आज फिर ठाकुर देवेंद्र सिंह सलोनी के घर आये और हर बार की तरह वही पुराना राग अलापने लगे" मुझे माफ कर दो,भूल जाओ पुरानी बातों को अपने घर लौट चलो"।कितनी आसानी से कह दिया उन्होंने कि में उन्हें माफ कर दूँ भूल जाऊँ वह सब और उनके साथ लौट जाऊँ, नहीं कभी नहीं, क्या वो लौटा सकते हैं मेरे पिछले सत्ताईस साल? नहीं लौटा सकते न फिर मुझ से क्यों उम्मीद करते हैं कि में सब कुछ भूल जाऊँ और उनके साथ चली जाऊँ? ,किस घर को मेरा कह रहे हैं जो मैंने देखा तक नहीं? , जब भरी जवानी मैंने अकेले काट दी तो बुढापा क्यों नहीं काट सकूँगी ? जब मुझे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब उन्होंने मुझे अपनाया नहीं । अब क्यों आते हैं बार बार मेरा दिल दुखाने? मुझे बीती बातें याद दिलाने" इतना सब कुछ सोचते सोचते सलोनी पुरानी यादों में खो गई।
सोलह साल की सूंदर साँवली अल्हड़ सलोनी गाँव के जमीदार सज्जन सिंह की बेटी अपनी मुस्कान से किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लेती थी। वह अपने दो भाइयों और माता पिता की लाडली थी इसलिये सोलह साल की होने के बाद भी घर भर के लिये बच्ची बनी हुई थी।एक दिन पिता ने उसे आइने के सामने खड़े होकर सजते संवरते देखा तो उन्हें अहसास हुआ कि सलोनी अब बड़ी हो गई है इसकी शादी कर देनी चाहिये।उसके लिये लड़के देखे जाने लगे पर जमीदार साहब को हर लड़के में कोई न कोई खामी नजर आ ही जाती। कई लड़के देखने के बाद आखिरकार एक रिश्ता सलोनी के लिये पसंद आ ही गया। लड़का सुंदर सुशील और पढ़ा लिखा था। वह पड़ौसी गाँव के जमीदार का बेटा था । लड़की देखने का कार्यक्रम बना और सलोनी को देखने लड़का देवेंद्र अपने माता पिता भैया भाभी बहन बहनोई के साथ आया था।पहली नजर में ही सलोनी सबको भा गई थी देवेंद्र तो सलोनी को एकटक देखता रह गया था। सलोनी को भी देवेंद्र बहुत पसंद आया था।सब राजी थे अतः गोद भराई की रस्म उसी समय सम्पन्न हो गई थी और विवाह का मुहूर्त छ महीने बाद का निकला था।सलोनी ने उसी दिन से देवेंद्र को पति के रूप में स्वीकार कर अपने मन मंदिर में बसा लिया था।वैसे भी उस समय सगाई आधी शादी के बराबर मानी जाती थी।
अभी सगाई हुए एक माह ही बीता था कि अचानक देवेंद्र की माँ को दिल का दौरा पड़ा और उनका स्वर्गवास हो गया।उस जमाने में किसी भी शुभ कार्य के बाद ऐसी घटना घट जाना अपशकुन माना जाता था । सलोनी के ससुराल में सब लोग बात बनाने लगे कि सलोनी के कदम इस घर के लिये शुभ नहीं है सगाई होते ही सास का स्वर्गवास हो गया विवाह के बाद न जाने क्या हो और इस तरह उन्होंने सलोनी से अपने बेटे देवेंद्र का रिश्ता तोड़ दिया।सलोनी पर तो ये ख़बर बिजली बनकर गिरी ।उसने तो मन ही मन देवेंद्र से आत्मीय रिश्ता जोड़ लिया था जिसे वो चाह कर भी नहीं तोड़ सकी थी ।वह अब गुमशुम और उदास रहने लगी थी उसे खाने पीने पहनने ओढ़ने किसी का भी होश नहीं रहता था माँ ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उसकी हर कोशिश बेकार गई। हद तो तब हो गई जब माँ ने गौर किया कि सलोनी हफ़्तों से न तो बाल बांध रही है न पैरों में चप्पल पहन रही है।माँ ने सलोनी से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रही है।माँ के पूछने पर सलोनी ने जो उत्तर दिया जिसे सुनकर तो माँ के होश उड़ गए।