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चचेरी

चचेरी:

कहानियां पहले की तरह जन्म लेती रहती हैं। बुद्ध भगवान ने तीन स्थितियों में आदमी को देखा और उनका मन संसार से विरक्त हो गया। इसी तरह लोगों का मन आसक्त भी हो जाता है। शेरू उच्च शिक्षा प्राप्त कर तदर्थ नौकरी करने लगा। तदर्थ नौकरी शादी का अवसर ले आयी। शादी हो गयी और एक साल बाद तदर्थ नौकरी छूट गयी। अब शेरू ससुराल में पत्नी के साथ रहने लगा। ससुर की नौकरी पर सब पलने लगे। उनके ही सिगरेट और कमीज भी प्रयोग करने लगा। इसी बीच एक बच्चे का बाप भी बन गया। ससुराल से सभी सुख सुविधाएं लेने लगा इंटरव्यू बहुत जगह दिये पर सफलता नहीं मिली। अन्त में, बहुत समय बाद एक कालेज में लिपिक का पद मिल गया। और वह अपने परिवार के साथ वहाँ चला गया। धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। बच्चों को जन्म का समय चचेरे ससुर की लड़की( चचेरी) को बुला लेते थे। घर का सभी काम उस समय चचेरी ही किया करती थी। छुट्टियों में ससुराल में ही दिन कटते थे। साथ में कभी कभी दोस्तों और उनके परिवार को भी वहाँ ले आता था। अपने स्वार्थ के लिये मीठी जुबान प्रयोग किया करता था। चचेरी घर का अधिकांश काम करती थी। जिस कारण उसकी पढ़ायी में व्यवधान आता था, लेकिन उमकी परवाह उन्हें नहीं थी। समय के साथ पद्दोन्नति होती गयी। और उसका अहं छलांग लगाने लगा। अब बातचीत भी कमी आ गयी। मेलजोल सूखने लगा। ससुराल में किसी सदस्य के देहांत पर भी श्रद्धांजलि देने नहीं जाता था, यदि किसी के उसमें गया भी तो खड़े-खड़े, आत्मीय ढंग से बैठता नहीं था। जिस मकान में किराये पर रहता था उसके मालिक ने मकान खाली करने को कहा तो मामले को न्यायालय में ले गया। मकान मालिक सीधा सादा आदमी था। वह गांव में रहता था। बच्चे बड़े हो गये थे, अत: उन्हें पढ़ाने के लिये शहर लाना चाहता था। उसका पक्ष मजबूत था। न्यायालय में पराजय की आशंका देख, मकान मालिक से एक साल का समय मांग लिया। उस मकान में वह लगभग तीस साल रहा। अब तक बच्चे बड़े हो गये थे। चचेरे ससुर की लड़की को अपने बच्चों की शादी के एक माह पहले बुला लिया करता था , काम काज में हाथ बंटाने के लिये। वह लड़की लगभग दो हजार किलोमीटर दूर से सहयोग देने आती थी, अपने बच्चों को पति के साथ छोड़कर। जब उस लड़की के बच्चों की शादी हुई तो कुछ बहाना बना कर परिवार का कोई सदस्य, उनमें शामिल नहीं हुआ। जबकि,पहले कहा करते थे," मौसी, चिन्ता नहीं करना तेरे बच्चों की शादी में हम रहेंगे। " चचेरी के एक बड़े आँपरेशन पर जब बुलाया गया तो किसी के भी आने में असमर्थता जता दी। चालाक लोमड़ी की तरह उसके स्वार्थ बदलते रहे और वह उनके पीछे पीछे दौड़ता रहा। उसके सबसे छोटे बेटे की शादी में जब चचेरी आयी तो,उसकी तबियत अचानक खराब हो गयी। तो शेरू की पत्नी ने कहा," यदि तबियत खराब थी तो शादी में क्यों आयी?" चचेरी यह सुनकर आवाक रह गयी। एक दिन चचेरी भेंट करने उसके घर गयी। शेरू और उसकी बहू घर पर थे। बहू ने चचेरी को दूसरे दिन के खाने पर बुलाया। लेकिन दूसरे दिन उसकी बहू एक साधारण सी साड़ी सुबह सुबह चचेरी के भाई की पत्नी को दे गयी और बोली," चचेरी को दे देना दिल्ली से मेरी सास ने कहा है। दिन के खाने पर नहीं आना है। " इस घटना के बाद, एकबार चचेरी जब मायके गयी तो वह शेरू के घर नहीं गयी तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया,” सब जगह जाने के लिए समय मिल रहा है, हमारे यहाँ आने के लिए समय नहीँ है। “ चचेरी बैठे-बैठे पढ़ रही थी-

"बेटी"

