चित्रा को शान की बांहो में देख अर्पिता कहती है थैंक गॉड शान ने बचा लिया और वो त्रिशा को गोद में ले नीचे चली आती है।चित्रा आप ठीक तो है शान ने पूछा।तो बढ़ी हुई धड़कनो के साथ चित्रा ने अपनी आँखे खोली।अवि के बाद वो पहली बार किसी के इतना करीब आई थी।उसने पहली बार प्रशांत को इतने पास से देखा सांवला रंग,गालों पर पड़ता डिम्पल और कातिल निगाहे जिनमे अगर कोइ एक बार झांक ले तो बाहर की दुनिया ही भूल जाये।कुछ तो है इन आंखों में चित्रा ने मन ही मन कहा।चित्रा तुम ठीक हो..!प्रेम की इस आवाज को सुन चित्रा शान की आंखों के सम्मोहन से बाहर आती है और शान की बाहों के घेरे में खुद को देख एक पल के लिए तो वो सकुचा गयी और बोली मैं ठीक हूँ मुझे नीचे उतारिये प्रशांत जी।
ओह सॉरी शान ने चित्रा को नीचे उतारते हुए कहा।त्रिशा चित्रा के पास आने के लिए मचलती है जिसे देख चित्रा ने त्रिशा को गोद में लिया और उसे चुप कराने लगती है।वहीं राधिका प्रशांत जी और चित्रा को इतने पास देखती है तो मुस्कुराते हुए आगे बढ़ कहती है धन्यवाद प्रशांत जी।आपने हमारी चित्रा को गिरने से बचा लिया।
प्रशांत जी कुछ नही कहते बस मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते है और अर्पिता के बगल से निकलते हुए कहते है ये सब कोइंसिड़ेंस था अप्पू और वहां से शीला के पास चले जाते हैं।शीला शान को अर्पिता के पास से गुजरते समय फुसफुसाते हुए देख लेती है।वो तीखी नजरो से अर्पिता की ओर देखती है जिसे अर्पिता देख नही पाती क्योंकि शीला जी उसकी पीठ के पीछे जो होती है।प्रशांत के पीछे वो भी कमरे में चली जाती हैं।
राधिका चित्रा के पास आती है और उससे पूछती है 'तुम ठीक हो चित्रा'!त्रिशा को गले से चुपकाते हुए चित्रा ने हां में गर्दन हिलाई।जिसे देख राधु ने एक गहरी सांस ली और मन ही मन ठाकुर जी का धन्यवाद दिया।प्रेम जी उसे अंदर कमरे में ले जाते है और दरवाजा बन्द कर कहते है क्या करने जा रही थी राधु तुम!माना कि तुम परेशान थी तो इसका मतलब ये तो नही की तुम मेरी प्रिंसेस को खतरे में डाल दोगी बोलो जवाब दो।
प्रेम जी का गुस्सा देख राधु कुछ नही कहती और चुपचाप उनकी ओर प्यार से देखने लगती है।हे ठाकुर जी मैं भी किससे कह रहा हूँ जिस पर मेरी डांट का कोई असर नही होता जिससे अगर कुछ कहो तो इतने प्यार से देखेगी कि सामने वाला अपना गुस्सा ही थूक देगा।राधु तुम न ...!कहते हुए वो मुंह फेर एक तरफ खड़े हो जाते हैं।ये देख राधु उनके पास आती है वो प्रेम जी का हाथ पकड़ती है और धीमे धीमे कहती है प्रेम जी की प्रिंसेस सुन रही है आप आपके पापा आपको लेकर कितने प्रोटेक्टिव है।आपके लिए वो आपकी मां से भी झगड़ने के लिए तैयार है जिनसे वो इतना प्रेम करते है चोट हमारे लगती है और आह इनके सीने से उठती है।अब आप ही इन्हें अपने सुरक्षित होने का प्रमाण दीजिये क्योंकि हमसे तो ये नाराज होकर बैठे हैं।