सलोनी बोली "माँ में अब बाल तभी बाँधूँगी और पाँव में चप्पल तभी पहनूँगी जब में ठाकुर देवेंद्र सिंह से विवाह करूँगी अन्यथा में ऐसे ही खुले बालों और नंगे पाव रहूँगी। माँ एकदम से बौखला कर बोल पड़ी "पागल हो गई है तू उसे विवाह करना होता तो रिश्ता तोड़ता ही क्यों क्या वह अकेला ही लड़का है दुनिया में, बहुत मिल जाएंगे उस जैसे, ऐसी फालतु की जिद छोड़ और उठकर बालों की चोटी बना" पर सलोनी तो जैसे जिद ठाने बैठी थी बोली "नहीं माँ मुझे और किसी से कोई मतलब नहीं मैंने मन से देवेंद्र को ही अपना पति मान लिया है अब में पीछे नहीं हटूँगी" माँ समझा समझा कर थक गई पर सलोनी नहीं मानी। अपनी बेटी को नंगे पाँव खुले बाल देखकर सलोनी के माता पिता को बहुत दुख होता पर वो भी क्या कर सकते थे। सज्जन सिंह सलोनी का रिश्ता दूसरी जगह करना चाहते थे पर सलोनी ने साफ इन्कार कर और अपनी प्रतिज्ञा दोहराई ।इसी तरह कई साल गुजर गए ठाकुर देवेंद्र सिंह का भी विवाह हो गया था।पर सलोनी की प्रतिज्ञा उसी तरह कायम रही।
कुछ और साल गुजरे तभी इत्तिफाक से देवेंद्र सिंह के रिश्ते के भाई की शादी सलोनी के गाँव में हुई। विवाह में ठाकुर देवेंद्र सिंह भी पधारे। जिस परिवार में शादी थी उसमें सलोनी के परिवार से भी सम्बन्ध थे ।ठाकुर सज्जन सिंह ने देवेंद्र सिंह को ख़बर भिजवाई कि वो उनसे मिलना चाहते हैं ।देवेंद्र सिंह अपने भाई के साथ पधारे सज्जन सिंह के घर आये।सज्जन सिंह ने सलोनी की प्रतिज्ञा के बारे में देवेंद्र और उनके भाई को बताया और उन्होंने देवेंद्र से प्रार्थना की कि सलोनी से विवाह कर लें वह अब भी तैयार है। देवेंद्र सिंह ने कहा उनका विवाह हो चुका है अब ये संभव नहीं हैं।सज्जन सिंह के दोनों बेटे बिक्रम और विजय हाथ आये इस मौके को गँवाना नहीं चाहते थे वो किसी भी कीमत पर सलोनी की प्रतिज्ञा पूरी कराना चाहते थे।फिर क्या था आनन फानन में पंडित जी को बुलाया गया और तुरंत विवाह की तैयारियाँ की गई ।हवेली के गेट को बंद कर दिया गया।जबरन देवेंद्र को दूल्हा बनाया गया और मंत्रोपचार के साथ विवाह की रस्म शुरू हो गई।उधर जब देवेंद्र को पँहुचने में काफी देर हो गई तो बारात के लोग सज्जन सिंह के घर अपनी अपनी बंदूकें लेकर पँहुच गए पूरे गाँव में ख़बर फैल गई कि सलोनी का विवाह हो रहा है।उधर ठाकुर सज्जन सिंह की हवेली की छतों पर भी लोग बंदूकें लेकर तैनात थे दोनों पक्षों में तनातनी हो गई और दोनों और से हवाई फायरिंग शुरू हो गई।क्योंकि दोनों ही पक्ष खून खराबा नहीं चाहते थे।क्योंकि एक पक्ष को अपनी बेटी ब्याहनी थीं वहीं दूसरे पक्ष को अपने बेटे के लिये दुल्हन ले जानी थी।विवाह सम्पन्न हो गया था किंतु देवेंद्र ने दुल्हन सलोनी को अपने साथ ले जाने से साफ इनकार कर दिया।उसने कहा कि "में एक पत्नी के होते हुए दूसरी पत्नी नहीं ले जा सकता।"और सलोनी सुहागिन होते हुए भी अपने मायके में रह गई। पर उस दिन सत्रह साल बाद सलोनी ने अपने बालों की चोटी बनाई और पाँव में चप्पलें पहनकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। कुछ और बर्ष बीते ठाकुर देवेंद्र सिंह की पत्नी का देहांत हो गया। बेटे बेटियों की शादियाँ हो गईं और वो अपनी दुनिया में मस्त हो गए तब जाकर देवेंद्र सिंह को अपनी दूसरी पत्नी की याद आई और चले आये सलोनी से माफी माँगने और अपने साथ ले जाने पर सलोनी ने उन्हें माफ नहीं किया।तब से ठाकुर देवेंद्र हर महीने दो महीने में सलोनी को मनाने आ ही जाते हैं। वह उन्हें अभी भी अपना पति मानती है इसलिये
उनके आने जाने पर घर में कोई बंदिश नहीं है।
सलोनी पुरानी यादों में खोई हुई थी कि ठाकुर देवेंद्र की आवाज सुनकर सलोनी की तंद्रा भंग हुई ।बैठक में से देवेंद्र की आवाज आई अच्छा तो में चलता हूँ अपना ख्याल रखना ।और रुँधे हुए गले से बोले "शायद इस जन्म में तो तुम मुझे माफ नहीं करोगी"। ठाकुर देवेंद्र सिंह चले गए और् वो उन्हें दूर जाते हुए देखती रही।