कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 50) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • उजाले की ओर –संस्मरण

    मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल...

  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

श्रेणी
शेयर करे

कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 50)

अर्पिता और शान के इस नोकझोंक वाले पलों को प्रेम जी देख देख रहे होते है और मन ही मन कहते है तो खिचड़ी की खुशबू यहां से आ रही है।वही मैं तब से सोच रहा था कि ये दोस्त तो श्रुति की है लेकिन उससे ज्यादा क्लोज तो प्रशांत के लग रही हैं।खैर देखते हैं इस खिचड़ी की खुशबू कितनी देर तक रुक पाती है।सोचते हुए वो मुस्कुराते है और आँखे बंद कर सोने की कोशिश करने लगते हैं।त्रिशा शान के पास आ जाती है और उससे कहती है चाचू ये तो वही छवीत छि दीदी है न जो मोल में मिली थी।

त्रिशा की बात सुन शान कहते हैं हां एंजेल ये वही है।और अबसे ये आपकी नयी दोस्त।

नई!ओके आत छे जे हमाली नई दोछत।कहते हुए वो अर्पिता के पास चली आती है तो अर्पिता उसे गोद में बैठाते हुए बातें करने लगती है।

कुछ देर के रेस्ट बाद सभी उठकर बैठ जाते है।सुमित प्रशांत की ओर कुछ इशारा करते है तो वो मुस्कुराते हुए अपना फोन उठाते है और उस पर ट्रेन की कैंटीन से कुछ कप चाय का ऑर्डर कर देते हैं।

चित्रा श्रुति परम सुमित स्नेहा सभी एक ही जगह आकर बैठ जाते हैं।आसपास हलचल महसूस कर प्रेम अपनी आँखे खोल देते है सबको मुस्कुराते हुए अपनी तरफ देखता पाकर वो तुरंत ही राधु की शॉल उसके चेहरे पर डाल देते है और फिर बाकी सबकी ओर मुखातिब हो कहते है ऐसे क्या देख रहे है सब लोग अब बीवी मेरी मैं जैसे चाहूँ बिहेब करूँ।प्रेम की बात सुन सुमित हंसते हुए कहते है भाई तो हमने कहां कुछ बोला तुम तो यूँ ही सफाई देने पर उतर आये।

ना जीजू!आप गलत समझ रहे है इन्होंने तो साफ साफ अपनी बात कही है लेकिन अब आपके मन में साफ सफाई की बातें चल रही है तो इसमे प्रेम जी की क्या गलती।वो कहावत तो सुनी होगी न जिसकी जैसी सोच होती है उसे सब वैसा ही दिखाई देता है।राधिका ने कहा तो सुमित के साथ साथ बाकी सब हैरानी से राधु की ओर देखने लगते है जो अब तब शॉल में मुंह ढके ही आराम कर रही होती है।
सुमित :- मतलब साली साहिबा आप जाग रही है।
प्रेम :- तो क्या भाई आपने इसे नींद में समझने की गलती कर दी थी क्या?

सुमित (हंसते हुए) :- हां प्रेम।क्योंकि इनके रहते तुमसे मस्ती मजाक करना महंगा पड़ता है।न जाने कहां से जवाब ढूंढ कर लाती है।तुमसे तो स्नेहा ही सही तरह से पेश आती है।

प्रेम :- अब वो मेरी भाभी जो ठहरी तो हमारा अलग लेवल आ जाता है भाई।

स्नेहा :- अरे वाह मुझे बीच में ले आये दोनो क्यों?तुम दोनो भाइयो का मसला तुम दोनो सुलझो हम बहनो को क्यों बीच में लाते हो।

राधु :- फिर तो सॉरी जीजू।आप दोनो ही सुलझो हम भी दी की तरह अभी आप दोनो की बातों से दूर ही रहेंगे।