कहते हुए राधु प्रेम का हाथ अपने उभरे हुए पेट पर रखती है जहां हलचल महसूस कर प्रेम जी मुस्कुराते हुए राधिका की आंखों में झांकते है और कहते है प्रिंसेस बात आपकी सुरक्षा की हो तो आपके पिता गलती करने पर आपकी मां को भी नही छोड़ेंगे।बस फर्क इतना ही है कि आपकी मां से गलतियां न के बराबर ही होती है आज तो वो बस भावनाओ में बह गयी थी नही तो आपकी मां से अच्छी प्रोटेक्टर आपके लिए कोई और नही हो सकती।लव यू माय प्रिंसेस।आपके हमारे बीच आने का हम सब को बेसब्री से इंतजार है।
हां तो तसल्ली मिल गयी आपको कि आपकी प्रिंसेस बिल्कुल ठीक है।राधिका ने पूछा तो प्रेम जी बोले हां जी।वैसे ये बताओ आज तुमने मुझसे बहस क्यों नही की प्रिंस या प्रिंसेस को लेकर।
क्योंकि ये बहस करने का समय नही है न पतिदेव अब हमारी बीच की सारी बातें आपकी प्रिंसेस सुन सकती है ऐसे में अगर हम बहस ही करेंगे तो देख लेना ये भी झगड़ालू बन कर ही आयेगी और हमे झगड़ालू प्रिंस या प्रिंसेस नही बल्कि आपकी तरह ही शांत सुलझा हुई प्रिंसेस या प्रिंस चाहिए।सो अब से नो फाइटिंग प्रेम जी राधु ने कहा तो प्रेम राधु के गले में अपनी बाहें डालते हुए कहते है अच्छा जी हमसे इतना प्रेम लेकिन हमे तो आपके जैसे शरारती और बातूनी चाहिए हमारी इच्छा का क्या।
हे ठाकुर जी आपसे हम नही जीत सकते लेकिन हमे बहस नही करनी ठीक अब इस बारे में कोई और बात नही राधिका ने कहा और प्रेम जी की बांहो का घेरा हटाकर जाकर बेड पर बैठ शादी में आने वाले गेस्ट को देने वाले रिटर्न गिफ्ट की लिस्ट बनाने लगती है।
उधर अर्पिता जाकर सोफे पर बैठी हुई शोभा जी और कमला के पास जाकर खड़ी हो जाती है।उसे देख शोभा जी उसे अपने पास बैठने के लिए कहती है।अर्पिता बैठ जाती है और उनकी बातचीत का हिस्सा बन जाती है।
शोभा :- अर्पिता प्रशांत ने बताया कि तुम्हे रसोई का कार्य नही आता?
शोभा का प्रश्न सुन अर्पिता मन ही मन घबरा जाती है और अटकते हुए धीरे से कहती है 'जी आंटी जी हमे चाय कॉफी अच्छे से और हल्का फुल्का काम चलाऊ खाना ही बनाने आता है'।
कोई बात नही समय के साथ सीख जाओगी।इस बार कमला ने कहा।
जीजी ये सारे कार्य की लिस्ट और किसे क्या कार्य देना है मैंने तैयार कर ली है आप एक बार देख लीजिये।शोभा ने एक नोटबुक कमला की ओर बढ़ाते हुए कहा।ये देख अर्पिता बोली आंटी जी हमारे लिए क्या कार्य चुना है आपने।
शोभा :-आप कार्य करना चाहती हैं।
अर्पिता :- जी हमे खाली बैठना अच्छा नही लगता।
ठीक है फिर घर के हर फंक्शन की साज सज्जा की सारी जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी कर लोगी न इतना कमला ने पूछा।
जी आंटी जी ये हम कर लेंगे।अर्पिता ने आत्मविश्वास से लबरेज होकर कहा।जिसे देख शोभा जी बोली ठीक तो फिर आज से ही तुम कार्य पर लग जाओ।कोई मदद की जरूरत हो तो मुझसे या जीजी से बोल देना।
जी अवश्य।कहते हुए अर्पिता मुस्कुराई और और बोली लेकिन साज सज्जा के लिए जिन चीजो की आवश्यकता होगी वो चीजे हमे कहां से मिलेगी..!
