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कन्यादान

सहेलियों से घिरी हुई अवनी दुल्हन के लाल जोड़े में बेहद खूबसूरत लग रही है।उसकी सखियाँ हँसी ठिठोली कर रही हैं। "देखो अवनी के हाथों में मेंहदी कितनी गहरी लगी है जीजू बहुत प्यार करेंगे अवनी को "तभी दूसरी कहती है "करेंगे ही हमारी अवनी इतनी प्यारी जो है"।तभी उसकी माँ
शुभ्रा कमरे में आती है अवनी की तरफ देखकर "कितनी प्यारी लग रही है मेरी लाडो किसी की नजर न लगे " और एक छोटा सा काला टीका अवनी की ठोढ़ी पर लगा देती है।
इतने में अवनी के पिता समीर शुभ्रा को आवाज देते हैं"शुभ्रा कहाँ हो तुम "शायद उन्हें कुछ काम होगा।शुभ्रा कमरे से बाहर चली जाती है।तभी बैंड बाजों की आवाज सुनाई देती है।शायद बारात आ गई है उसकी कुछ सखियाँ
बारात देखने कमरे से बाहर चली जाती है ये कहते हुए कि
"देखें तो सही हमारे जीजू कैसे हैं "
बारात दरवाजे पर है अवनी के पिता समीर माँ शुभ्रा और अन्य रिश्तेदार अवनी के सास ससुर और अन्य बारातियों का स्वागत करते हैं।दूल्हा बना आकाश जो कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर है बेहद ही खूब सूरत लग रहा है।विवाह की रस्में शुरू होती हैं अवनी को जयमाल के लिये ले जाया जाता और हँसी मजाक के बीच जयमाल की रस्म सम्पन्न होती है।मिस्टर समीर हाथ जोड़े बारातियों के स्वागत सत्कार में लगे हैं।थके से लग रहे हैं क्योंकि विवाह की तैयारियों के कारण दो दिन से ठीक से सोये भी नहीं हैं।विवाह की रस्मों के बीच कन्यादान का वक्त आता है पंडित जी आवाज लगाते हैं" कन्यादान के लिये कन्या के माता पिता आएँ"।मिस्टर सुमित और शुभ्रा मंडप के पास पीछे की तरफ कुर्सियों पर बैठे है।आवाज सुनकर मिस्टर गुप्ता ने अपनी पत्नी की तरफ देखा शुभ्रा उठी और अपने पति का हाथ पकड़ कर मंडप में ले आईं ।कन्यादान करते वक्त दोनों की आँखों में आँसू छलक आये। आज उनकी लाडो पराई हो गई।विवाह की बची हुई सारी रस्में होने के बाद आखिर विदाई की बेला भी आ पँहुची ।अवनी अपनी माँ पापा से लिपट कर रो रही थी समीर अपने आँसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रहे थे ।भरे गले से अपने दामाद और समधी से प्रार्थना कर रहे थे कि उनकी बिटिया का ख्याल रखें।
बारात विदा हो जाती है सब अवनी की कार को दूर जाते हुए देखते रह जाते हैं।अवनी की माँ शुभ्रा खुद को संभाल नहीं पाती है तब मिस्टर समीर उसे अपनी बाहों का सहारा देकर अंदर ले जाते हैं ।शुभ्रा धम्म से सोफे पर पसर जाती है और पिछले 25 बर्षों में हुई एक एक घटना उसके दिमाग में चलचित्र की भाँति चलने लगती है ।उसके खुद के दुल्हन बनने से लेकर अवनी के पैदा होने से लेकर उसके बड़े होने तक। 22 बर्ष ही थी उसकी उम्र जब वह दुल्हन बनकर ससुराल गई थी उसके घरवाले और वह कितने खुश थे कि उनकी बेटी को इंजीनियर एनआरआई लड़का मिला है ।शादी के चार दिन बाद ही वह अपने सपनों की दुनिया दुबई आ गई थी।