ये हुई न बात साली साहिबा सुमित ने कहा तो प्रेम मुस्कुराते हुए राधु से कहते है ठीक है ठीक है।
आर्य और त्रिशा दोनो सो चुके है।तो सभी बड़े आराम से बतियाते हुए सफर कर रहे हैं।

कुछ देर बाद प्रेम जी पानी की बॉटल उठा गुनगुना पानी राधु की ओर बढ़ाते हैं धन्यवाद प्रेम जी कहते हुए राधिका गिलास का पूरा पानी फिनिश कर गिलास वापस करती है तो अर्पिता थोड़ा सा हैरान हो जाती है और प्रशांत के पास आते हुए हौले से कहती है तो ये राज है आपके बिन बोले बातें समझने का विरासत में मिला है ये गुण आपको।
जिसे सुन प्रशांत कहते है कुछ ऐसा ही समझ लो इस घर में सभी अपनी अपनी पत्नियों से हृदय से प्रेम करते है जिसकी झलक तुम्हे हर रिश्ते में दिखेगी उसी का ये परिणाम है समझी कि नही।

हम्म समझ गये शान अर्पिता ने कहा।कोहरा हट धूप निकल आती है तो वो तुरंत ही अपने पैरो में पहने स्लीपर के नीचे से मोजे उतार कर बैग की आगे वाली पॉकेट में रख देती है वहीं प्रेम और राधिका के प्रेम को देख चित्रा को अवि की याद आ जाती है उसकी प्रेग्नेंसी के समय अवि भी उसका ऐसे ही ख्याल रखता था।वो उन सबके बीच से उठ कर वापस से खिड़की के पास जाकर बैठ जाती है वो अपनी आंखों के आंसुओ को पोंछ खिड़की की ओर मुंह कर लेती है।

अर्पिता सबकी ओर ध्यान दे सबको समझने की कोशिश करती है।शान वहां से उठकर चित्रा के पास जाकर बैठते है और उससे कहते है -

किसी की यादों को सहेजना बुरा नही है बुरा है उन यादों में डूब कर खुद को तकलीफ देना।जो इस समय आप कर रही हैं।

प्रशांत की बात सुन चित्रा कहती है तकलीफ नही प्रशांत जी बस पल दो पल के लिए मन में भरा हुआ गुबार निकाल लेते हैं।

प्रशांत :- निकल गया न गुबार तो अब वापस सबके साथ बैठो एन्जॉय करो तभी खुश रह पाएंगी आप।

जी कह चित्रा वापस से सबके पास आ बैठती है तो शान हल्का सा मुस्कुराते हुए वहीं बैठ एकटक अर्पिता को देखनेलगते है।अर्पिता भी बीच बीच में चुपके चुपके उन्हें देख लेती है उसके देखने पर प्रशांत कुछ ऐसा कर देते है जिससे अर्पिता शर्म से लजा जाती है।कुछ ही देर में सभी बांदा स्टेशन पहुंचते है।जहां पहुंच सभी ट्रेन से नीचे उतरते है परम अर्पिता के पास जाकर चुपके से कहते है हमारे बांदा में आपका स्वागत है छोटी भाभी।ये सुन अर्पिता के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो धीरे से कहती है थैंक यू परम जी।

शान अर्पिता से कुछ कदमो की दूरी बनाकर चलते है और सोचते है यहां तो मुझे इतनी ही दूरी मेंटेन करनी पड़ेगी कहीं मेरा दोस्त ही मेरा शत्रु न बन जाये।।शान बेटा शुरू हो गयी तेरी मुश्किले।