कुछ समान सुमित की शादी का स्टोर रूम में पड़ा होगा उनमे जो समझ में आये वो देख लेना और कुछ तुम सोच समझ कर डिसाइड कर बता देना मैं प्रेम से बोल कर सब उपलब्ध करा दूंगी।बस इतना याद रखना हर फंक्शन के लिए एक अलग तरह की सजावट होनी चाहिए ठीक है।
जी आंटी जी थैंक यू अब आप हमे स्टोर रूम का रास्ता बता दे तो हम जाकर एक बार सारा समान देख लेते।अर्पिता ने कहा।उसकी बात सुन शोभा और कमला आपस में देख कर मुस्कुराई और बोली ठीक है तुम दो मिनट यहीं इंतजार करो मैं अभी आती हूँ शोभा ने कहा तो अर्पिता हां में अपनी गर्दन हिला देती है।
शोभा और कमला दोनो वहां से उठकर चली जाती है और अर्पिता वहीं बैठ उनका इंतजार करने लगती है।
शीला अपने कमरे में प्रशांत को बैठने के लिए कहती है और वो अपनी कबर्ड तक जाकर उसमे से एक बन्द लिफाफा निकाल कर प्रशांत के सामने कर देती हैं।प्रशांत सब समझते हुए भी खुद को शांत रखते हुए कहते हैं, ये किसलिए मां?
सब जानते हो बेटा फिर भी अंजान बन रहे हो।शीला ने कहा तो प्रशांत बोले हां लेकिन ये सब अभी क्यों मां?अभी तो हम सबको छोटे की शादी की तैयारियो के बारे में सोचना चाहिए और आप ये लिफाफा मुझे पकड़ा कर बैठ गयी।
प्रशांत की बात सुन शीला बोली हर मां का अरमान होता है प्रशांत मेरे भी है तो मैं बस चाहती हूँ कि अब समय रहते ये कार्य भी सम्पन्न हो जाये।और क्या गलत कर रही हूँ मैं।मैं कौन सा तुझसे ये कह रही हूँ कि तूम कल ही घोड़ी चढ़ जाओ।मैं बस इतना कह रही हूँ तुम फोटो देखना शुरू करो लड़की पसंद करो फिर मैं बात को आगे बढाऊँ।और इन सब में तो टाइम ही लगता है न।
ओह हो मां अब मैं कैसे समझाऊं जब भी यहां आता हूँ आप हर बार यही टॉपिक लेकर बैठ जाती हो अगर ऐसा ही रहा तो मैं यहां आया ही नही करूँगा।प्रशांत ने चिढ़ते हुए कहा।प्रशांत की आवाज में चिढन महसूस कर शीला खामोश हो गई।वो सोचते हुए कुछ सेकण्ड बाद बोली समझ गयी मैं मेरी बात भला क्यों सुनने लगे तुम हमेशा से ही जीजी की सुनते आये हो।हमेशा ही मुझसे ज्यादा जीजी को तवज्जो दी है तुमने तो भला मेरी क्यों सुनने लगे।यही अगर जीजी कहती तो तुम झट से हां कह देते कह वो रुआंसी हो जाती है और आंखों से बहते आंसुओ को पोंछते हुए कमरे से बाहर की ओर चली जाती है।सोफे पर बैठी अर्पिता शीला को परेशान देखती है तो उसे कुछ अच्छा महसूस नही होता।वो उनसे बात करने के लिए उनके पीछे जाती तब आकर उससे स्टोर रूम में चलने को कहती है।अर्पिता शोभा जी के साथ स्टोर रूम की ओर जाती है और वहां से कुछ आवश्यक वस्तुएं छांट कर रख लेती है।
ये समान भी छांट लिया है आंटी जी अब इसे बाहर लेकर जाना है हम थोड़ा थोड़ा कर रख कर आते हैं।अर्पिता ने समान उठाते हुए कहा।
क्यों सामान क्यों उठाऊँगी तुम।यहीं रहने दो प्रेम सुमित प्रशांत परम इनमे से कोई भी दिखा तो मैं बोल कर बाहर रखवा दूंगी ठीक है।तुम्हे बस ये समान कैसे लगवाना है और किस कॉम्बिनेशन में रखना है वो सब देखना है सामान लाने ले जाने का काम इस घर के लड़के देख लेंगे।शोभा जी ने थोड़ा सख्ती से कहा जिसे देख अर्पिता चुप हो कर हां में गर्दन हिला देती है।शीला के जाने के बाद प्रशांत वो लिफाफा उठा कर वापस अलमारी में रख देते हैं।और कमरे से बाहर निकलते हैं।जहां ऊपर त्रिशा को लेकर टहल रही चित्रा उसे देखती है।
चित्रा :- प्रशांत जी रुकिए!
