कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 49) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 49)

अगले दिन परम भी पूर्वी और युव्वि के विवाह का साक्षी बन वहां से वापस लखनऊ चला आता है।जहां शान उसे भी खूब डांटते है।अर्पिता और शान दोनो साथ ही ऑफिस जाते हैं एवं साथ ही वापस आते हैं दोनो के दिन की शुरुआत एक दूसरे के दीदार से शुरू होती है और चांदनी रात में ढेर सारी बातों पर खत्म।धीरे धीरे दिन गुजरते जाते है और परम और किरण के विवाह के दिन भी नजदीक आते जाते हैं।अर्पिता के मां पापा भी काफी हद तक ठीक हो जाते हैं।एक दिन अप्पू को बिन बताये शान उनसे मिलने कानपुर जाते है ..

शान :- नमस्ते अंकल आंटी!अब कैसा महसूस कर रहे है आप!
अर्पिता के पिता :- काफी हद तक अच्छा महसूस कर रहा हूँ।सब आपकी मेहनत और देखरेख का नतीजा है जो पिछले डेढ़ महीने से भी ज्यादा समय में हम दोनो इस काबिल तो हो गये है कि अब अपने कुछ कार्य तो स्वयं ही कर सकते हैं।

प्रशांत :- ये मेरी मेहनत नही आपकी इच्छा शक्ति का परिणाम है।और यहां के काबिल डॉक्टर की देखरेख है।

प्रशांत की सादगी देख अप्पू के पिता मुस्कुराते हुए कहते है नही बेटे।अगर तुम नही होते तो हम अभी किसी और अवस्था में ही होते।आपसे ये जानना था कि मेरी बच्ची अर्पिता कैसी है उसे आपने हमारे बारे में बताया तो नही अब तक।

शान :- !अर्पिता बिल्कुल ठीक है।इन्फेक्ट कुछ दिन पहले आप लोगों को ढूंढने के लिए यहां आना चाहती थी तो उसे किसी तरह किरण की शादी तक रोक लिया है।मुझे उम्मीद है तब तक तो आप अच्छे से चलने फिरने लायक हो जाएंगे।फिर आप दोनो मिल कर उसे सरप्राइज देना।उसे बहुत अच्छा लगेगा।ये बात तो बिल्कुल सही कही आपने।।दया जी,हेमंत जी और किरण मेरी बच्ची का अच्छे से ध्यान रख रहे होंगे।और फिर आप भी तो है सबने मिल कर सम्हाल लिया होगा हमारी भावुक अर्पिता को।वो हमे लेकर सेंसिटिव है थोड़ी सी।अर्पिता के पिता ने कहा तो शान बोले जी ये बात बिल्कुल सही कही आपने।वो सेंसिटिव भी है तो फाइटर भी।बड़ा अद्भुत मेल है उसमे।खैर अंकल आंटी अब मैं निकलता हूँ कल मैं अपने घर जा रहा हूँ तो अब आपसे मुलाकात शादी वाले दिन ही होगी।प्रशांत ने खड़े होते हुए कहा तो अर्पिता के पिता चौंकते हुए बोले घर से मतलब..!

अंकल मैं परम का कजिन भाई हूँ अब परम और किरण की शादी है तो हम सबको घर ही जाना होगा न वहीं से बारात लाएंगे लखनऊ।प्रशांत ने कहा।

ओह।मतलब तुम लड़के वालो की तरफ से हो।अर्पिता के पिता ने हंसते हुए कहा तो प्रशांत मुस्कुराते हुए बोले जी।

वो खड़े होते है और दोनो के चरण स्पर्श कर मुस्कुराते हुए वहां से चले जाते हैं।कुछ ही घण्टो में वो लखनऊ पहुंच जाते है।अर्पिता अकैडमी में होगी ये सोच वो घड़ी देख बाइक निकाल उसे रिसीव करने अकैडमी पहुंच जाते हैं।अर्पिता क्लास में होती है लेकिन एक सुखद अनभूति उसके हृदय को होती है जिसे महसूस कर वो मुस्कुरा देती है एवं मन ही मन कहती है आप आ गये हैं शान और लेक्चर अटैंड करने लगती है।लेक्चर समाप्त हो जाता है तो वो सबसे कहती है गाइज अब करीब आठ नौ दिनों तक हम यहां आपकी क्लास में उपस्थित नही होंगे आप सबकी क्लास दूसरे अध्यापक लेंगे जो आपको कुछ नया और अलग सिखाएंगे इसीलिए आप लोग उनसे उद्विग्न नही होना और अच्छे से सीखना एवं अब तक जो भी सिखाया है आपको उसे अच्छे से दोहरा कर पक्का कर लेना क्योंकि जिस दिन हम क्लास में वापस आये उसी दिन प्रैक्टिकल और टेस्ट दोनो लिए जाएंगे आपके। उसके बाद जो रिपोर्टकार्ड मिलेगा वही आपकी इस क्षेत्र में कामयाबी निर्धारित करेगा। तो ऑल द बेस्ट गाइज,सभी को शुभकामनाये कह अर्पिता वहां से स्टाफ रूम में चली जाती है जहां शान रवीश के साथ बैठे हुए होते हैं।