"तुम्हारा हँसना,

तुम्हारा खिलखिलाना,

तुम्हारा चलना,

तुम्हारा जुड़ना ,

तुम्हारा नाचना ,

बहुत दूर तक गुदगुदायेगा ।

मीठी-मीठी बातें ,

समुद्र की तरह उछलना,

आकाश को पकड़ना ,

हवा की तरह चंचल होना,

बहुत दूर तक याद आयेगा ।

ऊजाले की तरह मूर्त्त होना,

वसंत की तरह मुस्काना,

क्षितिज की तरह बन जाना,

अंगुली पकड़ के चलना,

बहुत दूर तक झिलमिलायेगा ।

तुम्हारे बुदबुदाते शब्द ,

प्यार की तरह मुड़ना ,

ईश्वर की तरह हो जाना ,

आँसू में ढलना,

बहुत दूर तक साथ रहेगा ।

समय की तरह चंचल होना,

जीवन की आस्था बनना ,

मन की जननी होना,

बहुत दूर तक बुदबुदायेगा। "

***

जीवन

निर्दोष न रहा जीवन प्रांगण विषम

छलका औत्सुक्य विविध रूप रख,

बढ़ा विषम प्रसार आभा उज्जवल थी अस्त,

विश्व अनुराग बढ़ा दानव-मानव का एक साथ,

बँटी धरा तोड़ प्रीति शाखा हरित कोमल कोपल,

जटिल अधम मानस पर मानव विजय ।

काट नैसर्गिक प्रभा तिमिर भाव आया कैसे,

हुई शक्ति विषादपूर्ण जीवन स्नेह शैली टूटी,

दिव्य ज्योति की अपराजेय शक्ति हुई क्षण में लय ।

लांछित पद- गौरव मही महान क्षुब्ध,

मानव स्नेह भाव कर त्राण बन धीर

फलीभूत कर्दम विनाश होगा फिर ।

निर्दोष न लब्ध ज्ञान प्रखर

निर्दोष न अजेय शक्ति प्रबल प्रखर,

कुंठित हुई ज्योति अंधकार में इधर,

चक्रव्यूह रच लुंठित सत्य हुआ प्राय:

फैला निद्रा तमस जाल जीवनानुभूति हुई निराश,

सलिल स्रोत बन्द, प्राणों में अबुझ प्यास,पददलित प्रकाश में स्वेद स्राव,

जीवन रण में पूर्ण विजय न देते सर्वेश ।

केवल छल केवल छल कहता दानव ,

मानव संकल्प ज्वार धरती पर उतरा,

टूटा निद्रा तमस जाल, दिखा उज्जवल प्रकाश तब,

निर्दोष प्रकट हुए सर्वेश प्रहरी रख भेष,

स्नेह स्वप्न स्तब्ध देखा मानव ने धीरे,

गूँजा हृदय में स्वर एक स्नेहशील उज्जवल अगाध ।

दोहराया सत्य समर्थन, निर्दोष अनुभूति यह,

मिला जीने का अनुराग प्रबल,

हुआ अपराजेय शक्ति संवर्धन कठिन,

आकांक्षा में स्तब्ध अँधेरा, स्नेह स्वप्न क्षय,

पराजित शक्ति मानव की मूक हुई,

निर्दोष शक्ति से होगी विजय स्नेहशील ।

झुलसी जीवन विभा दोषों से गर्हित जीवन

सुकुमार श्री हुई कठोर पाषाण दुष्ट,

गिरा गिरी हृदय में ठोकर पाकर

समर शेष रहा सतत, अविजित योद्धा भी ।

हुई जीवन वेदना अमर मरणोपरान्त

निष्ठुर प्रकृति नहीं अश्रुपूर्ण यहाँ ।

शैथिल्य करूणा विधान क्रुद्ध दानव बल

अमोघ शक्ति शिथिल जड़भाव ग्रस्त

उलट गयी महिमा अंधकूप में तज चेतना सकल

निर्दोष थी अस्त छवि मानव की

तमस प्रकोप ग्रस्त जीवन भटका जर्जर विहीन

चेतना उत्थान को विवश,सृष्टि पथ तो है अविचल

चेतना अवसान होगा दोष मुक्त फिर एक बार

अंधकार सम्मानित गिरा गिरी हृदय में

विचलित शान्ति डगमगाया क्षितिज सूर्य

मस्तक से हटी आभा, हो चेतना शून्य

अर्जित महिमा खण्डित स्नेह कुंठित

पल्लव हुआ क्षीण जर्जर , पाने पतझड़

कलुषित भाव का तिमिर मेघ घुमड़ा प्राय: ।

पृथ्वी में दलित विधान रचती कुटिल मति

होगा उद्धार कैसे जड़ मति का आज

सम्मानित अंधकार न शाश्वत सृष्टि लक्ष्य

विशद ज्ञान न आया काम हुई तिमिरावृत्ति

अर्जित विनाश शक्ति श्रृंखला बनी ध्वंस पर्याय

कठिन विराम जीवन का, जिजीविषा हुई विलीन ।

निर्दोष भाव में नहीं अस्त जीवन ज्ञान

सहे जर्जर देह ने दोष प्राय:

कान्ति मुग्ध हो स्नेह ओर दौड़ता ज्ञान

हुआ सहज स्वरूप दूर, अशान्त भाव आया

फिर सृष्टि दृष्टि बनी कैसे

अनेक मौन निमंत्रण शाश्वत सत्य के आये

निर्दोष स्वरूप पहिचाना जिजीविषा थी उज्जवल ।

विप्लव जीवन विरुद्ध सतत जीवित

महिमा सर्वत्र नयन दो खोल रही

अन्तहीन पथ पर ज्योति-तिमिर सन्नाटा आया ।

जागी नवीन आशा फिर एक बार

महाकाश में गति अपार मति डोली

माथे का तिमिर कलंक हटा दृढ़ बनी समता

सशक्त अवदान जागे, निर्दोष भाव पाया

विधि की पवित्र कल्पना विषण्णानन पर आयी ।

निर्दोष विश्व कल्पना, सौष्ठव जागा

उछलता भाव समुद्र नाविक दूर अस्त-व्यस्त

बोली अपराजेय सत्ता, शाश्वत भाषा चिरनवीन

अमरता देखी नहीं हुआ आदान-प्रदान उसका

धीरे-धीरे अवसान उदय देखा

अनिर्वचनीय क्रम व्याप्त उथल-पुथल सतत ।

अमोघ शक्ति सूर्य बना साध्य लेने विजय

निर्दोष वह महिमा मार्ग शान्ति शिखर

अपार शक्ति चिर नवीन रह गयी बार-बार ।

निर्दोष जीवन हमेशा न रह सका

त्रुटि थी कहीं ह्रदय कोमल रुठा रहा

है दलित जीवन के किनारे चुपचाप वैभव

आँसुओँ में विश्व की पहिचान आयी ।

खो उज्जवल भाव, कलुषित विचार आया

मही हिली पददलित स्नेह द्रवित

अज्ञात अस्तित्व का युद्ध कोई लड़ रहा ।

असफल योजना सृष्टि है नहीं

अमरता की सुरक्षा अज्ञात होती

तब निर्दोष अस्तित्व कोमल कोई ढूंढ़ता ।

वृद्ध स्नेह सोया यहाँ वनवास लेकर

है स्वप्न पीड़ित स्वस्थ यौवन में उमंगें

निर्दोष जीवन से हमें क्या न मिल सका ।

पल्लवनी शक्ति जीवित, उदार अवदान लिए

सत्य हुआ प्रकट स्वर्गिक शान्ति लाने धीरे,

निर्दोष शक्ति कोपल खुली बनी मही महान ।

विश्व अधर पर रख कमनीय स्वर शीतल

पराजित हुआ अहं, निर्दोष सुषमा लौटी तब

मृत्यु पराजित जीवन पर है स्नेह भार कितना

सुषमा अधर पर कोमल हैं सब स्वर

आस्था उतर रही निःसंशय हृदय पर

स्नेह अधर माँ की ममता के जीवित हैं कब तक ।

पल्लवनी शक्ति हुई अस्त जीवित जन रोया तब

अंधकार में डूबी थी शक्ति, दोष पराजित जीवन था

सृष्टि के निर्मल हृदय पर टिका मस्तक फिर ।

सृष्टि शिष्ट है निर्लिप्त ध्वनि उसकी

गर्द किया मानव ने सब स्वयं अथाह

महिमा मस्तक ऊँचा रहा, हृदय हर्षित तब ।

अपराजेय भक्ति शक्ति आयी धीरे

वन्दना व्यर्थ नहीं वह शक्ति सम्पन्न

पर यात्रा जीवन की हुई न निर्विघ्न पूर्ण

विवश है समय ,गति-सूत्रों को चुनने

उद्विग्न आलोक व्याप्त मही पर अथाह

करुण कल्पना रुष्ट, क्रूर प्रवाह है अपार

अभी हमें हरित विश्वास जीवित करना अथाह ।

***

शेरू और उसकी पत्नी स्वर्थों के पीछे भाग रहे हैं। अहं उन्हें घेरे है। अपना कोई उन्हें, उनके व्यवहार के कारण मिलने नहीं जाता है तो तिलमिलाये रहते हैं। आखिर कहानियां ऐसे ही बनती हैं। चचेरी शेरू की पत्नी की सगी बहिन हो तो.

महेश रौतेला

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