आवाज सुन कर प्रशांत जी रुक जाते है और मुड़ते हुए ऊपर की ओर देखते है जहां वो चित्रा को देखते है जो सीढियो से नीचे चली आ रही है।
चित्रा :- वो मुझे ये कहना था थैंक यू!और वो दोबारा प्रशांत के चेहरे की ओर देखती है।लेकिन इस बार उसकी नजर का अंदाज बदला हुआ होता है।ये प्रेम कब किस क्षण कहां हो जाये कोई नही जानता।उस एक पल में चित्रा के साथ भी वही हुआ।
चित्रा को अपनी ओर इतने गौर से देखता पाकर प्रशांत थोड़ा विचित्र अनुभव करते है वो अपना मुंह मोड़ एक कदम आगे बढ़ा चित्रा से कहते है ओके।और कुछ कहना है क्या आपको।
चित्रा :- नही बस थैंक यू कहना था सो कह दिया।
प्रशांत :- ठीक है।कह वहां से आगे बढ़ गये और चित्रा त्रिशा को ले पीछे मुड़ ऊपर चली आती है।
शोभा जी और अर्पिता दोनो स्टोर रूम से बाहर आती है और प्रशांत को कमरे की ओर जाता हुआ देख वो उसे आवाज लगाती है।
आवाज सुन प्रशांत पीछे मुड़ते है और शोभा जी को देख होठों पर फीकी मुस्कुराहट रख उनके पास चले आते हैं।अर्पिता की नजरे जब प्रशांत के चेहरे पर पड़ी तो मन ही मन सोचते हुए कहती है कुछ तो बात है इस नकली मुस्कान के पीछे।
शोभा :- प्रशांत जरा अर्पिता के साथ स्टोर रूम में जाना उसने कुछ सामान निकाल कर रखा है तो तुम्हे वो उठा कर वो वहां खिड़की वाली टेबल पर रख देना बाकी उस का उपयोग कैसे क्या करना है अर्पिता देख लेगी ठीक है।और मुस्कुराते हुए वहां से चली जाती है।कमला जो फोन और लिस्ट लेकर बैठे हुए सबसे आने के लिए बोल रही है ये देख शोभा से कहती है तुमने जानबूझकर प्रशांत को वहां बुलाया न।
हां जीजी शोभा ने सोफे पर बैठते हुऐ कहा और आगे बोली जीजी बच्चो की खुशी में ही तो हमारी खुशी है।शीला प्रशांत को कमरे में लेकर गयी तो उसने अवश्य ही ऐसा कुछ कहा होगा जिससे इसका मन दुखा होगा लेकिन हमेशा की तरह ये मुस्कान रख कभी जताता नही। इसका ध्यान बंटाने का मुझे यही तरीका बेहतर लगा तो इसे ही आवाज लगा कर अर्पिता की मदद के लिए लगा दिया।
हम बात तो सही है तुम्हारी।इससे हमे भी पता चलेगा कि इनका रिश्ता कितना गहरा है अर्पिता ये बात बिन बोले समझती भी है या नही कमला ने कहा तो शोभा बोली हां जीजी ये भी आपने खूब कहा इसके लिए तो चलकर देखना होगा होगा।।और दोनो अपने काम छोड़ स्टोर रूम की ओर लपकती है।
अर्पिता और शान दोनो स्टोर रूम में पहुंचते है।शान सामान के बॉक्स को उठाने लगता है तो अर्पिता उसे रोकते हुए कहती है शान सुनो!इसे कुछ देर बाद ले जाना पहले ये बताओ कि आपका मूड क्यों खराब है।
प्रशांत :- (छिपाने की कोशिश करते हुए) नही अप्पू।मूड भला काहे खराब होगा।शोभा और कमला भी इधर उधर देखते हुए स्टोर रूम के पास खड़ी हो जाती है।और दोनो के मध्य चल रही बातचीत को ध्यान से सुनने लगती हैं।