रवीश :- हेल्लो मिस अर्पिता जैसा की आपने डिमांड की थी कि आपको सेलेरी अपनी कजिन की शादी से कुछ दिन पहले चाहिए तो ये रही आपकी पहली सेलेरी।चूंकि आपने बैंक अकाउंट में ट्रांसफर का मना कर दिया तो ये फिर कैश इन हेंड ही रखिये आप।अर्पिता मुस्कुराते हुए अपनी सेलेरी लेती है और शान की ओर देखती है जो बेहद हल्का मुस्कुराते हुए उसकी ओर देख रहे हैं।

ओके प्रशांत भाई अब मैं निकलता हूँ तुम दोनो ही कल से छुट्टी पर हो तो शाम के बैच की तो छुट्टी ही करनी पड़ेगी।रवीश जी चुटकी लेते हुए कहा तो शान बोले हां भाई बोल देना छात्रों से कि सर के भाई की और मैम की बहन की शादी है तो सभी उसी में व्यस्त है दस दिन तक तो दोनो ही नही आने वाले हैं।

ना भाई दस दिन कुछ ज्यादा ही हो गया ऐसे तो मेरी अकैडमी ही बन्द हो जायेगी।कुछ दिन मैं खुद ही हैंडल करता हूँ बाकी जब नही हुआ तो फिर बैच की छुट्टी के अलावा कोई अन्य विकल्प शेष नही है।रवीश ने चिंतित होते हुए कहा।

जिसे देख अर्पिता कहती है आपको इस बात के लिए इतना सोच विचार करने की आवश्यकता नही है हमने पहले ही छात्रों से इस विषय में बातचीत कर अवगत करा दिया है।हमे उम्मीद है कि वो आपको।या किसी अन्य टीचर को परेशान नही करेंगे।

ओह थैंक यू अर्पिता जी नही तो मैं ये सोच सोच कर ही परेशान था कि क्या होगा कैसे मैनेज करूँगा मैं बच्चे इतने जिद्दी है कि आप दोनो के अलावा किसी से सीखने को तैयार ही नही होते।खुशी से आवेश में भरकर रवीश बोले।जिसे देख अर्पिता बोली बस इस बात का ध्यान रखना उन्हें जो भी टीचर अटैंड करे वो उन्हें कोर्स से इतर ही कुछ नया कराये।

ऐसा ही होगा रवीश ने झुकते हुए कहा तो अर्पिता और प्रशांत उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा देते हैं।

प्रशांत(रवीश से) :- ओके यार अब बातचीत तो हो चुकी है हमे अब निकलना चाहिए।

रवीश :- ठीक है।बाय!
प्रशांत :- बाय बाय।कहते हुए बाइक की चाबी और हेलमेट उठा बाहर निकल आते है तो अर्पिता भी उनके पीछे चली आती है।प्रशांत बाइक उठा स्टार्ट करते है अर्पिता बाइक पर बैठ प्रशांत की पीठ पर सर टिका बैठ जाती है।जिसे देख प्रशांत कहते है क्या बात है आज तो बड़ी मेहरबानी मुझ पर जो मेरे पीठ पर सर और सीने पर तुम्हारे हाथ है।तो अर्पिता कहती है ये हक भी हमे आपने ही दिया है शान।और वैसे एक बात कहे हम..

शान :- बोलो!
अर्पिता :- लाइफ का हर लम्हा हमे मुस्कुराकर खुल कर जीना चाहिए।क्या पता कब कौन से लम्हा आखिरी हो?

शान :- बात तो बिल्कुल सही है तुम्हारी अप्पू।और वैसे भी कुछ हक है जो सिर्फ मैंने तुम्हे दिये है जानती हो न तुम!