कुछ दिनों के बाद ही उसकी जिंदगी में एक नया मोड़ आ गया उसका पति सौरभ देर रात गए घर लौटने लगा जब वह पूछती तो वह उसको अपमानित करता उस पर हाथ तक छोड़ने लगा।हद तो तब हो गई जब वह अपने साथ काम करने वाली श्लोका को लेकर घर आने लगा ।दोनों मिलकर ड्रिंक करते और शुभ्रा से अपनी खातिरदारी करवाते ।एक दिन शुभ्रा किचन से उनके लिए नाश्ता बगैरह लेकर आ रही थी तभी उसने श्लोका को कहते हुए सुना वह नशे में थी और सौरभ के कंधे पर सिर रखे झूम रही थी ।"यार सौरभ तुम भी न कितने बुरे हो जो तुमने मुझे छोड़कर उस गँवार से शादी कर ली"।सौरभ बोला "डार्लिंग ये कोई शादी है वो तो मैंने अपने माँ बाप के दबाब में आकर उस गँवार से शादी कर ली फिर उसके बाप ने खूब सारे रुपये भी तो दिये थे। क्या फर्क पड़ता है इस नकली शादी से मेरी असल पत्नी तो तुम ही हो। पड़ी रहेगी किसी कोने हमारी सेवा करती रहेगी यहाँ हमें रोकने वाला कौन है" ।श्लोका बोली,"यार बात तो तुम्हारी सही ही है आजकल नोकरानियाँ मिलती ही कहाँ हैं", कहकर दोनों ठहाका मारकर हँसते हैं।अपने पति का यह रूप देख शुभ्रा के पैरों तले जमीन खिसक गई।वह सिर पकड़ कर बैठ गई आँसुओ की धारा बह निकली उसकी आंखों से उसके सारे सपने चूर चूर हो गए।उसे अब यह घर नरक के समान लगने लगा था।वह जल्द से जल्द इस नरक से निकलना चाहती थी लेकिन कैसे उसे तो उसके घरवालों से फ़ोन पर भी बात नहीं करने दी जाती थी।इसी तरह कई माह गुजर गए और एक दिन उसे पता चला कि वह माँ बनने वाली है वह खुश होने के वजाय और दुखी हो गई क्या होगा इस बच्चे का भविष्य जिसका बाप ऐसा हो।उसने सौरभ को ये बात बताई तो उसने ऐसे रिएक्ट किया जैसे कुछ हुआ ही न हो।अब भी उसके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया।अब तो श्लोका कभी कभी घर पर भी रुकने लगी थी।वह उनकी अय्याशियों को खामोश होकर सहन करती रहती। करती भी क्या विरोध करती तो मार पड़ती ।नो महीने पूरे होने पर उसने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया।बेटी के मासूम फूल से चेहरे को देखकर वह अपने सारे गम भूल गई सोचा सौरभ अपने खून को देखकर शायद सही रास्ते पर आ जाए। पर सौरभ की हरकतें नहीं बदलीं उसकी आय्याशियाँ उसी तरह चलती रहीं अपनी बच्ची से भी उसे कोई लगाव न था उसे याद नहीं कि उसने कभी अवनी को गोद में उठाया हो।वह तो रात के अंधेरे में अपनी जरूरत भर पूरी करता था शुभ्रा के साथ।फिर एक बार जब वह अपने दुर्भाग्य पर आँसू बहा रही थी तब उसने एक फैसला लिया नहीं "अब और नहीं में अपनी और अपनी बेटी की और दुर्गति नहीं होने दूँगी"।फिर एक दिन जब वह श्लोका के साथ तफरीह के लिए दूसरे शहर गया हुआ था।वह घर से अपना पासपोर्ट कुछ रुपये और अपना जरूरी सामान और अपनी बच्ची को लेकर एयरपोर्ट चल दी और वहाँ से पहली फ्लाइट पकड़ दिल्ली के लिए रवाना हो गई ।वह जल्दी से जल्दी उस नरक से दूर होना चाहती थी ।