गीत मेरी जिंदगी का प्यार है कृष्ण विहारी लाल पांडेय द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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गीत मेरी जिंदगी का प्यार है

के बी एल पांडेय के गीत


गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है


जब बसंती ओढ्नी में पुष्प पंखुरिया विहंसती

मंजरी पर झूम कोकिल तान मुकुलों पर थिरकती।

सुरभि में हो अंध मतवाला मधुप कुछ खोजता जब

भावना बेसुध पवन के पालने में पेंग भरती।।

विकल अन्तर के बहुत से पृष्ठ रंग जाते सुनहली लेेखनी से तब,

मौन कह उठता यही मेरा सुखद संसार है

गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है

लुट रहा कुंकुम सितारे गय गये आंसू बहाते,

हृदय की पहचान पर भूले विहग मातम मनाते।

सुरभि वाहक मलय अपनी लिख रहा प्रियतम कहानी

क्षितिज पर बैठे चितेरे तूलिका में रंग लाते ॥

सज रहे तोरण नदी के नृत्य पर अंगडा़ उठा चन्दा

चली बारात रजनी की

हलचल कहती जग का मनचला व्यापार है।

गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है

स्वप्न के परिचित विभव क्या कल्पना में ही रहोगे

दो मुझे विश्वास पल भर धरा पर अभिनय करोगे।

खोल उर के द्वारा स्वागत को यहां बैठा भिखारी

बिम्ब से बातें करूं एकांत में जब तुम न होगे॥

खोजते तुम, पास ही मै यत्न करता हूं,

तुम्हारे सामने गांउ

गीत बिखरे बिन्दुओं का ही सजा आकार है॥।

गीत मेरी जिंदगी का प्यार है आधार है

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के बी एल पांडेय के गीत


सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं


अरूण ने सिन्दूरी घूंघट खोल जगत पर तीर चलाये,

तारे सोये सिहरे सरसिज अंगडा़ कर भंवरे मुस्काये।

जग सपनों में झूल रहा था पर मैंने अभिसार न जाना।

अंतर की उमडी़ पीडा़ के आंसू भी हंस कर राेये हैं

सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं ॥

मैंने भी अपने जीवन में मुस्कानों का मेला देखा

उजड़े उर की टीस छोड़ती विस्मृति की अधियारी रेखा

मेरा दीप नहीं सह पाया उपहासों के चंचल झोंके,

इन नयनों के खारे जल से मैंने तो छाले धोये हैं।

सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं ॥

मेरी पलकों में पढ़ लो तुम युग युग का इतिहास छिपाए

पतन उदय का सत्य चिरंतन जीवन का संगीत बनाये।

आशा को बरबस अपना कर नजर राह में बिछा रहा था

यह तो था मालूम नहीं मैंने प्रिय पाकर ही खोये हैं।

सिसक सिसक कर मेरी मन-वीणा के तार अभी सोये हैं ॥

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के बी एल पांडेय के गीत


तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा


खोजता था मैं अभी तक आंधियों में शांति के क्षण,

जिन्दगी से हार मांगे मौत से दो मधुर चुम्बन।

अमा के तम में अमर आलोक की बस कल्पना ही,

वह भ्रला आलोक क्याा जो मुस्कराये चार उडगण।

तुम अगर आओ लगत को ज्योति का आधार दूंगा॥

तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा॥

बंधनों के स्वर्ग को जिसने नियति का भार जाना,

मदिर उन्मादी दृगों को कैद कर समझे बहाना।

वह गगन का मुक्त पंछी दूर से ही हंस रहा जो

कौन सा विस्मय उसे यदि धरा पर भाये न आना।

तुम न ठुकराना इसे मैं माधवी उपहार दूंगा ॥

तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा

चार पल अभिसार कर लूं साध यह मन की पुरानी

रूठ जायेगबी कभी भी स्वयं इठलाती जवानी।

अधूरी आदि विस्म़ृत अंत भी अज्ञात जिसका

सुन सको तो कह चलूं मैं सिसकियों की ही कहानी।

सांझ जब रोने लगी मै भी रूदन का भार लूंगा॥

तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा

मान मत कर शशि तिमिर से ही सजी मुस्कान तेरी,

मोद तुमको दे रही है आंसुओं की तान मेरी।

देखना ही यदि तुम्हे प्रिय स्वप्न के जग का उजड़ना

फूंक दो जीवन शिखा रह जाय यह दुनियां अंधेरी।

जीत तुम ले लो प्रथम बस मैं तुम्हारी हार लूंगा ॥

तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा

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