अर्पिता:- हां!लेकिन शान!
शान :- लेकिन क्या अप्पू?
अर्पिता :- हम ये सोच सोच कर परेशान है आप हमे अपने घर बुला कर तो ले जा रहे हो लेकिन हम वहां रहेंगे कैसे।हमारा कहने का अर्थ है कि हम तो सबके लिए है ही नही न फिर कैसे रहेंगे।ये तो बताइये?

अर्पिता की बात सुन शान मुस्कुराते हुए कहते है वैसे ही जैसे यहां मेरे बर्थडे के दिन सबसे मिली थी घूंघट में।अब ये इच्छा तुम्हारी है न किसी के सामने न आने की तो एकमात्र यही विकल्प बचा है अब।

क्या...!शान आप क्या कह रहे हैं इतने सारे लोगों के सामने घूंघट में और क्या कहेंगे हम कि घूंघट में क्यों है बताओ।अर्पिता ने पूछा तो शान बोले कहोगी क्या कह देना कि हमारे होने वाले उन्हें पसंद नही कि उनके सिवा कोई और हमे देखे।सही है न।

ओएम जी शान ये आप क्या कह रहे है ऐसा है तो हम नही जा रहे वहां।हमसे झूठ पर झूठ बुलवा रहे है आप वो भी अपने घर वालो के सामने उन्हें सच पता चलेगा तो क्या सोचेंगे वो सब हमारे विषय में कि हम कितनी बड़ी झूठी है।क्या इमेज बनेगी हमारी।अर्पिता ने कहा तो शान अर्पिता को समझाते हुए बोले कोई कुछ नही सोचेगा अप्पू।सोचेगा तो तब जब उन्हें सच पता चलेगा।और फिर वहां शोभा ताईजी है न वो सब सम्हाल लेगी वो जानती है तुम्हारे बारे में तुम बस उनके साथ रहना बाकी मैं परम श्रुति और शोभा ताईजी इतने सब है न सब तुम्हारे साथ रहेंगे।

शान की बात सुन अर्पिता सोचते हुए कहती है आप कह रहे है तो फिर ठीक है काहे की हमे सिर्फ आप पर भरोसा है जब तक आप है कुछ गड़बड़ नही होने देंगे।न ही हमारे मान के साथ और न ही स्वाभिमान के साथ।अर्पिता ने गर्दन उठा कर कहा और वापस से अपना सिर उनकी पीठ पर टिका देती है।

उसकी बात सुन शान कहते है बस इसी तरह बेफिक्र रहा करो मैं हूँ न सब सम्हाल लूंगा।कुछ ही देर में रूम का रास्ता आ जाता है तो अर्पिता अपने आप को संयत कर चौराहे पर ही उतर जाती है वहां से शान और अर्पिता दोनो पैदल बाते करते हुए चले आते हैं।
रूम पर आ अर्पिता श्रुति के साथ मिल पैकिंग कर लेती है।चूंकि सबकी सुबह की ही ट्रेन होती है इसीलिए सारे कार्य अभी के अभी करने होते है।पैकिंग करते कराते खाना वाना बनाते हुए रात के बारह बज जाते है तब कहीं जाकर सभी फ्री हो पाते हैं।

परम जी भी किरण राधिका और स्नेहा सभी को घर ड्रॉप कर आ चुके होते हैं चूंकि दोनो के विवाह के दिन निकट आ रहे होते है तो राधु स्नेहा परम और किरण सबने मिलकर साथ ही पूरी शॉपिंग की होती है।कल सभी को एकसाथ ही घर भी जाना होता है।

सबसे फ्री होकर अर्पिता और शान हमेशा की तरह कुछ लम्हे चांदनी रात में बिताने के उद्देश्य से छत पर उचित दूरी बना कर बैठे हुए होते है साथ ही बातचीत भी करते जा रहे हैं।

शान :- तो पूरी पैकिंग हो गयी तुम्हारी।
अर्पिता :- जी।
शान :- गुड!और आज तो सेलेरी भी मिल गयी तुम्हारी।
अर्पिता :- जी! और इस महीने का पूरा किराया,और उस दिन के शॉपिंग लिस्ट के साथ पूरा अमाउंट हमने आपके पर्स में रख दिया है देख लिया न आपने।

शान :- हम्म।देख लिया तभी समझ गया मेरे पर्स को तुम्हारे अलावा कोई भर भी नही सकता बाकी सब तो खाली करना जानते है।