अर्पिता :- शान!आपने ही कहा था प्रेम की आवाज इतनी तेज होती है जो सीधा ईश्वर तक पहुंचती है फिर हम तो इंसान है और इस समय हमारे मन से बस यही ध्वनि निकलती हुई प्रतीत हो रही है कि आप परेशान है।बताइये न क्यों परेशान है आप मां ने कुछ कहा है न आपसे?उन्ही के कारण परेशान है आप।अर्पिता ने कहा तो शान अर्पिता की ओर देख उसके पास जा कर बोले कैसे समझ गयी तुम अप्पू।
हम कैसे समझे बताते है कह वो थोड़ा आगे बढ़ी और धीरे से उसके कान में बोली क्योंकि शान तुमने कहा था तुम मैं और मैं तुम...समझे।
ओके समझ गया शान ने मुस्कुराते हुए कहा और समान उठाकर बाहर ले आने लगे ये देख शोभा और कमला फुर्ती से तितर बितर हो कोई न कोई कार्य में लग जाती है।प्रशांत वो समान टेबल पर रख देते है।अर्पिता एक एक कर सामान निकालती है वो कुछ लाइट्स प्लास्टिक के फूल पत्ते कुछ पुराने कर्टेन वगैरह होते हैं।वो उन सब को झाड़ पोंछ कर वापस उसी में रख देती है।
शान (अर्पिता को तंग करते हुए) :- क्या हुआ फिर से रख दिया उपयोग नही करना था तो मुझसे इतनी मेहनत क्यों करवाई तुमने।
अर्पिता :- बताना जो था आपको कि तंग करना हमे भी आता है।
शान (चौंकते हुए):- हैं तुम कब सीखी अप्पू।
अर्पिता :- बचपन से।
अर्पिता की बात सुन शान एकदम हंस देते है जिससे हंसते हुए उनकी आंखों में चमक और गालों के डिम्पल दोनो बढ़ जाते है जिसे देख अर्पिता मन ही मन कहती है बस हम यही चाहते है कि ये मुस्कान सदा आपके चेहरे पर बनी रहे।और इसके लिए हम कोई भी रिस्क ले सकते हैं।
ये देख कमला शोभा से कहती है तुम्हारा निर्णय कभी गलत नही हो सकता शोभा।जवाब में शोभा मुस्कुरा देती है और कहती है जीजी ये बात शीला को कैसे समझायेंगे जो आंखों में इतने स्वप्न संजोये बैठी है।
ठाकुर जी है न कोई न कोई रास्ता दिखाएंगे सब ठीक ही होगा कमला ने शोभा से कहा।
हां जीजी।उन्ही की लीला वो ही जाने।चलो हम लोग बाहर चल कर देख लेते हैं।गमले को कलर करना चाहती थी लेकिन नही कर पाई अब दूसरा रंग घोल कर कलर ही कर लेती हूँ ये कार्य तो सम्पन्न हो गया।
ठीक है चलो।और दोनो वहां से कलर बाल्टी ले घर के बगीचे में निकल जाती है।तभी वहां रंगाई पुताई के कर्मचारी आ जाते है तो शान और अर्पिता वो बॉक्स ले फर्स्ट फ्लोर पर चले जाते हैं।शान उसे सबकी पसंद नापसंद के बारे में बताते हुए गाइड करते है तो उनकी आवाज सुन अपने कमरे में मौजूद चित्रा सुनती है जो त्रिशा को सुला कर बैठ कर अपना कबर्ड सेट कर रही होती है।
आवाज सुन चित्रा दरवाजे से मुलक कर देखती है और शान को देख चित्रा वहीं उनके पास चली आती है।
चित्रा :- मैं कुछ मदद करूँ आपकी प्रशांत जी?