दिल्ली पँहुच कर उसने अपने घर फ़ोन मिलाया और रोरोकर अपनी दुखभरी दास्ताँ सुनाई ।उसका भाई और माँ पापा एयरपोर्ट के लिए तुरन्त रवाना हो लिए।माँ के गले लगकर वह खूब रोईं।घर आकर सुभ्रा के पापा ने अपने समधी यानि सौरभ के पापा से बात कर उनके लाडले की करतूतें बताईं।वह सौरभ की गलती मानने की बजाय सुभ्रा की ही गलती बताने लगे कि उसे इस तरह बिन बताए नहीं आना चाहिए था।और कुछ देर बात करके फ़ोन रख दिया।
फिर सालों तक उसके ससुराल से न कोई संदेश न सौरभ ही आया।जब सात साल गुजर गए तो इस रिश्ते को बचाने की उनकी आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई थी।फिर कानूनी कार्यवाही कराकर सुभ्रा और सौरभ का तलाक करा दिया गया।कुछ समय गुजरने के बाद उसके भाई रवि के डिपार्टमेंट में एक इंजीनियर आया समीर नाम था उसका उसकी पत्नी की दो साल पहले एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी । उसके घरवाले उसकी दूसरी शादी के बारे में सोच रहे थे।जब रवि को यह बात पता चली तो उसने अपने माता पिता और शुभ्रा से सलाह की क्यों न शुभ्रा की शादी की बात उससे चलाई जाए।माता पिता तो राजी थे और शुभ्रा को भी उन्होंने समझा बुझा कर तैयार कर लिया। समीर और उसके घरवालों ने शुभ्रा को पसंद कर लिया और इस तरह शुभ्रा दुल्हन बनकर समीर के घर आ गई।समीर ने पहली रात्रि को ही शुभ्रा से कहा कि में कोशिश करूँगा कि मेरी वजह से कभी तुम्हारी आँखों में कभी आँसू न आये।उस दिन के बाद से समीर ने एक अच्छे पिता, पति का हर फर्ज निभाया।अवनी की हर छोटी बड़ी ख्वाहिश को पूरा किया। और अवनी की शादी पर भी खूब दिल खोलकर खर्च किया ।शुभ्रा चाहती थी कि उनके एक बेटा भी हो अवनी को एक भाई मिले और उनका परिवार पूरा हो । लेकिन उसकी ये इच्छा पूरी न हो सकी।
समीर की आवाज से सुभ्रा की तंद्रा भंग हुई समीर हाथ में चाय की ट्रे में दो कप चाय और बिस्कुट लिए खड़े थे ।सुभ्रा उठो चाय पीओ कल से तुमने कुछ खाया नहीं।सुभ्रा ने समीर को हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाया और उसके कंधे पर सिर टिकाकर बोली,"समीर मुझे हर जन्म में तुम्हीं पति के रूप में चाहिए।तुमने कितना कुछ किया मेरे लिये अवनी के लिये।एक पिता से बढ़कर फर्ज निभाया"। ऐसा कहते हुए शुभ्रा की आँखें डबडबा आईं। समीर ने सुभ्रा के होंठो पर अँगुली रखते हुए कहा, "बस शुभ्रा अब कुछ मत कहो इतने बर्षों में एक पल के लिये भी मेरे मन में ये ख्याल नहीं आया कि अवनी मेरी बेटी नहीं है ।अवनी मेरी बेटी थी, है और हमेशा रहेगी। मैंने तुम पर या अवनी पर कोई अहसान नहीं किया है । मैंने तो सिर्फ एक पति और पिता का धर्म निभाया जो कि मेरा फर्ज था। आज अवनी का कन्यादान करके मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया है"।समीर की बात सुनकर सुभ्रा की रुलाई फूट पड़ी और वह समीर के गले लग गई।

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