अर्पिता :- कोई नही।कह वो सोच में पड़ जाती है।तो शान उससे कहते है बस भी करो अप्पू कितना सोचोगी उस बारे में किससे क्या कहना है मैं और श्रुति है न दोनो देख लेंगे।फिलहाल तो तुम बस साथ चल रही हो मैं तुम्हे यहां अकेले नही छोड़ सकता।

ठीक है शान अर्पिता ने कहा।और दोनो नीचे चले आते हैं जहां अपने अपने कमरो में जाकर नींद की आगोश में चले जाते हैं।

अगले दिन सभी अपना समान ले प्लेटफॉर्म पर जाकर इकट्ठे हो जाते हैं जहां प्रेम राधिका,स्नेहा सुमित चित्रा और त्रिशा भी होते हैं।त्रिशा शान को देख तुरंत ही उसके पास चली आती है प्रशांत भी मुस्कुराते हुए उसे गोद में उठा कहते है कैसी है मेरी लिटिल एंजेल।

हम तो अच्छे है चाचू।नन्ही सी त्रिशा ने इस अंदाज में कहा जिसे देख प्रशांत और चित्रा दोनो के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।राधिका और स्नेहा दोनो अर्पिता को देख प्रशांत की ओर देख इशारे से पूछती है "कौन है"? तो प्रशांत धीमे से कहते है ये श्रुति की दोस्त।श्रुति जिद कर इसे अपने साथ लेकर आई है।

क्या..लेकिन इतने दिन पहले हमारा मतलब इनके घर पर किसी को कोई परेशानी हुई तो...!

परेशानी होगी कैसे ये और सात्विक ही तो है फैमिली,और अपनी।श्रुति को तो जानती ही हो कितनी जिद्दी है और सात्विक ठहरा दोस्त तो उसने भी ज्यादा न नुकुर नही किया।कहते हुए शान।एक बार श्रुति की और अर्पिता की ओर देखते है जो उनकी ओर ही देखते हुए खड़ी होती है।लेकिन अर्पिता के सिर पर घूंघट होता है जिसके अंदर हो वो सोचती है ये प्रेम जो भी करा ले वो कम ही है।आपकी खुशी के लिए ये झूठ भी सिर माथे शान।अब प्रेम किया है तो निभाना भी पड़ेगा।बाकी अब बस यही दुआ है हमारी ठाकुर जी से की जल्द ही कुछ ऐसा कर दे कि जिससे हम इस झूठ के आवरण को जल्द ही उतार सके।हमारी फॅमिली से झूठ हमे भार स्वरूप ही प्रतीत हो रहा है शान।

राधिका :- वो तो ठीक है लेकिन ये घूंघट में क्यों है?उस दिन भी थी लेकिन शिष्टाचार के कारण पूछा नही अब आप ही बता दीजिये ऐसा क्यों?

प्रशांत :- ये सीक्रेट है वादा करो आप इसे कहीं और नही पहुंचने दोगी तो बताऊं मैं आपको।

राधिका :- ऐसा क्या सीक्रेट है जो हमसे वादा लिया जा रहा है।
प्रशांत :- अभी तक मैंने जो भी कहा वो झूठ था सच ये है कि ये किरण की मासी की बेटी है अर्पिता।

क्या..?प्रशांत की बात सुन सभी हैरान हो एक साथ कहते है, अर्पिता भी।
जी ये अर्पिता है उस दिन जब मैं एक शो के सिलसिले में कानपुर गया था तब ये मुझे वहीं कानपुर स्टेशन पर मिली थी।बहुत परेशान थी।चूंकि मैं इसे पहले से जानता था श्रुति की दोस्त के तौर पर तो मैं इसे अपने रूम पर ले आया और श्रुति ने इसे अपने पास रुकने के लिए मना लिया।उस दिन भी हमने झूठ बोला और आज भी बोलना पड़ा तो सोचा अपनो से बार बार झूठ बोलना भी ठीक नही इसीलिए सच बता दिया कि ये है कौन और हमारे साथ क्यों है।

राधिका :- तो ये छिपते हुए श्रुति के साथ रह रही थी और उसका कारण भी हम समझ गये।ये झूठ भी किसी के भले के लिए था तो इसे इग्नोर किया भाई आगे जैसा ये चाहे वैसा ही होगा राधु ने कहा तो अर्पिता राधिका के पास आ बोली जैसा आपके बारे में सुना वैसा ही पाया।हर किसी की परेशानी यूँ चुटकियो में समझना आप ही कर सकती हैं।

