवन और चिन्तन में भी सर्वोच्च मूल्य था।

साहित्य के मूल्यों के प्रति पं0 नेहरू की दृष्टि बहुत स्पष्ट और मानवीय है। वह साहित्य का प्रयोजन मनोरंजन नहीं मानते हैं। उनके अनुसार साहित्य की सार्थकता अभिजात वर्ग के लिये रचे जाने में नहीं है। उन्होंने लिखा है-'बुनियादी बात यही है कि हमारे साहित्यकार इस बात को याद रखें कि उनको थोडे से आदमियों के लिये नहीं लिखना है बल्कि आम जनता के लिये लिखना है। वह जमाना जाता रहा जबकि किसी देश की संस्कृति थोड़े से ऊपर के आदमियों की थी। अब वह आम जनता की होती जाती है और वही साहित्य बढ़ेगा जो इस बात को सामने रखता है। पं0 नेहरू के अनुसार साहित्य में लोकोन्मुखता और नवीन चेतना होनी चाहिए। अब साहित्य तभी प्रभावशाली होगा जब उसमें शक्ति का संचार किया जायेगा, उसमें नये और समयानुकूल भाव भरे जायेंगे। पं० नेहरू की साहित्यकारों से अपेक्षा थी कि वे दुनिया के नवजात ज्ञान तथा उसके विविध पक्षों को भी अपनी रचना में शामिल करें। वह कविता के माधुर्य की प्रशंसा तो करते थे लेकिन उनके अनुसार कभी कभी मिठास इस कदर होती है कि इसमें शीरे की चिपक सी आ जाती हैं। उन्हें राष्ट्रीय भावों से समन्वित कविताएँ प्रभावित करती थीं। 06 अगस्त उन्नीस सौ ब्यालीस को दिल्ली की एक विशाल सभामें पुत्तूलाल 'करूणेश की एक कविता नेहरू जी के आग्रह पर तीन बार पढ़ी गयी। भारत छोड़ने के लिये अंग्रेजों को सम्बोधित इस कविता ने उन्हें बहुत प्रभावित किया।

पं0 नेहरू की 'आत्मकथा' उनके स्वयं के यशस्वीकरण का प्रयास नहीं है बल्कि उसमें पूरे परिवेश और समकालीन चेतना के आसंग हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस पुस्तक के बारे में लिखा था कि इसमें विवरणों के भीतर मानवता की गंभीर धारा प्रवाहित है। भारत की खोज में उन्होंने भारतीय इतिहास का ऐसा विश्लेषण प्रस्तुत किया है जिससे उनके व्यापक ज्ञान और उनकी इतिहास दृष्टि का प्रमाण मिलता है। इतिहास युद्धों का विवरण अथवा घटनाओं और तारीखों का संकलन नहीं है बल्कि वह कारण कार्य श्रृंखला से युक्त समाज का विविध पक्षीय विश्लेषण है । 'विश्व इतिहास की झलक पुस्तक विश्व का राजनीतिक इतिहास ही नहीं है। उसमें पृथ्वी के उद्भव और मनुष्य के विकास का वैज्ञानिक विवेचन भी है। पुत्री इन्दिरा को जेल से लिखे गये ये पत्र विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण कृति बन गये। 'द न्यूयार्क टाइम्स' ने सन 1934 में इस पुस्तक की प्रशंसा में लिखा था कि इस पुस्तक के आधार पर नेहरू जी के सामने एच. जी. वेल्स एकांगी लगते हैं। नेहरूजी की सांस्कृतिक सम्पन्नता की व्यापकता अदभुत है। उनकी 'वसीयत' भावपूर्ण गद्य काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसे पढ़कर आधुनिक युग की पूरी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक साहित्य धारा का स्मरण हो आता है। शिल्प और भाषा के स्तर पर भी पं0 नेहरू का साहित्य बहुत संप्रेषणीय

है। इनकी शैली संयमित, स्पष्ट, ललित और प्रभावपूर्ण है। भाषा के सम्बन्ध में उनकी मान्यता थी कि अक्सर भाषा का सौन्दर्य इसमें मान लिया जाता है कि वह आलंकारिक हो उसमें लम्बे और पेचीदा शब्दों का प्रयोग हो। ऐसी भाषा में शक्ति और गरिमा बहुत कम दिखायी देती है। वह ऐसी भाषा के पक्ष में थे जो जन साधारण तक पहुँचती हो। इसलिये वह लोक भाषाओं और क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के समर्थक थे। पं0 नेहरू संस्कृत भाषा और उसके साहित्य के बहुत प्रशंसक थे उन्होंने अपनी पुस्तक भारत की खोज" में लिखा है कि हमारे पूर्वज स्वर को बहुत महत्व देते थे उनका गद्य हो या पद्य उसमें एक लय है, एक तरह की संगीतात्मकता है। शब्द के महत्त्व के सम्बन्ध में वह कहते हैं कि शब्द हमेशा फिसल फिसल जाते है, पूरी तरह समझ में नहीं आते हैं पर अन्ततः इस दुनिया में शब्द ही सबसे महान् है। वे ही टिकते हैं।

इस प्रकार लेखक के रूप में पं0 नेहरू का अवदान बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनमें यथार्थ के साथ ही तल्लीन आत्मीयता और भावाकुलता भी है। साहित्य में वह मानवीय मूल्यों के पक्षधर थे वह साहित्य की सार्थकता उसकी प्रेरणात्मक क्षमता में मानते थे। इसलिये रॉबर्ट फ्रॉस्ट की वह प्रसिद्ध कविता उनसे हमेशा अभिन्न रही जिसे वह हमेशा अपनी मेज पर रखे रहते थे।

woods we lovely dark and deep

But I have promises to keep And miles to go before I sleep.

वन सुन्दर सघन और गहरे हैं

पर मुझे तो संकल्प निभाने हैं

और सोने के पहले मीलों चलना है।

70, हाथीखाना