Jyada badlaav chahoge to pit diye jaoge books and stories free download online pdf in Hindi

ज्यादा बदलाव चाहोगे तो पीट दिये जाओगे (जुलाई २०१९)

जुलाई २०१९
१.
ज्यादा बदलाव चाहोगे तो
पीट दिये जाओगे,
अधिक परिवर्तन चाहोगे तो
मार दिये जाओगे,
बहुत सुधार चाहोगे तो
जेल भेज दिये जाओगे!
मांगने पर कौरवों ने
पाँच गांव भी नहीं दिये थे,
और तुम जनता के लिए
अच्छा तन-मन-धन मांग रहे हो!!
जो अंग्रेजों ने बिछाया-ओढ़ाया
उसी को बिछाया,ओढ़ाया करो,
क्योंकि अभी परिवर्तन की बयार धीमी है,
सुधार की हवा ठंडी है!

२.
वे प्यार के दिन थे
तब चाय नहीं पीते थे
प्यार ही पीते थे।
आँखें कहीं और नहीं देखती थीं
प्यार ही देखती थीं,
रास्तों पर पैर नहीं चलते थे
प्यार ही चलता था।
मौसम, समय नहीं बदलता था
प्यार ही मौसम बदलता था,
जहाँ पहुँचना मुश्किल था
वहाँ प्यार पहुँच जाता था।
वे प्यार के दिन थे
तब काम से जी नहीं चुराते थे,
प्यार ही चुराते थे।
३.
सुख हरेभरे झड़ते जाते हैं,
दुख सूख- सूख कर उड़ते जाते हैं।
४.
मैं प्यार की बातें ढ़ूंढ रहा था
बिना बात के बात बना रहा था,
दिन बीत गये
मैं तो खड़ा इंतजार कर रहा था,
फिर सोचा
अपने दिनों को स्वयं ही सजाना है,
जानवरों की भीड़ में
आदमी बन कर रहना है,
जब कहीं से प्यार का झोंका आये
उसी पर सिर टिका देना है।
५..
मैं तो तब भी बहुत काम का था
प्यार कर सकता था,
खेत जोत सकता था
नारे लगा सकता था,
नदियों को जोड़ सकता था
पहाड़ों को नाप सकता था।
तुमने मेरी ओर देखा ही नहीं
मेरी शुभकामनाओं को पढ़ा ही नहीं,
पत्र खोला ही नहीं
जिसकी हर पंक्ति में प्यार की बात थी।
मैं संभावना हूँ
अखबार की मात्र खबर नहीं,
देशहित में उठी आवाज हूँ।
तुमने मेरी जड़ों को देखा ही नहीं
जो भारत में फैली हैं,
तुम मेरी बाँहों में झूले ही नहीं
मेरे फल-फूलों पर तुम्हें विश्वास ही नहीं।
तुमने मुझसे बात ही नहीं की
मेरे अर्थ का अनर्थ कर दिया
बिना परीक्षा के
मुझे अनुत्तीर्ण कर दिया।
तुम जिस डाल पर बैठे हो
उसी को काट रहे हो,
लेकिन तुम कालिदास नहीं हो।
६..
बहुत पुरानी लगती हो तुम
अ ,आ जैसी दिखती हो तुम,
रंग भेद नहीं, भाव भेद नहीं
क ,ख जैसी लगती हो तुम।
७.
बहुत पुरानी बात हुई थी
जब घराट पर रात हुई थी,
मेरे अन्दर तुम थी बैठी
तेरे अन्दर मैं था बैठा।
उस ऊँचाई पर चढ़ते-चढ़ते
कैसी बातें तुम करती थी?
उस पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते
कैसी बातें मैं सुनता था?
८.
मन ही तो है हिन्दू-मुस्लिम
शेष शरीर तो मानव ही है,
मन ही तो है सिक्ख-ईसाई
शेष शरीर तो मानव ही है।
९.
बहुतों से पूछा मैंने रास्ता प्यार का
कोई कहाँ बताया,कोई कहाँ बताया,
वर्षों बाद जब स्वयं को देखा
तो वह कहीं नहीं, मुझसे निकल रहा था।

