भाग्य-दुर्भाग्य Sunita Agarwal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भाग्य-दुर्भाग्य


महीनों से देख रही थी कि घर में एक एक पैसा सोच समझ कर खर्च किया जाता।कोई भी वस्तु बर्बाद नहीं की जाती
रात की रोटियाँ बच जातीं तो उन्हें फेंका नहीं जाता गर्म करके एक एक सबको दी जाती।कई बार सोचती कि कितने कंजूस लोग मिले हैं मुझे एक मेरी चचेरी बहिन है जो अपने घर की अमीरी की कितनी बढ़ाई करती एक मेरी किस्मत में ये कंजूस लोग।ये सोचते सोचते उसकी आँख लग गई और सुबह उठी तो उसे महसूस हुआ कि उसे हल्का सा बुखार है।सुबह उठने पर उसके पति सचिन ने देखा कि अरुणा आज उठी नहीं तो उसने अरुणा को हाथ से जगाना चाहा तो देखा कि उसे तो बुखार है।उसने आकर अपनी माँ को बताया वह तुरंत चाय बनाकर लाई और अरुणा को उठाकर चाय पिलाई फिर सचिन से बोली दुकान पर तुम्हारे पिताजी चले जायेंगे तुम अरुणा को डॉक्टर को दिखा लाना अरुणा बोली मम्मी जी हल्का सा बुखार है अपने आप ठीक हो जाएगा।पर अरुणा की सास बोली बेटा मौसम बदल रहा है लापरवाही ठीक नहीं डॉक्टर को दिखाने में क्या हर्ज है कहकर वो नाश्ता आदि की तैयारी करने किचन में चली गईं। थोड़ी देर में वह उठकर किचन में गई तो वह कहने लगीं तू क्यों आई जाकर आराम कर।उसके ससुर भी नाश्ता आदि करके सचिन से अरुणा को डॉक्टर को दिखाने की कह कर दुकान चले गए ।वह अपने कमरे में आ गई और सोचने लगी कि में कितना गलत सोच रही थी इन लोगों के बारे में मुसीबत में जो साथ दे वही अपना होता है।मुझे जरा सा बुखार क्या आया सब लोगों ने अपना अपना काम संभाल लिया कितनी भाग्यशाली हूँ में जो मुझे ऐसा परिवार मिला है।
कुछ दिनों बाद सावन का महीना शुरू हो गया और पहला सावन होने के कारण में अपने भाई के साथ मायके आ गई।
मेरी चचेरी बहिन नेहा भी आई हुई थी एक महीने पहले उसके बेटी हुई थी उसको लेकर हमारे घर मिले हुए थे या ये कहो घर तो एक ही था उसके दो हिस्से हो गए थे।तो हम दिन का अधिकांश समय साथ साथ बिताते थे।एक दिन बातों ही बातों में मैंने पूछा क्या हाल है जीजू के, पापा बनकर तो बहुत खुश होंगे ना।हाँ कुछ ज्यादा ही खुश थे तभी तो इसके होने के पंद्रह दिन बाद ही इतना ववाल किया अचानक ही उसके मूँह से निकला।मैंने भी हैरानी से पूछा क्या कह रही है तू?तो वह बात टालने की गरज से बोली।अरे कुछ नहीं मैंने कहा बता न क्या बात है।तो वह बोली क्या बताऊँ अरुणा इन लोगों का व्यवहार मुझे समझ नहीं आता। गुड़िया के होने पर में बहुत खुश थी और सोच रही थी कि सचिन भी बहुत खुश होगें क्योंकि पहली बार माता पिता बनने की खुशी ही अलग होती है।मुझे नहीं पता उसे खुशी हुई कि नहीं लेकिन इसके होने के पंद्रह दिन बाद ही उन्होंने जो मेरे साथ व्यवहार किया जिसे में जिंदगी भर नहीं भूल पाऊँगी। ऐसा क्या हुआ मैंने पूछा।वह बोली इसके होने के दो दिन बाद मेरी ननद आ गई थी वही मेरी देखभाल कर रहीं थी मेरा अच्छे से ख्याल भी रख रहीं थीं
में मन ही मन उनकी बहुत इज्जत करती थी क्योंकि इन दो सालों में उन्होंने कभी कोई दिल दुखाने वाली बात नहीं कही थी जबकि मेरी सास तो अक्सर मुझे ताने दिया करतीं थीं। इसका नामकरण संस्कार के दो दिन बाद की बात है ।ऐसी हालत में में तो घर का काम काज कर नहीं सकती थी वैसे भी बच्चे होने के बाद 25 दिन से किचन में घुसते नहीं हैं।