प्रेम राधिका को लेकर धीरे धीरे आगे बढ़ते है तो वहीं श्रुति परम मस्ती करते हुए बढ़ रहे है। परम दो ऑटो बुक करते है जिसमे से एक में राधिका प्रेम चित्रा त्रिशा और परम चले जाते हैं।वहीं दूसरे ऑटो में शान अर्पिता श्रुति स्नेहा सुमित और आर्य सभी घर के लिए निकल आते हैं।सभी कुछ ही देर में घर पहुंचते हैं।ऑटो रुकता है और अर्पिता तथा शान दोनो बढ़ी हुई धड़कनो के साथ ऑटो से उतरते है वहीं बाकी सभी मुस्कुराते हुए घर के मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ते हैं।चूंकि विवाह का घर है तो घर में साफ सफाई के साथ लिपाई पुताई का कार्यक्रम चल रहा होता है।
जीजी ये लाल रंग घोल लिया है मैंने इन्हें बगीचे में ले जाकर गमले और बाउंड्री कलर करने के लिए कारीगर को दे आती हूँ बच्चे पहुंचने ही वाले होंगे।शोभा ने आवाज देते हुए कमला से कहा और रंगों की बाल्टी उठा दरवाजे की ओर बढ़ जाती है।बस जल्दी ही इसे रख आती हूँ बच्चे किसी भी समय पहुंचते ही होंगे कितने दिनों बाद सारे बच्चे इकट्ठे हो रहे है बड़े दिनों बाद ये दिन आये है जब सभी बच्चे एक साथ घर पर इकट्ठे हो जाएंगे।पूरा परिवार भरा हुआ होगा सोचते हुए वो खुशी खुशी आगे बढ़ती है लेकिन आगे पड़े रंग पर ध्यान नही देती है जिस कारण शोभा जी का पैर फिसल जाता है और बाल्टी उनके हाथ से छूट कर नीचे गिर जाती है।वहीं दरवाजे के दूसरी ओर से आ रहे प्रेम प्रशांत और अर्पिता ये देखते है इससे पहले की कोइ कुछ कर पाता अर्पिता अपनी स्लीपर उतार फुर्ती से आगे बढ़ती है और शोभा जी को थाम लेती है।

अर्पिता :- आप ठीक हैं।
शोभा अपनी नजरे ऊपर उठा देखती है तो अर्पिता को देख मुस्कुराते हुए कहती है हां मैं ठीक हूँ।तुम अर्पिता हो न शोभा ने पूछा।
जी आंटी हम अर्पिता किरण की बहन।अर्पिता ने कहा बाकी सभी भी अंदर आ रहे होते है प्रेम की नजर फर्श पर फैले हुए पानी पर पड़ती है।राधु रुको प्रेम जी ने आगे कदम बढ़ाती हुई राधिका से कहा।प्रेम की आवाज सुन राधु ने बढ़ते कदम रोक लिए और मुड़ कर प्रेम की ओर देखती है।तो प्रेम उसे सामने नीचे की ओर देखने का इशारा करते हैं।राधिका मुड़ कर सामने की ओर देखती जहां फर्श पर जगह जगह रंग बिखरा पड़ा होता है।शोभा खड़ी होती है और तुरंत सदे कदमो से पानी वाइप करने के लिए वाइपर देखती है अर्पिता सामने देखती है तो सारा माजरा समझ कर दरवाजे से इतर रखे वाइपर को उठा फर्श पर फैला पानी वाइप कर देती है और वाइपर वहीं एक तरफ रख शान के पास जा खड़ी हो जाती है।।शोभा मन ही मन कहती है समझदारी भी है और कार्य करने में झिझक बिल्कुल नही है।प्रेम राधिका के साथ सभी सदस्य घर के अंदर प्रवेश करते है।सबके साथ अर्पिता और प्रशांत भी अंदर चले आते है।सभी सोफे पर जाकर बैठते है।शीला की नजर जब अर्पिता और प्रशांत पर पड़ती है तो वो प्रशांत के हाथ की ओर इशारा करती हैं।प्रशांत अपने हाथ को देखते है तो झटपट अर्पिता के दुपट्टे का उलझा हुआ सिरा हटा देते है अर्पिता भी ये देख मन ही मन कहती है हमे इसका विशेष ध्यान रखना होगा न जाने कौन क्या समझ ले हमे।परम जी ने तो बताया था कि शान की मां बस थोड़ी अलग है इस घर में बाकी सब बहुत स्वीट और शांत है। वो वहां से हट कर सोफे पर बैठी श्रुति के पास जा खड़ी हो जाती है।आवाजे सुन कर कमला तथा शीला कमरे से निकल कर आती है।कमला की नजर घर के द्वार से आते हुए लाल रंग के कदमो के निशान पर पड़ती है वो शोभा के पास बैठ कर धीमे से पूछती है शोभा आज सफाई वाला नही आया क्या?
शोभा :- आया था जीजी।और सफाई कर चला भी गया अबसे मैंने ही उसे शाम को आने के लिए भी बोल दिया है।