क्रोध का बोझ लिए वर्षों चला और दबा,
वर्षों बाद तथागत से पूछा तो बोले-
" तूने ये बोझ उठाया ही क्यों।"
१०.
मैने सोचा किसी से पूछूं
जीवन का हालचाल,
वह लड़कियों का होना
वह लड़कों का बोलना,
कहीं से गुजरना
टिप्पणियों का आना,
मुलाकातों का होना
खिलखिला कर हँस देना
वही तो जीने के लिए आवश्यक था।
वे डोटियालों के कंधे
कंधों पर रस्सियां,
सामान के साये में
भार से झुके हुए कंधे।
आन्दोलनों की गरज
लोगों की जरूरत,
कभी न कम थे
कभी न कम होंगे।
जब तक लोग जियेंगे
खबरबात तो पूछेंगे,
झील नहीं कहेगी
पहाड़ नहीं बोलेगा,
लोगों ने जो रचा
लोग ही तो कहेंगे।
बहुत व्यस्त था जमाना
अगल-बगल से भाग रहा था,
लोग जब जियेंगे तो
कुछ संघर्ष तो बनेंगे।
११.
तुम उस लड़की को जानते हो
जो हमारे घर के पास रहती थी
नहीं ना!
तुम उस लड़की को जानते हो
जो मेरे साथ गुल्ली-डंडा खेलती थी,
नहीं ना!
तुम उस लड़की को जानते हो
जो घराट पर मुझे छेड़ती थी,
नहीं ना!
तुम उस लड़की को जानते हो
जो मुझे अच्छा मानती थी,
नहीं ना!
तुम उस लड़की को जानते हो
जो मेरे साथ शादी करना चाहती थी,
नहीं ना!
तुम उस लड़की को जानते हो
जो चढ़ाव-उतार में मेरे साथ थी
नहीं ना!
इन सब बातों के बाद
तुम मुझे जानते हो,
नहीं ना!
यही न जानना,जानने के लिए हमें खींचता है।
१२.
जब भी मैंने कृष्ण भगवान को सुना
आराम से सुना,
उन्होंने कहा
"आत्मा को न भेद सकते हैं
न आग उसे जला सकती है
वह अजर-अमर है,
पुराना त्याग कर
नया रूप लेती है।"
जब भी मैंने कृष्ण भगवान को सुना
शान्ति से सुना,
प्यार के लिए भी
युद्ध के लिए भी,
प्यार जो उन्होंने राधा से किया
युद्ध ,जहाँ वेअर्जुन के साथ थे।
इस सुनने में,
कुछ बात तो है जो मन को भा जाती है।ँँ
१३.
प्यार बहुत पास ले आता है
इतना पास कि
पूछ लेने की इच्छा होती है
कैसे हो?
कहीं से उत्तर आता है
बहुत अच्छे
कहीं से कोई उत्तर नहीं आता
मैं समझ जाता हूँ
बहुत अच्छे में रहस्य छुपा है।
बात करने को मन होता है तो
पहले की तरह बेबाक तो नहीं हो सकता ,
घुमाफिरा कर पूछता हूँ
मौसम कैसा है?
गरमी कितनी है?
प्रदूषण कितना रहता है?
भीड़ तो बहुत बढ़ गयी होगी पहले से,
फल-फूलों की कमी तो नहीं है
वहाँ?
वे पूछते हैं, समय कैस कटता है आजकल?
मैं कहता हूँ
ऐसी -ऐसी गलतियां हो जाती हैं,
जिन्हें ठीक करने में ही तीन-चार दिन लग जाते हैं,
फिर देश की बातें,प्रदेश की बातें,
शहर और गांव की बातें तो हैं ही,
प्यार-मुहब्बत, घूमना-फिरना भी हैं ही,
कुछ दर्द में ,कुछ रोगों की टहनियों में,
कभी-कभी हँसी भी मुहर लगा जाती है,
जो समय नहीं कटता उसे ईश्वर के हिस्से डाल देता हूँ।
१४.
मैं प्यार के लिए बचा हूँ
कुछ खा- पी लो,
मोटे-ताजे होकर
काम पर जुट जाओ,
गोल रोटी बेलता हूँ
उन्हें देख कर खुश हो लो,
स्वादिष्ट व्यंजन बनाता हूँ
उन्हें खा के जाओ,
मैं प्यार के लिए बचा हूँ
मेरा स्वाद तो ले लो।
जितना हो सका
प्यार मैंने भरा,
छलक कर जो बाहर आया
वही नदी सा हो गया है।
१५.
बहुत प्यार करने की छूट भी नहीं,
बिना प्यार के जिन्दगी भी नहीं।
जिन्दगी किसी पुस्तक में नहीं,
कहीं और ढ़ूंढ लो पुस्तकालय में नहीं।
जंगलों से कुछ सीखा करें,
कुछ पल ही सही वहाँ बैठा करें।
१६.
मैं तो लौटना चाहता हूँ जिन्दगी,
तेरी सुगबुगाहट देखना चाहता हूँ जिन्दगी,
जहाँ तक मन जाता है जाना चाहता हूँ जिन्दगी,
सूखी यादों को हरा करना चाहता हूँ जिन्दगी।

प्यार के साथ तुझे पीना चाहता हूँ जिन्दगी,
तेरी आहट सुनना चाहता हूँ जिन्दगी,
बातों का सिलसिला रोकना नहीं चाहता हूँ जिन्दगी,
उम्र की पावबंदियों में भी बड़ी उड़ान चाहता हूँ जिन्दगी।
**महेश रौतेला

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