समर्पण Sunita Agarwal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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समर्पण

आज एक बार फिर उसे मन मारना पड़ा । कई दिनों से सोच रही थी कि समीर घर की मरम्मत करायेंगे तो ये करवाउंगी वो करवाउंगी क्योंकि समीर तो सारा दिन आफिस में रहते हैं में ही घर में रहती हूँ तो मुझे पता है कि
कितनी परेशानी होती है सामान रखने में ।घर का सामान सब तरफ बिखरा रहता है पुराना घर जो ठहरा पुरानी तरह से बना है। पर उसे सुधरवाया तो जा सकता है पर नहीं समीर को तो जैसे सनक सवार है वो वही करता है जो उसे ठीक लगता है घर की हालत काफी खस्ता है बहुत बार कहने के बाद समीर तैयार हुए थे मरम्मत कराने को।सोचा था तभी लगे हाथ कुछ अलमारियाँ निकलवा लूँगी तो सामान रखने की जगह हो जाएगी।लेकिन हर बार की तरह आज भी सब उल्टा हुआ।
समीर ने छत का प्लास्टर आदि कराकर कह दिया फिर कभी देखेंगे।वह मन मारकर रह गई शुरू से यही तो होता आया है जो काम समीर को पसंद है वही होगा उसकी पसंद उसकी इच्छा के बारे एक बार भी नहीं पूछा जाता ।और वह अपनी तरफ से कुछ कहती है तो या तो उसपर ध्यान ही नहीं दिया जाता या साफ इनकार कर दिया जाता है ।कितने सपने थे उसके अपने घर को ऐसे सजाऊँगी वैसे सजाऊँगी
सजाती तो तब जब अपना घर होता ।जिस घर को सजाया सँवारा वो तो माँ बाप का था और ये पति का घर जिसमें अपनी मर्जी से वह तिनका भी नहीं उठा सकती।
बहुत बार उसने समीर को समझाने की कोशिश की मगर समीर वही बात सुनता है जो उसने सुननी होती है ।वैसे भी उसकी चली ही कब है ।समीर से पहली बार मिलने के बाद ही वह उसका नेचर समझ गई थी और उसने अपनी माँ से शादी के लिए असहमति भी जताई थी क्योंकि उस वक्त लड़कियाँ अपनी शादी के बारे में आज की तरह खुलकर बात नहीं करती थीं ।तब भी उसकी बात नहीं सुनी गई थी ।फिर आज समीर से ही क्या उम्मीद लगाए ।
कभी कभी तो खुद पर ही क्रोध आता है क्यों वह इस शादी का खुलकर विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी।खैर
मन को तो समझाना ही होता है फिर इस बात की भी क्या गारंटी की किसी और से उसका विवाह होता तो उस इंसान नेचर का अच्छा ही होता।पर सब से ज्यादा क्रोध तो तब आता है अपनी जिम्मेदारियों से भी मुँह मोड़ता है।समीर की नजर में पति और पिता की परिभाषा कुछ और ही है।वह सिर्फ अपनी हुकूमत अपना दबदबा चाहता है किसी की परेशानियों से उसे कोई सरोकार नहीं है।फिर चाहता कि लोग उसकी दिल से इज्जत करें ऐसा कैसे संभव है इज्जत और प्रेम पाने के लिए पहले इज्जत और प्रेम देना पड़ता है।
नफरत और बेरुखी के बदले कभी प्रेम नहीं मिला करता एक बार को इज्जत देने का तो इंसान दिखावा भी कर सकता है पर प्रेम का नहीं ।प्रेम तो एक बार समाप्त हो गया तो हो गया इसे दोनों और से सींचना पड़ता है ।अब तक उसने अनेकों समझौते किये अपने आत्म सम्मान के साथ अपने रिश्ते को बनाये रखने के लिए।
आज भी याद है उसको वो दिन जब सपना दुल्हन बनकर ससुराल आई थी अपने पति अपनी नई जिंदगी के प्रति पूरी तरह समर्पित ।तब पता नहीं था हकीकत और सपनों में जमीन आसमान का फर्क होता है।उसने अपने पति और सास ससुर की सेवा में दिन रात एक कर दिया था भूल गई थी कि उसकी भी अपनी इच्छाएँ थीं अपने सपने थे।सपनों की छोड़ो उसने अपने आत्मसम्मान तक से भी समझौता कर लिया था।कभी कभी उसकी आत्मा उसको धिक्कारती जब वह बिना वजह अपमानित होने के बाद माफी माँगती।पर ये सब किया उसने क्योंकि वह प्रेम में थी अपने पति के प्रेम में।पता है इंसान सबसे ज्यादा कमजोर तब होता है जब वह किसी व्यक्ति या रिश्ते से प्रेम करता है और उसे खोना नहीं चाहता।ये उसका प्रेम और समर्पण ही तो था कि समीर ने जब जब उसका दिल दुखाया उसने उसे माफ कर सिर माथे पर बिठाया।लेकिन
हर चीज की सीमा होती है उससे अधिक खींचने पर उसका टूटना तय है।यही तो अब सपना के साथ हुआ उसने जो उम्मीदों का महल बनाया था वह अब समीर के इतने बर्षों के व्यवहार से ढह चुका है।लेकिन वह टूटी नहीं है वह पहले से अधिक सबल स्थिति में है वह खुद की नजरों में तो कुसूरबार नहीं।वह अब भी पूरी तरह समर्पित है अपने परिवार अपने बच्चों अपने पति के प्रति पर अब वह अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेगी किसी भी कीमत पर नहीं।