कमला :- ओके।वो दरवाजे से अंदर आने के किसी के पदचिन्ह बने है तो इसीलिए मैंने पूछा।

शोभा अपनी गर्दन थोड़ा पीछे कर उधर नजरे घुमाती है और सारी बात समझ कर धीमे से बुदबुदाती है लगता है इस घर की एक और बहु बेटे का गृह प्रवेश हो गया।

कमला:- क्या शोभा!,कुछ सुनाई नही दिया।और शीला की ओर देखती है जो चकित नजरो से उनकी ओर ही देखे जा रही हैं।

ये देख वो शीला से कहती है अरे बैठो शीला खड़ी क्यों हो?कमला की बात सुन शीला मुस्कुराते हुए कहती है हां जीजी बैठती हूँ वो मैं बच्चो को देख रही थी।

स्नेहा राधिका प्रेम परम प्रशांत सुमित सभी उठ कर तीनो के चरण स्पर्श करते है तो वहीं चित्रा त्रिशा अर्पिता श्रुति हाथ जोड़ नमस्ते करती है।अर्पिता को देख शीला प्रशांत की ओर देखती है और पूछती है
ये कौन है प्रशांत?

श्रुति की दोस्त है शीला उसके साथ ही कॉलेज में पढ़ती है।श्रुति इसे शादी में बुला लाई है।शोभा ने कहा तो बाकी सभी हैरानी से शोभा की ओर देखते है जिसे देख शोभा चुपके से होठों पर अंगुली रख चुप रहने का इशारा कर देती है।शोभा का इशारा देख सभी उनकी ओर देखना छोड़ फिर से हंसी मजाक में लग जाते हैं।

शोभा(कमला से) :- जीजी हम लोग चलते है रसोई में चाय नास्ता तैयार करते है बच्चे थके हुए आये है एक कप चाय मिल जायेगी तो सभी की थकान दूर हो जायेगी।

कमला:- ठीक है चलो।कह वो।दोनो उठती है तब तक स्नेहा बोली आप लोग बैठिये मैं देखती हूँ जाकर बस पांच मिनट में अभी आई कह वो अपने कमरे में चली जाती है।

अर्पिता तुम मेरे साथ प्रशांत भाई के कमरे में चलो क्योंकि अब से साथ आठ दिन तक उसमे हमारा राज होगा।श्रुति ने खड़े होते हुए अर्पिता से कहा तो अर्पिता बोली वो तो ठीक है लेकिन फिर श..प्रशांत जी कहां रुकेंगे।सात आठ दिन तो काफी होते है।

शीला :- एक काम करिये आप दोनो ऊपर फ्लोर पर जो कमरे खाली है उनमे से एक में शिफ्ट हो जाइये।बाकी दूसरा रूम में चित्रा त्रिशा के साथ रुक जायेगी क्यों जीजी सही कहा न मैंने।कहते हुए शीला ने शोभा और कमला की ओर देखा।

शीला :- हाँ बिल्कुल।कोई परेशानी की बात नही है आखिर अब तो धूप लेने के दिन आ गये है।

कहते हुए शोभा ने एक नजर प्रशांत की ओर देखा जो शोभा की बात सुन हौले से मुस्कुराने लगता है।