तो नामकरण हो जाने के एक दिन बाद जैसे ही में घर में झाड़ू लगाने लगी मेरी ननद ने मुझे रोक दिया अभी कुछ दिन और रहने दो अभी मत करो काम।में क्या करती में अपने कमरे में आकर अपनी बेटी के साथ लेट गई।इतने में सचिन कमरे में आया और दहाड़ता हुआ बोला सारे दिन बिस्तर पर पड़ी रहती है कुछ घर का काम नहीं कर सकती ।उसके इस रवैये से में हैरान रह गई।मुझे समझ नहीं आया मेरी गलती क्या है ?मैंने तो कहा था दीदी ने ही मना कर दिया था।यह बात कायदे से भी तो कही जा सकता थी।मैंने गुड़िया के होने वाले दिन तक अस्पताल जाने के समय तक घर का एक एक काम किया था और जो 10 15 दिन इन लोगों ने मुझे बिठा कर क्या खिला दिया तो आफत आ गई।मुझे भी गुस्सा आ गया मेरे
मूँह से निकल गया कि ऐसे समय पर भी क्यों आराम करने दिया काम ही करवा लेते।मेरा इतना कहना था कि सचिन ने इतना क्लेश किया मुझसे बात करना भी बंद कर दिया यहाँ तक कि मेरे कमरे में आना भी।कुछ दिन बाद गौरव मुझे लेने पँहुचा (भाई) क्योंकि अपनी प्रेग्नेंसी की वजह से में एक साल से यहाँ नहीं आ पाई थी ।तो मेरी सास बोली सचिन से इजाजत लेले जाने की।सचिन तो मुझसे बात तक करने को तैयार नहीं था वह मेरे साथ बेरुखी बरत रहा था ।तो फिर मेरी ननद बोलीं इसके पैर पकड़ कर माफी मांग लो।मेरी समझ में नहीं आया कि में किस बात की माफी माँगू फिर भी मैंने सचिन के पैर पकड़े तो उसने बड़ी बेरुखी से मेरे हाथ झिटक दिए।में अपनी बेटी के जन्म से बहुत खुश थी एक ही पल में मेरी सारी खुशी काफूर हो गई।
मेरी ननद जो इतनी पढ़ी लिखी हैं और खुद एक औरत हैं वो खुद ही एक औरत की इज्जत नहीं कर पाई भाई को समझाने की वजाय मुझे ही उसके पैरों पर गिराया।जो व्यक्ति अपनी पत्नी की इज्जत नहीं करता क्या वो अपनी माँ और बहिन की इज्जत करता होगा। क्यों एक औरत ही दूसरी औरत की बेइज्जती पर खुश होती है।वो भूल जाती है कि जो पुत्र भाई आज अपनी पत्नी की बेइज्जती कर रहा है वो कल अपने मन की न होने पर अपनी माँ बहिन से ऊँची आवाज में बात नहीं करेगा। अगर मेरी जगह उनकी अपनी बहिन बेटी होती तो भी क्या वह उसे अपने पति के पैर पकड़ने के लिये कहती। नहीं कहती क्योंकि कोई भी माँ बहिन अपनी बेटी या बहिन को अपमानित होते हुए नहीं देख सकती।फिर बहु को क्यों क्योंकि वह अपना खून नहीं है दूसरे की बेटी है।हम बहु को अपना नहीं समझ सकते तो
बहु से ही उम्मीद क्यों ? कि वह तन मन से हमारी इज्जत और सेवा करे । मुझे तो लगता है सचिन ने मुझे जान बूझ कर उकसाया ताकि में कुछ बोलूँ और वह मुझसे क्लेश कर सके क्योंकि मैंने बेटी को जन्म जो दिया था। इतना कहकर वह चुप हो गई।में बोली में तो तुम्हारे ससुराल वालों को खूब बड़े आदमी समझती थी पर वो तो बहुत छोटी मानसिकता के लोग निकले।अपने घर की बहू घर की इज्जत होती है उसकी बेइज्जती करके कौनसी इज्जत कमा ली उन्होंने क्या तुम ऐसे लोगों की कभी दिल से इज्जत कर पाओगी।तुम बुरा मत मानना इससे तो लाख गुना अच्छे मेरे घर वाले हैं हाँ तुम्हारे ससुराल वालों की तरह अमीर नहीं हैं लेकिन वह दिल के अमीर हैं।कभी मेरे मायके से गई किसी चीज में कमी नहीं निकाली आ जाये तो ठीक न आये तो कोई बात नहीं। अभी मेरी शादी को महीने ही कितने हुए हैं लेकिन मुझे वो घर पराया नहीं लगता।में सोचती थी कि तुम किस्मत वाली हो लेकिन तुम्हारी बातें सुनकर ऐसा लग रहा है कि किस्मत वाली तो में हूँ। मेरी बात सुनकर वह बोली तू ठीक कहती है किस्मत वाली तो तू है।मायके में तो लड़की 20 25 साल रहती है बाकी जिंदगी तो उसे ससुराल में ही गुजारनी होती है यदि पति और ससुराल वाले अच्छे हैं उसे समझने वाले हैं तो उसकी जिंदगी स्वर्ग बन जाती है वर्ना घुट घुट कर जीना उसकी नियति बन जाती है।