अच्छा !और किसने बोला ये सब परम जी ने न।राधिका ने मुस्कुराते हुए कहा।तो अर्पिता बोली जी सही समझा आपने।
राधिका :- हमे पता था यही होंगे क्योंकि प्रशान्त तो किसी की तारीफ करने से रहे और श्रुति वो बस पढ़ाई और स्वयं की तारीफ में रत रहती है बचे प्रेम जी के छोटे वही ये कर सकते है राधिका ने परम की ओर देखते हुए कहा तो परम बोले हां तो अब है आप लोग तारीफ के लायक तो करूँगा ही न।

ये सभी बातों में रमे होते है कि ट्रेन आ जाती है।सभी अपने रिजर्वेशन वाले डिब्बे में जाकर बैठ जाते हैं।प्रेम राधिका,सुमित स्नेहा, प्रशांत अर्पिता श्रुति परम ये सभी आमने सामने वाली सीट पर जाकर बैठते हैं।आर्य और त्रिशा दोनो ही खिड़की के पास बैठते है।आर्य राधिका के पास तो त्रिशा अर्पिता के पास आ बैठते है।
प्रेम कुछ स्नैक्स और तीखी मीठी दोनो ही चीजे लाकर राधु के कैरी बेग में रख देते है।पानी की बॉटल बाहर ही आर्य के पीछे कौने में रख देते है और वहीं बैठ जाते हैं।गाड़ी चलने लगती है तो परम और श्रुति सबसे ऊपर की सीट पर चढ़ जाते हैं।चित्रा उठ कर सामने खिड़की वाली सीट पर बैठ जाती है।उसे अकेला देख स्नेहा सुमित से कह उसके पास चली आती है।
सुमित उठ कर प्रशांत के पास बैठ जाते हैं सीट खाली देख प्रेम राधिका से कहते है राधु सीट खाली है चाहो तो तुम लेट कर भी ट्रेवल कर सकती हो।ये सुन राधिका प्रेम की ओर देख मुस्कुराते हुए कहती है प्रेम जी आराम हम अवश्य करेंगे लेकिन सीट पर सर रख कर नही हमारी परमानेंट जगह यानी आपके कांधे पर सर रखकर,आप जानते है न तभी हमे अच्छे से नींद आयेगी।

हम्म जानता हूँ।प्रेम ने कहा तो राधिका अपनी शॉल ठीक करते हुए प्रेम के कांधे पर सर टिकाकर आँखे बन्द कर लेती है एवं अपने एक हाथ से प्रेम का हाथ पकड़ लेती है वहीं प्रेम भी उसके सिर पर अपना सिर टिका सामने खिड़की की ओर देखने लगते हैं।अर्पिता और प्रशांत दोनो प्रेम और राधु के इस स्वीट मूमेंट को देख मुस्कुरा कर एक दूसरे की ओर देखते हैं।तो प्रशांत हौले से अर्पिता के कानो के पास आ उससे कहते है ये तो सिर्फ एक झलक है इन दोनो का प्रेम तो बहुत गहरा है।

अर्पिता :- वो हम महसूस कर ही रहे है फिलहाल आप बताइये स्टेशन पर क्या किया आपने? क्यों तंग किया हमे।

शान (अंजान बनते हुए):- मैंने कब किया भला।
अर्पिता :- जब सबको सच ही बताना था तो तंग क्यों कर रहे थे हमे कि वैसे ही रहना घूंघट में बोलो बताओ हमे?

शान (मुस्कुराते हुए) :- अच्छा वो।वो तो बस मन किया थोड़ा शरारत करने का तो कर ली।

अर्पिता (फुसफुसाते हुए)- आपकी शरारत हे ठाकुर जी।यहां तो सोच सोच कर जी हलकान हुआ जा रहा था और एक ये है जो शरारत कर रहे थे हमारे साथ।

ये सुन प्रशांत जी कहते है क्यों सोची इतना तुम मना किया था न मैंने फिर भी..!अब मेरी तो आदत है तंग करने की और मेरा हक भी इसके लिए मना नही कर सकती तुम।।

हम्म ये बात तो है।अर्पिता ने कहा और बाहर खिड़की की ओर देख मुस्कुराने लगती है।वहीं कोई और भी है जो इन दोनो की नोकझोंक देख मुस्कुरा रहा है ....☺️

क्रमशः...