श्रुति अर्पिता को ऊपर ले जाती है तो शान परम प्रेम राधिका सुमित सभी अपने अपने कमरो में पहुंच चेंज कर वापस बाहर चले आते हैं।श्रुति कमरे में रुक जाती है और अर्पिता नीचे सबके पास चली आती है।कुछ ही देर में स्नेहा चाय के साथ हल्का नाश्ता ले कर रसोई से निकलती हुई दिखती है।उसके पीछे ही चित्रा भी अपने हाथो में चाय की ट्रे पकड़े बाहर नजर आती है।दोनो चाय ला टेबल पर रख देती है राधु को सर्व करता देख अर्पिता उनके पास आ कहती है दी आप बस रेस्ट कीजिये हम कर लेंगे कहते हुए वो सबको सर्व कर देती है।

राधु:- अच्छा लगा आपने हमे दी कह संबोंधित किया।।
अर्पिता :- न जाने क्यों हमे ऐसा लगा कि आपको भाभी नही दी कहना ज्यादा चाहिए।तो बस जो लगा वही बोल दिया।

अर्पिता की बात सुन राधिका ने मुस्कुराते हुए अपनी पलके झपका कर उसकी बात को सहमति प्रदान की।

चाय नाश्ते पर बातों का सिलसिला चल पड़ा और एक दूसरे के हालचाल पूछे।चाय खत्म हुई तो अर्पिता ने सबके कप उठाये और ट्रे में रख रसोई की ओर चल दी।चलते हुए उसके कदम ठिठके और कुछ सोच कर उसने मुड़कर पीछे देखा।जहां शोभा कमला और शीला के साथ साथ बाकी सभी उसे ही देख रहे थे।थोड़ा अजीब महसूस होने पर अर्पिता बोली वो हमे कुछ न कुछ करते रहने की आदत है कहते हुए उसने शोभा की ओर देखा और हल्के हाथो से रसोई की ओर जाने का इशारा किया।जिसे समझ शोभा ने हां में गर्दन हिलाई।तो वो चेहरे पर मुस्कान रख मुड़ कर आगे चली जाती है।

अर्पिता के जाने के बाद शोभा राधिका से बोली राधु आदतों से लग तो तुम्हारी कॉपी रही है।अब स्वभाव देखते है कितना मिलता जुलता है।क्योंकि ऐसा सुना है कि जहां में हूबहू एक समान स्वभाव वाले व्यक्ति बड़े ही दुर्लभ है।

राधिका:- मां!बिल्कुल देख लीजियेगा अभी तो ये यहीं रहने वाली है।

शोभा :- हां सो तो है।अभी सब लोग जाकर कमरो में रेस्ट कर लो सेकण्ड फ्लोर पूरा क्लीन हो चुका है अब नीचे से सफाई का नम्बर लगेगा तो कमरो से निकलना नही।कमरे पहले ही साफ करवा दिये थे ठीक है।

जी मां राधिका ने कहा और सभी वहां से अंदर चले जाते हैं।
प्रशांत आप मेरे साथ चल कर कुछ देर बैठिये पिछली बार भी यूँ ही बिन बात किये चले गये थे।शीला ने प्रशांत से कहा जिसे सुन प्रशांत बोले, मर गये आज तो मां शुरू हो जानी है और आज तो भागने का कोई रास्ता भी नही है मेरे पास।

प्रशांत को खोया देख शीला कहती है कहां खो गये?
कहीं नही मां आप चलो मैं अभी आया बस दो मिनट मां प्रशांत ने कहा और वो अपने कमरे की ओर चले जाते है।

प्रशांत भाई के चेहरे के एक्सप्रेशन देख परम मन ही मन कहते है चाची को मनाना मतलब जग जीतने जैसा है कोई न कोई चक्कर चलाना पड़ेगा भाई और छोटी भाभी के लिए।