आवाज सुन अर्पिता और प्रशांत ने नजरे ऊपर उठा कर देखा चित्रा को अपने सामने देख प्रशांत जी मन ही मन कुढ़ गये और बुदबुदाये आजकल आप कुछ ज्यादा ही मदद करना चाह रही है चित्रा जी जो कि मेरे लिए घातक हो सकती है।कहीं ऐसा न हो कि मेरी ये जो पगली है न ये फिर से कुछ सोचने लग जाये और मैं फिर से इसे मनाने के तरीके ढूंढता फिरूँ। क्यों चली आती हो तुम मेरे पास!मत आया करो न।शान को चुप देख अर्पिता बोली जी वैसे हमे मदद की जरूरत तो नही है लेकिन फिर भी अगर आप करना ही चाहती है तो कर सकती हैं।
अर्पिता की बात सुन चित्रा के चेहरे पर संतुष्टि वाली मुस्कान खिल गयी वो उत्सुकता से वहीं बैठ गयी और सारी चीजे निकाल कर रखने अर्पिता और शान की तरह अलग चुन कर रखने लगी।बीच बीच में ऐसा करते हुए वो शान की ओर भी देखती जाती है।
चित्रा कुछ ही देर बैठ पाई होती है कि उसके कानो में त्रिशा के रोने का स्वर गुंजा।जिससे वो उठी और वापस आने का बोलकर त्रिशा के पास चली जाती है।
उसके जाने के बाद प्रशांत ने सवालिया नजरो से अर्पिता की ओर देखा तो अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली! शान पहले हालात अलग थे पहले हमे आपके मन की बात नही पता थी इसीलिए कुछ सोच बैठे लेकिन अब हमे पता है और जब पता है तो कुछ भी गलत सोचने का तो प्रश्न ही नही है।
क्योंकि जहां विश्वास नही वहां प्रेम का अस्तित्व ही नही।
अर्पिता की बात सुन शान धीमें से बोले कृपा है ठाकुर जी नही तो मैं तो जब से आया हूँ तबसे ये ही सोच सोच कर परेशान हुआ जा रहा हूँ कहीं फिर से मेरी पगली मुझे यूँ किसी और के साथ न जोड़ने लग जाये।
क्या कहा आपने शान अर्पिता ने पूछा तो शान मुस्कुराते हुए बोले प्यार से कहा है अप्पू और बस यही दो नाम है तुम्हारे मेरी पगली,और अप्पू।
शान की बात सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए नजरे नीची कर कार्य करने लगती है।अर्पिता प्लीज मेरी एक मदद कर दो चित्रा ने कमरे से आते हुए अर्पिता से कहा?
अर्पिता :- जी कहिये।
चित्रा :- त्रिशा लिए रसोई से हॉट वॉटर ले आओगी प्लीज?
अर्पिता इतनी सी बात के लिए इतना प्लीज़।अरे ये तो इनकी एंजेल है इसके लिए हम यूँ ही ले आएंगे इसमे इतना प्लीज करने की आवश्यकता नही कहते हुए अर्पिता नीचे चली जाती है तो चित्रा त्रिशा को लेकर वहीं बैठ जाती है तो त्रिशा फौरन प्रशांत के पास चली आती है और पूछती है :चाचू ये आप क्या कल लहे हैं'?