शोभा शीला का बिहेव देखती है तो समझ जाती है कि उसे प्रशांत से क्या बात करनी है।शीला वहां से उठकर अंदर चली आती है उसके जाने के बाद शोभा गहरी सांस ले कमला से कहती है माफ कीजिये जीजी उस समय मैं आपकी बात का जवाब नही दे सकी।दरअसल बात ये है कि वो कदमो के निशान अर्पिता के थे।और अर्पिता हमारे प्रशांत की पसंद है प्रेम करता है वो उससे।

ओह तभी तुम शीला की वजह से चुप हो गयी थी।लेकिन अर्पिता उसके मन में क्या है तुम्हे पता है?
कमला ने पूछा तो शोभा मुस्कुराते हुए बोली अब पता करना भी क्या है उसकी आंखों में दिखता है सब और तिस पर आज हुआ उसका ग्रह प्रवेश इस रिश्ते पर ठाकुर जी की कृपा को दर्शा रहा है।हमे अब अपनी तरफ से एक कोशिश करनी होगी जिससे की अर्पिता शीला का मन जीत सके।

कमला :- अब जब तुम्हारी पारखी नजरो ने अर्पिता को स्वीकार किया है तो कुछ तो बात होगी लड़की में।चलो फिर इनके लिए भी कोशिशें करते है दोनो आपस में ऐसा निर्णय कर वहां से चली जाती है।

वहीं शान जब अपने कमरे से निकल कर शीला के कमरे की ओर जा रहे होते है की उनकी नजर फर्स्ट फ्लोर पर भागती हुई नन्ही सी त्रिशा पर पड़ती है जो चित्रा के साथ पकड़म पकड़ाई खेल रही होती है।प्रशांत कुछ देर वहीं रुक त्रिशा को देखने लगते हैं।वहीं राधिका स्नेहा के पास किसी कार्य से जाने के लिए कमरे से बाहर आई होती है वो प्रशांत को खड़े हो मुस्कुराते हुए देखती है तो वहीं उसका कारण जानने के लिए रुक जाती है।

त्रिशा, धीमे धीमे दौड़ो बेटा गिर गयी तो चोट लग जायेगी आपको।चित्रा ने दौड़ते दौड़ते त्रिशा से कहा।

तो त्रिशा अपनी तोतली सी आवाज में बोली मम्मा हम दयान छे भाग लहे हैं।आप भी धीले,धीले दौलते हुए आना तीक है।

आप अपनी चिंता कीजिये त्रिशा कहते हुए चित्रा दौड़ती है तो दौड़ते हुए उसका पैर मुड़ जाता है और वो घूमते हुए रेलिंग से टकराती है और टकराते हुए रेलिंग से नीचे गिरने वाली होती है कि वो अपने एक हाथ से रेलिंग पकड़ लटक जाती है।

चित्रा सम्हालो राधिका चीखते हुए कहती है और आगे बढ़ती है।राधु की चीख सुन कमरों में मौजूद सभी सदस्य बाहर निकल आते है।प्रेम राधु को तेज कदमो से सीढियो की ओर बढ़ते देखते है तो फौरन उसके पास जा बांह पकड़ सीढिया चढ़ने से रोक लेते हैं।

प्रेम (डांटते हुए) :- राधु क्या कर रही थी तुम।इतनी जल्दी में कहां जा रही थी।

प्रेम जी वो चित्रा!हमारी जिम्मेदारी वो देखिये वहां रेलिंग पर!राधिका ने घबराते हुए कहा तो प्रेम जी ने रेलिंग की ओर देखा जहां चित्रा लटकी हुई होती है और ऊपर उसके पास ही त्रिशा रो रही होती है।आवाज सुन श्रुति और अर्पिता भी बाहर चली आती है।
वो दोनो जब तक चित्रा के पास उसे बचाने पहुंचती तब तक चित्रा का हाथ फिसल जाता है और वो नीचे खड़े हुए शान की बांहो में जाकर गिरती है।

क्रमशः...