शान :- एंजेल! इन सब की मदद से ये जो हमारा घर है न उसे भी एंजेल हाउस बनाएंगे क्योंकि जितनी भी एंजेल है यहां वो सब कुछ दिनों के लिए हमारे घर रहने आएंगी।
ओके चाचू!हम छमझ गये।त्रिशा ने कहा उसके हावभाव देख प्रशांत के साथ साथ चित्रा को भी हंसी आ गयी।
नीचे कमरे में मौजूद राधु को पुताई के रंगों की महक लगती है तो वो प्रेम से कहती है हमे छत पर बगीचे में चलना चाहिए प्रेम जी दरवाजा बन्द रखने के बाद भी धूल मिट्टी के कण उड़ते हुए से आ रहे हैं।
ठीक है फिर मैं ले चलता हूँ तुम एक मिनट रुको मैं जरा बाहर देख कर आया कारीगर किस तरफ कार्य कर रहे हैं।प्रेम जी ने कहा और उठकर दरवाजा खोल कर बाहर झांका। कारीगरों कुछ दूरी पर कार्य करते देख वो राधु के पास आये और बोले चलिये राधु कहते हुए प्रेम जी राधिका को अपनी बांहों के मजबूत घेरो में उठा लेते है तो ये देख राधिका कहती है आपको तो एक मौका चाहिए नही।
प्रेम जी :- हां तो कोई परेशानी!
नही हमे कोई परेशानी नही है प्रेम जी!राधिका ने कहा और वो खामोश हो प्रेम जी की आंखों में देखने लगती है।प्रेम जी राधु को लेकर दरवाजे से बाहर निकल सीढियो की ओर बढ़ जाते हैं।चूंकि सभी को शोभा जी ने पहले ही कमरे में ठहरने को बोला हुआ होता है।तो बाहर कोई नही होता है प्रेम राधिका को लेकर धीरे धीरे फर्स्ट फ्लोर पर पहुंच जाते हैं।अर्पिता नीचे से पानी लेकर सीढियो की ओर बढ़ती है तो प्रेम और राधु को देख मुस्कुराते हुए कहती है हाए क्या तालमेल है! वही प्रशांत और चित्रा दोनो प्रेम और राधु को देखते है तो मुस्कुराते हुए कहते है ये लव बर्ड कहां उड़ चले।लेकिन दोनो में से कोई जवाब नही देता।राधु नॉट फ़ेयर यार दोस्त को ही भूली जा रही हो चित्रा ने कहा तो राधु चित्रा की ओर देख कहती है भूले नही है हम बस सुन नही पाये थे माफ कर दे इसके लिए कहते हुए एक हाथ से अपने कान पकड़ लेती है।चित्रा मुस्कुरा कर रह जाती है और प्रेम जी आगे बढ़ जाते हैं।अर्पिता ऊपर आ जाती है और पानी की बॉटल चित्रा की ओर बढ़ा देती है।बॉटल ले चित्रा वहां से चली जाती है।
अर्पिता और शान साथ ही कार्य करते हुए फिनिश कर देते है।वहीं शीला जी का मूड जब ठीक होता है तो वो बाहर से अंदर की ओर आती है चारो ओर देखते हुए उनकी नजर जब ऊपर खड़े हुए शान और अर्पिता पर पड़ती है तो वो वहीं रुक कर दोनो को देखने लगती है।
अर्पिता :- शान ये बॉक्स उस कमरे में रख दीजिये प्लीज़!
शान :- ठीक है अप्पू कह शान वो बॉक्स उठा कमरे में रख आते हैं।अर्पिता वहीं खड़ी रहती है ये देख शान कहते है हमसे इतना डर जो हमारे साथ अंदर भी नही गयी?
अर्पिता :- बात डर की ही है शान लेकिन आपसे नही?
क्रमशः...